देश के कृषि संकट को पहचानने और बेरोजगारी, गरीबी और खाद्य असुरक्षा की बिगड़ती स्थिति से निपटने के बजाए मोदी सरकार ने पिछले बजट में खाद्य सब्सिडी में 90,000 करोड़ रुपये की कटौती की थी। इसी तरह, अन्य सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर और मनरेगा आबंटन में भी 30 प्रतिशत की कटौती की गई है।
समर्थकों के विशेष वर्ग को उन आलोचनाओं को सुन अपना पारा नहीं चढ़ाना चाहिए, जिन आलोचनाओं में भारत सरकार, केंद्र सरकार या एनडीए सरकार का संबोधन प्रयोग किया जाता है। ये तीनों अब कहीं हैं ही नहीं। यहां तक कि अब तो विदेश भी मोदी सरकार ही जाती है, भारत सरकार नहीं। जब भारत सरकार की जगह एक व्यक्ति विदेशी दौरों पर जाएगा, तो वो देश के कार्य से अधिक तवज्जो व्यक्तिगत कार्य को देगा।
जंगल सफारी में फोटो और उनके लिए बनाई गयी मुद्राओं पर चुटकी लेने वाले, स्थापना दिवस के समारोह में अपने अध्यक्ष के भाषण में भी बिना पलक झपकाए लगातार कैमरे में बने रहने के लिए उनका मखौल बनाने वाले भूल जाते हैं कि यह सिर्फ आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा बताया जाने वाला, सभ्य समाज में नार्सिसिज्म के रूप में परिभाषित किये जाने वाला मनोरोग नहीं है। यह एक बड़े, बहुत बड़े देश के सबसे प्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति का सोच-समझ कर किया जाना वाला आचरण है।
2024 के लोकसभा को ध्यान में रखते हुए हाल के दिनों में विपक्षी दलों द्वारा एकजुटता के लिए जो तरह-तरह के प्रयास हो रहे हैं, डीएमके द्वारा प्रायोजित सामाजिक न्याय सम्मलेन अघोषित रूप में उसी कड़ी का हिस्सा है, जिसमें सामाजिक न्याय के मुद्दे पर विपक्षी एकता का खास प्रयास हुआ है। और अगर ऐसा है तो यह 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बेहद प्रभावी प्रयास है। क्योंकि इस एकजुटता का आधार सामाजिक न्याय का मुद्दा है जो तेजस्वी यादव के शब्दों में \\\'धार्मिक उन्माद और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की भाजपाई राजनीति का मुंहतोड़ जवाब दे सकता है।