Saturday, April 20, 2024
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धरी की धरी रह गई नरेंद्र मोदी की अंतरिक्ष में अमर होने की तमन्ना (डायरी, 8 अगस्त, 2022) 

अंतरिक्ष में कचरा सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूं जो इससे जुड़े अन्य वैज्ञानिक सवालों के बारे में सोचूं। लेकिन इस धरती का सामान्य वाशिंदा होने के नाते यह जरूर सोचता हूं कि अमेरिका हो, चीन हो या फिर भारत हो, ये सभी देश जो अंतरिक्ष पर कब्जे […]

अंतरिक्ष में कचरा सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूं जो इससे जुड़े अन्य वैज्ञानिक सवालों के बारे में सोचूं। लेकिन इस धरती का सामान्य वाशिंदा होने के नाते यह जरूर सोचता हूं कि अमेरिका हो, चीन हो या फिर भारत हो, ये सभी देश जो अंतरिक्ष पर कब्जे की अपनी-अपनी कोशिशों में लगे हैं, क्या इनके हुक्मरान कभी यह सोचते हैं कि अंतरिक्ष में कचरे के क्या प्रभाव हो सकते हैं?

कई बार हवाई सफर के दौरान भी यह सवाल मेरी जहन में चलता रहता है। वजह यह कि विमान की गति बहुत तेज होती है और इसका ढांचा देखने में भले ही आकर्षक जरूर लगता है लेकिन उतना मजबूत होता नहीं है। खासकर इसके पंख वगैरह। विमान दुर्घटनाओं की अहम वजहों में किसी पंछी का टकरा जाना आज भी है। अब इस हिसाब से यदि हम सोचें तो अंतरिक्ष में जो कचरा फैलाया जा रहा है, उसके बारे में महज अनुमान लगाया जा सकता है।

दरअसल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो ने कल इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि रविवार को उसका प्रक्षेपण यान एसएसएलवी-डी 1 अपने मिशन में विफल रहा। वह अपने साथ दो उपग्रहों को लेकर जा रहा था, जिन्हें अंतरिक्ष के वृत्ताकार क्षेत्र में प्रक्षेपित करना था। लेकिन यान ने उपग्रहों को लक्षित स्थान से बहुत दूर एक अंडाकार क्षेत्र में प्रक्षेपित कर दिया, जिसके कारण दोनों उपग्रह बेकार हो गए। अब ये दोनों उपग्रह अंतरिक्ष में कचरा बन गए हैं।

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अब अंतरिक्ष में कचरा बन चुके दोनों उपग्रहों के बारे में जानना भी कम दिलचस्प नहीं है। इसरो द्वारा रविवार को प्रक्षेपित पहले उपग्रह का नाम है ईओएस-2। इसका वजन 145 किलोग्राम था। इसरो के मुताबिक इसे अंतरिक्ष में इंफ्रा बैंड में उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। वहीं दूसरा उपग्रह महज 8 किलो का था और उसमें 75 उपकरण लगे थे। इसे ‘आजादीसैट’ नाम दिया गया था। इसरो का कहना है कि इस उपग्रह का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों की 750 छात्राओं ने किया, जिन्हें इसरो के वैज्ञानिकों ने ‘स्पेस किड्स इंडिया’ अभियान के तहत मार्गदर्शन दिया।

दरअसल, इसरो के उपरोक्त दोनों उपग्रह महज औपचारिक थे। पहले के संदर्भ में तो इसरो के वैज्ञानिकों ने एक कारण भी बता दिया। लेकिन दूसरा उपग्रह महज एक खिलौना ही था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस उपग्रह का काम केवल इतना था कि यह भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ को अंतरिक्ष में अमर करता। यह रोशनी के प्रभाव से अंतरिक्ष में इसकी उद्घोषणा करता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर अंतरिक्ष में नजर आती। यदि यह सफल हो जाता तो निश्चित तौर पर अखबारों में यह खबर जरूर छापी जाती कि अब अंतरिक्ष में वंदे मातरम गूंजेगा।

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मतलब यह कि बेवकूफी की यह पराकाष्ठा है। हालांकि यदि अंतरिक्ष में कचरे के मूल सवाल पर लौटें तो सबसे अधिक अमेरिका ने अंतरिक्ष में कचरा फैलाया है। यह बात स्वयं नासा ने कबूल किया है कि अंतरिक्ष में कचने में अमेरिकी कचरा का हिस्सा करीब 42 फीसदी है। वहीं दूसरे स्थान पर चीन और पांचवें स्थान पर भारत है।

बहरहाल, हुक्मरान चाहे हमारे देश के हों या किसी और देश के, कोई ब्रह्मांड की चिंता नहीं करते। यह बेहद दुखद है। सभी स्पेस पॉवर बनने की तमन्ना रखते हैं। मैं तो भारत का नागरिक हूं तो यह सोचकर भी हंसी आ रही है कि हमारे देश के हुक्मरान ने अंतरिक्ष में केवल अपने नाम के वास्ते इसरो जैसे महत्वपूर्ण संगठन का दुरूपयोग किया।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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