आरबीआई गर्वनर ने ऐसा क्या कहा जिसपर सोचा जाना चाहिए! (डायरी 23 जुलाई, 2022)

नवल किशोर कुमार

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कोई भी आदमी कोई एक बात नहीं सोचता। हर किसी की जेहन में एक समय में बहुत सारी बातें होती ही हैं। यही मनुष्य का स्वभाव है और ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि मन की गति बहुत तेज होती है। संभवत: यही वजह भी है कि मन को चंचल कहा जाता है। लेकिन मूल बात तो यह है कि मनुष्य के दिमाग में तमाम बातें रहती ही हैं, जिनके बारे में वह विचारता रहता है। अब कल की ही बात है। देर शाम दिल्ली में बारिश हो रही थी और मेरे मन में अनेक बातें चल रही थीं। एक तो यह कि पटना में मेरे घर में बारिश के कारण इस बार किस तरह की परेशानी हो रही होगी। वहां पानी निकासी की समस्या है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि वहां सड़क पर परत-दर-परत बिछाये जाने की सरकारी परंपरा है। जबकि यह गलत है। इसके कारण होता यह है कि सड़क ऊंची होती जाती है और सड़क किनारे घर नीचे होते जाते हैं। ऐसे में पानी निकासी की समस्या तो होगी ही। होना तो यह चाहिए कि सड़क की मरम्मति करते समय पूर्व के परत को उखाड़कर हटा दिया जाय और तब उसपर नयी परत बिछायी जाय। मुझे स्मरण है कि 2009 में पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस संबंध में टिप्पणी की थी। लेकिन क्या करें बिहार में सरकार नामक कोई व्यवस्था है ही नहीं। दिल्ली में ऐसी बात नहीं है। इसकी वजह शायद यह कि यहां की सरकारें (केंद्र और राज्य दोनों) यह बात समझती हैं।
जब मेरी जेहन में यह सब चल रहा था तब मन रोमांटिक भी हुआ। मन की बदमाशी यही है और शायद यह अच्छा ही है कि वह स्थिर नहीं रहता। इसके कारण आदमी चिंताग्रस्त होने से बच जाता है। मेरे साथ भी यही हुआ। जो मन यह सोचकर बैठा जा रहा था कि बारिश में मेरे घर में और मेरे इलाके में किस तरह की परेशानी हो रही होगी, वह एकदम से सकारात्मक हो गया और मैंने एक कविता लिखी।
मैं तुमसे प्यार करता हूं
और हमारे प्यार की उम्र भी नहीं जानता।
मैं नहीं हूं नावाकिफ कि
उम्र होती है
हर किसी की
और देखाे तो इस बरसते सावन की भी
एक उम्र है
यह कुछ दिन ही बरसेगा
लेकिन यह बात मैं पूरी ईमानदारी से कहता हूं 
और मेरा कहना
गैर वाजिब भी नहीं कि
जब तक मेरे पास उम्र है
मैं तुम्हारे साथ रहूंगा
हर सुख-दुख में।
हां, मैं तुमसे प्यार करता हूं
और हमारे प्यार की उम्र भी नहीं जानता।

इस हिसाब से मेरा मन यह आकलन कर रहा था कि 1 जुलाई से लेकर अबतक आरबीआई ने रोजाना के हिसाब से करीब एक अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेची ताकि रुपए को स्थिर बनाए रखा जाय। लेकिन इसके बावजूद पिछले सप्ताह भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 80 रुपए के पार हो गया। यह भारतीय रुपए की ऐतिहासिक गिरावट है। ऐसे में शक्तिकांत दास क्यों कह रहे हैं कि 'उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है?'

 

लेकिन मन कविता के बाद भी नहीं माना। वह कुछ और सोचने लगा। इस बार उसने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के दो बयानों के बारे में सोचा। कल उनका एक बयान आया कि ‘उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है।’ फिर उनका दूसरा बयान कि ‘लोग बरसात के समय ही छाता खरीदते हैं।’
दरअसल, पत्रकार होने का एक फायदा यह भी है कि जानकारियां बहुत मिल जाती हैं। कई बार यह खतरनाक स्तर को भी पार कर जाता है लेकिन अमूमन जानकारियां परेशान नहीं करती हैं। मैं शक्तिकांत दास के उपरोक्त दो बयानों के बारे में सोच रहा था और मेरे सामने फिक्की की एक रपट थी, जिसमें उसने इस साल भारत में विकास दर सात फीसदी रहने का अनुमान किया है। इसी अप्रैल में फिक्की ने 7.4 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया था। मुझे तो हैरत इस बात से हुई कि फिक्की ने यह भी कहा है कि रुपए की गिरती साख यदि बदस्तूर जारी रही तो इस साल विकास दर साढ़े छह फीसदी के नीचे भी जा सकती है। वहीं अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मार्गन स्टेनली ने भी अप्रैल में विकास दर को 7.4 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया था।
तो मन का काम यही है। वह सोचता रहता है और उसका सोचना आधारहीन नहीं होता। मेरा मन शक्तिकांत दास के बयानों के बारे में सोच रहा था तो इसके पीछे आधार यह है कि आरबीआई ने बीते एक सप्ताह में 7.541 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा रुपए को स्थिर बनाए रखने के लिए खर्च किया। 15 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार 572.712 अरब डॉलर रह गया है। यह कमी इस वजह से भी आयी है क्योंकि भारत सरकार ने सुरक्षित सोना भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचा है। हालांकि आरबीआई ने अभी इसकी पूरी जानकारी नहीं दी है। दिलचस्प यह कि 1 जुलाई से 8 जुलाई के बीच 8.061 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा का व्यय किया। 8 जुलाई को विदेशी मुद्रा भंडार 580.252 अरब डॉलर था।

कल उनका एक बयान आया कि 'उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है।' फिर उनका दूसरा बयान कि 'लोग बरसात के समय ही छाता खरीदते हैं।'

इस हिसाब से मेरा मन यह आकलन कर रहा था कि 1 जुलाई से लेकर अबतक आरबीआई ने रोजाना के हिसाब से करीब एक अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेची ताकि रुपए को स्थिर बनाए रखा जाय। लेकिन इसके बावजूद पिछले सप्ताह भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 80 रुपए के पार हो गया। यह भारतीय रुपए की ऐतिहासिक गिरावट है। ऐसे में शक्तिकांत दास क्यों कह रहे हैं कि ‘उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है?’  क्या वह यह श्रीलंका की अर्थव्यवस्था से भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना कर रहे हैं? या फिर वह पाकिस्तान का नाम लेना चाहते हैं? उन्हें यह स्पष्ट जरूर करना चाहिए। अब उनका दूसरा बयान कि ‘लोग बरसात के समय ही छाता खरीदते हैं’, निश्चित तौर पर भारत में वित्तीय अस्थिरता को अभिव्यक्त करता है।
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जब छाता खरीदने की बात आयी तो मेरे मन को एक और मुहावरा याद आया। यह मुहावरा नहीं, बल्कि लोकोक्ति है– भोज के समय कोहड़ा रोपना। कोहड़ा हमारे यहां एक सब्जी है, जिसे दिल्ली में लोग सीता फल भी कहते हैं। दरअसल, भारत सरकार आरबीआई के माध्यम से यही कर रही है। रुपए का अवमूल्यन रोकने के लिए उसने पूर्व में कोई ठोस तैयारी नहीं की और जब हाथ से सबकुछ फिसलता जा रहा है तो वह विदेशी मुद्रा भंडार बेच रही है। आखिर कबतक चलेगा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार?
हालांकि सरकार ने कुछ ना किया हो, ऐसा भी नहीं है। सरकार ने हाल ही में अनेक वस्तुओं पर जीएसटी बढ़ा दिया है तो महंगाई और बढ़ी है। लोग परेशान हो रहे हैं। परेशान तो मैं भी हो रहा हूं। कल ही मैंने कोहड़ा खरीदा। कीमत चालीस रुपए किलो। मैं तो दिल्ली में सिंगल पेट वाला आदमी हूं तो मेरा काम बीस रुपए में चल जाएगा, लेकिन वे जो दिल्ली में सपरिवार रहते हैं, उनकी हालत क्या होती होगी?
सचमुच मन की गति बहुत तेज है। अब तुम शांत भी हो जाओ मेरे मन।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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