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वाराणसी: पुलिसिया दमन के एक साल बाद बैरवन में क्या सोचते हैं किसान

वाराणसी संसदीय क्षेत्र की रोहनिया विधानसभा का एक गाँव बैरवन पिछले एक साल से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए जानेवाले ट्रांसपोर्ट नगर के लिए बैरवन को भी उजाड़ा जाना है। विडम्बना यह है कि कुछ किसानों ने बहुत पहले अपनी ज़मीनों का मुआवजा ले लिया जबकि अधिसंख्य किसानों ने नहीं लिया। जिन किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है वे आंदोलन करके आज की दर से मुआवजा और पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। इसी रस्साकशी का फायदा उठाकर वाराणसी विकास प्राधिकरण ने पिछले साल मई महीने में ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू किया। इसका विरोध होने पर अगले दिन पुलिस ने गाँव में घुसकर लाठीचार्ज किया। एक साल बीतने और लोकसभा चुनाव के ऐन मौके पर इस गाँव के लोग क्या सोच रहे हैं?

अभी सुबह के आठ ही बजे हैं लेकिन धूप का आलम यह है जैसे आग बरस रही है। बैरवन गांव में फूलों के छोटे-छोटे खेतों में गेंदे खिले हुये हैं। कोई भी खेत एक बीघे का नहीं है। पूछने पर किसान कहते हैं कि हम लोगों के पास डेढ़-दो बीघे से ज्यादा ज़मीन नहीं है। उतने में गेहूँ, सरसों, सब्जी भी बोते हैं और थोड़ी सी फूलों की भी खेती कर लेते हैं। इस तरह जीवन चल रहा है।

मोहनसराय इलाके का यह गाँव पिछले साल से भय और अनिश्चितता के माहौल में जी रहा है। लोगों के मन में बहुत आक्रोश है। एक साल पहले इसी मई महीने की सोलह तारीख को रेलवे लाइन और अन्य दिशाओं से पुलिस ने गांव में मार्च किया और घरों में घुसकर महिलाओं, बूढ़ों और बच्चों पर डंडे बरसाए। यहां तक की एक घर में जवान बेटे की मौत हो गई थी और गाँव की महिलाएं वहाँ मातम में शामिल थीं लेकिन उनको भी दौड़ाकर पीटा गया।

ढाई दशक पहले से इस इलाके के कई गाँवों की ज़मीन पर ट्रान्सपोर्ट नगर बसाने की योजना चल रही है। गांव वालों की यह मांग है कि उन्हें जमींन का उचित मुआवजा और पुनर्वास दिया जाय या फिर हमारी जमींन न ली जाय। बैरवन गांव में फूलों की खेती होती है लेकिन गांव के लोग एक तरह से कई वर्षों से काटों भरी जिंदगी जी रहे हैं।

पिछले साल अचानक वाराणसी विकास प्राधिकरण ने करनादांडी और बैरवन आदि गाँवों की ज़मीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया जिसका विरोध किया गया। दरअसल जब यह योजना बनी थी उस समय कुछ किसानों ने अपनी ज़मीन देने पर सहमति जताई और मुआवजा ले लिया। लेकिन सैकड़ों किसानों ने नहीं न सहमति दी और न मुआवजा लिया। अभी जो गतिरोध पैदा हुआ है उसमें दो बातें ध्यान देने योग्य हैं।

गाँव की जमीन लेने पर हाई कोर्ट का स्टे हाई लेकिन वाराणसी विकास प्राधिकरण जबरन हदबंदी कर रहा है।

जिस समय समय मुआवजा दिया गया उस समय यहाँ की ज़मीन की दर एक लाख रुपए प्रति बिस्वा तय की गई थी। यह बात  चौबीस साल पुरानी है। लेकिन एक चौथाई सदी बीत जाने के बावजूद मुआवजा एक लाख रुपए बिस्वा ही है जबकि खुले बाज़ार में इस इलाके की ज़मीन तीस से साठ लाख रुपए बिस्वा है। स्वाभाविक है कि जिन किसानों की ज़मीनें और घर ले लिए जाएंगे वे मुआवजे की राशि में न ज़मीन खरीद पाएंगे और न ही मकान बना पाएंगे।

दूसरी बात यह कि जिन किसानों ने ज़मीनें नहीं दी उनकी ज़मीन भी वाराणसी विकास प्राधिकरण ने कब्ज़ा करना शुरू किया जिसका विरोध हुआ और बदले में पुलिस ने ग्रामवासियों पर लाठीचार्ज किया। उनके चूल्हे और घरेलू सामान तक तोड़ डाले। यहाँ तक कि उन्हें लगातार धमकियाँ दी जाती रही हैं। कई लोगों पर मुकदमे लादे गए हैं। ये किसान चाहते हैं कि उन्हें मौजूदा दर से मुआवजा और पुनर्वास दिया जाय या उन्हें अपने गाँव में शांति से रहने दिया जाय।

एक साल बीतने के बावजूद महिलाएं उस भयानक सुबह को नहीं भूल पाई हैं। चुनाव का माहौल है और यह गाँव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में है। जब उनसे यह पूछा गया कि वे किसको वोट देंगी तो वे गुस्से से फट पड़ीं। उन्होंने पिछले साल की पुलिसिया बर्बरता को याद करते हुये नरेंद्र मोदी के शासनकाल की आलोचना की।

गांव की एक बूढ़ी महिला कहती है ‘मेरे घर मेहमान आए हुए थे। उन्हीं के सामने पुलिस वालों ने मेरे छः महीने के नाती को उठाकर जमींन पर फेंक दिया। बच्चे के इलाज में 5-6 हजार रूपया लगाया। तब वह ठीक हुआ। मेरे मेहमान को पकड़कर ले गए। वे मुझे भी मारने के लिए डंडा उठाए तो मैंने कहा कि मुझे क्यों मार रहे हैं। मैं तो इसमें कहीं शामिल भी नहीं थी। मैं तो अपने घर पर ही थी। मेरे मेहमान को 12 दिन बाद पुलिस ने छोड़ा। जब मैंने पैसा दिया तब छोड़ा। मैं तो मजदूरी करके किसी तरह से जीवन यापन करती हूं। मेरी सरकार से बस यहीं मांग है कि हमें हटाने से पहले हमारे रहने का प्रबंध कर दें।’

गाँव के भीतर हमने कई महिलाओं से बात की। पिछले साल हुई पुलिस बर्बरता में कई महिलाओं को चोटें आई थीं। उन सबने आक्रोश के साथ इस बात का विरोध किया कि सरकार जिस तरह ज़ोर-जुलुम के साथ हमारी जमीनें ले रही है वह हमारे और हमारे बच्चों के लिए बहुत खतरनाक है।

कृष्णा प्रसाद

पिछले साल लाठीचार्ज में कल्लू पटेल और कृष्णा प्रसाद भी बुरी तरह घायल हुये थे। इस बारे में कृष्णा प्रसाद कहते हैं ‘हमारे गांव में ट्रान्सपोर्ट नगर योजना आयी। इस दौरान चार गांवों की जमींन को एक्वायर कर लिए। गांव की 86.19 एकड़ जमीन इनकी ओर से घेर ली गई। जबकि बहुत से लोगों ने मुआवजा ही नहीं लिया है। जबरन जमीन लेने के दौरान गांव के लोगों को मारा-पीटा गया। इस दौरान किसी की हड्डी टूटी तो कोई चोटिल हुआ। पूरी जमीन पर कब्जा कर लिया गया। तब से हम लोग मुकदमा लड़ रहे हैं। गांव के लोग परेशान हैं। गांव के लोगों की मांग है कि सर्किल रेट पर उनकी जमीनों की कीमत दी जाय। इसके अलावा हमारी कोई मांग नहीं है। अगर उनके पास सुविधा है तो हमें पुनर्वास की सुविधा मुहैया कराएं। यहां पर सरकार की ओर से मुआवज़ा एक लाख रूपया बिस्वा दिया जा रहा है। इतने कम पैसे में कहीं भी जमीन मिलने वाली नहीं है। चाहे वह पोखरे की जमीन हो या कोई दूसरी जमीन। जबकि यहां इस समय जमीन का रेट 60 लाख 50 लाख रूपए बिस्वा है।’

इसी गांव के होरी लाल पटेल कहते हैं ‘यहां 16 मई की स्थिति यह थी कि गांव में आया हुआ मेहमान तक पीटा गया। घर का दरवाजा तोड़कर अन्दर जाकर लोगों को मारा-पीटा गया। कितने लोग तो घर छोड़कर भाग गए। क्या किया जाय इतनी बड़ी संख्या में पुलिस थी कि उनसे कौन निपट सकता है? मेरी डेढ़ बीघा जमींन इस ट्रान्सपोर्ट नगर में जा रही है और सरकार उसका एक लाख रूपया बिस्वा के हिसाब से पैसा दे रही है। कुल मिलाकर मेरे डेढ़ बीघा जमीन का सरकार 30 लाख दे रही है। आज इतने में कहीं भी जमीन नहीं मिल रही है। सर्किल रेट के हिसाब से देखा जाय तो मेरी जमीन 9 करोड़ की हुई। मामला कोर्ट में है और इस पर स्टे चल रहा है। इसके बावजूद इसके जमींन का घेराव किया जा रहा है। स्टे था लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।‘

वह कहते हैं कि ‘यह सरकार ऐसी है कि अगर रात को दिन कहती है तो आपको भी दिन ही कहना होगा नहीं तो वह उठाकर जेल में डाल दे रही है।’ आने वाले चुनाव में इंडिया बनाम एनडीए के बजाय लोग जातीय गोलबंदी को तरजीह देते हुए दिखाई दे रहे हैं? इस सवाल पर होरी लाल पटेल बोले ‘यह सरकार रही तो हमें यहां से उजाड़ दिया जाएगा। हम यहां नहीं रह पाएंगे। यहां से हमारा सब कुछ खत्म हो जाएगा। अभी तो बच्चे पढ़ाई लिखाई के साथ खेती बारी में हाथ बंटा रहे हैं। लेकिन यह सरकार फिर आ गई तो हमको तहस-नहस कर देगी।’

हाईकोर्ट का स्टे हाई लेकिन विकास प्राधिकरण कब्ज़ा कर रहा है

किसानों के ऊपर लाठीचार्ज के बाद कई किसानों पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज़ कराया और उनको गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। कृष्णा प्रसाद कहते हैं कि हमलोग अभी भी मुकदमा झेल रहे हैं लेकिन हमने भी पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। किसानों की लड़ाई लड़ रहे डॉ विजय नारायण वर्मा लाठीचार्ज के सवाल पर बोले ‘16 मई को जब पुलिस के लोगों ने लाठीचार्ज किया तो उसके अगले ही दिन यानि 17 मई को कोर्ट में इस मामले की डेट पड़ी हुई थी। ऐसे में उन लोगों को गांव में ही नहीं आना चाहिए था। लेकिन इन लोगों ने गांव में घुसकर लोगों को पीटा। घर के दरवाजों को तोड़कर लोगों को पीटा गया। घर से महिलाओं को निकालकर उनके साथ अभद्रता की गई। कोर्ट में मुकदमा भी हुआ लेकिन इस मामले में गवाही तक नहीं होने दी जा रही है। सरकारी महकमा दबाव में काम कर रहा है।‘

डॉ विजय नारायण वर्मा

वर्मा कहते हैं ‘स्टे के बावजूद पेड़ों की कटाई हो रही है। जब इस बात की शिकायत मैंने मुख्यमंत्री पोर्टल पर की तो उसमें घालमेल किया गया। मैंने वन विभाग से पूछा कि स्टे आर्डर के बावजूद आप वहां कैसे काम कर रहे हैं? तो वे मुझे इधर-उधर की घुमा रहे हैं। मैंने वन विभाग के लोगों से पूछा कि आप हमें यह बता दीजिए कि आप लोग हाईकोर्ट के स्टे के बावजूद कैसे यहां काम कर रहे हैं? क्या आप लोग कोर्ट से भी ऊपर हैं, तो वे कहते हैं कि हमारी मर्जी।’ विजय नारायण वर्मा आगे बोले ‘इसका मतलब है कि वन विभाग हाईकोर्ट से भी ऊपर है। यहां का चौकी इंचार्ज भी सरकार की मंशा के अनुसार ही काम कर रहा है।’

‘इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों जगहों पर मुकदमा चल रहा है। मैंने कहा ‘कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। आपके पक्ष में फैसला आता है तो आप काम करिए लेकिन हमारे पक्ष मेंआएगा तो आप यहां से छोड़कर चले जाइएगा?’ लेकिन यहां के अफसर किसी भी बात को मानने को तैयार नहीं हैं। यहां पर उनकी मनमानी चल रही है। काशी द्वार, वैदिक सिटी, स्पोर्ट सिटी के नाम पर जितने भी सताए गए किसान हैं, वे सभी मिलकर बीजेपी सरकार को भगाने का काम करेंगे। अपने 44 साल की उम्र में मैंने ऐसी तानाशाही वाली सरकार कभी नहीं देखी।’

ज़मीन अधिग्रहण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है

डॉ विजय नारायण वर्मा कहते हैं कि ‘गांव के लोगों ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा कर रखा है। लेकिन अफसर कोर्ट का जवाब भी नहीं दे रहे हैं। कोर्ट ने 42 दिन का समय देते हुए इनसे पूछा था कि जिन किसानों की जमीन बची हुई है उनकी जमींन लेनी है या नहीं?  लेकिन आज तक इसका जवाब इन लोगों ने कोर्ट को नहीं दिया। गांव में जबर्दस्ती कब्ज़े की कार्रवाई कर रहे हैं। आठ महीने बाद इन लोगों ने बगैर हमारी जानकारी के हमारी जमीन का एवार्ड घोषित कर दिया।’

युवा अधिवक्ता उदय प्रताप

 

बैरवन गांव के निवासी युवा अधिवक्ता उदय प्रताप इस मामले को लेकर काम कर रहे हैं। उनका कहना है, ‘मैं जिला न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील से मिलकर उन्हें गांव में हो रही उचित और अनुचित कार्रवाई की जानकारी देता हूं। यहां पर जो भी काम किया जा रहा है वह गैरकानूनी है, क्योंकि भूमि अधिग्रहण 1894 की धारा 11 ए में यह प्रावधान है कि जिस दिन से अधिसूचना जारी होती है उस दिन से लेकर दो वर्ष की अवधि में इन्हें एवार्ड जारी करना होता है, लेकिन यहां तो इस सरकार में और जल्दबाजी की गई। ऐसे में एवार्ड तो और पहले जारी करना चाहिए था। इमरजेंसी की धारा 17/3 में प्रावधान है कि 80 प्रतिशत इच्छुक किसानों को मुआवजा देना होगा। उसके बाद ही ये कब्जा ले सकेंगे। इसके बाद जमीन को किसानों से लेकर विकास प्राधिकरण का नाम दर्ज किया जा सकता है। लेकिन यहां पर भारतीय संविधान का पालन नहीं किया गया।

‘अगर यहां पर भारतीय संविधान के बनाए कानून का पालन होता तो यह योजना 2003 में खत्म हो चुकी होती। धारा 11ए में कहा गया है कि अगर अधिसूचना के दिनांक से दो वर्ष के अन्दर एवार्ड जारी नहीं होता है तो योजना स्वतः निरस्त हो जाएगी। इसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों में यह प्रावधान किया गया है। लेकिन उसके बावजूद इस कानून का यहां पालन नहीं हुआ। यहां 2003 में किसानों के नाम काट दिए गए। इसके आठ साल बाद किसानों के साथ समझौता कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात कि किसानों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। किसानों को ज्यादातर कानून के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

‘तत्कालीन जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार अध्यक्षता करते हुए एक एग्रीमेंट किए, जिसमें उन्होंने कहा कि किसानों को एक से डेढ़ लाख की दर से मुआवजा देंगे। एग्रीमेंट में वे स्वीकार करते हैं कि अभी तक हमारा जमीन पर भौतिक कब्जा नहीं है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का लैंडमार्क जजमेंट इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहर लाल जजमेंट है। उसमें यह प्रावधान दिया गया है कि जब कब्जा लेना हो तो उनको एक पजेशन मेमो लेना होगा। पंचायतनामा कराना होगा। ताकि पंचायतनामा के समय जमीन बड़ी हो तो 40-50 व्यक्तियों का हस्ताक्षर कराकर यह दर्शाना होता है कि हमने जमीन का कब्जा ले लिया। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं किया गया। 2011 में एग्रीमेंट कर लिए लेकिन एग्रीमेंट तब होता जब वहां किसानों का नाम चढ़ा होता। लेकिन जब नाम ही नहीं चढ़ा तो एग्रीमेंट करने का कोई औचित्य नहीं होता। जिस व्यक्ति का नाम ही न हो उस व्यक्ति से आप एग्रीमेंट कैसे कर सकते हैं?

‘इस प्रकार से ये कानूनी रूप से वहां फेल हो गए। वाराणसी मंडल के वर्तमान कमिश्नर और उस समय के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने शासन को 26 जुलाई 2021 को एक पत्र लिखा  कि ट्रांसपोर्ट नगर योजना को डिनोटिफाई कर दिया जाय। क्योंकि अभी तक हमारा भौतिक कब्जा नहीं हुआ है। 2013 का कानून लागू होने की वजह से ऐसा हुआ क्योंकि हमने जो पैसे दिए थे उसमें और आज के पैसे में बहुत अन्तर हो चुका है। आज के हिसाब से हम उन्हें पैसा नहीं दे पाएंगे। जिन किसानों को पैसा दिया जा चुका है उनका प्रतिकर वापस कर लिया जाय और जो नहीं लिए हैं उनकी जमींन किसानों को ट्रांसफर कर दी जाय।

‘लेकिन इसके बाद तत्कालीन डीएम कौशल राज शर्मा 7 जनवरी 2023 को कहते हैं कि किसानों से जमीन का 20 साल का किराया वसूला जाए। आप सोचिए, जमीन हमारी, पैतृक संपत्ति हमारी और किराया भी हमीं से वसूल करेंगे? 16 मई को एक बार फिर कब्जा करने की मंशा से ये फिर आए। 86.29 हेक्टेयर जमीन जो अधिसूचना के वक्त जारी की गई थी,  उस तारीख तक ये कब्जा करने की नीयत से आए थे। इन्होंने तो 17 अप्रैल 2003 को दिखा दिया था जमीनों पर अपना कब्जा। मेरी माता जी के नाम से ठाकुर प्रसाद बनाम स्टेट आफ मुकदमा चल रहा है । हाईकोर्ट में मैंने एक काउण्टर दाखिल कर रखा है कि जमीन पर हमारा कब्जा 17 अप्रैल 2003 से ही है। उसमें हमने जिलाधिकारी का वह पत्र भी नत्थी किया जो उन्होंने शासन को लिखा था कि जमींन पर हमारा अभी भौतिक कब्जा नहीं है। उसी लेटर के आधार पर हमने कोर्ट को लिखा कि इनके उपर सीआरपीसी 340 के तहत इन पर मुकदमा दर्ज किया जाय क्योंकि कोर्ट में इन्होंने झूठा शपथ पत्र दिया है। इसकी वजह यह है कि जिलाधिकारी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि जमीन पर हमारा भौतिक कब्जा नहीं है। जमीन पर कब्जा न होने पर भी कब्जा दिखाने की सोच के तहत ही गांव के लोगों पर लाठीचार्ज किया गया।’

मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा इस चुनाव में नज़र आ रहा है

इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर मुस्लिम विद्वेष ज़ाहिर किया है ताकि भाजपा हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कर सके। उन्होंने देश के किसी भी मुद्दे को अपने प्रचार में शामिल नहीं किया है। यहाँ तक कि दस वर्षों में किए गए विकास को भी। जबकि देश में ऐसे अनेक मुद्दे हैं जो हल होने की बाट जोह रहे हैं। स्वयं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के अनेक गाँव जबरन भू-अधिग्रहण और सरकारी मशीनरी के दमन से त्रस्त हैं।

बैरवन गाँव में जिन महिलाओं से हमने बातचीत की उनका गुस्सा मोदी के खिलाफ निकला। उनका कहना था कि इस सरकार ने उनका जीवन और भविष्य खतरे में डाल दिया है। उनके ऊपर जुल्म किए गए हैं। इसलिए इस बार वे मोदी को वोट नहीं देनेवाली हैं।

पिछले साल पुलिस बर्बरता का शिकार हुई लालमनी और दुर्गावती

एक बुजुर्ग महिला लालमनी पिछले वर्ष की 16 मई की सुबह को याद करके सिहर उठती हैं। वह बताती हैं कि वह अपने खेत की ओर गई थीं जब पुलिस ने गाँव में घुसकर तांडव किया। उन्हें भी दौड़ाकर मारा। उनकी कमर में बहुत चोट आई और आज भी वह देर तक खड़ी नहीं रह सकतीं या बैठ पाती हैं। वह कहती हैं कि हमारी रिपोर्ट नहीं लिखी गई और न ही मेडिकल होने दिया गया।

एक अन्य महिला दुर्गावती ने कहा कि ‘हमने सरकार अपनी सुरक्षा के लिए चुनी थी लेकिन हमको लाठियाँ मिलीं। यह कहाँ का कानून है कि हमारा खेत लेने के लिए हमारे ऊपर लाठी चलाई जाय?’

छोटेलाल कहते हैं इस बार भाजपा वाले इस गाँव में वोट मांगने आएंगे तो उन्हें काला झण्डा दिखाया जाएगा।

अभी तक बैरवन गाँव में कोई प्रत्याशी वोट मांगने नहीं पहुंचा है। लेकिन गाँव के बुजुर्ग छोटेलाल पूरे आक्रोश में कहते हैं कि इस बार भाजपा के लोग यहाँ आएंगे तो उन्हें काला झण्डा दिखाया जाएगा। भाजपा की सरकार गद्दार सरकार है।’

वाराणसी के एक सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र यादव कहते हैं ‘फिलहाल वाराणसी संसदीय क्षेत्र के कई गाँव अपनी समस्याओं में सुलग रहे हैं। उनकी समस्याएँ सुने जाने की जरूरत है लेकिन अगर चुनाव में इनकी बातें न उठाई गईं तो जनता में इस राजनीति से भरोसा उठेगा।’

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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