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वाराणसी : बनारसी साड़ी बनाने वाले बुनकरों के समक्ष रोजगार व संसाधनों की चुनौती – प्रशांत भूषण
बनारस के आसपास के इलाकों में रहने वाले ग्रामीण बुनकरों की समस्याओं का कोई अंत नहीं है। वे लगातार अपना काम कर रहे हैं। इसलिए कि बिना काम किए उनका गुजारा नहीं है। लेकिन अब वे अपने भविष्य को लेकर चौकन्ने हो गए हैं और इसका एक ही रास्ता दिखाई पड़ता है कि वे संगठित होकर अपनी मांगों को उठाएं। 29 सितंबर को बिजली दर में हुई वृद्धि को लेकर एक सम्मेलन हुआ, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण उपस्थित हो बुनकरों की समस्याओं को सुना।
Varanasi : कमरतोड़ महंगाई के दौर में बनारसी साड़ी के मजदूर तंगहाल में गुजार रहे हैं जीवन
उत्तर प्रदेश में वाराणसी की बनारसी साड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन इन दिनों साड़ी बनाने वाले बुनकरों की हालत बेहद खराब हो गई है। बुनकरों ने अपनी स्थिति को लेकर क्या कहा? देखिये यह ग्राउंड रिपोर्ट
मऊ के बुनकरों के लिए क्यों खोती जा रही है भविष्य की उम्मीद
रामजनम -
साठ के दशक में अपनी बुनकरी के चलते पूर्वाञ्चल का मैनचेस्टर कहा जानेवाला मऊ शहर दिनोदिन बदहाली का शिकार होता जा रहा है। यहाँ...
वाराणसी के बजरडीहा वॉर्ड में ‘उपेक्षा’ का शिकार हो रहा मुस्लिम समुदाय
वाराणसी। बनारस के बजरडीहा में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। यहाँ गलियों की अधिकता होने के नाते समस्याएँ भी काफी हैं। स्मार्ट सिटी का नाम...
वाराणसी : ऊ कलाकारी करके का करें, जिसके सहारे परिवार का पेट ही ना पले
बुनकरों का कहना है कि सरकार मंहगाई रोक ही नहीं पा रही है। इतनी मंहगाई है कि आदमी शौक को दबाकर चूल्हा-चक्की के फेर में उलझा हुआ है। बनारसी हैंडलूम की साड़ियाँ महँगी होती हैं। अब बनाने वालों की मजदूरी ही जब आठ-दस हजार चली जाएगी, तब खुद ही सोचिए कि साड़ियाँ बनकर जब बाजार में जाएगी तब कितने की पड़ेगी। बुनकरों का यह सवाल वाजिब है।
विलासिता, शोषण और रोज़गार की कड़ियों के बीच कालीन उद्योग
ड्राइंग हॉल में बिछने के लिए बाज़ार तक पहुँचने से पहले कालीन, निर्माण कई प्रक्रियाओं से होकर गुज़रती है। हर प्रक्रिया में उसके विशेषज्ञ और कुशल-अकुशल मज़दूर काम करते हैं। कालीन निर्माण की एक प्रक्रिया में लगा मज़दूर और एक्सपर्ट कालीन निर्माण की दूसरी प्रक्रिया के लिए नौसिखिया होता है। कालीन निर्माण से जुड़ी हर प्रक्रिया बहुत बारीक और जटिल होती है।
दम तोड़ रहा है पूर्वांचल का हथकरघा कारोबार, कला के कारीगर मजदूरी करने को मजबूर
जरदोज़ी का काम अब सिर्फ मजदूरी का काम बन गया है। लोग इस काम के अंतिम रूप को देखते हैं और अक्सर इसमें लगी मेहनत और कौशल को देख नहीं पाते। लॉकडाउन के पहले रोजाना 12 घंटे का काम मिलता था। अब रोजाना 8 घंटे का काम मिलता है। कई सारे कारखाने बंद हो रहे हैं। मंदी की हालत में लोगों को जैसा भी काम मिल रहा है, वही करने लगे हैं।
प्रधानमंत्री के आदर्श ग्राम नागेपुर में बुनकरों ने चरखा और हथकरघा जलाने की दी चेतावनी
महासम्मेलन में बुनकरों ने फ्लैट रेट पर बिजली की माँग को लेकर किया प्रदर्शन
मिर्जामुराद। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सैकड़ों बुनकरों ने मुर्री...
पूर्वान्चल में बुनकरों को सरकारी राहत योजनाओं के लाभ की वास्तविकता
एक लोकतान्त्रिक देश में वोट बहुत महत्वपूर्ण है और इसे नागरिक को जन्म से मिलने वाला बुनियादी अधिकार समझा जाता है। आंकड़ों के अनुसार 184 (90 प्रतिशत) लोगों के पास वोटर पहचान पत्र था। 20 लोगों (10 प्रतिशत) के पास वोटर कार्ड नहीं था। इनसे जब वोटर पहचान पत्र नहीं रहने के कारण के बारे में पूछा गया तो कुछ लोगों ने फॉर्म भरने के बारे में कहा तो कुछ लोगों ने बताया कि कुछ तकनीकी कारणों से उनका आवेदन नहीं पूरा हुआ तो कुछ ने बताया कि कुछ गलतियों या उपयुक्त दस्तावेज नहीं रहने के कारण आवेदन खारिज कर दिया गया है।
बर्बाद हो चुके बनारसी साड़ी उद्योग में लगे बुनकरों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा है
चुनावी कवरेज के लिए हम जनता के मन-मिजाज को जानने के लिए बनारस के लल्लापुरा इलाके के काजीपुरा खुर्द मोहल्ले में बुनकरों से मिले।...
काहे रे नलिनी तू कुम्हिलानी …
दुनिया के सबसे उपेक्षित कवियों में से एक और सबसे ताकतवर और प्रतिभाशाली कवियों में से भी एक रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविताओं में...
बनारस के उजड़ते बुनकरों के सामने आजीविका का संकट गहराता जा रहा है
अपर्णा -
रेशम की किल्लत और उसको लेकर रोज आनेवाली नई-नई परेशानियों ने धीरे-धीरे बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी। फिर शुरू हुई भूखमरी और पलायन की रोंगटे खड़े कर देनेवाली कहानियाँ। बुनकरों की विशाल आबादी छिन्न-भिन्न होने लगी। किसी ने रिक्शे में जीवन की राह तलाशी, कोई मजदूरी करने लगा और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली।