ख़बरदार! किसी ने इसे मोदीजी की ‘हार’ कहा तो…!

राजेंद्र शर्मा

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माना कि कर्नाटक में पब्लिक ने मोदी की मन की बात नहीं सुनी है। मोदीजी ने पूरे राज्य में घूम-घूमकर सुनाई, पर पब्लिक ने उनके मन की बात नहीं सुनी है। खास-खास शहरों में सड़कों पर घूम-घूमकर अपना चेहरा दिखाकर सुनाई, अपने ऊपर टनों फूल बरसवाकर सुनाई, वादों के अंबार लगाकर सुनाई, खुद अपनी तस्वीर, इकलौती तस्वीर बनाकर सुनाई, पर कर्नाटक वालों ने उनके मन की बात नहीं सुनी। और जिस पब्लिक ने मोदीजी के मन की बात ही नहीं सुनी, वह वोट तो खैर देती ही क्यों? मगर कर्नाटक की पब्लिक की इस नासमझी को, भाजपा की हार कहना तो सरासर गलत है, बल्कि नाइंसाफी है, नाइंसाफी…। भाजपा कोई हारी-वारी नहीं है। बस कांग्रेस को ही पब्लिक ने नड्डाजी की पार्टी से ज्यादा सीटें दे दी हैं, बल्कि बहुमत से भी दस-पंद्रह सीटें फालतू ही दे दी हैं। मगर चुनाव की दौड़ में कोई आगे, तो कोई पीछे रहता ही है। ये तो खेल है, खेल में हार क्या और जीत क्या? विरोधियों की विरोधी जानें, मोदीजी की पार्टी तो खेल भावना से खेलती है – हार में ना जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं!

अब प्लीज ये बचकाना सवाल कोई न करे कि कर्नाटक की पब्लिक ने मोदीजी के मन की बात क्यों नहीं सुनी? ऐसा भी होता है। कहीं-कहीं पब्लिक मन की बात नहीं सुनती है। बाकी छोड़िए, सेंचुरी वाली मन की बात भी नहीं सुनती है। डेमोक्रेसी बल्कि टू मच डेमोक्रेसी है, भाई! अब हिसाब चुकता हो रहा है, तब पता चल रहा है कि बहुत से लोगों ने सेंचुरी वाली मन की बात तक नहीं सुनी। उत्तराखंड के निजी वाले पब्लिक स्कूलों को मन की बात सुनने के फंक्शन से उड़ी लगाने वाले बच्चों पर जुर्माना लगाना पड़ा है, तो एक केंद्रीय नर्सिंग यूनिवर्सिटी को मन की बात को अनसुना करने के लिए तीन दर्जन ट्रेनियों को हफ्ते भर की हॉस्टल कैद का सर्कुलर निकालना पड़ा है। और भी कई जगहों पर संस्थाओं को मन की बात न सुनने वालों को धमकाना-लताड़ना पड़ा है। मोदीजी कुछ करने को थोड़े ही कह रहे हैं, सिर्फ सुनना है, फिर भी निकम्मे मन की बात सुनने के लिए भी राजी नहीं हैं।

जब मोदीजी की ही हार नहीं हो सकती है, तो बजरंग बली की हार की बात तो किसी को अपने मन में भी नहीं लानी चाहिए। बेशक, जैसे भगवा पार्टी ने कर्नाटक में मोदीजी के चेहरे पर चुनाव लड़ा, वैसे ही बजरंग बली के जैकारे पर भी चुनाव लड़ा। जैसे विपक्षियों को मोदी-विरोधी बताकर चुनाव लड़ा गया, वैसे ही विरोधियों को बजरंग बली का दुश्मन बताकर चुनाव लड़ा गया। जैसे मोदीजी को भारत राष्ट्र बताकर चुनाव लड़ा गया, वैसे ही बजरंग दल को बजरंग बली का कलियुगी अवतार बताकर चुनाव लड़ा गया। यानी बजरंग बली को, मोदीजी से ज्यादा नहीं, तो मोदीजी से कम भी नहीं वाले दर्जे का स्टॉर प्रचारक बनाकर चुनाव लड़ा गया।

और तो और विरोधियों ने तो मन की बात नहीं सुनने को भी, मोदीजी के विरोध का मुद्दा बनाने की कोशिश की है। कह रहे हैं कि डेमोक्रेसी में लोगों को कुछ भी सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। किसी के मन की बात सुनने को तो किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जा सकता है। सुनने की जितनी मजबूरी, डेमोक्रेसी से उतनी ही दूरी! विरोधी अच्छी तरह जानते हैं कि ये किसी ऐरे-गैरे के मन की बात नहीं, पीएम के मन की बात है। जी हां, डेमोक्रेेसी की मम्मी के पीएम के मन की बात। फिर भी विरोधी तो विरोधी, मामूली पब्लिक वाले भी नहीं सुनने की ‘आजादी’ मांग रहे हैं, बल्कि ले भी रहे हैं और इसके लिए सजा तक भुगत रहे हैं। ऐसे में कर्नाटक की पब्लिक ने वोट डालने में भी पीएम के मन की बात सुनने से आजादी ले ही ली, तो यूं ही सही। किसी की जीत बताना ही हो, तो इसे डेमोक्रेसी की जीत तो फिर भी कह सकते हैं। पर मोदीजी की हार – कभी नहीं।

जी हां! चुनाव मोदीजी के चेहरेे पर लड़ा गया हो; एक-एक वोट मोदीजी के लिए मांग कर लड़ा गया हो; कर्नाटक को मोदीजी का आशीर्वाद दिलाने के लिए लड़ा गया हो; तब भी नहीं। चाहे मोदीजी भी नहीं जिता पाए तो कोई कह भी ले, पर कर्नाटक के नतीजे को मोदीजी की हार तो किसी भी तरह से नहीं कह सकते हैं। नड्डाजी के पार्टी की हार कह सकते हैं। नड्डाजी की हार कह सकते हैं। उधारी वाले सीएम, बोम्मई की हार कह सकते हैं। सरकार बनाए रखकर, भूतपूर्व बनाए गए पिछले सीएम येदियुरप्पा की हार कह सकते हैं। जिस ऑपरेशन कमल से पिछली बार हार कर भी सरकार बनाई थी, उस ऑपरेशन कमल की हार भी कह सकते हैं। शायद हिजाब पर रोक की, अल्पसंख्यक ओबीसी का आरक्षण छीनकर ताकतवर जातियों को देने की, बच्चों के दोपहर के भोजन में से अंडे गायब कराने की, सांप्रदायिक अपराधियों के मुकद्दमे हटाने की, 40 फीसद कमीशन वाली सरकार चलाने की हार भी कह सकते हैं।

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यहां तक कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी, मोदीजी द्वारा दी गयी तरह-तरह की सौगातों की, पब्लिक को लाभार्थी बनाकर छोड़ देने की हार भी कह सकते हैं। पर मोदीजी की हार, कभी नहीं! अंगरेज कहते थे कि राजा कभी गलती नहीं कर सकता है। जो गलती तक नहीं कर सकता है, वह हार कैसे सकता है! फिर मोदीजी की हार, कैसे!

और जब मोदीजी की ही हार नहीं हो सकती है, तो बजरंग बली की हार की बात तो किसी को अपने मन में भी नहीं लानी चाहिए। बेशक, जैसे भगवा पार्टी ने कर्नाटक में मोदीजी के चेहरे पर चुनाव लड़ा, वैसे ही बजरंग बली के जैकारे पर भी चुनाव लड़ा। जैसे विपक्षियों को मोदी-विरोधी बताकर चुनाव लड़ा गया, वैसे ही विरोधियों को बजरंग बली का दुश्मन बताकर चुनाव लड़ा गया। जैसे मोदीजी को भारत राष्ट्र बताकर चुनाव लड़ा गया, वैसे ही बजरंग दल को बजरंग बली का कलियुगी अवतार बताकर चुनाव लड़ा गया। यानी बजरंग बली को, मोदीजी से ज्यादा नहीं, तो मोदीजी से कम भी नहीं वाले दर्जे का स्टॉर प्रचारक बनाकर चुनाव लड़ा गया। पर जब चुनाव की हार-जीत, मोदीजी की हार नहीं हो सकती है, तो बजरंग बली की हार कैसे हो जाएगी! अभी तो इक्का-दुक्का सुझाव ही आए हैं, मोदीजी का अवतार घोषित किया जाना, अब भी दूर है। बजरंग बली का दर्जा मोदीजी से तो बढ़कर नहीं!

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और हां, इसे केरल स्टोरी की, सिर्फ केरल ही नहीं, कर्नाटक समेत पूरे दक्षिण भारत में हार बताने वाले याद रखें कि अगर योगीजी ने ठान ली, तो अकेले सारी भरपाई करा देंगे; टैक्स माफ करने पर ही नहीं रुकेंगे; ‘मन की बात’ को सुनना कंपल्सरी बनाने की तरह, ‘केरल स्टोरी’ देखना भी कंपल्सरी बना देंगे। ‘केरल स्टोरी’ हर शो में मुफ्त चलाया जाएगा और जो सिनेमा हॉल में सोता पाया जाएगा, सीधे यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) में जेल भेज दिया जाएगा।

इस व्यंग्य लेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।

1 Comment
  1. Trinidad Timmons says

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