कट्टरपंथी हिंदूत्ववादी विनायक दामोदर सावरकर हजारों लोगों की उपस्थिति में, जिसमें महिला-पुरुष दोनों होते थे, अपना भाषण दिया करते थे। वे अपने भाषण में शत्रुओं की औरतों को बेइज्जत करने की बात पर जोर देते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने युद्ध में कल्याण का किला जीता और किला जीतने के बाद सूबेदार ने मुगल किलेदार की बहू को शिवाजी महाराज के लिए बतौर उपहार ले आया। इस बात की जानकारी होते ही शिवाजी ने सूबेदार पर नाराजगी जाहिर करते हुए, उन्हें ससम्मान परिवार वालों के पास वापस भेज दिया था। इन्हीं मानवीय मूल्यों के कारण छत्रपति शिवाजी को चार सौ साल से अधिक समय बाद भी आज याद किया जाता है।
वैसे ही चिमाजी अप्पा नाम के पेशवा ने छत्रपति शिवाजी महाराज की बातों को आदर्श मानते हुए वसई की लड़ाई में एक पुर्तगाली महिला को उसके परिवार के हवाले किया था।
इस घटना की सावरकर ने घोर आलोचना करते हुए कहा था कि, ‘शत्रुओं की महिलाएं किसी भी उम्र की क्यो न हो? उसे भ्रष्ट किया जाना चाहिए।’
इस तरह का साहित्य सावरकर सदन से प्रकाशित हिंदू पद पादशाही और सहा सोनेरी पाने जैसी किताबों में मौजूद हैं। अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ समाज को उकसाने वाले और विषाक्त माहौल पैदा करने वाले व्यक्ति को जब तक महिमामंडित किया जाता रहेगा, तब तक बिलकिस बानो जैसी महिलाओं के साथ अत्याचार और उन अत्याचारियों के सत्कार समारोह होते रहेंगे। ऐसे माहौल में आने वाले दिनों में न ही ऐसे मामले थाने में दर्ज होंगे और न ही सुनवाई के लिए कोई अदालत होगी। क्योंकि यहाँ सवाल आस्था का होगा, कानून का नहीं। सावरकर को आदर्श मानने वालों को कोई उन्हें सजा दे या उनकी सजा माफ कर दे या फिर कोई कोर्ट यूनानी तत्त्ववेत्ता प्लेटो के उद्धरण देते हुए वापस सजा सुनाए।
हमारे देश के सर्वोच्च सदन संसद में सावरकर का फोटो लगाई जाती है, सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न’ देने की मांग होती है।
ऐसी फासीवादी विचारधारा को मानते हुए उन लोगों ने आज से सौ वर्ष पहले आरएसएस नाम के एक संगठन की स्थापना की और संविधान विरोधी इस संगठन ने गोधरा में सांप्रदायिक दंगों का तांडव मचाते हुए, उनकी ही विचारधारा के 11 लोगों ने न केवल 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार किया बल्कि उनकी 3 वर्ष की बच्ची समेत 7 लोगों की जघन्य हत्या कर दी।
आज आजादी के 75वें वर्ष में आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए इन क्रूर बलात्कारियों को सजा से छूट और सहूलियत दी गई।
यह हमारे देश में आजादी के मूल्यों का घोर अपमान है। और इस बात के लिए सिर्फ गुजरात सरकार को दोषी करार देना पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके लिए वर्तमान में केंद्र में बैठी हुई सरकार के साथ गृह मंत्रालय की मुख्य भूमिका है। क्योंकि गुजरात सरकार ने इन गुनाहगारों को माफ करने के लिए आजादी के पचहत्तर साल के अवसर का लाभ उठाने की सिफारिश केंद्र सरकार के गृहमंत्री के पास ही भेजी थी।
सबसे हैरानी की बात यह है कि जब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, तब गुजरात सरकार ने कई तथ्यों को छिपाकर न्यायालय को भी गुमराह किया है। बिलकिस बानो के गुनाहगारों को सजा महाराष्ट्र के न्यायालय में सुनाई गई थी और इन ग्यारह गुनाहगारों में से, तीन नंबर के दोषी राधेश्याम ने महाराष्ट्र सरकार के पास, रेमिशन पॉलिसी के तहत सजा घटाने के लिए, सहूलियत देने के लिए अर्जी दाखिल की थी, जो महाराष्ट्र की तत्कालीन सरकार ने ठुकरा दी। इसके बाद राधेश्याम ने यही मांग गुजरात हाईकोर्ट में दायर की, वहां भी इस मांग को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद राधेश्याम सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा लेकिन महाराष्ट्र सरकार द्वारा मांग को ठुकरा दिया, इस तथ्य छुपा लिया था।
गुजरात सरकार ने रेमिशन पॉलिसी के तहत इन अपराधियों को छोड़ने का अधिकार उनका नहीं है, महाराष्ट्र सरकार का है और महाराष्ट्र सरकार ने इसे ठुकरा दिया है, यह बात छुपाई। 13 मई 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को फैसला लेने के लिए कहा और गुजरात सरकार ने सिर्फ राध्येश्याम को ही नहीं बल्कि सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को, देश की आजादी का पचहत्तरवें सालगिरह के दिन रिहा कर दिया, जब लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करते हुए, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का नारा दे रहे थे। इतना बड़ा पाखंड शायद ही कोई और कर सकता।
28 फरवरी 2002 के दिन देश की एक पांच महीने की गर्भवती स्त्री पर हमला करते हुए उसकी मां और चचेरी बहन का बलात्कार किया और बहन के दो दिन के बेटे को पटककर मार देने के बाद बिलकिस की चाची, चचेरे भाई-बहनों समेत सात लोगों की हत्या कर दी। तब गुजरात के मुख्यमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे।
इस घटना के बाद बिलकिस ने कानूनी लड़ाई शुरू की और कोर्ट से कहा कि मुझ पर केस वापस लेने के लिए गुजरात के कोर्ट व तत्कालीन सरकार की तरफ से, काफी दबाव डाला जा सकता है इसलिए मेरे केस को महाराष्ट्र के सीबीआई कोर्ट में स्थानांतरित किया जाए और इस तरह से यह केस महाराष्ट्र के सीबीआई कोर्ट में स्थानांतरित हो गया। जहां बाद में जस्टिस डी.यू. साळवी ने सीबीआई कोर्ट के तरफ से 2008 को सभी ग्यारह अपराधियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन गुजरात सरकार ने, चौदह साल से पहले ही आजादी के पचहत्तर साल के रेमिशन पॉलिसी के आड़ में सभी गुनहगारों को रिहाई देने का फैसला किया।
और सबसे घृणित बात इन सभी अपराधियों को जेल से छूटने के बाद जगह-जगह इनके सत्कार समारोह आयोजित किए गए। यह भी कहा गया कि यह सभी सवर्ण और ब्राम्हण समुदाय के हैं और भला ऐसे लोग अपराध कर ही नहीं सकते। मतलब कि मनुस्मृति के अनुसार, कोई ब्राम्हण ऐसे अपराध करे तो उसके किए अपराध को अपराध नहीं मानना चाहिए, इसलिए उन्हें सजा नहीं दी जा सकती।
गुजरात सरकार ने लगभग यही अमल में लाने का काम किया है। उसने हमारे देश के संविधान की शपथ ग्रहण करने के बावजूद इन अपराधियों को जेल से निकालने के लिए जो तिकड़मी हरकतें सर्वोच्च न्यायालय को धोखा देते हुए कीं, भारत की आजादी और संविधान का घोर अपमान था। क्या ऐसी सरकार को एक क्षण के लिए भी, सत्ता पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार है?
लेकिन विनायक दामोदर सावरकर और माधव सदाशिव गोलवलकर द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ गत सौ वर्ष से संघ की शाखाओं में जो जहर बचपन से ही बच्चों के जेहन में डाला जाता है, ऐसे में और क्या होगा?
गुजरात मॉडल शब्द ऐसे ही थोड़ा आया? और इस मॉडल को आज संपूर्ण देश में लागू करने की कोशिश की जा रही है। राम की आड़ में पिछले पैंतीस सालों से यही कोशि जारी है। आने वाले 22 जनवरी को अयोध्या में आधे-अधूरे राम मंदिर मंदिर में, भगवान राम की मूर्ति को प्रतिस्थापित करने का कृत्य शतप्रतिशत संघ और उसकी राजनीतिक इकाई, भाजपा की कोशिश है।
आने वाले लोकसभा चुनाव में, अपने दल के लिए, लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करना जारी है। इस आस्था के नाम पर, ऐसी कितनी बिलकिस और हजारों की संख्या में लोगों के जीवन को दांव पर लगा कर जब तक यह राजनीति चलेगी, तब तक बेकसूर बिलकिस, स्वाति, मनीषा, जाहिरा, मलिका, मणिपुर की सभी पीड़ित स्त्रियाँ तथा जुनैद,अखलाक जैसे युवा खाक होते रहेंगे।