मध्य प्रदेश में अपराधियों को कानून का कोई खौफ नहीं रहा गया है। दलितों, आदिवासियों के खिलाफ सामने आ रहे ज्यादातर मामलों में सत्ता समर्थक द्वारा ही उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आ रही हैं। यह घटना देश के शहरी विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह के निर्वाचन क्षेत्र खुरई में हुई है।
विकास का मतलब केवल यह नहीं है कि ऊंची इमारतें खड़ी हों जायें या सड़क निर्माण जैसी अन्य परियोजनाएं स्थापित हो जायें। सही मायने में विकास का मतलब बुनियादी सुविधाओं से वंचित और विस्थापित लोगों के जीवन स्तर में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक जैसे अन्य क्षेत्रों में सुधार लाना है। जिससे बुनियादी सुविधाओं से वंचित और विस्थापित लोगों को यह अहसास न हो कि उनके आवास और जमीन जैसे अन्य संसाधन छीनकर सरकार ने अपना और कुछ लोगों का विकास कर दिया।
इस बात की गंभीर चिंता है कि बेसिक आय श्रम बाजारों को विकृत कर देगा, क्योंकि श्रमिकों को नियमित रूप से प्राप्त होने वाली आसान आय, उन्हें काम करने से हतोत्साहित करेगी। इस नकद हस्तांतरण से श्रम आपूर्ति की मात्रा में कमी आएगी, क्योंकि श्रमिक घरेलू आय को प्रभावित किए बिना अपनी नौकरी छोड़ने का विकल्प चुन सकते हैं।
सीधी के पेशाब-काण्ड पर अनेक प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं। शब्दों में, भावनाओं में, प्रदर्शनों में, आलोचनाओं में, निंदाओं में, भर्त्सनाओं में, कुछ ने खूब...
अनुसूचित जनजाति बहुल इस क्षेत्र में सही अर्थों में विकास नहीं हो पाता है और लोगों को बुनियादी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अलग-अलग मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र में रहने के कारण संपूर्ण विकास की स्थिति नहीं बनती है। यही कारण है कि स्कूल भी गांव से दूर स्थापित हैं। इसके विपरीत इस क्षेत्र में सामान्य और पिछड़ा वर्ग की करीब 20 प्रतिशत आबादी भी विधमान है, जिनमें साक्षरता की दर 70 से अधिक है।
जो लोग भड़ककर पहला पत्थर फेंकते हैं उनकी भूमिका को भी कम करके नहीं आंका जा सकता, परंतु मुद्दा यह है कि त्योहारों और जुलूसों का उपयोग कुटिलतापूर्वक हिंसा भड़काने के लिए किया जाता है। इसका नतीजा होता है ध्रुवीकरण और साम्प्रदायिक पार्टी की ताकत में बढ़ोत्तरी। येल विश्वविद्यालय के एक शोध प्रबंध के अनुसार, 'दंगों से नस्लीय ध्रुवीकरण होता है जिससे नस्लीय-धार्मिक पार्टियों को कांग्रेस की कीमत पर लाभ होता है...।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में असमान आरक्षण कोटा सामाजिक न्याय के प्रतिकूल
मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण...
यह समय का पहिया घूमने जैसी बात है। दस साल हो रहे हैं जब 2009 में आई ग्रामीण विकास मंत्रालय एक मसविदा रिपोर्ट के 160 वें पन्ने पर भारत के आदिवासी इलाकों में कब्जाई जा रही ज़मीनों को धरती के इतिहास में 'कोलंबस के बाद की सबसे बड़ी लूट' बताया गया था। कमिटी ऑनस्टेट अग्रेरियन रिलेशंस एंड अनफिनिश्ड टास्क ऑफ लैंडरिफॉर्म्स शीर्षक से यह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाई है, जिसने छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के कुछ इलाकों में सरकारों और निजी कंपनियों (नाम समेत) की मिली भगत से हो रही ज़मीन की लूट से पैदा हो रहे गृहयुद्ध जैसे हालात की ओर इशारा किया था।