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सुरंग में फंसे श्रमिकों की संख्या बढ़कर 41 हुई, बचाव कार्य में रुकावट

उत्तरकाशी(भाषा)।  उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढहने से उसके अंदर फंसे श्रमिकों की संख्या 40 से बढ़कर अब...

उत्तराखंड सुरंग दुर्घटना में बचाव कार्य से श्रमिकों के बाहर आने की उम्मीद बढ़ी

उत्तरकाशी (भाषा)।  सिलक्यारा सुरंग में नई और शक्तिशाली ऑगर मशीन ने शुक्रवार सुबह तक 21 मीटर मलबे को भेद दिया जिससे पिछले पांच दिनों...

घर सँवारने में ही नहीं आर्थिक जिम्मेदारियाँ निभाने में भी योगदान देती हैं महिलाएँ

बीज बोने से लेकर फसल कटाई के बीच की अवधि में फसल का पूरा ध्यान महिलाएं रखती हैं। वह उन्हें खरपतवार और कीट पतंगों के प्रकोप से बचाने के लिए उसका ध्यान रखती हैं। वह फसल को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। भागुली देवी पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं कि भले समाज कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को सम्मानित नहीं करता हो, लेकिन समाज को यह बखूबी पता है कि हम महिलाओं के बिना कृषि का काम अधूरा है।

‘विशेष राज्य’ बनने के 22 वर्ष बाद भी उत्तराखंड में सड़क विहीन हैं कई गाँव

कपकोट (उत्तराखंड)। हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर करती है। आज भी देश की 74 प्रतिशत आबादी यहीं से है। लेकिन...

संसाधनों के बावजूद विकसित नहीं है उत्तराखंड, लगातार बढ़ रहा है पलायन

राज्य में आय का एक बड़ा स्रोत होने के बावजूद ग्रामीण रोज़गार के लिए शहर जाने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरी ओर इन संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से अब यह सीमित मात्रा में रह गए हैं। यदि तेज़ी से संसाधनों का पलायन न रोका गया तो उत्तराखंड और विशेषकर उसके ग्रामीण क्षेत्रों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि मानव की अपेक्षाएं असीमित हैं, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा सीमित है।

आज़ादी के अमृतकाल में भी बुनियादी सुविधाओं के लिए पलायन करता गांव

गांव में बढ़ती बेरोजगारी पलायन की सबसे बड़ी वजह बन चुका है। लोग विशेषकर युवा उज्जवल भविष्य और अधिक पैसा कमाने की लालच में गांव से शहर की तरफ कूच कर रहे हैं। यह एक सिलसिला बन चुका है। लोगों को लगता है कि गांव में कोई भविष्य नहीं है। जबकि गांव के संसाधनों का सही इस्तेमाल किया जाए तो रोज़गार की असीम संभावनाएं निकल सकती हैं। इसमें सबसे बड़ा पर्यटन और जैविक फल-फूल का उत्पादन शामिल है।

बहू और बेटी में भेदभाव करता समाज

भारतीय समाज जटिलताओं से भरा हुआ है, जहाँ रीति-रिवाज के नाम पर कई प्रकार की कुरीतियां भी शामिल हो गई हैं, जिसका खामियाज़ा महिलाओं...

लड़कियों के लिए भी जरूरी है खेल

खेल खेलना आम तौर पर आपकी फिटनेस और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक शानदार तरीका है। इससे न सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ रहता...

नहीं रुक रहा है किशोरियों के साथ भेदभाव, आज भी समझा जाता है बोझ

भारत में हर बच्चे का अधिकार है कि उसे, उसकी क्षमता के विकास का पूरा मौका मिले। लेकिन आज़ादी के सात दशक बाद भी...

जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होतीं किशोरियां

प्राकृतिक घटनाओं में जिस तरह से एक के बाद एक बदलाव आए हैं, वह जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम हैं। अचानक तूफ़ानों की संख्या...

आज भी रंगभेद का शिकार हो रही हैं लड़कियां

21वीं सदी को साइंस और टेक्नोलॉजी का दौर कहा जाता है,  इसके बावजूद कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो आज भी मानव सभ्यता के लिए...

शिक्षा को रोजगार परक बनाने की आवश्यकता

सेन्टर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की जनवरी 2023 में जारी रिर्पोट के अनुसार, भारत में दिसंबर 2021 तक बेरोजगारों की संख्या 5.3 करोड़ है, जिसमें...

खेती के नए स्वरूप को अपना रहे हैं पहाड़ों के किसान

उत्तराखण्ड राज्य पर्यटन के लिए विश्व में अपनी खास पहचान रखता है, जिसके चलते लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटक यहां आते हैं। जहां उनके खाने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके चलते भीमताल को मशरूम उत्पादन का हब बनाने को लेकर जिला प्रशासन की योजना कामयाब हो रही है। वर्ष 2022-23 में नैनीताल जिले में 1292 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले वर्ष 942 मीट्रिक टन था।

ठीक नहीं है पहाड़ों के पर्यावरण की उपेक्षा

कपकोट (उत्तराखंड)। समय पूर्व तैयारियों ने हमें चक्रवाती तूफ़ान बिपरजॉय से होने वाले नुकसान से तो बचा लिया लेकिन यह अपने पीछे कई सवाल...

हिन्दू संगठनों की महापंचायत रोकने की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट करेगा सुनवाई

उत्तराखंड। उत्तरकाशी के पुरोल में साम्प्रदायिक तनाव के हिंदूवादी संगठनों द्वारा 15 जून को प्रस्तावित महापंचायत को रोकने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से...

रसोई से विद्यालय तक फैला है जातिवाद का जहर

उत्तराखंड। देश का संविधान कहता है कि भारत में किसी के भी साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी तरह का भेदभाव...

बुनियादी ढाँचा है, मगर सुविधा नहीं

रौलियाना (उत्तराखंड)। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए ज़रूरी है कि वहाँ न केवल बुनियादी ढाँचा मज़बूत हो, बल्कि क्षेत्र की जनता को...

कौन चढ़ा रहा है जोशीमठ की बलि!

जोशीमठ उत्तराखंड का पुराना और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण शहर है। यह बद्रीनाथ के करीब है। 25-30 हजार की जनसंख्या वाले इसी शहर में...

क्या उत्तराखंड में चिपको आन्दोलन फिर से जीवित हो रहा है

उत्तराखंड में मंदोदरी देवी ने जल, जंगल और ज़मीन के सवाल को फिर से ज़िन्दा कर दिया है। कॉर्पोरेट द्वारा प्राकृतिक संपदाओं की लूट...

उत्तराखंड : हेलंग की घटना के वास्तविक पेंच को भी समझिए

मंदोदरी देवी ने किसी भी तरह का कोई अपराध नहीं किया था क्योंकि चारागाह गाँव समाज की संपत्ति होता है। लेकिन पुलिस ने उसके घास का गट्ठर छीन लिया और जबरन उसे पुलिस की गाड़ी मे डाल दिया।  महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें  पकड़ लिया और उनकी देवरानी तथा बहू के साथ पुलिस वाहन में बिठा लिया। उनके चार वर्षीय पोते को भी उनके साथ हिरासत में लिया गया और उन सभी को गांव से लगभग 8 किलोमीटर दूर जोशीमठ ले जाया गया, जहां उन्हें बिना खाए-पिए छह घंटे तक बैठाया गया। बाद में उनके ऊपर अतिक्रमण के लिए जुर्माना लगाने के बाद छोड़ दिया गया।

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