वाराणसी पूर्वाञ्चल में सबसे तेज रफ्तार से कंक्रीट के जंगल में बदलता हुआ शहर है जहां रिहाइशी कॉलोनियाँ और दूसरी सार्वजनिक जगहों के निर्माण के चलते सैकड़ों गाँव शहर का हिस्सा बन गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ विकास सबसे चमकता हुआ मिथक है। शहर के भीतर विश्वनाथ कॉरीडोर,नगर निगम में बना रुद्राक्ष कन्वेन्शन सेंटर और बड़ा लालपुर में बना दीन दयाल हस्तकला संकुल बड़ा लालपुर जैसी जगहें वाराणसी में हुये भाजपाकाल के विकास के शुभंकर के रूप में प्रचारित किए जाते हैं।
लेकिन शहर के साथ ही गाँवों में भी बहुत सी चीजें बन रही हैं। काशी द्वार योजना, वैदिक सिटी परियोजना, हवाई अड्डा विस्तार योजना, सहित दो चरणों में बन चुकी रिंग रोड तथा फोर लेन वाराणसी-लखनऊ हाइवे शामिल हैं। इन्हें देखकर लगता है कि वाराणसी एक सुविधासंपन्न बड़ा शहर बन चुका है जबकि सच्चाई कुछ और है। वाराणसी और उसके आसपास के क्षेत्रों में सड़कों का जाल तो बिछा दिया गया, लेकिन जिन गांवों की जमीनें लेकर ये सड़कें बनायी गईं, उन गांवों में आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं। गांव के लोगों का कहना है कि हमारे खेतों से हाइवे गुजरते हैं लेकिन हमारे गाँव पहले की तरह सुविधाहीन और उपेक्षित ही रह गए हैं। हम लोग खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।
दर्जनों गाँवों में न स्कूल हैं न स्वास्थ्य केंद्र
वाराणसी से जौनपुर जाने के लिए बनी फोर लेन सड़क के किनारे पिण्डरा तहसील के आसपास के लगभग एक दर्जन से अधिक ऐसे गांव हैं जिनमें न तो विद्यालय हैं और न ही स्वास्थ्य केन्द्र। पिण्डरा इलाके के मानापुर गांव के किसान नेता फतेहनारायण सिंह कहते हैं ‘हमारे गांव से फोरलेन सड़क के बीच की दूरी मात्र 1 किलोमीटर होगी। गांव के बहुत सारे किसानों की जमींने इस सड़क में चली गईं। लेकिन उस सड़क के बनने से हमारे गांव के लोगों का कोई भला नहीं हुआ। मेरे गांव के आसपास के लगभग एक दर्जन ऐसे गांव हैं जहां पर न तो स्वास्थ्य केन्द्र हैं और न ही प्राथमिक स्कूल। जिन गांवों में स्कूल हैं, वे बहुत पहले के हैं। इन स्कूलों की बिल्डिंगें इतनी जर्जर हैं कि लोग अपने बच्चों को वहां भेजने से कतराते हैं।’
अपने मन की पीड़ा व्यक्त करते हुए फतेहनारायण सिंह आगे कहते हैं कि ‘जब मोदी की सरकार आयी तो हमारे अन्दर उम्मीद की एक लौ जगी कि यह सरकार कुछ अच्छा करेगी। लेकिन यह सरकार तो किसान विरोधी निकली। किसानों को पूरी तरह से मटियामेट कर देना चाहती है। हमारे न चाहने के बावजूद हमारी जमीनें ले रही है और किसान भाइयों की एमएसपी की मांगों को भी अनसुना कर रही है। आज जब किसान अपनी फसलों के लिए एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए दिल्ली जा रहे हैं तो बीच रास्ते में ही उनके ऊपर रबर की गोलियां, आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं । सड़कों पर लोहे की कीलें गाड़ दी गईं, जिससे किसान दिल्ली न जा सकें।’
फिर से ज़मीनें जाने की आशंका से भयभीत हैं किसान
पिंडरा इलाके के किसान भी देश में चल रहे किसान आंदोलन के प्रति सरकार के रवैये को लेकर क्षुब्ध हैं। जिस तरह से पिंडरा इलाके के दर्जनों गाँवों की जमीन लेने के लिए उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद और वाराणसी विकास प्राधिकरण ने किसानों को नोटिस भेजी और अखबार में गज़ट कराया उससे इलाके के किसान भयभीत हैं। किसान जानते हैं कि एक बार जमीन हाथ से निकल जाने के बाद उनके पास कुछ न बचेगा और वे मजदूर बनने को अभिशप्त होंगे। इसलिए स्वाभाविक है कि वे सरकार के रवैये से सशंकित हैं।
चनौली गांव के युवा किसान सन्तोष पटेल कहते हैं ‘इस सरकार ने गरीबों, किसानों किसी को नहीं छोड़ा। गरीब और गरीब होता जा रहा है। आज किसानों की जमीनें सरकार जब और जैसे चाह रही है वैसे ले ले रही है और हम जैसे किसान कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। गांव के बगल में फोर लेन सड़क तो बन गई, लेकिन इस सड़क के बनने से हम लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। भाजपा सरकार का सारा विकास केवल सड़कों तक ही रह गया है। हमारे गांव में न कोई स्वास्थ्य केन्द्र है और ना ही ढंग का स्कूल, जहां हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज सकें।’
संतोष अपने मन की पीड़ा को आगे व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ऐसी सरकार का क्या फायदा जो केवल आम जनता के शोषण पर उतारू हो? यह सड़क नहीं हम लोगों के लिए आफत बन गई है।’ इसका कारण पूछने पर संतोष आगे बताते हैं, ‘सड़क इतनी ऊंची बनी हुई है कि अब हम लोगों के खेत में नीलगाय आती है तो भगाने पर पास वाले किसान के खेत में चली जाती हैं । दूसरा व्यक्ति भगाता है तो तीसरे व्यक्ति के खेत में चली जाती हैं। फिर वे भागकर हमारे खेत में आती हैं। अगर यह हाइवे नहीं होता तो एक बार भगाने पर भाग जातीं। लेकिन सड़क ऊंची होने के कारण उन्हें भागने का मौका नहीं मिलता और वे घूम फिरकर हमारे ही खेत को चौपट कर रही हैं।
‘किसी तरह से जब हम अपनी फसलों को इन नीलगायों से बचा लेते हैं तो उसका सही दाम नहीं मिल पाता। मजबूरी में हमें घाटा सहकर अपनी फसल को बाजार में औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है। जब किसान अपनी फसल के लिए एमएसपी की मांग कर रहा है तो उसको लाठियां मिल रही हैं। यह खेती ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है जिसके बल पर हमारी रोजी-रोटी चलती है। हम अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।’ संतोष पूछते हैं ‘जब सरकार पूंजीपतियों, अरबपतियों का हजारों करोड़ का कर्ज मांफ कर सकती है तो देश में कर्ज से आत्महत्या करने वाले किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ कर रही ?’ फिर स्वयं ही जवाब देते हैं हैं ‘मोदी सरकार किसान विरोधी, दलित विरोधी है। इस सरकार से किसी भी व्यक्ति का भला नहीं हो सकता सिवा पूंजीपतियों और धनकुबेरों के।’
सड़क में जमीन जाने के सदमें से अभी किसान उबरे भी नहीं थे कि सरकार की काशी द्वार योजना आने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखायी देने लगी है। ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद पिण्डरा में काशी द्वार के साथ ही वैदिक सिटी के नाम पर 10 गांवों की 1500 बीघा जमींन अधिग्रहित करने की तैयारी में है। किसानों को जैसे ही इसकी खबर लगी, उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई।
जगदीशपुर पिण्डरा निवासी लक्ष्मण प्रसाद वर्मा का कहना है ‘पहले हमारी जमीन सड़क के नाम पर ले ली गई। हम उस सदमे से उबरे भी नहीं कि अब सरकार काशी द्वार और वैदिक सिटी के नाम पर हमारी जमींने लेने जा रही है। किसान अगर जिंदा है तो जमीनों की बदौलत। उसी में वह अपना जीवन तलाशता है।’
वह कहते हैं हैं ‘कोई काम न होने के बावजूद उसी में इस आस से लगा रहता है कि अगली बार जब इसमें कोई फसल लगायी जायेगी तो उसकी उपज अच्छी होगी। एक किसान की सारी खुशी उसकी खेती होती है। खेतों में लहराती फसले होती हैं। लेकिन जब उससे उसकी खुशियां ही छीन ली जाएंगी तो वह जीते जी मर जाएगा।’
लक्ष्मण प्रसाद बोलते जा रहे थे और उनके चेहरे का भाव बदलता जा रहा था, मानो वे अब रो पडेंगे। वे आगे कहते हैं ‘यहां के किसानों के पास अब जमीन ही कितनी बची है! किसी के पास दो बीघा और किसी के पास चार बीघा। इन्हीं जमीनों को ये किसान अपने खून-पसीने से सींचते हैं और अब उसे भी काशी द्वार के नाम पर सरकार लेने जा रही है। अंतिम सांस तक हम अपनी जमींन को बचाने के लिए लड़ते रहेंगे। चाहे हमारी जान भी क्यों न चली जाय। इस बार हम अपनी जमींन सरकार को नहीं लेगे देंगे। इस सरकार का हम लोगों ने विकास देख लिया। अब हमें विकास नहीं चाहिए।’
लक्ष्मण प्रसाद आगे सवाल पूछते हैं ‘जो सड़कें बनी हैं उस पर कहीं कोई सुविधा सरकार की ओर से हुई है? किसी व्यक्ति का एक्सिडेंट हो जाए तो उसके लिए इन मार्गों पर बचाव के लिए सरकार ने क्या व्यवस्था की है? अभी कहीं कोई व्यक्ति एक पेड़ काट दे तो अधिकारी पीछे पड़ जाते हैं। तमाम प्रकार के सवाल जवाब होने लगते हैं, लेकिन इस फोर लेन सड़क को बनाने के लिए लाखों की संख्या में पेड़ काट दिए गए और किसी ने चूं तक नहीं की। इन मार्गों पर जाने पर मैंने यही पाया कि इन पर न तो पीने के पानी की कहीं व्यवस्था की गई है और न ही शौचालय की। ऐसे में किसी व्यक्ति को इसकी जब जरूरत पडे़गी तो वह कहां जाएगा। क्या सरकार का काम केवल सड़कें बनवा देना है?’
चनौली गांव की मुन्नी पटेल फोर लेन सड़क के बनने के बाद गांव और लोगों के जीवन में आए बदलाव की बाबत पूछे जाने पर कहती हैं ‘इस सरकार ने लोगों को सिर्फ लूटने का काम किया है। लोगों की जिंदगी पहले से भी बदतर हो गयी है। पहले तो आदमी किसी तरह से कमा-खा लेते थे लेकिन आज तो यह हाल है कि जमीन ही नहीं बच पा रही है। सड़क में जमींन जाने से किसानों की रीढ़ ही टूट गई। जिसके पास थोड़ी-बहुत बची हुई थी, उसे भी सरकार ने लेने का फरमान जारी कर दिया है। मेरे पास तीन बीघा ही जमीन बची हुई है। सुना है सरकार काशी द्वार के नाम पर उसे भी लेने जा रही है। ऐसे में मेरा परिवार सड़क पर आ जाएगा।’ मुन्नी सवाल करती हैं ‘हम क्या खाएंगे और कहां रहेंगे?’
मुन्नी पटेल अपनी बात को आगे कहती हैं ‘जब यह फोर लेन की सड़क बनने वाली थी तो अधिकारी लोग कहते थे कि सड़क बन जायेगी तो गांव के लोगों का विकास होगा, लेकिन वह विकास तो मुझे कहीं नजर नहीं आ रहा है। जैसा गांव पहले था उसी तरह से आज भी है। वही बदहाल सड़कें। गांव में कोई नया स्कूल नहीं खुला और न ही कोई अस्पताल। जब मूलभूत सुविधाएं ( सड़क, स्कूल और अस्पताल) ही ठीक ढंग की न नसीब हों तो कोई भी सरकार हो, हमारे किस काम की। हमारे बच्चों को अच्छा स्कूल, अच्छा स्वास्थ्य चाहिए। यह हमें मिल नहीं रहा ऊपर से हमारी जमींने जबरन ले ली जा रही है। यह गलत है। हम इसके खिलाफ सड़क पर उतरेंगे। जो करना होगा करेंगे लेकिन जमींन नहीं जाने देंगे, वरना हमारे बच्चे क्या खाएंगे?’
इसी गांव की सीमा पटेल कहती हैं ‘मोदी सरकार ने क्या किया? इनकी सरकार केवल किसानों की जमीन ले रही है । सरकार न तो शिक्षा और न ही स्वास्थ्य पर ध्यान दे रही है। आज लोगों की मूलभूत तीन जरूरते हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाय तो पिछले 8-10 सालों में इस गांव में ही नहीं, आस-पास के कई गांवों में भी एक नया अस्पताल तक नहीं खुला। स्कूल भी वही सब के सब पुराने हैं। उसकी बिल्डिंग इतनी पुरानी है कि लोग अपने बच्चों को उस स्कूल में भेजना भी नहीं चाहते। गांव के बच्चे किसी तरह पढ़-लिख ले रहे हैं लेकिन नौकरी के लिए इधर-उधर दर दर भटक रहे हैं । सरकार के पास नौकरी ही नहीं है।’
चनौली गांव के ही धर्मराज पटेल कहते हैं कि ‘इस सरकार ने सबका नुकसान किया। किसी का भला नहीं किया। आज घर में लड़के पढ़-लिखकर बेकार बैठे हुए हैं, लेकिन सरकार नौकरी ही नहीं दे रही है। किसानों का हाल तो सबसे ज्यादा बुरा है। इस सरकार में कुछ ही लोगों का भला हो रहा है बाकी सभी लोग परेशान हैं। महंगाई तो इस सरकार के शासन में ऐसी बढ़ाई कि लोगों को दाल-रोटी खाना मुश्किल हो गया है। गैस, पेट्रोल के दाम में आग लगी हुई है। कोई कैसे अपना परिवार चलाएगा इस महंगाई में। इस पर सरकार को विचार करना चाहिए। जो व्यक्ति रोज कुआं खोदता है और पानी पीता है, उसका परिवार कैसे चलेगा? आज छोटी सी बीमारी होने पर लाखों रुपए लग जा रहे है। इस महंगाई में व्यक्ति कहां से इतना पैसा लायेगा? सरकार तो रामराज का दावा करती है, लेकिन लोग सब समझते है। लोग बेवकूफ नहीं हैं कि सरकार जो कहेगी, वह सब मान लेंगे। यह सरकार काम कम दिखावा ज्यादा कर रही है।’
मानापुर गांव के विजय कुमार पटेल कहते हैं ‘चाहे जो भी हो जाय एक बार हम जमींन तो सरकार को दे चुके हैं अब हम दुबारा अपनी जमींन सरकार को नहीं लेने देंगे चाहे कुछ भी हो जाय।’
सरकार के पास नहीं है स्कूल और अस्पताल का डाटा
पिण्डरा तहसील में पिछले 8-10 वर्षों में कितने नए विद्यालय खुले हैं ? सवाल के जवाब में बीएसए वाराणसी अरविन्द कुमार पाठक बताते हैं ‘पहले का तो मेरे पास इस तरह का कोई डाटा नहीं है लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों में इस क्षेत्र में कोई नया सरकारी विद्यालय नहीं खुला है।’
इसी तरह पिण्डरा में पिछले 8-10 वर्षों में कितने नए स्वास्थ्य केन्द्र बने हैं? इस सवाल के जवाब में मंडल के असिस्टेंट जूनियर इंजीनियर देवी प्रसाद बताते हैं वाराणसी जिले में कुल 225 नए अस्पताल बने हैं जबकि 25 अभी बनने की प्रक्रिया में हैं।’
क्या ये अस्पताल एकदम नए सिरे से बने हैं? सवाल के जवाब में देवी प्रसाद बताते हैं ‘दरअसल सरकार ने पुराने अस्पतालों में ही एक नया कमरा बनवाकर उसे नए अस्पताल की लिस्ट में दर्ज कर दिया है।
यहां एक बात तो समझ में आ गई कि सरकार की ओर से कोई नया अस्पताल नहीं बनाया गया। पुराने अस्पतालों में ही एक नया कमरा बनाकर उसे कागजों में नया अस्पताल दिखा दिया गया।
बहरहाल, वाराणसी में चारो तरफ से सड़कों का जाल तो बिछ गया। सरकार यहां पर विकास की बात भी करती रही है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि शहर का हिस्सा बनाए जा रहे गाँवों में बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं पहुँच पा रही हैं।