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जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती !

चौथा हिस्सा और अन्तिम हिस्सा  माता-पिता के ऊँच-नीच समझाने और घर की दयनीय स्थिति का हवाला देने पर भी जब सुनरी ने अपना निर्णय नहीं बदला तो उन्होंने उस पर फिर कोई दबाव नहीं डाला l उन्हें लग गया कि युवा बेटी के भविष्य से खेलना ठीक नहीं है l कुछ ऊँच-नीच हो जाने पर […]

चौथा हिस्सा और अन्तिम हिस्सा 

माता-पिता के ऊँच-नीच समझाने और घर की दयनीय स्थिति का हवाला देने पर भी जब सुनरी ने अपना निर्णय नहीं बदला तो उन्होंने उस पर फिर कोई दबाव नहीं डाला l उन्हें लग गया कि युवा बेटी के भविष्य से खेलना ठीक नहीं है l कुछ ऊँच-नीच हो जाने पर समाज में उनका उठना-बैठना दूभर हो जाएगा l इसलिए उसके पिता ने आखिर एक दिन उसे एक अधेड़ व्यक्ति के हवाले कर दिया l उस व्यक्ति की पहली पत्नी जिंदा थी और उसके बच्चे भी बड़े थे l वह बीमार रहती थी l लगातार बीमार रहने के कारण वह पति और बच्चों को दाना-पानी देने में भी असमर्थ थी l युवा सुनरी अपने नये घर में जाकर एक बीमार और अशक्त औरत की सौत बन गई l अपनी सौत की लाचारी की वजह से वह उस घर की मालकिन बन गई l उसका पति जगमोहन उसे बहुत चाहता था l चाहता भी क्यों नहीं? बरसों से स्त्री का भूखा जो था l सुन्दर और युवा स्त्री को पाकर वह अपनी बीमार पत्नी के प्रति लापरवाह हो गया l लिहाजा एक-डेढ़ साल में ही उसकी मृत्यु हो गई l उसकी मृत्यु से सुनरी को परम सुख का एहसास हुआ, किन्तु उसके जीवन में अधिक सुख ही कहाँ बदा था ! लोग कहते थे कि स्त्री के प्रति अत्यधिक आसक्ति के कारण सुनरी का अधेड़ पति जल्दी ही टी बी और दमे का मरीज हो गया और एक दिन उसे बेसहारा छोडकर स्वर्ग सिधार गया l

[bs-quote quote=”मयभा महतारी से मिलने वाले दुःख का अनुभव उन मातृविहीन लड़के-लडकियों को ही होगा जो रोज़-रोज़ घूँट-घूँट अपमान और उपेक्षा का ज़हर पीते हैं l सौतेली माएँ अपनी मृत सौत के बच्चों को घृणा-तिरस्कार और यातना के कुंड में धकेल देती हैं l ऐसे बच्चे या तो अत्यंत दब्बू हो जाते हैं अथवा मुँहफट और आक्रामक l” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

सुनरी की दूसरी शादी नहीं हुई थी l जगमोहन भी अपनी दूसरी पत्नी को लेने उसके घर नहीं गया था l सुनरी को उसके पिता और एक मध्यस्थ ने अँधेरी रात में चोरी-छिपे उसके दूसरे पति जगमोहन के घर पहुँचा दिया था l सार्वजनिक रूप से ऐसा करने में बहुत झंझट था l सुनरी का उसके पहले पति से छुट्टी-छुट्टा नहीं हुआ था, इसलिए कानूनन वही उसका पति था और सुनरी उसकी पत्नी l अपनी पत्नी की दूसरी शादी होते देख वह चुप बैठा नहीं रहता l इसीलिए सुनरी के पिता ने उसकी नैया को इस तरह पार-घाट लगाने का उपक्रम किया l

मयभा महतारी से मिलने वाले दुःख का अनुभव उन मातृविहीन लड़के-लडकियों को ही होगा जो रोज़-रोज़ घूँट-घूँट अपमान और उपेक्षा का ज़हर पीते हैं l सौतेली माएँ अपनी मृत सौत के बच्चों को घृणा-तिरस्कार और यातना के कुंड में धकेल देती हैं l ऐसे बच्चे या तो अत्यंत दब्बू हो जाते हैं अथवा मुँहफट और आक्रामक l मेरे गाँव के बगल का नारद नाम का बच्चा इसी उपेक्षा-अपमान और यातना से तंग आकर घर छोड़कर भाग गया और कभी अपने पिता से भी मिलने गाँव नहीं गया l बहुत बाद में पता चला कि वह दिल्ली में रहता है और किराने की दुकान चलाता है l अब वह काफी मालदार आदमी हो गया है l

लेकिन मयभा मतारी के सताये हुए सभी बच्चे नारद जैसे नहीं होते हैं l उनमें कुछ ही बच्चों की किस्मत अच्छी होती है l अधिकतर बच्चे तो यातना, अपमान, उपेक्षा और निराशा के दमघोंटू वातावरण में जीवन गुज़ार देते हैं l लड़के तो फिर भी बाहर की दुनिया में घूम-फिर कर ताज़ा हवा में साँस ले लेते हैं, मगर लड़कियों को तो वह भी नसीब नहीं होता है l नई पत्नी के दबाव के कारण पुरुष अपनी पूर्व पत्नी से उत्पन्न संतानों के प्रति न चाहते हुए भी उदासीन हो जाते हैं l उनके लिए नई पत्नी से पैदा हुए बच्चे ही उनके असली वारिस होते हैं l ऐसे सभी मामलों में पुरुषों की कापुरुषता को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है l ऐसे पुरुष अगर नई पत्नी से थोड़ी कड़ाई से पेश आते तो शायद उनके पहले बच  निम्मी की माँ क्या मरीं, निम्मी और उसके छोटे भाई के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा l तमाम पुरुषों की तरह निम्मी के पिता ने भी अपनी पत्नी से वादा किया था कि उसकी मृत्यु के बाद वह दूसरा विवाह नहीं करेंगे l मगर निम्मी की माँ की मृत्यु के कुछ ही महीने बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली l बिरले युवा विधुर ही स्त्री के बिना पूरी ज़िन्दगी काट पाते हैं l निम्मी के पिता उन बिरले लोगों में से नहीं थे l नई माँ के लिए दो छोटे-छोटे बच्चे उसके सुख-विलास में बाधा बनने लगे l एकाध साल तो किसी तरह गुज़रा, किन्तु जैसे ही निम्मी की दूसरी माँ से एक भाई पैदा हुआ, निम्मी और उसका छोटा भाई नरसिंह उसकी आँख की किरकिरी हो गएl मयभा मतारी की लगातार प्रताड़ना से तंग आकर नरसिंह घर से भाग गयाl वह लुच्चे-लफंगों और गंजेड़ियों-भंगेड़ियों की सोहबत में पड़ गयाl बड़ा होकर भी वह सहज ज़िंदगी नहीं जी सकाl उसका अधिकांश समय जेल में ही बीतने लगाl मगर इधर निम्मी का बुरा हाल था l अपने दुख को किसी से न कह पाने के कारण वह गुमसुम रहतीl भाई की बरबादी से उसके दिल में हूक-सी उठती थीl अगर माँ जिंदा होती तो न तो भाई बुरे लोगों की सोहबत में पड़कर बर्बाद होता और न ही उसके खुद के भाग्य पर कालिख पुतती l नई माँ से रोज़ ही भाई को प्रताड़ित होते हुए देखकर निम्मी को जितना दुःख होता था उससे कम दुःख स्वयं का नहीं था, मगर फिर भी पता नहीं क्यों भाई को इस हालत में देखकर वह बिलबिला कर रह जाती थीl दो-चार बार उसने अपने पिता से नई माँ की शिकायत की तो सांत्वना देने के बजाय उन्होंने निम्मी को ही डांट दिया l उसके बाद से निम्मी बिलकुल चुप रहने लगी l नई माँ उसके रूप-रंग से भी चिढ़ती थी, क्योंकि उसकी बेटी रूपा देखने में बोदी और कम खूबसूरत थी l

[bs-quote quote=”‘पूतकाटी’ और ‘भतारकाटी’ की गालियों का परस्पर आदान-प्रदान करनेवाली ये स्त्रियाँ खुद एक-दूसरे की विरोधी रही हैं l अपने अधिकारों की बात करनेवाली किसी सचेत स्त्री को पारंपरिक मिज़ाज वाली औरतें स्वच्छंद और निरंकुश मानती रही हैं l” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

जिस तरह रास्ते में बैठे हुए कुत्ते को हर कोई एक लात मारकर या दुरदुराकर आगे बढ़ जाता है, उसी तरह निम्मी और नरसिंह के साथ हो रहा थाl नरसिंह के गलत लोगों की संगत में जाने को उसने उसकी मुक्ति के रूप में देखाl अपमान और उपेक्षा से तंग आकर किशोरी निम्मी अपने नाना के पास चली गईl एक अयाचित दायित्व और भविष्य में निम्मी की शादी पर होने वाले खर्च का अनुमान कर निम्मी की मामी भी कुड़बुड़ कुड़बुड़ करने लगी, लेकिन निम्मी की नई माँ की तरह वह क्रूर नहीं थी l निम्मी के नाना और मामा की वजह से भी वह लाचार थी, अन्यथा संभवत: निम्मी के प्रति उसका व्यवहार भी अमानवीय हो जाताl नाना इस मर्म को समझते थेl इसलिए अपने जीते जी वे निम्मी का भविष्य निरापद बना देना चाहते थे l यही वजह है कि सोलहवें बरस में ही उन्होंने निम्मी की शादी कर दी l

निम्मी बेहद खूबसूरत थी l उसकी ससुराल वालों को उसके अतीत के काले अध्याय से नहीं, बल्कि उसकी सुन्दरता के उजले भविष्य से सरोकार था l निम्मी भी ससुराल में जाकर बहुत खुश थी l सास-ससुर, देवर-जेठ और देवरानी-जेठानी से भी उसे अपेक्षित प्यार और सम्मान मिला l अपने पति से उसे जितना प्यार मिला, उसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी l जीवन में हुए इस अप्रत्याशित परिवर्तन से वह विस्मय-विमुग्ध थी l देखते-देखते उसकी गोद भी भर गई l लेकिन उसका यह सुख भोर में पत्ती से झूलती ओस-बूँद जैसा साबित हुआ l निम्मी बेवा हो गई l उसके लिए यह सचमुच दुःख का पहाड़ टूटने जैसा था l निम्मी के नाना ने इस खबर को सुनकर ईश्वर को कोसा कि क्या उसने अकेले सिर्फ उन्हीं की नातिन के हिस्से में सारी विपत्तियाँ डाल दी हैं l इस सदमे को बर्दाश्त न कर पाने के कारण वे भी परलोक सिधार गए l ससुराल के लोगों के अलावा अब कोई निम्मी के आँसू पोंछनेवाला नहीं बचा l अचानक उसके जेठ और देवर भी उसे परेशान करने लगे l दरअसल निम्मी का पति नौकरी करता था l उसकी मृत्यु के बाद उसकी कंपनी की तरफ से चार-पांच लाख रुपये निम्मी को मिल गए l इन्हीं रुपयों की वजह से उन सबकी निगाह बदल गई l लेकिन निम्मी तन गई l उसने किसी से न तो समझौता किया और न ही झुकी l अपने पति के वारिस को लेकर वह पुन: अपने ननिहाल आ गई l इस बार उसके मामा ने उसके नाना की जगह ले ली l मामी के रुख में भी बदलाव देखा उसने l पति की मृत्यु के बाद उसे पहली बार किसी अपने से अपना दुःख बयान करने का मौका मिला था l निम्मी की सूखी आँखें पहले लाल हुईं, फिर शरत्कालीन क्षितिज की तरह नम हो गईं l और अंत में वे सावन-भादों की तरह बरस पड़ींl

निम्मी के मामा-मामी ने उसके आँसू पोंछे और कहा कि तुम जाकर ससुराल में रहो l वही तुम्हारा घर-द्वार है और उस पर तुम्हारा अधिकार है l अपने लिए न सही, अपने इस बेटे के लिए तुम्हें जीना है ज़माने से लड़ना है l यही बच्चा तुम्हारा और तुम्हारे पति का वर्तमान और भविष्य है l अब तुम्हें किसी भी कीमत पर किसी के आगे नहीं झुकना है l यह दुनिया ही ऐसी है l यह दबे हुए को और दबाती जाती हैl और जो दूसरों को दबाने लगता है, उसके पास यह फटकती भी नहीं है l

[bs-quote quote=”अब स्त्रियाँ भी बाहर की दुनिया से परिचित हो गई हैं और पुरुषों की  तरह हर जगह काम कर रही हैं l कई एक मामलों में तो यह भी देखने को मिला है कि पत्नी सरकारी नौकरी कर रही है और पति घर के काम कर रहा है l गाँव-देहात की लडकियाँ घर-परिवार से दूर अकेले ही शहरों और महानगरों में पढ़ रही हैं और जॉब के अवसर तलाश रही हैं l अनेक मामलों में जातीय और धार्मिक बंधन भी टूटे हैं, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है l” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

मैं एक निराले लोक-समाज का हिस्सा रहा हूँ l मेरा लोक-समाज दूसरे लोक-समाजों से बहुत भिन्न नहीं रहा है l मेरे अपने समाज की स्त्री अपने अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक नहीं रही है l वह अधिकतर भाग्यवादी और परंपरावादी रही है l‘पूतकाटी’ और ‘भतारकाटी’ की गालियों का परस्पर आदान-प्रदान करनेवाली ये स्त्रियाँ खुद एक-दूसरे की विरोधी रही हैं l अपने अधिकारों की बात करनेवाली किसी सचेत स्त्री को पारंपरिक मिज़ाज वाली औरतें स्वच्छंद और निरंकुश मानती रही हैं l अपने प्रति हो रहे अत्याचार और शोषण को वे चुपचाप बर्दाश्त करती रही हैं l सास अपनी बहू पर और जेठानियाँ अपनी देवरानियों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अपने बेटे या देवर पर दबाव डालती रही हैं कि जैसे भी हो अपनी पत्नी को अंकुश में रखो l पत्नी को काबू में रखने में ही भलाई है l ज़रा सा छूट देने पर पत्नी सिर पर सवार हो जाती है l इसलिए प्राय: लोग कहते पाये जाते थे कि जिसकी जाँघ में ज़ोर नहीं होता है वह अपनी पत्नी को नियंत्रण में नहीं रख पाता है l व्यक्तिगत और सामाजिक मामलों में स्त्रियों की भावनाओं और विचारों की उपेक्षा की जाती रही है l इस समाज में पुरुष यौनेच्छा में ही स्त्री की इच्छा शामिल रही है l पुरुष की यौनेच्छा की पूर्ति न करना स्त्री को भारी पड़ता रहा है l लेकिन कभी-कभी स्त्रियाँ पुरुष की यौनेच्छा पूरी करके उससे अपनी माँगें  मनवाती रही हैं या अभिलषित वस्तु प्राप्त करती रही हैं l लेहले अइहा बालम बजरिया से चुनरी l नाहीं त देखा देबै सेजरिया पे अंगुरी l जैसे गीत इसी भाव को व्यंजित करते हैं l

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जो भी कन्ना-खुद्दी है उसे दे दो और नाक ऊंची रखो। लइकी हर न जोती ! (दूसरा हिस्सा)

निम्न और पिछड़ी जातियों में गाहे-ब-गाहे अपनी पत्नी पर हाथ और लात चलाना पुरुष के लिए शान की बात मानी जाती रही है l पत्नी को प्रताड़ित करने वाला पुरुष कुछ गँवार लोगों की नज़र में असली मर्द माना जाता रहा है l अधिकांश पुरुष अपनी पत्नियों को ‘रे’ से ही संबोधित करते रहे हैं l पत्नी के साथ सम्मान या नरमी से पेश आनेवाले पुरुषों को जोरू का गुलाम कहा जाता रहा है l

लेकिन अब समय बदल रहा है l न सिर्फ स्त्रियों में जागरूकता आई है, वरन स्त्री के प्रति पुरुषों की मानसिकता में भी बदलाव आया है l इसका मुख्य कारण शिक्षा और वैश्विक संस्कृति है l सामाजिक जड़ता टूटी है और उसमें खुलापन आया है l अब स्त्रियाँ भी बाहर की दुनिया से परिचित हो गई हैं और पुरुषों की  तरह हर जगह काम कर रही हैं l कई एक मामलों में तो यह भी देखने को मिला है कि पत्नी सरकारी नौकरी कर रही है और पति घर के काम कर रहा है l गाँव-देहात की लडकियाँ घर-परिवार से दूर अकेले ही शहरों और महानगरों में पढ़ रही हैं और जॉब के अवसर तलाश रही हैं l अनेक मामलों में जातीय और धार्मिक बंधन भी टूटे हैं, लेकिन कन्या भ्रूण हत्या अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है l स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध स्त्री के विकास में बाधक बने हुए हैं l

चंद्रदेव यादव जामिया मिलिया इस्लामिया विवि में प्रोफेसर हैं l 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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