यथार्थ की नींव पर खड़ी है 'बतकही बनारस की', जिसमें बनारस के विविध आयामों का प्रत्यक्ष चित्रण है, इतिहास है, भूगोल है, संगीत है, कला और साहित्य है। संगति और विसंगति का साक्ष्य सहित प्रामाणिक अभिकथन है। अभिकथन बेहद मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं, 'बनारस ऐसा शहर है जो दिल में उतरता है, लेकिन समझ में नहीं आता
सियासी चोंचलों में फंसी जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से उनका साक्षात्कार कराती है। यकीन मानिए, यह पुस्तक एक ओर जहां जीवन और मूल्यों के अभावग्रस्त पक्षों की ओर देखती है, वहीं भोलेपन का शोषण करने वाले दुष्टों व भ्रष्टाचारियों को कटघरे में खड़ा करती है, जीभ चिढ़ाती है। दरारों में छिपे 'गिरहकटों' को दंड देने के लिए व्यंग्य की लाठियां बरसती है