जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल से चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था, मारपीट करने वाले छात्रों की अब तक नहीं हुई गिरफ़्तारी
वाराणसी। पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में सोमवार की सबह मरीजों की कराह से ज़्यादा जूनियर चिकित्सकों की आवाज़ें सुनाई दे रहीं थीं। यह हड़ताल पिछले 20 सितम्बर से चल रही थी। वी वॉन्ट जस्टिस… सेव द सेवियर्स… के नारों से बीएचयू अस्पताल का पूरा परिसर गूँज रहा था। तभी देर शाम हड़ताल ख़त्म होने का ऐलान कर दिया गया। हालाँकि, जूनियर डॉक्टरों की अभी 90 प्रतिशत मांगें मानी गई हैं। अन्य मांगों पर विचार चल रहा है।
जूनियर डॉक्टरों के हड़ताल के बीच मरीजों के इलाज भी हो रहे थे, लेकिन चिकित्सकों की संख्या कम होने के नाते इमरजेंसी सहित विभिन्न वॉर्डों में दबाव बहुत ज़्यादा था। बीएचयू के शांत वातावरण में जूनियर डॉक्टरों द्वारा सुबह धरना-प्रदर्शन तो शाम को नुक्कड़ नाटक और कैंडिल मार्च निकाले जा रहे थे। बावजूद इसके मरीजों को इलाज रूका नहीं। हाँ, नए मरीज़ों की भर्तियों को लेकर ऊहापोह की स्थिति ज़रूर बनी हुई थी। सर सुंदरलाल अस्पताल में लगभग 550-600 डॉक्टर (सीनियर-जूनियर) अपनी ड्यूटी देते हैं। जूनियर डॉक्टरों के हड़ताल के कारण मरीज़ों और तीमारदारों के साथ सीनियर डॉक्टरों को भी काफी परेशान होना पड़ा। इमरेंजेसी में मरीजों की संख्या में जहाँ इज़ाफा हो रहा था वहीं, सीनियर डॉक्टरों के काम करने की ‘स्पीड’ भी बढ़ गई थी। वह गैर चिकित्सकर्मी से बात करने की भी स्थिति में नहीं थे। दूसरी तरफ, हड़ताल के कारण ‘ओपीडी’ से लेकर इमरजेंसी तक मरीज़ स्ट्रेचर पर लेटे रहे या दीवाल से सटकर बैठे थे। सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक के भूतल पर यानी ओपीडी के बाहर तीमारदार ज़मीन पर इधर-उधर बैठे थे। हालत यह हो गई थी कि स्ट्रेचर पर ही अधिकतर मरीज़ों को परीक्षण किया जा रहा है।
वहीं, एमएस ऑफिस के बाहर धरनारत जूनियर डॉक्टरों ने आरोप लगाया कि ‘बीएचयू अस्पताल में आए दिन यहाँ के छात्र छोटी-छोटी बीमारियाँ लेकर एडमिट हो जाते हैं। यह बीमारियाँ इतनी सामान्य होती हैं कि उसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है या फिर नॉर्मल दवाइयाँ खाकर भी आराम हो सकता है। यही नहीं अक़्सर यह भी होता है कि कुछ छात्र अपने कथित रिश्तेदारों को एडमिट करा देते हैं और एकत्रित होकर उनका इलाज करवाने का दबाव बनाते हैं। इसी का फायदा उठाकर वह महंगे से महंगे जाँच भी अस्पताल में कम रुपयों में करा लेते हैं।’
छात्रों को यह सुविधा क्यों दी जाती है? इस सवाल पर जूनियर डॉक्टर अम्बू बताते हैं कि ‘बीएचयू की तरफ से छात्रों को हेल्थ डायरी दी जाती है, ताकि कोई बीमारी होने पर उन्हें परिसर से बाहर न जाना पड़े और उनका इलाज भी उचित तरीके से हो जाए साथ ही उनकी शिक्षा भी न प्रभावित हो। ऐसे छात्रों के लिए दोपहर 12 से 1 का समय लागू किया गया है। बावजूद इसके वह मनमर्जी तरीके से किसी भी समय आ जाते हैं। कुछ छात्रों को छोड़कर बाकी सभी जूनियर डॉक्टरों को कुछ नहीं समझते, वह सीधे एमओ (मेडिकल ऑफिसर) के पास पहुँच जाते हैं। जबकि एमओ उनको हमारे पास ही भेजते हैं। इस प्रक्रिया में सीनियर्स का भी समय बर्बाद होता है।’
क्या हुआ था 20 सितम्बर को
बीएचयू अस्पताल के इमरजेंसी में बीते 20 सितम्बर की शाम तीन-चार की संख्या में छात्र एक युवक का चिकित्सकीय परीक्षण कराने आए। उस दरम्यान एक जूनियर डॉक्टर से किसी बात को लेकर उन छात्रों से कहा-सुनी हो गई। इस पर छात्रों ने शोर-शराबा करते हुए फोन कर अन्य साथियों को भी बुला लिया। हम कुछ समझ पाते तब तक वह लोग एकत्रित हो गए और धक्का-मुक्की करने लगे। जूनियर डॉक्टरों ने समझदारी दिखाते हुए चार महिला चिकित्सकों को समेत तीन इंटर्न चिकित्सकों को एक कमरे में बंद कर दिया। इसके बावजूद भी मनबढ़ नहीं माने और बंद दरवाजे पर लात मारने लगे। शोर-शराबा सुनकर सुरक्षाकर्मी पहुँच गए तो मामला शांत हुआ लेकिन तब तक मनबढ़ छात्र भाग गए थे। वहीं, धक्का-मुक्की में एक डॉक्टर धीरज भी घायल हो गए थे। इस मामले में चीफ प्रॉक्टर के माध्यम से डॉ. सर्वेश कुमार वर्मा, मृत्युंजय कुमार, आदित्य, अमन सिंह, अमर्त्य सेठ, सिद्धार्थ, डॉ. रजत सिंह की तहरीर पर लंका थाने की पुलिस ने बुधवार की देर रात बलवा, मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट सहित अन्य गम्भीर धाराओं में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है।
आईएमएस निदेशक कार्यालय के धरना
इसी पिटाई के विरोध में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल आज भी जारी है। आज छठवें दिन भी आईएमएस निदेशक कार्यालय के पास जूनियर डॉक्टर धरने पर बैठे हैं। हड़ताल के कारण छह दिन में बीएचयू अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर को मिलाकर करीब 400 से अधिक सर्जरी टालनी पड़ी है। वहीं जूनियर डॉक्टर सभी हमलावरों की गिरफ्तारी के साथ इमरजेंसी की सुरक्षा बनाने आदि के मामले में ठोस कार्रवाई की मांग पर अड़े हैं।
जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि जब सब कुछ सीसीटीवी में कैद है तो पुलिस आरोपियों क्यों नहीं गिरफ्तारी कर रही है, यह समझ से परे हैं। बिना सुरक्षा के इस माहौल में काम करना भी ठीक नहीं है। दूसरी तरफ, हड़ताल जारी रहने से मरीजों का ज्यादा नुकसान हो रहा है। बड़ी संख्या में ओपीडी में डॉक्टर को न दिखा पाने के साथ ही मरीजों का ऑपरेशन भी नहीं हो पा रहा है। उन्हें हड़ताल के बाद आने बात कही जा रही है। मंगलवार को भी पंजीकरण काउंटर, पैथोलॉजी से जुड़ी जाँच काउंटर सहित कई जगहों पर ओपीडी में सन्नाटा छाया रहा। इस वजह से कई मरीज बिना इलाज घर चले गए।
इसके पूर्व यानी शनिवार को जूनियर डॉक्टरों ने आईसीयू, एनआईसीयू इमरजेंसी में भी सेवा ठप रखने का निर्णय लिया था, लेकिन दोपहर में एसीपी भेलूपुर प्रवीण सिंह, आईएमएस निदेशक प्रो.एसके सिंह, ट्रॉमा सेंटर प्रभारी प्रो. सौरभ सिंह समेत अन्य अधिकारियों के साथ बैठक को लेकर उन्होंने इस फैसले को सोमवार तक टाल दिया था। जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि सोमवार को एक बार फिर बैठक हुई। उसमें निर्णय लिया गया कि बीएचयू अस्पताल की इमरजेंसी में 20 सितम्बर की घटना के बाद यहाँ पुलिस हेल्प डेस्क बनाई जाएगी।
सोमवार को यहाँ एक दारोगा और तीन सिपाही बैठे थे। साथ ही बीएचयू प्रॉक्टोरियल बोर्ड की ओर से पाँच-छह सुरक्षाकर्मी भी तैनात रहे, जो इमरजेंसी में अंदर आने-जाने वालों की निगरानी करते रहे। इसके पूर्व रविवार की देर शाम जूनियर डॉक्टरों ने आईएमएस गेट के पास नुक्कड़ नाटक का मंचन कर अस्पताल की इमरजेंसी में घटित घटनाओं का दृश्य दिखाया। इसके बाद आइएमएस बीएचयू गेट से वीसी आवास तक कैंडल मार्च भी निकाला।
जूनियर डॉक्टर सोमवार की शाम करीब तीन बजे आईएमएस निदेशक कार्यालय से मार्च निकालकर चीफ प्रॉक्टर (बीएचयू) से मिलने उनके कार्यालय पहुँचे। यहाँ चीफ प्रॉक्टर से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। इसके बाद इमरजेंसी पहुँचे। यहाँ हमलावरों की गिरफ्तारी न होने के विरोध में नारेबाजी कर न्याय दिलाने की बीएचयू और पुलिस प्रशासन से मांग की। उनका कहना था कि गिरफ्तारी और निलम्बन न होने तक वह काम पर लौटने वाले नहीं है। चेताया कि अगर हमलावरों की गिरफ्तारी नहीं होती है तो आईसीयू, इमरजेंसी के साथ ही इमरजेंसी ‘ओटी’ समेत सभी सेवाओं को ठप कर दिया जाएगा।
अस्पताल के जानकारों के अनुसार, बीएचयू अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर मिलाकर हर दिन औसतन 150 से अधिक सर्जरी होती है लेकिन छह दिन से महज 40 से 50 मरीजों की सर्जरी हो पा रही है। सामान्य ऑपरेशन को टाल दिया जा रहा है। वहीं, OPD में प्रतिदिन लगभग दस हजार आते हैं। हड़ताल के कारण पाँच से छह हजार मरीज प्रतिदिन लौट जा रहे हैं।
बीएचयू अस्पताल के कार्यवाहक एमएस प्रो.अंकुर सिंह ने बताया कि सोमवार की शाम फिर जूनियर डॉक्टरों के साथ निदेशक प्रो.एसके सिंह, ट्रॉमा सेंटर प्रभारी प्रो. सौरभ सिंह आदि की मौजूदगी में बातचीत हुई। उनकी अधिकतर मांगे मान ली गई हैं, जिससे वह सहमत हैं। उम्मीद है कि जल्द ही काम पर लौट आएंगे। अस्पताल आने वाले मरीजों की हर सम्भव बेहतर सेवा की जा रही है।
सर सुंदरलाल अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टरों ने 2018 से अब तक छह बार हड़ताल की है। मामला पिटाई से ही जुड़ा होता रहा है।
एक रिपोर्ट –
- 24 सितम्बर (2018): अस्पताल में मारपीट के बाद एक हफ्ते तक काम बंद।
- 23 जुलाई (2019): सातवें वेतन आयोग की सिफारिश को लेकर विरोध।
- 14-17 जून (2019): कोलकाता स्थित मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टरों से मारपीट के विरोध में हड़ताल।
- 3 नवम्बर (2019): पिटाई के विरोध में हड़ताल।
- 5 नवम्बर (2019): अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों की हड़ताल।
- 29 फरवरी (2020): ट्रॉमा सेंटर में मारपीट का विरोध।
- 27 नवम्बर (2021): नीट-पीजी, काउंसलिंग में देर होने से नाराज़गी, बाहर दिन की कामबंदी।
- 21 सितम्बर (2023): इमरजेंसी में जूनियर डॉक्टरों से मारपीट, हड़ताल।