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narendra modi
‘मोदियों’ के बारे में राहुल गांधी का वक्तव्य क्या OBC का अपमान है?
इसी रणनीति का सबसे ताजा उदाहरण है भाजपा द्वारा जाति जनगणना का विरोध। केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटे के निर्धारण को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का निर्वहन बताया है। सरकार का कहना है कि गरीबों की मदद करना उसका नैतिक और संवैधानिक कर्त्तव्य है। परंतु आलोचक मानते हैं कि ईडब्लूएस कोटा जाति के आधार पर भेदभाव करता है क्योंकि सरकार ने रुपये 8 लाख प्रतिवर्ष से कम आय वाले गैर-एससी, एसटी व ओबीसी परिवारों के लिए जो 10 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया है वह केवल उच्च जातियों के लिए है।
देश की बदनामी चालू आहे!
नये इंडिया के डंके ही डंके, बल्कि मंदिर वाले घंटे ही घंटे। सब अच्छा ही अच्छा होना था। नोबेल वालों का भी गांधीजी को पुरस्कार न दे पाने का कलंक मिट जाता। भारत के इतिहास की तरह, नोबेल पुरस्कारों का भी इतिहास दुरुस्त हो जाता। एक गुजराती को न सही, दूसरे गुजराती को सही, पर किसी गुजराती को तो शांति का नोबेल मिल जाता।
हँसे तो फंसे!
मोदीजी का दु:ख गलत नहीं है। पौने नौ साल हो गए बेचारों को इंतजार करते कि कोई आलोचक आए, कोई आलोचक मिले, पर कोई...
डॉ. अंबेडकर की तस्वीर पर माला और उनकी 22 प्रतिज्ञाओं के विरोध की दोमुंही राजनीति
दिल्ली की ‘आप' सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से हाल में उनका इस्तीफा ले लिया गया। उन्होंने 5 अक्टूबर (अशोक विजयादशमी दिवस) को दिल्ली...
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आइने में असमानता ख़त्म करने का एक अभिनव विचार!
विश्व आर्थिक महाशक्ति बनने का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार की पोल खोलने वाली एक और रिपोर्ट सामने आई है। वह है ग्लोबल हंगर...
सुभाषचंद्र बोस के तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास
इस साल 8 सितबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुभाषचन्द्र बोस के विचारों और उनकी राजनीति को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने का एक...
क्या बिना मजबूत गठबंधन के मोदी को हराया जा सकता है?
6 अप्रैल भाजपा का स्थापना दिवस होता है। इस वर्ष उसके स्थापना दिवस पर बीबीसी के संवाददाता जुबैर अहमद ने बीजेपी के 42 वर्षों...
बिलकीस बानो प्रकरण पर एक टिप्पणी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में महिलाओं का सम्मान करने की अपील की थी। उसके बाद देश में दो ऐसी...
प्रधानमंत्री का स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन कथनी और करनी के विद्रूप
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस उद्बोधन कुछ ऐसा था कि जो कुछ उन्होंने कहा वह चर्चा के उतना योग्य नहीं है जितना कि...
धरी की धरी रह गई नरेंद्र मोदी की अंतरिक्ष में अमर होने की तमन्ना (डायरी, 8 अगस्त, 2022)
अंतरिक्ष में कचरा सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूं जो इससे जुड़े अन्य वैज्ञानिक सवालों के बारे...
संजीव भट्ट, वरवर राव और आनंद तेलतुंबड़े जैसे लोगों के नाम (डायरी, 4 अगस्त, 2022)
आज 4 अगस्त है और ठीक ग्यारह दिन बाद इस देश में स्वतंत्रता का जश्न मनाया जाएगा। इस बार का जश्न बहुत खास है...
अशोक स्तम्भ विवाद में जो कुछ हो रहा है वह अप्रत्याशित नहीं
सेंट्रल विस्टा की ऊपरी मंजिल पर स्थापित अशोक स्तंभ की प्रतिकृति के अनावरण के बाद से प्रारंभ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा...
क्या राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भारत आदिवासियों के साथ होनेवाले अन्याय को ख़त्म करेंगीं
संविधान निर्माताओं समेत स्वाधीनता संग्राम से मंज-तपकर निकले सिद्धान्तनिष्ठ और खरे राजनेताओं की उस पुरानी पीढ़ी ने (जिसे यह पता था कि हमारा लोकतंत्र...
एक ताकतवर सरकार आखिर किससे डरती है?
ज़किया जाफ़री बनाम गुजरात राज्य मामले में हाल में अपना फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने ज़किया जाफ़री की याचिका ख़ारिज कर दी। ज़किया...
वाराणसी को पहचान देने वाली ‘वरुणा’ और ‘असि’ की उखड़ती साँसें क्यों नहीं सुन पा रहे मोदी
वरुणा कॉरिडोर बनवाकर सपा सुप्रीमो अखिलेश ने साल 2016 में खूब सुर्खियां बटोरी थी। उस समय इस नदी को बचाने के लिए मुहिम चला रहे जनसरोकारीय संगठनों और स्थानीय लोगों में उम्मीद जगी कि नदी साफ हो जाएगी। सत्ता बदली तो जैसे इस नदी के नसीब ही फूट गए। इसका भाग्य संवारने के लिए कोई दूसरा भगीरथ नहीं आया। अब जनवादी संगठन पदयात्रा निकाल रहे हैं और इस नदी के पुनरुद्धार के लिए मुहिम चला रहे हैं।
सिख इतिहास की जटिलताओं को नजरअंदाज करता प्रधानमंत्री का उद्बोधन
विगत दिनों प्रधानमंत्रीजी ने लाल किले से श्री गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व समारोह के मौके पर देश को संबोधित किया। उनके...
आंकड़ों की बाजीगरी में नीतीश नरेंद्र मोदी के उस्ताद (डायरी 10 फरवरी, 2022)
खबरों की तुलना व्यंजनों से की जा सकती है। हम कह सकते हैं कि कोई खबर कितनी अच्छी है, यह उसके इंग्रेडिएंट्स पर निर्भर...
भारत में सामाजिक अन्याय को ऐसे भी समझिए (डायरी 8 फरवरी, 2022)
सामाजिक अन्याय का कोई एक रूप नहीं होता और इसे अंजाम देनेवालों का पैंतरा भी कमाल का होता है।सबसे दिलचस्प यह कि अपना वर्चस्व...
बजट 2022 – गांव और किसान की खटकने वाली अनदेखी
बजट में सरकार कहीं भी गरीब, कमजोर और जरूरतमंद के साथ खड़ी दिखाई नहीं देती। मनरेगा के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 में 73000 करोड़ का प्रावधान किया गया है जो मनरेगा के जानकारों की दृष्टि में निराशाजनक है। विगत वित्तीय वर्ष के संशोधित आकलन की तुलना में वर्तमान बजट में मनरेगा हेतु आबंटित राशि में 25.51 प्रतिशत की कटौती की गई है।
विकास नहीं, भागीदारी को मिले तरजीह! (ऑक्सफाम रिपोर्ट-2022 के आईने में )
ऑक्सफाम की ताजी रिपोर्ट से जाहिर है कि नई सदी में विकास की जो गंगा बही है; जिस विकास के नाम पर शोर मचाकर मोदी जैसे लोग सत्ता दखल करते रहे हैं, उसमें दलित,आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को नहीं के बराबर हिस्सेदारी मिली। इसलिए तेज विकास में बहुजनों की नगण्य भागीदारी आज सबसे बड़ा मुद्दा है, जिससे राजनीतिक दलों सहित मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग आँखे मूंदे हुए है.ऐसे में यूपी चुनाव में आज जिस विकास का शोर मचा रहे हैं, उसका बहिष्कार होना चाहिए क्योंकि इस विकास में दलित-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों से युक्त बहुजन समाज की बर्बादी का षड्यंत्र छिपा है।