सियासी चोंचलों में फंसी जनता के दुख-दर्द और संघर्ष की किस्सागोई है ‘बतकही बनारस की’

विनय मौर्य

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समकालीन समाज में रचनात्मक जोखिम उठाने वाले बनारस के वरिष्ठ पत्रकार  विजय विनीत की चर्चित पुस्तक ‘बतकही बनारस की’ में सियासी दांव-पेंच के खतरनाक बम हैं। ऐसे बम जो नैतिक मूल्यों में व्याप्त दुरंगेपन पर बेतहाशा चोट करते हैं और  सत्ता का सुख भोगने वालों को तिलमिलाने के लिए विवश करते हैं। अपनी तीखी आलोचनाओं से सामाजिक विसंगतियों, अंतरविरोधों और मिथ्याचारों को चिंदी-चिंदी कर देते हैं।
विजय विनीत को पत्रकारिता में अपनी उम्दा जमीनी रिपोर्टों  के लिए जाना जाता है। इनके कलम की धार किसी तलवार से कम नहीं है, जो सच दिखाने के लिए जुनून की हद तक जिद्दी हैं। वह खबरों के मौलिकता के लिए ढिठाई पर उतर जाते हैं। इनकी पुस्तक “बतकही बनारस की” बनारसीपन का मुकम्मल दस्तावेज है। इसका हर पन्ना बनारस के रस से लबरेज है। इसमें बहुत करीने से बनारस के मिजाज, अक्खड़पन और जिंदादिली को खूबसूरत शब्दों में संजोया गया है। यह पुस्तक उन लोगों की उस सोच को तार-तार करती है जो बनारस को गांजा, गाली, गलियों से इतर से कुछ सोच ही नहीं पाए हैं।

यथार्थ की नींव पर खड़ी है 'बतकही बनारस की', जिसमें बनारस के विविध आयामों का प्रत्यक्ष चित्रण है, इतिहास है, भूगोल है, संगीत है, कला और साहित्य है। संगति और विसंगति का साक्ष्य सहित प्रामाणिक अभिकथन है। अभिकथन बेहद मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं, 'बनारस ऐसा शहर है जो दिल में उतरता है, लेकिन समझ में नहीं आता

बतकही बनारस की कभी गम्भीर, तो कभी रसेदार चुहलबाजी में बदल जाती है। उन्होंने इस पुस्तक में बनारस के हाव,भाव और स्वभाव के निचोड़ डाला है। खांटी बनारसी और ठलुआटिक मिजाज़ में रचित ‘बतकहीं बनारस की’  को पढ़ने पर लगता है कि पाठक खुद काशी के किसी पान की दुकान पर बैठा हुआ है। इसमें नेताओं-अधिकारियों को पटक-पटक कर तबीयत से धोने के साथ-साथ नगर की दुर्दशा को भी रेखांकित किया गया है। पुस्तक का आमुख छायाचित्र और सभी व्यंग्य चित्र बनारस के जाने-माने कार्टूनिस्ट विनय कुल के हैं।
व्यंग्य संग्रह ‘बतकही बनारस की’, भ्रष्टाचारियों के कुरूप चेहरों पर लगे नकाबों को उतारती है। सत्तासीनों की सोई हुई चेतना को झकझोर कर जगाती है।  शूल की तरह चुभती भी हैं। सियासी चोंचलों में फंसी जनता की पीड़ाओं  और संघर्षों से उनका साक्षात्कार कराती है। यकीन मानिए, यह पुस्तक एक ओर जहां जीवन और मूल्यों के अभावग्रस्त पक्षों की ओर देखती है, वहीं भोलेपन का शोषण करने वाले दुष्टों व भ्रष्टाचारियों को कटघरे में खड़ा करती है, जीभ चिढ़ाती है। दरारों में छिपे ‘गिरहकटों’ को दंड देने के लिए व्यंग्य की लाठियां बरसती है।  साथ-साथ बनारसी संस्कृति और सभ्यता का विलक्षण संदेश भी देती है।
यथार्थ की नींव पर खड़ी है ‘बतकही बनारस की’, जिसमें बनारस के विविध आयामों का प्रत्यक्ष चित्रण है, इतिहास है, भूगोल है, संगीत है, कला और साहित्य है। संगति और विसंगति का साक्ष्य सहित प्रामाणिक अभिकथन है। अभिकथन बेहद मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं, ‘बनारस ऐसा शहर है जो दिल में उतरता है, लेकिन समझ में नहीं आता। इतना अनछुआ है कि आप छू नहीं सकते। बस गंगाजल की तरह अंजुली में भर सकते हैं। सिर्फ धार्मिक ही नहीं, आध्यात्मिक शहर है यह, जहां जीवन और  मृत्यु साथ-साथ चलते हैं।’  इसकी भाषा और शैली जितनी सहज व स्वाभाविक है, उतनी प्रभावकारी और मोहक भी है, जिसे बार-बार पढ़ना सुखद लगता है।

सियासी चोंचलों में फंसी जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से उनका साक्षात्कार कराती है। यकीन मानिए, यह पुस्तक एक ओर जहां जीवन और मूल्यों के अभावग्रस्त पक्षों की ओर देखती है, वहीं भोलेपन का शोषण करने वाले दुष्टों व भ्रष्टाचारियों को कटघरे में खड़ा करती है, जीभ चिढ़ाती है। दरारों में छिपे 'गिरहकटों' को दंड देने के लिए व्यंग्य की लाठियां बरसती है

बतकही बनारस से पहले कोरोना के संकटकाल में लिखी गई विजय विनीत की चर्चित पुस्तक ‘बनारस लॉकडाउन’ पर दुनिया भर में गंभीर विमर्श हो रहा है। फ्रांस (पेरिस) में दुनिया की जानी-मानी संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर’ (आरएसएफ) ने  विनीत को ‘कोरोना इंफार्मेशन हीरोज’ के खिताब से नवाजा है। इन्हें विश्व के तीस सूचना नायकों में शामिल किया गया है। साहसिक पत्रकारिता के लिए इन्हें देश-विदेश से कई पुरस्कार मिल चुके हैं। 15 अक्टूबर 2021 (सोमवार) को 26वें बनारस पुस्तक मेले में बतकही बनारस का भव्य समारोह में विमोचन हुआ। इस मौके पर शहर के गण्यमान्य व प्रबुदध नागरिक, पत्रकार और लेखक उपस्थित थे।
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