भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था- जय जवान, जय किसान। यह केवल एक नारा ही नहीं था, इसके पीछे दूरदर्शी सोच के साथ राष्ट्र को मजबूत बनाए रखने की संकल्पना थी। किंतु इधर बीच जवान और किसान दोनों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। किसान महंगाई से परेशान हैं और नौजवान रोजगार के लिए दर-दर भटक रहा है। किसानों की भलाई के लिए भारत सरकार तीन नए कृषि कानून लाई थी। एक वर्ष के आंदोलन के बाद जिसे वापस लेना पड़ा था। वही कोरोनाकाल में सेना में भर्ती रुकी हुई थी। जिसके कारण काफी जवान ओवरएज हो चुके हैं। वे सेना में भर्ती की मांग करते हुए आयु की समय सीमा बढ़ाने की मांग पर जोर देते रहें। कुछ नौजवानों की सिर्फ नियुक्तियां रुकी हुई थी। लेकिन भारत सरकार ने अग्निपथ की नई योजना लाकर जवानों को काफी निराश किया है। जो कि अब आंदोलनरत हैं। सेना में भर्ती होना महज एक देशभक्ति और देश सेवा का ही मामला नहीं है। उसके साथ यह एक नौजवान के रोजगार और रोजी-रोटी का भी अवसर होता है। जिन घरों से कोई नौजवान सेना में भर्ती हो जाता है उसके परिवार की उनसे बहुत उम्मीदें जुड़ जाती हैं। उसके सिर पर देश के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी बोझ लाद दिया जाता है। जिनके घर महज झोपड़ी होती है, वह एक मकान बनवाने की कोशिश करते हैं। जिनके घर में तीन-चार अविवाहित लड़कियां होती हैं। उनके शादी करने की भी जिम्मेदारी होती है। घर में छोटा भाई या बच्चे पढ़ रहे होते हैं तो उनके पढ़ाई का भी खर्च वहन करना पड़ता है और उस नौजवान का खुद का भी कुछ सपना होता है जो देश की सेवा के साथ कमाये गए पैसों से अपनी आवश्यकता को पूरा करना चाहता है।
सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है कि अग्निवीर के बाद शिक्षावीर, चिकित्सावीर और रेलवेवीर योजना आने की प्रबल संभावना है। हालांकि मैं उस मैसेज के पक्ष में नहीं हूँ किंतु सरकार को युवाओं की बात सुनने और उनके पक्ष में विचार करने की जरूरत है।
अग्निपथ योजना के तहत नौजवानों का वेतन बहुत कम है। इसके बाद उन्हें कोई पेंशन, कैंटीन और परिवार के लिए मेडिकल सुविधा भी नहीं मिलने वाला है। टेलीविजन चैनलों पर प्रचारित किया जा रहा है कि चार साल बाद जब जवान रिटायर होगा तो उसके पास 11 लाख 72 हजार रुपए होंगे। मोटा-मोटी बारह लाख। अब सवाल यह है कि जिनके पास बिस्सा भर जमीन और रहने के लिए घर तक नहीं है, वह महज 12 लाख में क्या कर सकता है। 25-26 साल की उम्र उस नौजवान की शादी करने की उम्र होती है। तब वह भूतपूर्व सैनिक भी नहीं कहा जा सकता। उसके जीवन में तमाम बाधाएं आएगी। नौकरी करने के बाद भी वह एक सामान्य जीवन जीने को मजबूर हो जाएगा। क्या 12 लाख में वह अपने बच्चों को अच्छी मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा दे पाएगा? क्या वह अपने घर में छोटी बहनों की शादी कर पाएगा? क्या वह अपने परिवार के लिए एक मकान बनवा पाएगा? जिस अच्छी स्कीम को लाने में सरकार को दो साल तक तैयारी करनी पड़ी। उसे सरकार युवाओं को क्यों नहीं समझा पा रही है? चिंता की बात यह हुई कि दो साल की तैयारी करने के बाद भी इतनी भारी संख्या में युवा सड़क पर क्यों निकल पड़ते हैं? निश्चय ही सेना भर्ती के इस बदलाव में कुछ कमी होगी। जिसके कारण सरकार को तीन दिनों में तीन परिवर्तन करने पड़े। कुछ राजनीति घटक द्वारा खूब प्रचार-प्रसार किया जा रहा है और इस भर्ती के नए नियम के फायदे गिनाए जा रहे हैं। जिसमें सेना के उच्च अधिकारियों को भी सामने आना पड़ा है।
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मैं सेना पर सवाल नहीं उठाता हूँ मगर सेना भर्ती प्रक्रिया को राजनीति ढंग से पेश नहीं किया जाना चाहिए। हमारी सेना को मजबूत सशस्त्र बल कैसे मिले? इस पर गहराई से मंथन करने की आवश्यकता है। मैंने कुछ भूतपूर्व सैनिकों के बयान सुने हैं कि डेढ़ साल तो सेना के प्रशिक्षण में ही लग जाते हैं और बेहतरीन प्रशिक्षण के लिए तीन चार साल का समय लगता है। तब जाकर हमारी मजबूत और भरोसेमंद सेना तैयार होती है। हालांकि, इस प्रक्रिया में भी अप-टू 25% को बने रहने की बात कही गई है। मगर मुझे 75% वाले की ज्यादा चिंता है। मैंने अपने अनुभव से देखा है कि सेना भर्ती में राजनेताओं, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, अधिकारियों एवं पूँजीपतियों के घर के बच्चे नहीं जाते हैं। हमेशा सामान्य गरीब या मध्यम परिवार के ही युवा सेना में शामिल होते हैं, क्योंकि जैसा कि पहले मैंने बताया कि उनके लिए रोजी-रोटी का भी संकट है और वे सेना में उन्नीस-बीस साल नौकरी करके परिवार को मजबूत आधार देते हैं।
मैं बचपन से देखता आया हूँ कि गाँव में बच्चे चौथी-पांचवी कक्षा से ही सेना में जाने की तैयारी करने लगते हैं। प्रतिदिन भोर में ही सड़क पर दौड़ने निकल पड़ते हैं, इसलिए सेना में भर्ती होने की एक लंबी तैयारी होती है, युवाओं के जीवन का लम्बा और सुनहरा सपना होता है। अधिकतर युवा पहली बार में सफल नहीं हो पाते हैं तो उन्हें दो से तीन या और अधिक प्रयास करना पड़ता है। अब तो भर्ती प्रक्रिया में धरना-प्रदर्शन मे शामिल न होने के सर्टिफिकेट की भी मांग कर दी गई है। हालांकि, मैं किसी भी प्रकार के हिंसा और उपद्रव का समर्थक नहीं हूँ किंतु एफआईआर होने का मतलब यह कतई नहीं है कि अभ्यर्थी दोषी हैं। दोष अदालत सिद्ध करता है।
एक लंबी तैयारी के बाद युवा सेना में भर्ती होकर चार साल में रिटायर होकर जब वापस आएगा तो वह आगे क्या करेगा? हालांकि, उन्हें 12वीं पास का सर्टिफिकेट मिल जाएगा लेकिन स्किल डेवलपमेंट न हो पाने के कारण अन्य जगह जाने में दिक्कत हो सकती है। इस विषय पर कुछ राजनीतिज्ञों के हास्यास्पद बयान आए हैं। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि चार साल बाद ये नौजवान बीजेपी कार्यालय में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर सकते हैं। क्या देश के लिए झंडा तिरंगा लेकर चलने वाले नौजवान के लिए इससे बड़ी सम्मानजनक नौकरी और नहीं हो सकती है? तिरंगे के सामने भारत माता को सलामी करने वाला नौजवान बीजेपी कार्यकर्ताओं को सलामी ठोकता रहेगा, दिनभर गेट पर बैठकर फाटक खोलता-बंद करता रहेगा? इससे बड़ी मूर्खतापूर्ण बयान बीजेपी के केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने दिया, उन्होंने कहा कि चार साल बाद ये नौजवान ड्राइवर, नाई और धोबी का काम कर सकते हैं। मंत्रीजी इतनी बुद्धिमता भरा बयान लाते कहां से हैं? क्या मंत्रीजी कभी अपने बच्चों से इस तरह का काम करवा सकते हैं। यदि नहीं तो देश की सेवा करके लौटे हुए नौजवानों के लिए ऐसा सलाह नहीं देना चाहिए। यह उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ है।
बताया जा रहा है कि यह अग्निपथ योजना पेंशन के दबाव को कम करने के लिए लाई गई है। सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है कि अग्निवीर के बाद शिक्षावीर, चिकित्सावीर और रेलवेवीर योजना आने की प्रबल संभावना है। हालांकि मैं उस मैसेज के पक्ष में नहीं हूँ किंतु सरकार को युवाओं की बात सुनने और उनके पक्ष में विचार करने की जरूरत है।
दीपक शर्मा युवा कवि-कथाकार है।
अगोरा प्रकाशन की किताबें किन्डल पर भी…
भाई दीपक जी ने अग्निपथ योजना की विसंगतियों, अपूर्णताओं और उससे उपजी वाजिब चिताओं को अपने इस आलेख में बखूबी व्यक्त किया है। पूंजीवादी सत्ता देश की हर सेवा/उद्यम का निजीकरण कर “ठेकावाद” को ही बढ़ावा दे रही है। यह एक प्रकार की निरंकुशता ही कही जाएगी। भाई दीपक को धन्यवाद इस सामयिक आलेख के लिए।
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