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ग्राउंड रिपोर्ट

सर्व सेवा संघ को जबरन ढहाने पहुँचे अमले के पास कोर्ट का कोई आदेश नहीं था

अफलातून दीवाल पर लगी एक नोटिस की तरफ इशारा करते बताते है कि एविक्शन का एक आर्डर 27 जून को आया था (जो सर्व सेवा संघ के प्रकाशान भवन के सामने चस्पा था) जिसमें 30 जून तक खाली करने का आदेश था। जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक बार आ गया तो उन्हें  एविक्शन का एक फ्रेश आर्डर देना चाहिए था। क्या ऐसा कोई आर्डर अभी प्रशासन के पास है या प्रशासन ने सर्व सेवा संघ को ऐसी कोई नोटिस हाल-फ़िलहाल में जारी की है?

वाराणसी। सर्व सेवा संघ परिसर पहुँचने पर आधे किलोमीटर पहले से ही पीएसी के बड़े-बड़े खाली डग्गे खड़े दिख रहे थे। मैं और शालिनी जब वहाँ पहुंचे तब सर्व सेवा संघ के परिसर के बाहर लोगों की भीड़ और परिसर में खड़ी हुई पुलिस, लोगों के खाली होते घरों और सामान को देख रही थी। हम भी पहले वहीं खड़े हो स्थिति का जायजा लेने लगे। बिना मुंह धोए, बिखरे बाल और रात की ड्रेस में परेशान हाल लोग दिखे। अचानक हुई इस तरह की कार्यवाही से सभी लोग नाराज दिख रहे थे और कुछ तो खुले आम सरकार, पुलिस और प्रशासन कोसते नजर आए।

पूरे परिसर और परिसर से बाहर अफरा-तफरी का माहौल था। परिसर में लोगों की पूरी गृहस्थी खुले आसमान के नीचे आ गई थी।  कुछ लोग सामान और कुर्सियों पर बैठे थे और कुछ परेशान हो इधर-उधर घूम रहे थे और परिसर से बाहर आम जनता इतनी पुलिस देखकर ठहर कर पता करने की कोशिश में थी कि आखिर हुआ क्या है? इसमें कुछ ऑटो और बाइक वाले भी थे।

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सुबह छ: बजे ही, जब लोग सोकर नहीं उठे थे, इस परिसर को पुलिस, छावनी में तब्दील कर चुकी थी। लोगों के घरों में घुसकर तुरंत घर खाली करने का आदेश देने लगी। जब लोगों ने खाली करने के लिए सरकार या कोर्ट की तरफ से आए नोटिस को दिखाने कहा तो पुलिस वालों ने कहा वह सब नहीं मालूम, बस आप परिसर को खाली कीजिए। कुछ लोगों ने विरोध किया तो उन्हें जेल ले जाने की धमकी देने लगे।

सर्व सेवा संघ में जबरन घर खाली करवाने के बाद बाहर रखा सामान

हमारी बगल में ऊंचे-पूरे सफेद बालों वाले पुलिसकर्मी खड़े थे, जिनकी वर्दी में चंद्रमा प्रसाद कुशवाहा नाम का बैज लगा हुआ था। वह भी लोगों की स्थिति देख रहे थे और अपने बगल में खड़े एक आम नागरिक से कह रहे थे इन्हें तो पता था खाली करने का, तो पहले से व्यवस्था कर लेना था, घर ले लेना था। इससे पता लगता है कि प्रशासन और पुलिस के लोग केवल अपने अधिकार के बारे में जानते है. जनता के क्या अधिकार हैं उसे वे भी सरकार की तरह दरकिनार कर लोगों को घुटने टेकने की ही सलाह देते हैं।

सर्व सेवा संघ परिसर के संयोजक अरविन्द अंजुम ने बताया कि बिना किसी आदेश के पुलिस के यहाँ पहुँचने और जबरन घर खाली करवाने की कार्यवाही और विरोध प्रदर्शन करने वाले प्रमुख लोगों की गिरफ़्तारी की गई है। जिनमें सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चन्दन पाल, राम धीरज, संजीव सिंह, नन्दलाल मास्टर, राजेन्द्र मिश्रा, ईश्वर चंद के साथ कुछ और लोग भी हैं। इन सबको गिरफ्तार करने के पीछे प्रशासन की मंशा इनकी आवाज को दबाने की है इसके साथ ही प्रशासन द्वारा इन्हें कोई भी नोटिस या कागज नहीं दिखाया गया।

इस तरह जबरन खाली करवाने पर आमादा सर्व सेवा संघ की तरफ से कोर्ट में केस लड़ रहे अधिवक्ता भुवन मोहन श्रीवास्तव ने प्रशासनिक अधिकारी से बात करनी चाही तो किसी ने भी बात करने से और कागज दिखाने से मना कर दिया। सर्व सेवा संघ ने डीजे को सम्बोधित करते हुए अपना पत्र जारी करते हुए कहा कि यहाँ पर इस तरह जबरदस्ती कानून की ट्रेस पासिंग की जा रही है। इसकी प्रति मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट, मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाई कोर्ट, प्रयागराज, महाप्रबंधक उत्तर रेलवे आदि को भेजा गया है।

घर खाली करवाने और विरोध कर रहे आंदोलनकारियों पर बल का प्रयोग किया गया। लोगों को बलपूर्वक गेट से बाहर कर दिया और साथियों को गिरफ्तार कर लिया।

बाहर खड़ी महिलाओं के समूह के पास पहुंचकर हमने उसे पूछा तो सभी ने एक साथ गुस्से में इस संस्थान से जुड़े होने की बात कही। उनमें उमरहा निवासी माला और चिरईगाँव की वंदना, विरोध प्रदर्शन के लिए रोज यहाँ आ रही थीं और कहने लगी कि सुबह-सुबह जब यहाँ पुलिस पहुँचने और खाली करवाने की जानकारी मिली तुरंत भागते हुए आ पहुंचे लेकिन पुलिस गेट बंद कर खड़ी है और अंदर जाने नहीं दे रही है। नाराजगी भरे लहजे में दोनों ने राज्य और केंद्र सरकार की कानून व्यवस्था को खूब कोसा और मणिपुर तीन महिलाओं के साथ हुए व्यवहार पर पुलिस को खुलकर कहा कि यहाँ तो बिना आदेश के आ जाते हैं लेकिन जहां अपराध होता है वहाँ क्यों नहीं जाते।

वहाँ रह रहे लोगों को, जो किसी काम से बाहर निकले थे अंदर जाने से रोक रहे थे और उन्हें पहचान पत्र दिखाने कह रहे थे। इस बीच गेट पर अंदर जाने को खड़ी महिलाओं  ने पुलिस अधिकारियों से जमकर गुस्सा दिखाते हुए  बहस की। मणिपुर मे हुई घटना को लेकर एक महिला ने कहा कि यहाँ सब सही है तो आप लोग आकर जबदस्ती खाली करवा रहे हैं और जहां अपराधी हैं वहाँ आप लोग इस तरह नहीं पहुंचते।

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सर्व सेवा संघ प्रकाशन का कार्यालय इसी परिसर में स्थित है या अब कहें कि था (अभी ध्वस्तीकारण की कार्यवाही शुरू नहीं हुई है, लेकिन खाली करवाने की कवायद शुरू हो चुकी है और पुलिस फोर्स सुबह छ: बजे से ही इसे छावनी में तब्दील कर चुकी है) इस भवन में अंदर पहुँचने पर वहाँ के कर्मचारी बड़े-बड़े कार्टन को टोटो रिक्शा में चढ़ाने के लिए बाहर रख रहे थे। अतुल नामक कर्मचारी से जब बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि इसमें केवल जरूरी कागजात और फाइलें ही हैं। बाकी किताबें यहीं जमींदोज हो जाएंगी,ऐसी आशंका है क्योंकि 4 से 5 करोड़ रुपये का साहित्य है। कहाँ ले जाएंगे? अंदर जाने पर देखा कि प्रकाशन विभाग के गोदाम में करोड़ों की किताबें थी। जिसमें गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की विचारों की बहुत सी किताबों के बीच अचानक गांधी की किताब मेरे सपनों का भारत दिखी, जिसके बारे में सोचते हुए मैंने फोटो ली कि अब उनके सपनों के भारत बदल चुका है।

मेरे सपनों का भारत

लेकिन शाम को प्रकाशन विभाग की सारी किताबें सर्वोदय प्रकाशन जगत के गोदाम से बाहर करवा दी गईं। उस जगह के आसपास केवल किताबें ही किताबें बिखरी और फेंकी हुई थीं।

सर्व सेवा संघ और सर्वोदय प्रकाशन जगत के पूरे देश में 76 सर्वोदय स्टॉल अलग-अलग स्टेशनों पर हैं। यह प्रकाशन गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के विचरों की अब तक 1500 किताबें प्रकाशित कर चुका है। इस सरकार को गाँधीवादी विचारधारा से नफरत है।

सर्वोदय प्रकाशन का गोदाम खाली कर बाहर रखी हुई किताबें

अरविन्द जी ने मुकदमे जानकारी देते हुए कहा कि 522/2023 के मुकदमे में इंजक्शन (मनाही हुक्म) के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में प्रस्तुत किया था। शाम तक इंतजार किए लेकिन जज आए ही नहीं, तो इन्हें आर्डर कहाँ से मिल गया?  हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने हमें किस ऑर्डर के आधार पर अतिक्रमणकारी घोषित किया है।

सर्व सेवा संघ के भूमि के बारे में बताते हुए कहा कि ये जमीन तीन बैनामा के आधार पर 12.89 एकड़ जमीन है और इस जमीन को 1960, 1961, 1970 में जब तक रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री रहे, उनके कार्यकाल में विनोबा भावे के आग्रह पर ये जमीन सर्व सेवा संघ द्वारा रकम चुका कर चालान जमा कर रेलवे से खरीदी गई है एवं खतौनी में बाकायदा सर्व सेवा संघ का नाम दर्ज है। इसलिए सर्व सेवा संघ की सम्पदा वैध है. यह संपत्ति उत्तर रेलवे से खरीदी गई है।

आगे अरविन्द जी ने बताया कि उत्तर रेलवे ने अपनी याचिका में लिखा है कि उत्तर रेलवे में डिविजनल इंजीनियर का कोई पद ही नहीं है, जिसने सर्व सेवा संघ को बैनामा किया है लेकिन जो नक्शा 1966 का निकला है उसमें डिविजनल इंजीनियर के हस्ताक्षर हैं. इतना ही नहीं, उसमें 1966-1967 में जिलाधिकारी की ओर से समर्थन भी मिला हुआ था

हमारे पुरखे जिनका नाम लेकर लोग गर्व का अनुभव करते है उनके द्वारा ये सेटलमेंट हुआ था और आज जो ये लोग हमारे ऊपर आरोप लगाते हैं कि रेलवे जमीन नहीं बेच सकता तो CENTRAL PUBLIC WORKS ACCOUNTS CODE के खंड 10 के 1035 से लेकर 1046 में पढ़ लीजिये, जिसमें साफ़-साफ़ लिखा गया है कि रेलवे की जमीन सेटलमेंट करके किसी और के नाम पर ट्रान्सफर की जा सकती है।

सर्व सेवा संघ परिसर और सर्वोदय प्रकाशन के संयोजक अरविन्द अंजुम 

अरविन्द जी का कहना है कि सर्व सेवा संघ का निर्माण साधना केंद्र के रूप में किया गया था। यहाँ गाँधी, विनोबा, धीरेन्द्र मजुमदार, जयप्रकाश, जे सी कुमारप्पा जैसे गाँधियन परम्परा के मनीषियों की किताबें प्रकाशित होती हैं। रेलवे में 73 बुक स्टाल सर्वोदय के हैं। इसके अलावा यहाँ आरोग्य का काम चलता है। यहाँ बालवाड़ी और पुस्तकालय है। यहीं पर देश भर के सर्वोदय कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण होता है लेकिन इन प्राचीन और ऐतिहासिक इमारतों को ढहा दिया जाएगा। यहाँ मॉल बनेगा और युवाओं को भोग विलास के साधनों में निर्लिप्त कर दिया जाएगा। इसका पैसा अदानी-अंबानी की जेब में जाएगा। इंटर डेवेलपमेंट प्लान के तहत यहाँ की जमीन ली जा रही है। यदि आज की सरकार को गांधी की विचारधारा से जरा भी इत्तेफाक होता तो आरएसएस के प्रमुख जो आज वाराणसी में हैं, वे जरूर इस मुद्दे पर कुछ कहते लेकिन संघ के लोग गांधी के सख्त खिलाफ हैं। गांधी और गांधी की विरासत को पूरी तरह से इस देश से खत्म कर देना चाहते हैं।

सर्व सेवा संघ के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को जिलाधिकारी और कमिश्नर को ज्ञापन सौपा और सर्व सेवा संघ के जमीन से जुड़े सभी जरूरी दस्तावेजों की प्रतिलिपि भी प्रस्तुत की।

आश्रम की कितनी इमारतों को ढहाने का आदेश आया है? जवाब में अरविंद जी ने बताया की किसी भी इमारत को ढहाने का कोई आदेश आया ही नहीं है। यहाँ तीन मुख्य भवन है, एक प्रकाशन भवन, गाँधी प्रदर्शनी भवन, गाँधी आश्रम का खादी भवन है। साथ ही आवासीय मकान भी हैं। सर्व सेवा संघ सुप्रीम कोर्ट स्टे के लिए गई थी (उस याचिका के खिलाफ जिसमें इन्हें अतिक्रमणकारी घोषित किया गया था) जिसमें यह पूछा गया था कि रेलवे ने हमें किस आधार पर अतिक्रमणकारी घोषित किया। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कथन था कि कानून के जो ड्यू प्रोसेस हैं, उनमें लोअर कोर्ट में प्रोसेस कराने की बात कही थी। उन्होंने कहा अब दो ही रास्ते हैं पहला सत्याग्रह और दूसरा कानून।

सर्व सेवा संघ के सदस्य और यहाँ लंबे समय तक अपनी सेवाएं देने वाले जाने-माने समाजवादी अफलातून ने बताया कि अभी उनकी वार्ता SDM से  (जो कि आईएएस प्रशिक्षु हैं और उनकी पहली नियुक्ति SDM पद पर हुई है) और रेलवे के ADM (जो मजिस्ट्रेट लेवल के अधिकारी हैं) से हुई। उन्होंने सुबह कही गई अपनी ही बात का खंडन किया। उन्होंने ये नहीं कहा कि सिविल कोर्ट में संघ मुकदमा हार गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के एक पैराग्राफ में साफ लिख हुआ है कि सिविल कोर्ट में आपका जो मामला विचाराधीन है, उस पर हमारे निर्णय का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और इन्होंने ये कहा कि सुप्रीम कोर्ट में आपका मामला ख़त्म हो गया ऐसा नहीं है, रेलवे अपना पजेशन लेने आया है तो हमने कहा कि पजेशन की आड़ में ये तो एविक्शन हो रहा है। क्या एविक्शन का कोई आर्डर आया है? अफलातून दीवाल पर लगी एक नोटिस की तरफ इशारा करते बताते है कि एविक्शन का एक आर्डर 27 जून को आया था (जो सर्व सेवा संघ के प्रकाशान भवन के सामने चस्पा था) जिसमें 30 जून तक खाली करने का आदेश था। जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक बार आ गया तो उन्हें  एविक्शन का एक फ्रेश आर्डर देना चाहिए था। क्या ऐसा कोई आर्डर अभी प्रशासन के पास है या प्रशासन ने सर्व सेवा संघ को ऐसी कोई नोटिस हाल-फ़िलहाल में जारी की है?

27 जून को आया एविक्शन का एक आर्डर, जिसे सर्व सेवा संघ की दीवार पर चस्पाँ किया गया था

सर्व सेवा संघ की जमीन के बारे में बताते हैं कि सन 1960 को रजिस्ट्री हुई थी। 1960 से लेकर 1976 के बीच तीन दीवानी मुकदमे ऐसे हुए हैं जिनमें वादी मुस्लिम वक्फ बोर्ड था और प्रतिवादी में अखिल भारत सर्व सेवा संघ, भारतीय रेलवे और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संयुक्त रूप से थे और तीनों दीवानी मामलों में मुस्म्लिम वक्फ बोर्ड मुकदमा हार गया। मुस्लिम वक्फ बोर्ड का दावा था कि सर्व सेवा संघ के परिसर में पीर बाबा की एक मजार थी, जिसका धार्मिक आस्था के लिहाज से काफी महत्व है

आगे ये कहते हैं कि रेवेन्यू आफिसर के साथ मिलकर रेलवे की सम्पत्ति का ऑडिट होता है। रेलवे अथॉरिटी का जो आडिट होता है उसका मैप दिया गया है। एक तरफ डिविजनल इंजीनियर के हस्ताक्षर हैं, दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट स्ट्रेट की तरफ से भी उस पर हस्ताक्षर हैं। यह मैप 1966-1967 का है।  मैप में सर्व सेवा संघ का परिसर दर्शाया गया है।

1966-67 का नक्शा जिस पर सर्व सेवा संघ का परिसर दिखाया गया है, पर रेलवे के डिवीजनल इंजीनियर और डिस्ट्रिक्ट स्टेट के हस्ताक्षर हैं

अफलातून जब अपनी बात कह ही रह रहे थे, तब एक आईएएस अधिकारी, एसएचओ और अन्य अधिकारी पहुंचकर उन्हें कहने से रोकने लगे और बाहर ले जाने लगे। अफलातून जी वहीं जमीन पर लेट गए और जाने से मना कर दिया। इसी बीच अरविन्द अंजुम को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया।

समाजवादी नेता अफलातून, जिन्हें पुलिस जबरदस्ती ले जा रही थी 

बनारस की एक और विरासत जमींदोज़ होने जा रही है. जो लोग उसे ध्वस्त करने पर आमादा हैं वे अपने को हर कानून से ऊपर समझ रहे हैं और वास्तव में वे किसी कानूनी प्रक्रिया और प्रणाली के अनुसार कोई काम नहीं कर रहे हैं. अफलातून बार-बार इस बात की ओर ध्यान दिला रहे थे लेकिन पुलिस अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं था क्योंकि वे ऊपर से आये आदेश का पालन कर रहे थे।

देखना यह है कि भारत की एक महत्त्वपूर्ण विरासत को बचाने में प्रतिरोध की ये आवाज़ें कामयाब होंगी या इन्हें बेरहमी से दबा दिया जाएगा।

अपर्णा गाँव के लोग की कार्यकारी संपादक हैं। शालिनी जायसवाल गाँव के लोग से सम्बद्ध है। 

अपर्णा
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अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।
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