पहलगाम की नृशंस घटना की निंदा करने के लिए हिंदू-मुसलमान दोनों एक साथ आए। इसके बाद भी मुसलमानों के खिलाफ लगातार नफरत फैलाई जा रही है। इस त्रासदी के बाद मुसलमानों के खिलाफ निर्मित नफरत चरम पर है। पहलगाम त्रासदी पर हुई कार्रवाई के बाद देश के प्रधानमंत्री ने विदेश में विभिन्न प्रतिनिधिमंडल भेजकर इस त्रासदी का भारतीय पक्ष बताने का फैसला किया। प्रधानमंत्री को यह क्यों जरूरी लगा? क्या प्रधानमंत्री अपने द्वारा उठाए गए कदम का स्पष्टीकरण देते हुए विदेशी नेताओं की शाबासी लेने के इच्छुक थे?
जिस पार्टी के पास आम जनता के असली मुद्दों से टकराने का साहस नहीं होता, वह ऐसे ही मुद्दों पर सुर्खियां बटोरने के काम में लगी रहती है, चाहे उसके परिणाम देश के लिए कितने ही खतरनाक क्यों न हो! औरंगजेब के बाद अकबर, बाबर और अब तुगलक को निशाने पर साधा है, क्योंकि संघ की स्थापना हिंदुत्व और सांप्रदायिकता को आगे बढ़ाने के लिए हुई थी, इसमें अब इनका राजनैतिक दल भाजपा बढ़ चढ़कर काम कर इतिहास बदलने का काम कर रहा है।
आरएसएस लगातार दोहरी नीति पर काम एक तरफ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री बयान देते फिरते हैं कि देश में सभी समुदाय के लोग सुरक्षित हैं, वहीं उनके पोषित लोग अल्पसंख्यकों पर लगातार हमला कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अभी क्रिसमस के मौके पर दिए संदेश में भगवान ईसा मसीह की शिक्षाओं पर अमल करने की बात कही, वहीं दूसरी तरफ लखनऊ मे चर्च के बाहर भक्तों ने गदर मचाया। अहमदाबाद में सांता क्लॉज की पोशाक पहने व्यक्ति की भक्तनुमा व्यक्ति ने पिटाई कर दी। यह मात्र एक या दो घटनाएं है। लेकिन पूरे देश में ऐसी सैकड़ों घटनाएं लगातार हो रही हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर नफरत इतनी व्यापक क्यों है?
वर्ष 2014 के बाद अल्पसंख्यकों को लेकर देश की कुर्सी संभालने वाले जिस तरह की भाषा का प्रयोग लगातार कर नफरत फैला रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई और जिसका सीधा असर मतदान पैटर्न पर दिखाई दिया। सामाजिक धारणायें भी इससे अछूती नहीं रहीं। आज हर हिंदू परिवारों के हजारों व्हाट्सएप ग्रुप और ड्राइंग रूम चैट में मुसलमानों को गुनहगार बनाकर नफरत फैलाई जा रही है। लेकिन इस विभाजनकारी भावना से कैसे निपटा जाए? लोगों के बीच वैकल्पिक आख्यान को विकसित करने की आवश्यकता है