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वाराणसी : एक आदमी एक नाव एक लाइसेंस के खिलाफ मांझी समाज में आक्रोश

वाराणसी। गंगा में नाव चलाकर अपना जीवनयापन करने वाले लोगों के सामने वाराणसी जिला प्रशासन के एक नाव और एक लाइसेन्स वाले फरमान ने मुश्किलें पैदा कर दी हैं। जिला प्रशासन ने एक नया आदेश पारित किया है कि कोई भी आदमी एक से अधिक नावें नहीं चलवा सकता है। ऐसे में नाविकों के सामने […]

वाराणसी। गंगा में नाव चलाकर अपना जीवनयापन करने वाले लोगों के सामने वाराणसी जिला प्रशासन के एक नाव और एक लाइसेन्स वाले फरमान ने मुश्किलें पैदा कर दी हैं। जिला प्रशासन ने एक नया आदेश पारित किया है कि कोई भी आदमी एक से अधिक नावें नहीं चलवा सकता है। ऐसे में नाविकों के सामने रोजी-रोटी की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।

बबलू निषाद

गंगा में नाव चलाने वाले नाविक बबलू निषाद कहते हैं कि महंगाई के दौर में एक नाव चलाकर कोई भी आदमी अपना घर-परिवार नहीं चला सकता। एक नाव से कभी-कभी तो 3 से 4 सौ की कमाई हो जाती है तो कभी पूरे दिन एक पैसे की बोहनी नहीं होती। ऐसे में हम लोग दो-तीन नावें चलवाते हैं, जिससे परिवार को दो वक्त की रोटी मिल जाए। पिछले एक दशक में जिस प्रकार से महंगाई बढ़ी है, उस स्थिति में अगर आपके पास महीने में 20 हजार की कमाई नहीं है तो आप तीन-चार सदस्यों वाला परिवार नहीं चला सकते। इतना पैसा कमाने के लिए दो-तीन नावें चलानी ही पड़ेंगी, नहीं तो परिवार नहीं चल सकता। परिवार बढ़ा है तो काम करने वाले भी हमारे परिवार से हैं ऐसे में एक नाव से कैसे चल पाएगा। हमारे बेटे भी इसी काम में आ रहे हैं। और इस महंगाई में 6-7 व्यक्तियों का परिवार कैसे चलेगा?

बबलू आगे कहते हैं कि यह सारा गुणा-गणित स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से हो रहा है। अलखनंदा और भागीरथी जैसे बड़े क्रूज और ई-टैक्सी यहां पर चल सकें, इसलिए उनका रास्ता साफ करने के लिए हम लोगों को धीरे-धीरे रास्ते से हटाया जा रहा है। कुछ दिन बात यह भी नियम आ जाएगा कि अब गंगा में नाव नहीं सिर्फ ई-टैक्सी, क्रूज और बजड़ा ही चलेगा तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

मां गंगा निषाद राज सेवा न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मांझी

दूसरी तरफ, मां गंगा निषाद राज सेवा न्यास के अध्यक्ष प्रमोद मांझी जिला प्रशासन के फैसले को उचित ठहराते हुए कहते हैं कि एक आदमी के पास एक या दो नाव चलाने का लाइसेंस होना ही चाहिए। कुछ लोग गंगा में 8-10 नावें चलवाते हैं और किसी के पास एक नाव का भी लाइसेंस न हो तो यह गलत बात है न। जिला प्रशासन के फैसले से सभी को एक नाव का लाइसेंस मिलेगा, जिससे सभी को कमाने का अवसर मिलेगा और सभी का परिवार सुचारू रूप से चलेगा।

लाइसेन्स मिलने वाला शुल्क भी बढ़ गया है। वर्ष 2008 से पहले मात्र 45 रुपए में लाइसेन्स मिलता था। उसके बाद 150 रुपया हुआ लेकिन अब तो मनमाना वसूल किया जा रहा है। जो जितना अधिक पैसा देगा उसे उतनी जल्दी लाइसेन्स मिलेगा। किसी से 600 रु किसी से 800 और यहाँ तक कि 1200 रु तक लोगों से लाइसेन्स के वसूल रहे हैं।

क्या जिला प्रशासन इसी बहाने मांझी समाज को घाटों से हटाने की रणनीति तो नहीं बना रहा? सवाल पर प्रमोद कहते हैं कि जिला प्रशासन के इस फैसले के पीछे यह सोच भी हो सकती है, मैं इनकार नहीं कर रहा हूं, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो हम इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं। मेरा मानना है कि हमारे समाज के सभी भाइयों के पास अपनी आजीविका चलाने के लिए नाव रूपी यह साधन हो, जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती रहे।

हमने यह प्रस्ताव भी रखा है कि दशाश्वमेध और शीतला घाट पर एक ही समय में होने वाली आरती के समय में बदलाव किया जाए। क्योंकि दोनों घाट अगल-बगल हैं और आरती का समय एक होने पर आरती में शामिल होने वालों की भीड़ बढ़ जाती है और नावों की भीड़ से जो अव्यवस्था होती है, उस पर भी काबू पाया जा सकता है अन्यथा प्रशासन पूरा आरोप हम नाविकों पर डालती है। शाम का समय हम नाविकों की कमाई का भी होता है।

कुछ बाहरी लोग गंगा से कमाई करना चाहते हैं

एक बार पुनः नाविकों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसमें कुछ बाहरी लोग, जिनका इस पेशे से कुछ लेना देना नहीं है वे गंगा से कमाई करने के मंसूबे पाले हुए हैं। इसमें जिला प्रशासन की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। कुछ इसी सोच का परिणाम है कि नये लाइसेंस के लिए आवेदन को अभी रोककर रखा गया है।

प्रमोद मांझी बताते हैं कि मैंने दूसरे लोगों का लाइसेंस बनवाने के लिए नगर निगम कार्यालय में फार्म जमा किया है। अभी मेरे पास 18-20 फार्म और हैं, जिसे लेकर एक-दो दिन में जमा करूंगा।

आपकों क्या लग रहा है आपने जितने लोगों का फार्म जमा किया है उन सभी को लाइसेंस मिल जाएगा? इस पर प्रमोद कहते हैं कि नगर निगम के लोग अभी टालमटोल कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि वे लोग लाइसेंस इतनी आसानी से नहीं देंगे। अगर नगर निगम लाइसेंस नहीं देता है तो हम आंदोलन करेंगे और अपने भाइयों को उनका हक दिला कर ही दम लेंगे।

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इस बाबत मेयर वाराणसी अशोक तिवारी का कहना है कि एक आदमी को एक ही लाइसेंस देने का निर्णय किया गया है। इससे ठेके पर नाव चलाने वालों पर रोक लगेगी और जो लोग नाव चलाकर अपनी आजीविका चलाना चाहते हैं, उनको रोजगार भी मिलेगा। साथ ही घाटों पर से शाम के वक्त लगने वाली भीड़ से भी निजात मिलेगी।

पहले भी नाविकों ने अपने हक में उठाई थी आवाज़ 

इससे पहले भी नाविकों पर सरकार की तरफ से कई प्रकार के नियम थोप दिए गए, जिसका नाविकों ने पुरजोर विरोध किया। अन्ततः सरकार को नाविकों के आगे झुकना पड़ा। मायावती के शासन काल वर्ष 2008 में नावों को लाइसेन्स देने पर प्रतिबंध लगाया था और प्रशासन की ओर से नाव का प्रीपेड शुल्क तय किया गया था। जिसमें एक नाव पीछे 300 रुपये किराया तय किया गया  जिसमें से 200 रुपये सरकार को देने की बात कही गयी थी और 100 रुपया नाविकों की कमाई होगी। जबकि उन दिनों एक व्यक्ति  से नाव पर 40-50 रुपए ही किराया लिया जाता था। सरकार का कहना था कि कछुआ सेंचुरी को संरक्षित करने के उद्देश्य से नये लाइसेन्स नहीं दिये जाएँगे। शासन के इस फरमान के खिलाफ नाविकों ने हड़ताल शुरू कर दी। बीच गंगा में नावें खड़ी कर दी गईं। बाद में इस फैसले को वापस लिया गया।

वर्ष 2019 में लगभग 15-18 दिन क्रूज चलाये जाने के विरोध में निषाद समाज ने अपनी नावें रोक दी थीं और एक बड़ा आंदोलन किया था। जुलाई 2023 में बाहरी व्यक्तियों द्वारा वॉटर टैक्सी चलाये जाने से ठेका दिये जाने के खिलाफ भी एक विरोध प्रदर्शन हुआ था। इनका कहना है कि गंगा में लाई जाने वाली रोजगार की विभिन्न परियोजनाओं में निषाद समुदाय को शामिल किया जाये न कि आहरी व्यक्तियों को।

बहरहाल जो भी हो ‘एक आदमी-एक नाव’ का लाइसेंस के जिला प्रशासन के निर्णय से गंगा में नाव चलाकर जीवनयापन करने वाले लगभग 40 हजार परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। ऐसे में जिला प्रशासन का यह निर्णय कितना कारगर साबित होगा और कितने लोग इस निर्णय से बर्बादी की ओर जाएंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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