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जब जनआंदोलनों ने परियोजनाएं रद्द करवाईं

वर्तमान में मंदुरी, आजमगढ़ में एक प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के खिलाफ किसानों-मजदूरों का आंदोलन चल रहा है। इस परियोजना से आठ गांव हसनपुर, कादीपुर हरिकेश, जमुआ हरिराम, जमुआ जोलहा, गदनपुर हिच्छन पट्टी, मंदुरी, जिगिना करमनपुर व जेहरा पिपरी की 670 एकड़ उपजाऊ कृषि जमीन और मकान खतरे में हैं। किसानों ने आजमगढ़ […]

वर्तमान में मंदुरी, आजमगढ़ में एक प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के खिलाफ किसानों-मजदूरों का आंदोलन चल रहा है। इस परियोजना से आठ गांव हसनपुर, कादीपुर हरिकेश, जमुआ हरिराम, जमुआ जोलहा, गदनपुर हिच्छन पट्टी, मंदुरी, जिगिना करमनपुर व जेहरा पिपरी की 670 एकड़ उपजाऊ कृषि जमीन और मकान खतरे में हैं। किसानों ने आजमगढ़ में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के औचित्य पर सवाल खड़ा किया है। चार महीने से ज्यादा समय से चल रहे आंदोलन के दौरान जिलाधिकारी आज़मगढ़ से वार्ता में आंदोलन के नेतृत्वकर्ता राजीव यादव द्वारा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर आज़मगढ़ हवाई पट्टी विस्तारीकरण परियोजना रदद् करने की मांग की गई तो जिलाधिकारी ने कहा कि आप सांसद या विधायक नहीं हैं, आप कैसे तय कर सकते हैं कि परियोजना रदद् हो? आंदोलन में सीधे तौर पर कोई जन प्रतिनिधि शामिल नहीं है हालांकि विस्थापित होने वाले गांवों के ग्राम प्रधानों समेत आजमगढ़ के सभी विधायकों का समर्थन आंदोलन को प्राप्त है
जनआंदोलन ने देश के अनेक विनाशकारी परियोजनाओं से दिलाई मुक्ति  
2006 में मुकेश अंबानी की रिलायंस कम्पनी के लिए महा मुम्बई विशेष आर्थिक क्षेत्र हेतु महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की तीन तहसीलों उरान, पेन व पनवेल में 35,000 एकड़ भूमि चिन्हित की गई। रिलायंस को 70 प्रतिशत व सरकार को 30 प्रतिशत भूमि अधिग्रहित करनी थी। रिलायंस सिर्फ 13 प्रतिशत भूमि ही अधिग्रहित कर पाई। विशेष आर्थिक क्षेत्र विरोधी संधर्ष समिति ने अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 2008 में सरकार द्वारा जनमत संग्रह कराया गया जिसमें लोगों ने भारी बहुमत से विशेष अर्थिक क्षेत्र के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। 2022 में महाराष्ट्र सरकार ने अधिग्रहित 1,504 हेक्टेयर जमीन किसानों को वापस देने का निर्णय लिया।

“जसपरा के सरपंच को गांव की 81 हेक्टेयर वन भूमि नाभिकीय उर्जा निगम को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव पारित करवाने के लिए लिखित आदेश दिया। ग्राम सभा ने ठीक उल्टा प्रस्ताव पारित कर भूमि परियोजना के लिए न देने का निर्णय लिया। लोगों के नारे थे मौत का कारखाना बंद करो व परमाणु बिजली न तो सस्ती है न ही सुरक्षित। जब लोगों ने नाभिकीय उर्जा निगम को वहां से मिट्टी का नमूना भी न ले जाने दिया तो 2017 में सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायालय में बता दिया कि परियोजना को कोवाडा, आंध्र प्रदेश हस्तांतरित किया जा रहा है।”

2008 में भारत अमरीका नाभिकीय समझौते के बाद भारत का नाभिकीय उर्जा निगम अमरीका की वेस्टिंगहाऊस कम्पनी की मदद से गुजरात के भावनगर जिले के मीठी विर्डी क्षेत्र में 6,000 मेगावाट का एक नाभिकीय उर्जा उत्पादन संयंत्र लगाना चाह रहा था। पांच गांवों मिठी विर्डी, खदरपार, मण्डवा, जसपरा व सोसिया की 1000 एकड़ जमीन जा रही थी। बाद में सोसिया को हटा कर इसे 777 एकड़ कर दिया गया। इस उपजाऊ इलाके, जिसमें किसान तीन फसल लेता है और मूंगफली, बाजरा, कपास, आम, आदि का उत्पादन करता है, को सरकार बंजर भूमि बता रही थी। पर्यावरण सुरक्षा समिति ने लोगों को चेर्नोबिल व फ्यूकूशिमा में नाभिकीय संयंत्रों में घटी दुर्घटना के बारे में बताया। पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर जिलाधिकारी ने जो जनसुनवाई रखी उसमें सरपंचों को न बोलने देने के मुद्दे पर जनता ने शांतिपूर्ण बहिष्कार कर दिया। तालुका विकास अधिकारी ने जसपरा के सरपंच को गांव की 81 हेक्टेयर वन भूमि नाभिकीय उर्जा निगम को हस्तांतरित करने का प्रस्ताव पारित करवाने के लिए लिखित आदेश दिया। ग्राम सभा ने ठीक उल्टा प्रस्ताव पारित कर भूमि परियोजना के लिए न देने का निर्णय लिया। लोगों के नारे थे मौत का कारखाना बंद करोपरमाणु बिजली न तो सस्ती है न ही सुरक्षित। जब लोगों ने नाभिकीय उर्जा निगम को वहां से मिट्टी का नमूना भी न ले जाने दिया तो 2017 में सरकार ने राष्ट्रीय हरित न्यायालय में बता दिया कि परियोजना को कोवाडा, आंध्र प्रदेश हस्तांतरित किया जा रहा है।

ओडीशा के कालाहांडी व रायगडा जिलों में नियमगिरी पहाड़ हैं जिनमें डोंगरिया कोंध आदिवासी रहते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनी वेदांता यहां अल्यूमिनियम बनाने के लिए बाॅक्साइट खनिज का खनन करना चाह रही थी। लम्बे संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में 2010 में भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने वेदांत को परियोजना के लिए जो पर्यावरणीय स्वीकृति दी थी वह वापस ले ली। 2013 के एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने ग्राम सभाओं को यह तय करने के लिए कहा कि वहां खनन होना चाहिए अथवा नहीं? 12 ग्राम सभाओं ने एकमत से यह फैसला लिया कि नियमगिरी में बाॅक्साइट का खनन नहीं हो सकता और परियोजना रद्द हो गई। संविधान, पंचायत का अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार अधिनियम, 1996 व वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत अदिवासियों को स्व-शासन के मिले अधिकार के क्रियान्वयन का यह बेमिसाल नमूना है।
पश्चिम बंगाल के सिंगूर में, जो एक अत्यंत उपजाऊ इलाका है और यहां आलू की बड़ी मण्डी है, टाटा के नैनो कार का कारखाना लगना था। सरकार ने 997 एकड़ कृषि भूमि का जनहित में अधिग्रहण कर लिया था। सवाल उठा कि किसी निजी कम्पनी के लिए जमीन जनहित बताकर कैसे ली जा सकती है? आंदोलन शुरू हो गया और इसमें विपक्ष की नेता ममता बनर्जी सीधे तौर पर शामिल हो गईं। तपसी मलिक नामक आंदोलनकारी युवती के बलात्कार के बाद मौत हो जाने से जनता की भावनाएं भड़क गईं। 21 जनवरी 2007 को टाटा ने कारखाने का निर्माण शुरू किया था किंतु भारी विरोध के चलते 3 अक्टूबर 2008 को उस जगह को छोड़ कर चले जाने का ऐलान कर दिया। 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने 997 एकड़ भूमि 9,117 किसानों को वापस करने का फैसला सुनाया।

“बी.बी.सी. द्वारा इंग्लैण्ड में जांच कराने पर पता चला कि कचरे में खतरनाक कैडमियम व सीसा के तत्व हैं। केरल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कचरा वितरण पर रोक लगाई। 22 अप्रैल 2002 को कोका कोला विरोधी जन संघर्ष समिति ने कारखाने के बाहर धरना शुरू किया। 3 अप्रैल 2003 को पंचायत ने अनुज्ञप्ति रद्द कर दी। उच्च न्यायालय ने ग्राम पंचायत को कम्पनी को 5 लाख लीटर पानी निकालने देने का निर्देश दिया। ग्राम पंचायत ने 13 शर्तें रखीं। शर्तों का पालन मुश्किल था अतः कोका कोला ने अंततः कारखाना बंद करने का निर्णय लिया।”

खिरियाबाग,आंदोलनस्थल पर आए जिलाधिकारी से बात करते किसान नेता राजीव यादव और आंदोलनकारी

पश्चिम बंगाल की सरकार इण्डिोनेशिया के सलीम समूह के लिए नंदीग्राम में 10,000 एकड़ भूमि अधिग्रहित करना चाह रही थी। भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति ने 2007 में संघर्ष तेज किया। एक प्रदर्शन में 14 किसान पुलिस की गोली का शिकार हुए व 70 घायल हुए। राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी ने प्रदेश सरकार की आलोचना की। ममता बनर्जी ने मां, माटी, मानुष का नारा दिया। सरकार को परियोजना रद्द करनी पड़ी।
कोका कोला कम्पनी ने 8 अक्टूबर, 1999 को केरल के पलक्कड जिले के प्लाचीमाडा इलाके की पेरीमुट्टी ग्राम पंचायत में एक कारखाना चलाने हेतु अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किया। अनुमति मिलने पर 34.64 एकड़ भूमि खरीद कर 5 लाख लीटर रोजाना भूगर्भ जल लेते हुए 400 मजदूरों के साथ काम शुरू किया। भूगर्भ जल स्तर गिरने लगा, पानी प्रदूषित होने लगा और कोका कोला कारखाने का कचरा, जो खाद बता कर किसानों को दिया जा रहा था से फसल को नुकसान होने लगा। बी.बी.सी. द्वारा इंग्लैण्ड में जांच कराने पर पता चला कि कचरे में खतरनाक कैडमियम व सीसा के तत्व हैं। केरल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कचरा वितरण पर रोक लगाई। 22 अप्रैल 2002 को कोका कोला विरोधी जन संघर्ष समिति ने कारखाने के बाहर धरना शुरू किया। 3 अप्रैल 2003 को पंचायत ने अनुज्ञप्ति रद्द कर दी। उच्च न्यायालय ने ग्राम पंचायत को कम्पनी को 5 लाख लीटर पानी निकालने देने का निर्देश दिया। ग्राम पंचायत ने 13 शर्तें रखीं। शर्तों का पालन मुश्किल था अतः कोका कोला ने अंततः कारखाना बंद करने का निर्णय लिया। एक उच्च स्तरीय समिति ने कृषि, स्वास्थ्य, पानी उपलब्ध कराने, मजदूरी व अवसर का नुकसान, पानी के प्रदूषण की कुल कीमत रु. 216.26 करोड़ आंकी है। यह मुआवजे के रूप में स्थानीय समुदाय को मिलना है लेकिन अभी तक मिला नहीं है। ग्रामीण इसके लिए पुनः आंदोलन शुरू करने पर विचार कर रहे हैं। इसी तरह जन आंदोलनों की वजह से मेहदीगंज, वाराणसी और सिंहाचवर, बलिया में कोका कोला के दो और कारखाने बंद हुए हैं।
2009 में भारत सरकार की एक समिति ने अनुवांशिक रूप से परिवर्तित बी.टी. बैंगन की भारत में पहली बार व्यापक पैमाने पर व्यवसायिक खेती की अनुमति दे दी थी। बी.टी. बैंगन को मोनसेंटो नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की भारतीय इकाई महीको ने विकसित किया था। अनुवांशिक रूप से परिवर्तित बीज विवाद के घेरे में रहे हैं क्योंकि ऐसे बीजों के इस्तेमाल के परिणाम अनिश्चित हैं। भारत की केन्द्र सरकार के तत्कालीन पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश ने देश में घूम-घूम कर किसानों, वैज्ञानिकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय एकत्र की। कोलकाता, भुवनेश्वर व अन्य 5 शहरों में करीब 8,000 लोगों से मिलने के बाद उन्होंने बी.टी. बैंगन पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी।

सरकार ने गांव और जिंदगी पर हमला किया है

13 महीने चले किसान आंदोलन ने केन्द्र सरकार को मजबूर किया कि किसानों के नाम पर बने पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाले कानून वापस लिया।
आजमगढ़ के जिलाधिकारी को मालूम होना चाहिए कि इस देश में तमाम अवसरों पर लोगों ने ही विकास परियोजनाओं का भविष्य तय किया है। असल में लोकतंत्र में तो होना ही ऐसे चाहिए। लोकतंत्र में तो सारे फैसले लोगों की राय के मुताबिक ही होने चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हमारे जन प्रतिनिधि जब हमारा मत लेने आते हैं तो हमें  ऐसा अहसास कराया जाता है कि वे हमारे प्रतिनिधि के रूप में चुनकर जा रहे हैं लेकिन विधायिका में पहुंचकर वे अपने दल के नेता के प्रतिनिधि हो जाते हैं जो किसी पूंजीपति का प्रतिनिधि होता है। जब हमारी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोगों के हितों को नजरअंदाज करेंगी तो लोगों के सामने आंदोलन ही चारा बचता है। जब भी इस देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का हनन हुआ है तो लोगों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मुखर होकर संघर्ष किया है। यही लोकतंत्र की आत्मा है।
 
गाँव के लोग
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