अपरेश चक्रवर्ती ने जिग्नेश को जमानत दे दी और असम पुलिस को झूठे मुकदमे दर्ज करने के लिए डांटा। महज एक हजार रुपए के निजी मुचलके पर जिग्नेश को रिहा किया गया। लेकिन बरपेटा पुलिस की जिस महिला पुलिसकर्मी ने जिग्नेश के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, उसने अपनी शिकायत में कहा था कि जिग्नेश ने उसका शील भंग करने की नीयत के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया था। गवाह के रूप में बरपेटा पुलिस की ओर से दो गवाह भी थे, और वे दोनों भी बरपेटा पुलिस के जवान ही थे।

भारतीय न्यायपालिका का खूबसूरत पक्ष। दोनों ही मामलों में अदालत ने इंसाफ किया है। हालांकि दोनों अदालतों के वरीयता क्रम में बहुत फर्क है। कहां सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीश और और कहां बरपेटा जिले के जिला सत्र अदालत के न्यायमूर्ति। लेकिन यही तो बात है भारत की इन दोनों कहानियों में। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को और जिला व सत्र अदालत ने राज्य सरकार को सबक दिया।
नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं
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[…] भारतीय अदालतों की दो खूबसूरत कहानिया… […]