वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्वच्छ भारत की मुहिम को उनके संसदीय क्षेत्र में ही तगड़ा झटका लगा जब स्वच्छ सर्वेक्षण में वाराणसी 20वें पायदान से लुढ़ककर 41वें स्थान पर पहुंच गया। देश के स्तर पर हुए स्वच्छ सर्वेक्षण में काशी की रैकिंग 20 पायदान नीचे चली गई। 2023 में वाराणसी नगर निगम ने 41वीं रैंक हासिल की है।
इससे पूर्व 2022 में प्रदेश स्तर पर चौथी और देश स्तर पर 21वीं रैंक मिली थी। हालांकि बेस्ट गंगा टाउन सर्वेक्षण में वाराणसी को पहला स्थान जरूर प्राप्त हुआ है। इसके पहले 2022 में बेस्ट गंगा टाउन सर्वेक्षण में बनारस को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। इस पूरे मामले से वाराणसी नगर निगम का स्वच्छता अभियान सवालों के घेरे में आ चुका है। वाराणसी जिले को थ्री स्वच्छ सर्वेक्षण में थ्री स्टार भले ही मिला हो लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाय तो प्रमुख मार्गों को छोड़ दिया जाय तो वो तीन स्टार पर छिन जाय।
वाराणसी जिले में साफ-सफाई का हाल यह है कि मुख्य सड़कों को छोड़ दिया जाय तो गलियों और मोहल्लों की सड़कों के अलावा कालोनियों में ठीक से झाड़ू भी नहीं लगती। जिले के अफसरों की नजर सिर्फ मुख्य सड़कों को ही चमकाने पर रहती है। गलियों की साफ- सफाई के लिए हुकूलगंज निवासी निशा कहती हैं कि, गलियों की साफ-सफाई के लिए सफाई कर्मचारी एक दिन आएंगे तो दो दिन गायब रहते हैं । इससे सारा कूड़ा कचरा सड़क के साथ ही गलियों में इधर उधर पड़ा रहता है जिस पर आवारा पशु मुंह मारते रहते हैं ।
गलियों की साफ- सफाई की बाबत शिवपुर कादीपुर में चाय की दुकान चलाने वाले रामकिशुन यादव कहते हैं मुख्य सड़कों को छोड़ दिया तो अन्दर की सड़कों और आसपास बजबजाते कूड़ों पर अधिकारियों की भी नजर नहीं जाती । अगर उन्हें कूड़ा दिख भी जाय तो वे वहां से मुंह फेरकर निकल जाने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
वाराणसी जिले को 8 जोन में विभाजित किया गया है। 20 लाख से अधिक की आबादी वाले इस शहर में 100 वार्ड हैं। इस सौ वार्डों में 55 सौ सफाई कर्मचारी काम कर रहे हैं। बावजूद इसके सफाई का हाल यह है कि प्रमुख मार्गों को छोड़ दिया जाय तो जगह-जगह कूड़े का ढेर नजर आ ही जाता है।
वाराणसी का साल दर साल रैकिंग का हाल
साल रैंक शहरों की संख्या
2023 | 41 | 4507 |
2022 | 21 | 4507 |
2021 | 30 | 4320 |
2020 | 27 | 4242 |
2019 | 17 | 4237 |
2018 | 29 | 4203 |
2017 | 32 | 434 |
2016 | 65 | 73 |
क्यों पिछ्ड़ गया पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते आए दिन जिले में वीवीआईपी के अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योगी का भी अक्सर आगमन होता रहता है। ऐसे में जिले के अफसरों की नजर मुख्य मार्गों के अलावा कहीं नहीं रहती । उनका सारा जोर मुख्य मार्गों पर ही होता है जहां पर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आ जा सकते हैं । इसलिए अफसरों के सफाई के केन्द्र में मुख्य मार्ग ही होते हैं गलियां, चटटी और चैराहे नहीं। जबकि आवश्यकता इस बात की भी होती है कि प्रमुख मार्गों के साथ ही गली-कूचे के साथ ही कॉलोनियों पर भी उतना ही ध्यान दिया जाय जितना प्रमुख मार्गों पर दिया जाता है।
कादीपुर शिवपुर निवासी गौतम सिंह कहते हैं साफ-सफाई का मतलब ही प्रमुख मार्गाें से होता है। बाकी गलिया चटटी, चौराहों और कालोनियों की साफ-सफाई की व्यवस्था तो लोगों को खुद करनी चाहिए और वही चीज यहां भी हो रहा है।
वाराणसी की रैकिंग इन वजहों से पिछड़ी
घर घर से कूूड़ा का ठीक से उठान नहीं हुआ।
गीले और सूखे कूड़े को सफाई कर्मी अलग अलग नहीं ले जाता।
एसटीपी की क्षमता से अधिक सीवर निकल रहा है ।
शहर की सफाई का ठेका लेने वाले खुद ही सुस्त नजर आए
जलभराव से निपटने के लिए बेहतर व्यवस्था नहीं ।
अधिकारी कहां चूके
1.नाले नालियों की नियमित सफाई नहीं
2॰सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों की सफाई में ढिलाई
3.जमीनी स्तर पर साफ सफाई की बेहतर देखरेख की कमी
4.ठोस कूड़े का बेहतर ढंग से निस्तारण नहीं हो रहा
5. आम आदमी नगर निगम की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं
प्रदेश स्तर पर पाँच टॉप शहर
पहली रैंक नोएडा
दूसरी रैंक गाजियाबाद
तीसरी रैंक अलीगढ़
चौथी रैंक वाराणसी
पांचवी रैंक लखनउ
रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक स्वच्छ सर्वेक्षण में पाया गया कि सबसे ज्यादा लापरवाही कूड़ा उठान के दौरान गिले और सूखे कूड़े को अलग करने के दौरान बरती गई । इसके बाद सबसे ज्यादा हीलाहवाली कूड़ा को रिसाइकिल करके खाद बनाने की प्रक्रिया में की गई।
इसी हीला-हवाली का एक उदाहरण है करसड़ा का कूड़ा केन्द्र जहां पर वाराणसी शहर का सारा कूड़ा ले जाकर डम्प किया जाता है। तुर्रा यह कि यहां जो भी शहर का कू़ड़ा जाता है वह रिसाइकिल किया जाता है और उसकी खाद बनायी जाती है। जबकि असलियत यह है कि शहर से निकलने वाला कूड़ा ले जाकर करसड़ा प्लांट में किया जा रहा है। आज वहां पर कूडे़ का पहाड़ बन चुका है। आसपास के गांवों के लोगों का कूड़े से उठने वाली दुर्गन्ध से रहना मुश्किल हो चुका है।
इस बाबत गिलट बाजार निवासी राजेश गुप्ता कहते हैं कि इस सरकार में आंकड़ेबाजी ज्यादा होती है। सच्चाई यह है कि गलियों में ठीक से कूड़ा उठान नहीं होता। बाहर की सड़कों पर ही अधिकारियों की नजर रहती है। कूड़ा के क्षेत्र में अभी वाराणसी जिला प्रशासन को बहुत काम करने की जरूरत है।
इस बाबत वाराणसी के नगर आयुक्त अक्षत वर्मा का कहना है कि वाराणसी शहर एक बड़ी आबादी वाला शहर है। उसके बावजूद 10 लाख से अधिक की जनसंख्या वाले 446 शहरों का जो सर्वे हुआ है उसमें वाराणसी को 41 वां स्थान प्राप्त हुआ है जो हमारे लिए एक गौरव की बात है। हम कोशिश कर रहे हैं कि इस दिशा में और बेहतर कर सके।
बहरहाल जो भी हो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का असर उनके संसदीय क्षेत्र में ही औधे मुंह गिरता दिखलाई पड़ रहा है। वाराणसी में प्रशासनिक अफसरों की नजर सिर्फ प्रमुख सड़कों की साफ-सफाई तक ही सीमित रहती है और गलियां कूड़े के ढेर से बजबजाती नजर आती है । ऐसे में यह देखना अभी बाकी है कि प्रमुख सड़कों की ही भांति गलियां भी चमचमाती नजर आती हैं या नहीं ।
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