Friday, March 29, 2024
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दिहाड़ी मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी न मिलने के पीछे जिम्मेवार कौन?

1 मई,मजदूर दिवस विशेष  (सामाजिक सुरक्षा कोष में तेजी लाने की आवश्यकता है ताकि देश के सबसे गरीब और कमजोर तबके को यह वित्तीय सुरक्षा की भावना प्रदान कर सके। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है। किसी भी समाज, देश संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहमियत किसी […]

1 मई,मजदूर दिवस विशेष 
(सामाजिक सुरक्षा कोष में तेजी लाने की आवश्यकता है ताकि देश के सबसे गरीब और कमजोर तबके को यह वित्तीय सुरक्षा की भावना प्रदान कर सके। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है। किसी भी समाज, देश संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहमियत किसी से भी कम नहीं आंकी जा सकती। इनके श्रम के बिना औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।)
बदलते दौर में विभिन्न आपदाओं के कारण सबसे बड़ा संकट दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए हुआ है। जिनके बारे देश के अंदर बहुत ही कम चर्चा हुई और इनकी आर्थिक सहायता के लिए देश की सरकार ने कुछ नहीं सोचा. कोई संदेह नहीं कि देश का मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा शोषण का शिकार है। दिहाड़ीदार मजदूर के लिए भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है। शहरों में रोजी-रोटी की तलाश में आने वाले मजदूर भूख से मर रहें है दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए जिम्मेवार कौन है? देशभर में करोड़ाें लोग दिहाड़ीदार श्रमिक हैं। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है।
किसी भी समाज, देश संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहमियत किसी से भी कम नहीं आंकी जा सकती। इनके श्रम के बिना औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती। दिहाड़ीदार मजदूर की गतिविधियों या डेटा के संग्रह को किसी कानूनी प्रावधान के तहत संजोकर नहीं रखा जाता है मतलब ये की सरकार इनका खाता नहीं रखती है। इन दिहाड़ीदार मजदूरों/अनौपचारिक / असंगठित क्षेत्र का जीडीपी और रोजगार में योगदान के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है। देश के कुल श्रमिकों में से, शहरी क्षेत्रों में लगभग 72 प्रतिशत  दिहाड़ीदार/अनौपचारिक क्षेत्र में लगे हुए हैं।

[bs-quote quote=”इसके बावजूद ये दिहाड़ीदार बहुत सी समस्यों से घिरे हुए है. हमारे राज्यों और शहरों में कितने अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यकर्ता/ दिहाड़ीदार  प्रवेश करते हैं और छोड़ते हैं, इस पर कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, भारत के कुल श्रमबल के लगभग 90% कर्मचारी अनौपचारिक क्षेत्र में लगे हुए हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

शहरी विकास में दिहाड़ीदार/अनौपचारिक क्षेत्र का महत्व बहुत ज्यादा है. भारत के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 500 मिलियन श्रमिकों के भारत के कुल कार्यबल का लगभग 90% अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है। यही नहीं प्रवासी दिहाड़ीदार मजदूर न केवल आधुनिक भारत, बल्कि आधुनिक सिंगापुर, आधुनिक दुबई और हर आधुनिक देश का निर्माता है जो आधुनिकता की ग्लैमर सूची में खुद को ढालता है। भारत में शहरी अर्थव्यवस्था विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के अनुरूप है, जो अनौपचारिक श्रमिकों  दिहाड़ीदार मजदूरों और असंगठित क्षेत्र द्वारा लाइ गई है। देखे तो यही वो  बैक-एंड इंडिया है जो आधुनिक अर्थव्यवस्था के पहियों को चालू रखने के लिए फ्रंट-एंड इंडिया को दैनिक जरूरत का समर्थन प्रदान करता है।

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फैक्ट्रियां, औद्योगिक इकाइयां, होटल, रेस्तरां और कई अन्य प्रतिष्ठान, भले ही बड़े नाम और उनके प्रसिद्ध संचालकों के बावजूद ऐसे श्रमिकों या  दिहाड़ीदारों पर निर्भर करते हैं। ये अलग-अलग कार्यों के लिए आते हैं। उबर और ओला ड्राइवर,राजमिस्त्री, बढ़ई, फूड डिलीवरी बॉय, पेंटर, प्लम्बर और कई अन्य हैं। भारत के भीतर श्रम प्रवास आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है और लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में योगदान देता है। प्रवासन आय में सुधार, कौशल विकास, और स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सेवाओं तक अधिक पहुंच प्रदान करने जैसे कार्यों में मदद कर सकता है।
इसके बावजूद ये दिहाड़ीदार बहुत सी समस्यों से घिरे हुए है. हमारे राज्यों और शहरों में कितने अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यकर्ता/ दिहाड़ीदार  प्रवेश करते हैं और छोड़ते हैं, इस पर कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, भारत के कुल श्रमबल के लगभग 90% कर्मचारी अनौपचारिक क्षेत्र में लगे हुए हैं। कार्यबल के रिकॉर्ड के अभाव में प्रमुख चुनौतियों में नौकरी की सुरक्षा की कमी, सीमित या बैंकिंग और बीमा चैनलों तक पहुंच न होना, आम तौर पर कम विकसित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली शामिल हैं।

[bs-quote quote=”श्रम मंत्रालय द्वारा हाल ही में प्रस्तावित असंगठित कामगार सूचकांक नंबर कार्ड भी कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद करेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना पर ध्यान केंद्रित करके इनके लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

इसके पास बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी है। अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को सार्वजनिक सुविधाओं जैसे कि हैंडपंप और सार्वजनिक नल या स्टैंडपाइप पर अधिक निर्भरता है जो एक नगरपालिका या सार्वजनिक कनेक्शन से जुड़े होते हैं। और ये स्रोत आम तौर पर अविश्वसनीय हैं – हैंड पंप और नगरपालिका पाइप हमेशा पीने योग्य गुणवत्ता वाले पानी की आपूर्ति नहीं करते हैं।
संक्रमण का मुकाबला करने में हाथ धोने के महत्व को देखते हुए जल स्वच्छता और स्वच्छता की कमी प्रवासी मजदूरों को असुरक्षित कार्य वातावरण में काम करने का जोखिम देती है।
शहरी क्षेत्रों को अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यकर्ता के लिए अधिक समावेशी बनाने के लिए  केंद्र और राज्य सरकारों को भारतीय अर्थव्यवस्था, ग्रामीण-शहरी विभाजन, राज्यों के भीतर असमान विकास और देश में क्षेत्रों के बीच असमान विकास और सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए अपने प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है। अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यकर्ता को अपने स्थानीय प्रशासन और पंचायत संरचनाओं के माध्यम से अपने कौशल और पिछले अनुभव के आधार पर नौकरी की तलाश और रोजगार के अवसरों के लिए प्रासंगिक जानकारी और परामर्श के साथ समर्थन करने की आवश्यकता है। श्रम मंत्रालय द्वारा हाल ही में प्रस्तावित असंगठित कामगार सूचकांक नंबर कार्ड भी कार्यबल को औपचारिक बनाने में मदद करेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना पर ध्यान केंद्रित करके इनके लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

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स्मार्ट शहरों की परियोजनाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करने की आवश्यकता है। यह सामाजिक और वित्तीय समावेश स्मार्ट सिटीज मिशन को वास्तव में समग्र बना देगा। अन्य नियमित कर्मचारियों की तरह इनको भी आर्थिक रूप से सहायता करना इनकी सामाजिक सुरक्षा को मजबूती देगा। सामाजिक सुरक्षा कोष में तेजी लाने की आवश्यकता है ताकि देश के सबसे गरीब और कमजोर तबके को  यह वित्तीय सुरक्षा की भावना प्रदान कर सके. एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है। किसी भी समाज, देश संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहमियत किसी से भी कम नहीं आंकी जा सकती। इनके श्रम के बिना औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रियंका सौरभ कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं और हिसार (हरियाणा) में रहती हैं।
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