आजमगढ़। पूर्वांचल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार औद्योगिक गलियारा बनाने की योजना बना रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडा) सभी जिलों में स्टेट हाईवे, नेशनल हाईवे और एक्सप्रेसवे के आस-पास स्थित ग्राम समाज की जमीन खरीदेगा। औद्योगिक गलियारे के लिए यूपीसीडा ने लैंड बैंक बढ़ाने की तैयारी की है। वैश्विक निवेशक सम्मलेन (जीआईएस) में निवेश करार करने वाले उद्मियों के लिए प्रारम्भिक चरण में 30 हजार एकड़ भूमि की आवश्यकता का आकलन किया गया है। यूपीसीडा के पास अभी 15 हजार एकड़ लैंड बैंक उपलब्ध है। यूपीसीडा ने लैंड बैंक को बढ़ाकर 22 हजार एकड़ तक करने का लक्ष्य रखा है। लैंड बैंक बढ़ाने के लिए सभी जिलों में प्रमुख स्थानों पर स्थित ग्राम समाज की जमीनों को खरीदा जाएगा। इसके लिए उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवेज औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) द्वारा ज़मीन चिन्हित करने का कार्य किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवेज औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) की इसी प्रक्रिया के तहत आजमगढ़ जनपद के फूलपुर तहसील के कई गांवों में जमीनों के पट्टे निरस्त कर दिए गए और उन जमीनों पर प्रशासन द्वारा झंडी लगा दी गई। उन जमीनों पर काबिज किसानों को चेतावनी दी गई है कि झंडी लगी जमीन पर जो हल चलाएगा, वो जेल जाएगा और जुर्माना भरेगा।
गांव खंडौरा में लगभग 125 बीघे जमीन पर झंडी लगाकर प्रशासन द्वारा जोतने-बोने की मनाही कर दी गई थी। पहले पट्टा निरस्त करना और बाद में बिना किसी सहमति के जबरन झंडी लगाकर कृषि कार्य रोक देने को लेकर गाँव के लोगों में काफी नाराजगी है।
खंडौरा गांव के किसान संतराम बताते हैं कि सन 84 का पट्टा था, जो खारिज हो गया। बाद में पट्टों के निरस्त्रीकरण पर कोर्ट की तरफ से स्टे लगा दिया गया। तब से सब लोग जोत-बो रहे थे। बीच में क्या समस्या आई, कैसे और क्या हुआ कि जमीन से बेदखल करने के लिए लाल झंडी लग गई। हम लोग लाल झंडी लगाए जाने के विरोध में हैं। हम लोग यही चाहते हैं कि हमारी जमीन पर हमें जोतने-बोने दिया जाए। मेरी डेढ़ बीघे जमीन है। प्रशासन कह रहा है कि अगर जमीन जोतेंगे-बोयेंगे तो जुर्माना लगेगा और 10 साल की सजा होगी।
मास्टर रमेश यादव बताते हैं कि हम लोगों ने 40 साल से ऊसर पड़ी जमीन को उपजाऊ बनाया। जमीन के लिए मुक़दमा लड़े और जीते। अब पूरे गांव का पुराना पट्टा निरस्त कर दिया गया है। अब गांव के वे लोग जिनके पास सिर्फ पट्टे की जमीन है, वे भूमिहीन हो जाएंगे। भूमिहीन होने के बाद उन परिवारों की आजीविका कैसे चलेगी और उनके दुधारू पशुओं को चारा कहां से मिलेगा, यह बड़ा संकट है।
खंडौरा गांव निवासी सेवानिवृत्त लेखपाल नन्हकू राम यादव की 2 बीघा जमीन पर प्रशासन की तरफ से झंडी लगा दी गई है। नन्हकू राम यादव बताते हैं कि सन 84 में पट्टा हुआ था, जो किन्हीं कारणों से निरस्त हो चुका है। सन 84 में जब पट्टा हुआ था, उस समय हम नौकरी नहीं कर रहे थे, इसलिए पट्टे के पात्र थे। सन 84 से आज तक हम लोग जोत-बो कर उस पर काबिज थे। अब सरकार लगभग सौ लोगों की 50 बीघे जमीन पर झंडी लगा रही है, जो कि गलत है।
लाल झंडी क्यों लगाई जा रही है के जवाब में नन्हकू राम बताते हैं कि सरकार फिर से पट्टा करेगी, या जो उसकी मर्जी होगी वो करेगी। हम लोग अपनी जमीन बचाने के लिए आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेंगे। नन्हकू राम बताते हैं कि पट्टे के लिए अदालती लड़ाई मेरे सामने हुई थी। अब योगी सरकार के इशारे पर लेखपालों की टीम बनाकर पट्टा निरस्त करना बहुत गलत बात है। हम तो विभाग में रहे हैं। सब बात जानते हैं कि कैसे सरकार और प्रशासन काम करते हैं। एक बात जरूर है कि अगर गांव के सभी लोग एक होकर लड़ाई लड़ें तो सरकार की मनमानी को रोका जा सकता है। हम तो सक्षम हैं, लेकिन गांव की परेशानी हम से देखी नही जाती है। सब मिलकर लड़ेंगे। जमीन बचाने केलिए जो कुछ भी करना होगा, वो करेंगे।
खंडौरा गांव की ही कलावती देवी कहती हैं कि पट्टे की जमीन है। पता नहीं क्या हुआ जो अब सरकार जमीन लेना चाहती है। जितने लोगों को पट्टा हुआ था, उन सबकी जमीन चली जाएगी। आज सबकी आर्थिक स्थिति जैसी भी हो, लेकिन जब पट्टा हुआ था तब सभी लोग गरीब थे। जमीन वापस लेकर सरकार फिर से सबको गरीब बनाना चाहती है। ऊसर और बंजर जमीन को हमारे पुरखों ने उपजाऊ बनाया है। हम अपनी जमीन को ऐसे नही जानें देंगे। गांव के प्रधान को लेकर हम लोग सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे। इसके लिए जो कीमत चुकानी होगी, चुकाएंगे।
गांव के किसान चंद्रजीत का कहना है कि सरकार ने जो पट्टा किया था, उसको निरस्त कर झंडी गाड़ दिया है। अब हम लोग क्या जोते-बोए?
खंडौरा गांव के कमलेश की 15 बिस्वा जमीन पर झंडी लगी है। कमलेश बताते हैं कि पट्टा निरस्त किये जाने का मामला हाई कोर्ट में चल रहा था। उसके बाद जमीन की नकल निकलनी बंद हो गई। नकल निकलना बंद होने के बाद भी हम लोग जोत-बो रहे थे। फिर दो-चार महीने के बाद प्रशासन के लोग आए और झंडी लगा दिए।
कमलेश आगे बताते हैं कि जमीन लीगल तरीके से हमें मिली थी, तभी तो हम 40 साल से जोत-बो रहे थे। इसी के सहारे हम जी-खा रहे हैं। जमीन को लेकर सरकारी मंशा के बारे में कमलेश बताते हैं कि प्रशासन का आदेश है कि झंडी लगी जमीन पर जो हल लेकर जाएगा, उसे जुर्माना भरना पड़ेगा। इस डर से कोई जोतने नहीं जा रहा है। सुनने में आया है कि सरकार की कोई योजना है, जिसके लिए जमीन ली जा रही है।
जमीन पर प्रशासन द्वारा लाल झंडी लगाए जाने की बाबत खंडौरा ग्राम प्रधान सुरेश यादव बताते हैं कि लगभग 125 बीघे जमीन पर झंडी लगी है। 1984 का पट्टा 1999 में निरस्त हो गया। उसी के आधार पर झंडी लगी है। पट्टा निरस्त किये जाने पर मामला कोर्ट में गया। कोर्ट ने पट्टा निरस्त करने पर स्टे दे दिया। बाद में स्टे हट गया। उसके बाद गांव के लोग हाई कोर्ट भी गए थे। हाई कोर्ट से भी पट्टा निरस्त हो गया था।
जोतने-बोने पर लगाई गई रोक के बाबत सुरेश यादव बताते हैं कि गांव के लोग मेरे पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या किया जाए? कैसे जोता-बोया जाए? शासन-प्रशासन की जो मानसिकता है, उससे मैं क्या ही कर सकता हूं, लेकिन गांव के लोग जो भी निर्णय लेंगे, मैं साथ दूंगा।
पट्टों को निरस्त किए जाने की बाबत एडीएम फूलपुर नरेंद्र गंगवार से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमें कोई बात नही करनी है। आप को जो लिखना है, वो लिखिए। इस विषय पर हम कोई बात नही करेंगे। खंडहुरा गांव में जो हुआ है, वो पूर्व एसडीएम गुप्ताजी के समय में हुआ है। हमने खंडौरा गांव में ऐसा कोई कार्य नहीं किया है।
खंडौरा में पट्टे की जमीन पर प्रशासन द्वारा जोतने-बोने पर लगाई रोक के बारे में पूर्वांचल किसान यूनियन के महासचिव वीरेंद्र यादव बताते हैं कि खंडौरा में सन 84 में पट्टा हुआ था। जिस समय पट्टा हुआ था, उस समय लोगों के पास जमीन नहीं थी। पट्टे के रूप में जो जमीन मिली थी, वो ऊसर थी। रेह ही रेह थी। पट्टा होने के बाद यहां के किसानों ने अपनी हड्डी और जवानी गलाकर ऊसर जमीन को उपजाऊ बनाया। सन 84 से लेकर अब तक किसान यहां आबाद है। अपना खेत जोत-बो रहा है।
पट्टे की प्रक्रिया के बारे में वीरेंद्र यादव बताते हैं कि जमीन का पट्टा किसी आदमी ने नहीं किया था। ग्राम सभा का अपना सदन होता है। सदन द्वारा प्रस्ताव हुआ था। उस प्रस्ताव पर एसडीएम द्वारा पट्टा किया गया था। पट्टा पूरी तरह विधि सम्मत और कानूनी तौर पर हुआ था। किसानों को जो भू-माफिया कहा जा रहा है, तो दरअसल यहां कोई किसान भू-माफिया नहीं है। बल्कि भू-माफिया वे हैं, जिनकी नजर इन जमीनों पर है। जो इन जमीनों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं। उन्होंने अपने एक विधायक के माध्यम से सदन में कहलवाया कि पट्टा गलत तरीके से हुआ है।
सरकार की मंशा को लेकर वीरेंद्र यादव कहते हैं कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के अगल-बगल इंडस्ट्री लगाने के लिए यूपीसीडा लैंड बैंक बना रहा है। सरकार लैंड बैंक के माध्यम से किसानों की जमीन छीनकर पूंजीपतियों के हवाले कर देगी।
पट्टा खारिज होने के संबंध में अधिवक्ता विनोद यादव बताते हैं कि किसान बहुत पढ़ा-लिखा नहीं होता है। कानून के बारे में बहुत नहीं जानता है। जब पट्टा निरस्त करने पर स्टे लगा था, तब जानकारी के अभाव में किसान ढंग से पैरवी नहीं कर सके। और पट्टा खारिज नहीं हुआ था, बल्कि स्टे की अवधि समाप्त हो गई थी। जिसके बाद एसडीएम ने पट्टा खारिज कर दिया। देखा जाय तो एसडीएम को इस पट्टे को निरस्त करने का अधिकार नहीं है। क्योंकि समान पद का व्यक्ति निर्णय नहीं बदल सकता। एसडीएम की कोर्ट ने ही पट्टा दिया था, इसलिए दूसरा एसडीएम उसे निरस्त नहीं कर सकता।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपबलिकन आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलदीप यादव जनवादी कहते हैं कि, ‘पूर्वांचल के किसानों की जमीन हड़पने के लिए सरकार नये-नये हथकंडे अपना रही है। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के किनारे की गावों की उपजाऊ जमीन पर पूंजीपतियों के इशारे पर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की मोदी सरकार यूपीसीडा के माध्यम से किसानों की जमीन हथियाना चाहती है। आजमगढ़ के फूलपुर तहसील स्थित हमीरपुर,खंडौरा, कलवारी,बांध भेलारा में 40 साल पूर्व आवंटित किए गए पट्टों को फूलपुर उपजिलाधिकारी ने रद्द करके यह साबित कर दिया है कि प्रशासन किसानों के विरोध में काम करने के लिए तैयार बैठा है।
यूपीसीडा की प्रस्तावित योजना के बारे में किसान नेता राजीव यादव कहते हैं कि विकास के आईने के पीछे की जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। औद्योगिक गलियारे के नाम पर सरकार किसानों की जमीन हड़पना चाहती है। औद्योगिक गलियारे के लिए सरकार ने ऐसी जगहें चुनी हैं, जहां से पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से नीचे उतरा जाता है। जैसे सुल्तानपुर, अयोध्या, दोसपुर, भेलारा, अहिरौला, माहुल और आजमगढ़ पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से नीचे उतरने वाले प्वाइंट हैं। इन्हीं जगहों के दोनो तरफ की जमीन उत्तर प्रदेश सरकार अधिगृहित करने पर जोर दे रही है।सरकार दावा करती है कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से पूरे नार्थ ईस्ट को जोड़ेगी। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से लोगों को समृद्ध बनाएगी। सरकार के दावे मझोले किसानों की जमीन छीनकर धरातल पर उतरेंगे। जब ग्राम पंचायतों का गठन हुआ, तब हर गांव में कुछ जमीन छोड़ी गई थीं। जमीनें छोड़ने का उद्देश्य यह था कि आने वाले समय में जिस परिवार के पास बिलकुल जमीन नही होगी, उस परिवार को सरकारी पट्टा दे कर उनको किसान बनाया जाएगा। लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अब ऐसा कुछ नही कर करने जा रही है।
फिलहाल, ग्रामसभा से मिली जमीन के सहारे जीवन-यापन कर रहे लोग पट्टा निरस्त होने और जमीन से बेदखल किए जाने से संकट में हैं। पट्टा निरस्त कर दिये जाने की वजह से वह किसी भी तरह के मुआवजे के लिए भी पात्र नहीं होंगे। सरकार द्वारा बिना किसी सहमति के इस तरह से जमीन छीनने की प्रक्रिया से किसान दुखी भी हैं और आक्रोशित भी। फिलहाल किसान इतनी आसानी से हार मानने को तैयार नहीं हैं। भाजपा की जमीन अधिग्रहण की नीतियां पूर्वांचल के किसानों को लगातार परेशान कर रहीं हैं। लाल झंडी से विचलित यह किसान अभी इस बेदखली से मुक्ति का कानूनी रास्ता तलाश रहे हैं। यदि सहजता से सरकार ने इनकी सुन ली तो ठीक है, वर्ना उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल एक और किसान आंदोलन की भूमिका लिखेगा। यह किसान भी खिरिया बाग के किसानों की तरह आंदोलन की तैयारी में हैं।