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चंदौली में तीन सफाईकर्मियों की मौत : क्यों नहीं टूट रही है प्रशासन की नींद?

हमारे देश में संसद में कानून तो बन जाते हैं लेकिन कागजों पर, उन पर अमल नहीं होता और जब अमल नहीं होता तो उसका खामियाजा जनता को उठाना पड़ता है। वर्ष 2013 में संसद ने मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास के रूप में रोज़गार का निषेध अधिनियम के आ जाने के बाद भी सीवर के सफाई मशीनों से न करके मैनुअल तरीके से की जा रही है।आखिर ऐसा क्यों? और मेनुअली सफाई करने वाले कर्मियों की मौतों की जिम्मेदारी किसकी होगी?

आज से तीन दिन पहले मुगलसराय में सीवर सफाई करने के दौरान हुए हादसे में तीन सफाईकर्मियों सहित चार लोगों की मौत हो गई। वाराणसी मंडल में दो महीने के भीतर यह दूसरी घटना है। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समय पर इलाज मिलता तो उनमें से एक सफाईकर्मी विनोद की जान बच सकती थी, लेकिन मुगलसराय में स्थित एक बड़े नर्सिंग होम ने विनोद का भर्ती कर इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि वह सेप्टिक टैंक में गिर गया था।  ट्रामा सेंटर बीएचयू पहुंचने पर उसने दम तोड़ दिया। गौरतलब है कि भरत जायसवाल के घर में सेप्टिक टैंक की सफाई करने सफाईकर्मी करने गए थे उनका जवान बेटा अंकुर जायसवाल भी सफाईकर्मियों को बचाते हुये मौत के मुंह में समा गया।

 सीवर सफाई में उतरने सभी 3 लोगों की मौत 

बुधवार दिनांक 8 मई की रात में ग्यारह बजे के करीब कुंदन (45 वर्ष) लोहा (22 वर्ष) विनोद (40 वर्ष) तथा दीपू रावत (30 वर्ष) सफाई मजदूर मुगलसराय के लाट नंबर दो न्यू महाल निवासी भरत जायसवाल के घर, सेफ्टिक टैंक की सफाई करने पहुंचे। ये सभी मुगलसराय के काली महाल बस्ती के डोम समाज से थे। जब मैं घटना स्थल पर पहुंचा तो वहां पर पर मृतक अंकुर जायसवाल की माता ने मुझे बताया कि ‘मजदूरों ने सेफ्टिक टैंक का ढक्कन दोपहर में ही आकर खोल दिया था ताकि गैस गैस निकल जाए। उसके बाद रात के ग्यारह बजे के करीब वे लोग सेफ्टिक टैंक साफ करने के लिए आए थे।

Three sanitation workers died in Chandauli
अंकुर जायसवाल के पिता भरत लाल जायसवाल और उनका परिवार

अंकुर जायसवाल की माता ने बताया कि ‘ग्यारह बजे सफाई के लिए पहला व्यक्ति अंदर घुसा तो अंदर ही रह गया। उसके बाद दूसरा व्यक्ति अंदर गया और वह भी नहीं निकल पाया। इस बीच तीसरे व्यक्ति के अंदर जाने के बाद उसने अंदर से बचाने के लिए आवाज लगाई, आवाज सुनकर मेरा बेटा अंकुर उसे बचाने दौड़ा।’

उन्होंने रोते हुए बताया कि सामने कुछ रस्सी वगैरह नहीं दिखी तो जल्दबाजी में उसने बेड सीट को अपनी कमर में बांध कर दूसरा छोर मेरे पति याने अपने पिता को पकड़ने के लिए कहा और आनन-फानन में टैंक में उतर गया। लेकिन सही तरीके से बंधे न होने के कारण छूट गया और वह भी टैंक में समां गया।’

मृतक अंकुर की बहन निर्जला रोते हुए कहती हैं कि ‘मेरे भाई खुद छः फीट के थे और सेफ्टी टैंक दस फीट ही गहरा था तो वो कैसे मर सकते हैं?’

भरत जायसवाल ने बताया कि ‘ऐसा नहीं कि मजदूर नौसिखिया थे बल्कि उनका यह रोज का काम था। उन लोगों ने मेरे सेफ्टिक टैंक का पानी दिन में ही निकाल दिया था। चूंकि मलबा निकलने के बाद बहुत बदबू आती है इसलिए इन लोगों  मोहल्ले वालों के सो जाने के बाद मलबा निकालने का तय किया ताकि बदबू से किसी को कोई परेशानी न हो।’

यह पूछने पर कि काम के दौरान कौन-कौन लोग उपस्थित थे? भरत जायसवाल ने बताया कि ‘उस समय वे खुद और सफाई करने वाले चार मजदूर ही थे, लेकिन जब हादसा हुआ तो मेरे शोर मचाने पर मेरा बेटा आया और थोड़ी ही देर में मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए।’

लोगों ने प्रशासन को सूचना दी और बचावकर्मी आधे घंटे बाद आए। भरत जायसवाल ने कहा ‘प्रशासन के लोग घटना की सूचना देने के 25-30 मिनट बाद आए। तब तक बस्ती के लोगों की मदद से सेफ्टिक टैंक से चारों को बाहर निकाल लिया गया था। बाद में लोग उन्हें लेकर अस्पताल भागे।’

यह पूछने पर कि सेफ्टिक टैंक में मलबा कितनी गहराई तक था? भरत जायसवाल ने बताया मजदूरो ने लोहे की पाइप से गहराई नापी थी और बता रहे थे कि तीन फीट तक मलबा है।’

Three sanitation workers died in Chandauli
घटना की जगह

मैंने सवाल किया कि ‘आपसे उन्होंने क्या-क्या सुरक्षा उपकरण मांगें थे और आपने उन्हें क्या व्यवस्था दी थी? इस प्रश्न पर वे चुप हो गए और भावुक हो गए।

भरत जायसवाल कबाड़ खरीदने बेचने का काम करते हैं, अंकुर उनका इकलौता पुत्र था। दूसरी संतान के रूप में उनको एक लड़की है जिसका नाम निर्जला जायसवाल हैं।

भरत जायसवाल ने प्रशासन के लोगों के आने के बारे में पूछे जाने पर कहा कि ‘कुछ लोग जरूर आए थे लेकिन मुझे याद नहीं कि कौन अधिकारी थे? मुझे कोई आश्वासन नहीं मिला है अभी तक।’

ज़िंदा बचे सफाईकर्मी दीपू ने बताया  

उन तीन मृतक मजदूरों के साथ चौथे सफाई मजदूर दीपू रावत भी सेफ्टिक टैंक सफाई करने गए थे। जब मैंने उनसे बात कि और पूरी घटना के बारे में विस्तार से पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि ‘मैंने उन लोगों से पहले ही बोल रखा था कि मैं सेफ्टिक टैंक में नीचे नहीं उतरूंगा।’

इस पर जब मैंने सवाल किया कि क्यों नहीं घुसना चाहते थे? तब दीपू ने बताया कि न जाने क्यों उस दिन मेरा मन नहीं कर रहा था। मेरा मन जो कह रहा था मैंने वही किया।’

टैंक की गहराई के बारे में पूछने पर दीपू ने बताया कि ‘मालिक ने हमें बताया था कि आठ फिट गहरा है लेकिन मैंने और मेरे भाई विनोद ने जांच की तो वह कुछ और गहरा था। हम लोगों ने ग्यारह बजे काम में हाथ लगाया। करीब 12 से 17 मिनट में सेफ्टिक टैंक को आधा खाली कर दिया। उसके बाद गहराई नापी गई। जब पानी में घुसकर साफ करने भर का हो गया तो सबसे पहले सैप्टिक टैंक में एक लड़के लोहा को घुसाया गया। लोहा ने दो टीन भरकर मलबा निकाला। उसके बाद वह छटपटाने लगा। दूसरे मजदूर कुंदन रस्सी से मलबा खींच रहें थे। उन्होंने हमें आवाज दी। हम दो लोग बाहर खड़े थे। हम जब तक आते कुंदन ने लोहा को बचाने के लिए रस्सी से ऊपर खींचने का प्रयास किया लेकिन वह भी इस प्रयास में नीचे गिर चुके थे।

दीपू ने आगे बताया कि ‘जब दो लोग अंदर गिर गये तो मैं घरवालों को फोन करने के लिए बाहर आ गया और घरवालों को फोन से सूचना देने लगा। इसी बीच विनोद भी उन दोनों को बचाने के लिए अंदर गया और वह भी अंदर ही रह गया। आखिरी में मकान मालिक का लड़का अपनी कमर में चादर (बेड सीट) बांधकर उतरा और वह भी अंदर रह गया।’

दीपू बताते हैं कि ‘घटना के बाद उनके घर के ही दो लड़के घटनास्थल पर पहुंचे और सेफ्टिक टैंक से लोगों को बाहर निकाला था। किसी और ने कोई मदद नहीं की।’

पीड़ित के शरीर पर गंदगी लगी होने की वजह से निजी अस्पताल में भर्ती नहीं किया 

दीपू आगे नम आंखों से उस मंजर को याद करते हुए कहते हैं कि ‘मेरे भाई विनोद को जब हम लोगों ने सेफ्टिक टैंक से बाहर निकाला तो उनकी सांसें चल रहीं थीं। हम लोग मुगलसराय के एक नामी चिकित्सक के पास गये तो उन्होंने दूर से ही हमें बनारस ट्रामा सेंटर में ले जाने के कहा। जबकि वे चाहते तो विनोद की जान बच सकती थी, लेकिन हमारी जरूरत लोगों को तब होती है जब गंदगी साफ करना हो। उसके बाद लोग हमें देखना भी पसंद नहीं करते। जब हम लोग ट्रामा सेंटर पहुंचे तो एक घंटे का समय बीत चुका था और इलाज में देर होने के कारण विनोद ने अपनी जान गंवा दी।’

दीपू कहते हैं कि ‘हम लोगों ने शुरू में ही मालिक से सीढ़ी मांगी थी लेकिन उन्होंने नहीं दिया।’

कौन उठाएगा ज़िम्मेदारी

मृतक सफाई कर्मचारी कुंदन की पत्नी गीता देवी (उम्र लगभग 40) ने मुझे बताया कि ‘उनकी कोई संतान नहीं है। वे और उनके पति सिर्फ दो ही लोग थे उनके परिवार में। घटना वाले दिन वे मुझसे बोल रहे थे कि जा रहें हैं सेफ्टिक टैंक साफ करने। 9:30 बजे जाना है। इसके आधे घंटे बाद ही वो घर से निकल गये। रात को एक बजे हमें घटना की जानकारी हुई। हम लोग भागे-भागे घटनास्थल पर पहुंचे।’

Three sanitation workers died in Chandauli
मृतक कुंदन की पत्नी गीता देवी

गीता देवी ने आगे बताया कि वे खुद नगर पालिका मुगलसराय में ठेके पर सफाईकर्मी हैं जिसकी ड्यूटी उनके पति ही करते थे। इसके अतिरिक्त जहां भी काम मिलता था करते थे। गीता अपने आगे के भविष्य को लेकर चिंतित हैं और कहती हैं कि ‘कौन उठायेगा मेरी जिम्मेदारी? किसी तरह से दो वक्त की रोटी मिल जाती थी। अब वो भी मुश्किल हो गई।’

राजकुमारी (उम्र 60 वर्ष) बताती है कि लोहा मेरी बेटी का पुत्र था। उसका एक भाई और एक बहन हैं। लोहा की मां बचपन में ही गुजर गई थी और उसके बाप अष्टमी ने जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया तब से वह मेरे पास ही था। एक साल पहले मैंने लोहा की शादी की थी लेकिन उसकी पत्नी छोड़कर चली गई। तब से वापस नहीं लौटी। मेरा कोई पुत्र नहीं है। मेरे पति बहुत पहले गुजर चुके हैं,इसलिए लोहा मेरे लिए मेरे बेटे के जैसा था। लोहा की कमाई से हम लोगों की दाल-रोटी चलती थी। लोहा बहुत मेहनती लड़का था और उसका भाई टामा मूक-बधिर है और बहन संजना मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। इन दोनों के लिए वह दिन-रात मेहनत करता था।’

जब मैंने मृतक विनोद की पत्नी से बात की तो उन्होंने बताया कि ‘उस दिन मैं उन्हें जाने से मना कर रही थी लेकिन उन्होंने कहा कि एक घंटे का काम है। और लोग भी जा रहे हैं। जल्दी ही काम समाप्त कर लौट आऊंगा लेकिन मुझे क्या पता था कि वो अब कभी लौटकर नहीं आयेंगे? मेरे पांच बच्चे हैं। एक लड़की मुस्कान और चार लड़के विवेक, अभिषेक, रोहन, ऋषभ। उनकी देखभाल अब कौन करेगा?’

Three sanitation workers died in Chandauli
मृतक विनोद की पत्नी

समय से वेतन नहीं मिलने के कारण मजबूरी में जान जोखिम में डालकर करते हैं दूसरे काम

सरकारी मदद के सवाल पर राजकुमारी कहती हैं कि नगर पालिका के एक अधिकारी ने पीड़ित परिवारों को खाली दस-दस हजार रूपए की मदद की है। बाकी कोई और मदद अभी तक नहीं मिली है।’

नगर पालिका मुगलसराय में समय से वेतन नहीं मिलता, जिस कारण लोग अपनी जान जोखिम में डालकर ड्यूटी के अतिरिक्त काम करते हैं। अक्सर ठेके पर काम करनेवाले सफाईकर्मी दूसरे लोगों का भी काम करते हैं।

मृतक सफाईकर्मियों के परिवारवालों ने आरोप लगाया कि ‘हम लोगों से ठेके पर काम करवाया जाता है जिसमें मात्र 8-10 हजार रुपये महीने में मिलते हैं। ठेकेदार काम तो रोज समय पर करवाते हैं लेकिन मज़दूरी समय पर नहीं देते।। परिवार चलाने के लिए मजबूरीवश हम लोग अपनी जान जोखिम में डालकर इधर-उधर काम करते हैं।’

मृतकों के परिवारजनों से मिलने पहुंचे आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के जिला अध्यक्ष शैलेश कुमार ने बताया कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर रावण ने घटना का स्वयं संज्ञान लिया है और ट्वीट भी किया है। उनके आदेशानुसार हम लोग जिलाधिकारी से मिलकर अपनी मांगपत्र सौपेंगे। यदि एक महीने में मांग पूरी नहीं हुई तो आंदोलन करेंगे। उन्होंने अपनी मांगों के बारे में बताया कि ‘प्रत्येक पीड़ित परिवार को 50-50 लाख रुपए की आर्थिक मदद तथा एक सरकारी नौकरी के साथ समस्त सफाई कर्मचारियों के लिए सुरक्षा उपकरण मुहैया कराया जाय।’

Three sanitation workers died in Chandauli
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के जिला अध्यक्ष शैलेश कुमार

सफाईकर्मियों की मौत का बढ़ता आँकड़ा

आंकड़े बताते हैं कि सीवर सफाई के दौरान पिछले दिनों में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। बार-बार होने वाली मौतों से भी प्रशासन की आंखें नहीं खुल रही हैं।

अगर हम पिछले पांच सालों के सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो देखते हैं कि सन 2019 में 117 मौतें, 2020 में 22 मौतें, 2021 में 58 मौतें, 2022 में 66 मौतें, 2023 में 09 मौतें दर्ज की गईं।

लेकिन ज्यादातर मौतों में ठेकेदार स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर रिपोर्ट दर्ज होने ही नहीं देते। पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में सीवर के गहरे मेनहोल में घुसने से एक सफाई कर्मचारी की मौत जिस लापरवाही से हुई थी उससे साफ जाहिर है कि अन्य जगहों पर उनकी स्थिति कितनी बदतर होगी।

क्या हैं सीवर सफाई का कानून 

सुप्रीम कोर्ट की 2013 की गाइडलाइन में 45 प्रकार के सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाने की बात की गई है लेकिन वह मात्र कागजों तक सीमित है। हकीकत यह है कि सफाईकर्मियों के पास हैंड ग्लब्स तक नहीं होता। आक्सीजन सिलेंडर और अन्य सुरक्षा उपकरण तो दूर की बात है।

 वर्ष 2013 में संसद ने मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास के रूप में रोज़गार का निषेध अधिनियम बनाया।  इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान जी कि सीवर लाइनों या सेप्टिक टैंकों की सफ़ाई के लिए किसी भी व्यक्ति को सीवर में खतरनाक तरीके से उतारना या शामिल करना गैरकानूनी है। 

कानून के मुताबिक, सफ़ाई एजेंसियों को सफ़ाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण देना ज़रूरी है। हालांकि, अक्सर एजेंसियां ऐसा नहीं करतीं और कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवरों में उतरना पड़ता है। असुरक्षित सफ़ाई करवाना कानूनी अपराध है। 

हरिश्चंद्र
हरिश्चंद्र
लेखक गाँव के लोग से जुड़े हुए हैं।

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