Saturday, July 27, 2024
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संजीव भट्ट, वरवर राव और आनंद तेलतुंबड़े जैसे लोगों के नाम (डायरी, 4 अगस्त, 2022)

आज 4 अगस्त है और ठीक ग्यारह दिन बाद इस देश में स्वतंत्रता का जश्न मनाया जाएगा। इस बार का जश्न बहुत खास है क्योंकि यह 75वां जश्न होगा और भारत सरकार के द्वारा इसे व्यापक स्तर पर मनाने की तैयारी अब चरम पर है। हर घर तिरंगा योजना को अंजाम दिया जा रहा है। दिलचस्प […]

आज 4 अगस्त है और ठीक ग्यारह दिन बाद इस देश में स्वतंत्रता का जश्न मनाया जाएगा। इस बार का जश्न बहुत खास है क्योंकि यह 75वां जश्न होगा और भारत सरकार के द्वारा इसे व्यापक स्तर पर मनाने की तैयारी अब चरम पर है। हर घर तिरंगा योजना को अंजाम दिया जा रहा है। दिलचस्प खबर उत्तर प्रदेश से है जहां कैबिनेट ने यह फैसला लिया है कि पंचायती राज विभाग तिरंगे का खर्च वहन करेगा। यह वाकई बेहद दिलचस्प है कि एक तिरंगे की कीमत 20 रुपए लगायी गई है और सरकार इसी दर पर तिरंगे की खरीद करेगी। महत्वपूर्ण यह है कि यह पैसा मनरेगा योजना का पैसा है। शासन के हिसाब से बात करें तो यह वित्तीय प्रबंधन है। जाहिर तौर पर यह अकेले उत्तर प्रदेश का मामला नहीं है। अन्य राज्यों में भी इसी तरह से वित्त का प्रबंधन किया जा रहा होगा। हालांकि मेरे गृह प्रदेश बिहार की सरकार ने यह प्रबंधन कैसे किया होगा, यह जानने की अभिलाषा रखता हूं।

खैर तिरंगे की कीमत बीस रुपए है और मैं यह देख रहा हूं कि पटना से प्रकाशित अखबारों में बलात्कार से जुड़ी सात खबरें प्रकाशित हैं। हत्या वगैरह की भी खबरें हैं। वैसे ये खबरें रोज की बात हैं। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के द्वारा जारी आंकड़े इसकी सरकारी पुष्टि भी करते हैं कि इस देश में हर पांच मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार की घटना होती है।

देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ है और मैं हूं कि संजीव भट्ट से लेकर आनंद तेलतुंबड़े व वरवरा राव के बारे में सोच रहा हूं। मुझे यह नहीं सोचना चाहिए। वजह यह कि जब इस देश के अन्य लोग जो संसद में हैं, अदालतों में हैं, विश्वविद्यालयों में हैं, कलाकार हैं, साहित्यकार हैं, वे नहीं सोच रहे हैं तो एक मेरे सोचने से क्या फर्क पड़ जाएगा।

लेकिन मैं कौन होता हूं यह जोड़नेवाला कि तिरंगे की कीमत बीस रुपए आंकी गई है और देश में हर पांच मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार की घटना होती है। मुझे यह नहीं सोचना चाहिए। सोचने का काम इस देश के नीति निर्माताओं को करना चाहिए। लेकिन कल ही दिल्ली में कुछ सांसदगण मोटरसाइकिल पर सवार होकर तिरंगा लहरा रहे थे। यह दृश्य अजीब था। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू इस मौके पर स्वयं मौजूद थे। जाहिर तौर पर यह सब आजादी की 75वीं वर्षगांठ के जश्न को जश्न बनाने की तैयारी है। मुझे तो आश्चर्य हुआ कि कल जब सांसदगण मोटरसाइकिलों पर खड़े होकर करतब दिखा रहे थे तब नरेंद्र मोदी कहीं नजर नहीं आए। वह होते तो यह दृश्य कुछ और संकेत देता।

लेकिन मैं संजीव भट्ट के बारे में सोच रहा हूं। संजीव भट्ट गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं और इन दिनों जेल में बंद रखे गए हैं। हाल ही में जेल में ही उनकी गिरफ्तारी की गई। उनके उपर अब नया आरोप है कि उन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगे, जिसमें दो हजार से अधिक मुसलमानों का जनसंहार किया गया, के मामले में नरेंद्र मोदी को फंसाने की नीयत से सबूत जुटाए। अभी इस मामले की जांच चल रही है। उनके साथ ही इस मामले में तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के तत्कालीन डीजीपी बी. कुमार को भी गिरफ्तार किया गया है। लेकिन संजीव भट्ट पहले से जेल में हैं और उनके उपर आरोप है कि उन्होंने प्रभुदास वैश्नानी नामक एक भाजपा कार्यकर्ता की हत्या हिरासत के दौरान पीट-पीटकर कर दी थी, जो उन 133 लोगों में से एक था, जो आडवाणी की रथयात्रा के मद्देनजर हुए सांप्रदायिक दंगे में शामिल थे। तब जामनगर की पुलिस ने यह कदम उठाया था। इस मामले में जून, 2019 में गुजरात की निचली अदालत ने संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। इस सजा के खिलाफ संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे उन्होंने कल वापस ले लिया। उनकी ओर से वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि गुजरात हाईकोर्ट को इस संबंध में कानूनसम्मत फैसला करने का निर्देश दिया जाय। हालांकि गुजरात हाईकोर्ट पहले ही संजीव भट्ट के बारे में टिप्पणी कर चुका है कि वे (संजीव भट्ट) अदालतों का सम्मान नहीं करते हैं।

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मैं यही सोच रहा हूं कि क्या संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट का भी सम्मान नहीं किया? या फिर उन्होंने यह मान लिया है कि उन्हें अब कहीं से इंसाफ नहीं मिलने वाला? इन्हीं सवालों पर विचार करने की आवश्यकता है। आनंद तेलतुंबड़े, वरवरा राव, गौतम नवलखा सहित अनेक सामाजिक चिंतक-विचारक जेल में हैं। सरकार ने इन्हें भी पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में कैद कर रखा है।

खैर, देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ है और मैं हूं कि संजीव भट्ट से लेकर आनंद तेलतुंबड़े व वरवरा राव के बारे में सोच रहा हूं। मुझे यह नहीं सोचना चाहिए। वजह यह कि जब इस देश के अन्य लोग जो संसद में हैं, अदालतों में हैं, विश्वविद्यालयों में हैं, कलाकार हैं, साहित्यकार हैं, वे नहीं सोच रहे हैं तो एक मेरे सोचने से क्या फर्क पड़ जाएगा। मैं तो भारत सरकार की उस उद्घोषणा का इंतजार कर रहा हूं जिसमें आजादी की 75वीं वर्षगांठ, जिसे सरकार ने अमृत महोत्सव की संज्ञा दी है, के मौके पर सम्मानित होनेवाले बुद्धिजीवियों, कलाकारों, साहित्यकारों आदि की सूची होगी।

कितना अलहदा होगा वह दृश्य! एक तरफ संजीव भट्ट और आनंद तेलतुंबड़े जैसे लोग जेल में होंगे और दूसरी तरफ लोग तिरंगा फहराएंगे।

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मैं क्या करूंगा? मैंने यह सोच लिया है। मैं वही करूंगा जो हर साल करता हूं। जलेबियां खाता आया हूं और इस बार भी यही करूंगा। कुछ नई किताबें आनेवाली हैं। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के लिए मैं इससे अधिक कुछ नहीं कर सकता। इस बार भी ‘जय हिंद’ कहूंगा या नहीं, अभी सोचा नहीं है।

नवल किशोर कुमार

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