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महिला आरक्षण को यथार्थ में कब देखेगा देश, आरक्षण में हिस्सेदारी पर अब भी होगा संघर्ष

भारतीय स्त्री ने खुद के साथ हुई बेईमानी की शिकायत कभी नहीं की और सिर्फ अपने फायदे के बारे में कभी नहीं सोचा। उसने नदियों की तरह सभी की भलाई के लिए काम किया है और मुश्किल वक्त में हिमालय की तरह अडिग रही हैं।' इस तरह की पोस्ट के साथ उन्होंने यह बताने की पूरी कोशिश की है यह उनकी पार्टी का सपना है जो लंबे वक्त के बाद पूरा हो रहा है और इस सपने के साथ आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस ने भाजपा को धन्यवाद भी दिया है।

पिछले 27 साल से धक्के खाता हुआ महिला आरक्षण बिल तमाम संसोधन, परिमार्जन के साथ आखिरकार लोकसभा में पास हो गया है। बिल का पास हो जाना एक बात है और उसका लागू होना एकदम दूसरी बात। फिलहाल देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टियां अभी इस बिल का श्रेय लेने की होड़ में लगी हुई हैं। सत्ताधारी पार्टी जहां इस रूप में रेखांकित कर रही है कि इस बिल को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाना एनडीए या फिर भाजपा की उपलब्धि है, वहीं कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी इसे कांग्रेस के लंबे संघर्ष का प्रतिफल और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का स्वप्न बता रही हैं। सोनिया गांधी ने कहा है कि ‘मेरी जिंदगी का यह बहुत ही मार्मिक क्षण है। पहली बार स्थानीय निकायों में स्त्री की भागीदारी तय करने वाला संविधान संशोधन मेरे जीवनसाथी राजीव गांधी जी ही लाए थे। जिसका नतीजा है कि देशभर के स्थानीय निकायों के जरिए हमारे पास 15 लाख चुनी हुई महिला नेता हैं। राजीव गांधी जी का सपना अब तक आधा ही पूरा हुआ है। वह इस बिल के पारित होने के साथ ही पूरा होगा।’

सोशल मीडिया साइट x पर @INCIndia के हैंडल पर सोनिया गांधी के एक के बाद एक कई बयान आए हैं जिनमें उन्होंने महिला विधेयक बिल के पक्ष में स्त्री विमर्श को संवेदनात्मक स्तर पर उल्लेखित किया है। उनके हवाले से लिखा गया है, ‘स्त्री के धैर्य का अंदाजा लगाना मुश्किल है, वह आराम को नहीं पहचानती और थक जाना भी नहीं जानती। हमारे महान देश की माँ है स्त्री, स्त्री ने हमें सिर्फ जन्म ही नहीं दिया, अपने आंसुओं और खून-पसीने से सींचकर, बुद्धिमान और शक्तिशाली भी बनाया है।’ एक दूसरी पोस्ट में लिखा है, ‘ स्त्री की मेहनत, गरिमा और त्याग की पहचान कर ही हम मनुष्यता की परीक्षा में पास हो सकते हैं। आजादी की लड़ाई और नए भारत के निर्माण में हर मोर्चे वह पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है।’ सोनिया गांधी ने अपनी पोस्ट के माध्यम से स्त्री मन की संवेदनाओं को छूने की कोशिश करते हुए लिखा है कि, ‘भारत की स्त्री के हृदय में महासागर जैसा धैर्य है। भारतीय स्त्री ने खुद के साथ हुई बेईमानी की शिकायत कभी नहीं की और सिर्फ अपने फायदे के बारे में कभी नहीं सोचा। उसने नदियों की तरह सभी की भलाई के लिए काम किया है और मुश्किल वक्त में हिमालय की तरह अडिग रही हैं।’ इस तरह की पोस्ट के साथ उन्होंने यह बताने की पूरी कोशिश की है यह उनकी पार्टी का सपना है जो लंबे वक्त के बाद पूरा हो रहा है और इस सपने के साथ आगे बढ़ने के लिए कांग्रेस ने भाजपा को धन्यवाद भी दिया है।

 सोनिया गांधी ने संसद में बोलते हुये इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि ‘बिल में पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की भागीदारी का अनुपात भी सुनिश्चित किया जाय। इसके साथ उन्होंने सरकार से इस बात की भी अपील की है इस प्रस्ताव को जल्द से जल्द लागू किया जाय। सोनिया गांधी ने कहा है कि पिछले 13 वर्षों से भारतीय स्त्रियां अपनी  राजनीतिक जिम्मेदारी का इंतजार कर रही हैं। अब उन्हें और इंतजार करने को कहा जा रहा है।  क्या भारत की स्त्रियों के साथ यह बर्ताव उचित है?  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मांग है कि ये बिल फौरन अमल में लाया जाए और इसके साथ ही जातिगत जनगणना करवाकर SC, ST और OBC महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।   इस बिल को लागू करने में और देरी करना भारत की स्त्रियों के साथ घोर नाइंसाफी है।  मैं कांग्रेस की तरफ से मांग करती हूं कि ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम-2023’ को उसके रास्ते की सारी रुकावटों को दूर करते हुए जल्द लागू किया जाए।

कब तक लागू होगा आरक्षण

संसद में प्रस्ताव पास हो जाने के बावजूद भी ऐसा नहीं होने जा रहा है कि यह विधेयक तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया जाय। अभी कम से कम एक दशक तो उन प्रक्रियाओं को पूरा करने में लग ही जाएगा जो आरक्षण के संदर्भ में अपनाई जाती हैं। इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक और किसान नेता योगेन्द्र यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए इसके तकनीकी पहलुओं पर अपनी बात रखी है।

उन्होंने X पर लिखा है कि, ‘मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि महिला आरक्षण 2029 में होगा। यह भ्रामक है। वास्तव में यह 2039 तक नहीं हो सकता है। अधिकांश मीडिया रिपोर्टें परिसीमन खंड के वास्तविक महत्व को नजरअंदाज करती हैं। अनुच्छेद 82 (2001 में संशोधित) वस्तुतः 2026 के बाद पहली जनगणना के आंकड़ों से पहले परिसीमन पर रोक लगाता है। यह केवल 2031 ही हो सकता है। अधिकांश पर्यवेक्षकों को यह याद नहीं है कि परिसीमन आयोग को अपना अंतिम परिणाम देने में 3 से 4 साल लगते हैं (पिछले को 5 साल लगे थे) । इसके अलावा, जनसंख्या अनुपात में बदलाव को देखते हुए आगामी परिसीमन काफी विवादास्पद हो सकता है। इसलिए हम 2037 या उसके आसपास ही इस रिपोर्ट को सोच सकते हैं, जिसे केवल 2039 में ही लागू किया जा सकता है।

आम आदमी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश प्रभारी सांसद संजय सिंह कहते हैं, ”यह निश्चित रूप से महिला आरक्षण विधेयक नहीं है, यह ‘महिला बेवकूफ बनाओ’ विधेयक है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से उनके द्वारा किए गए कोई भी वादे पूरे नहीं हुए हैं। यह क्या उनके द्वारा लाया गया एक और ‘जुमला’ है… यदि आप विधेयक को लागू करना चाहते हैं,  तो AAP पूरी तरह से आपके साथ खड़ी है, लेकिन क्या सरकार इसे 2024 में लागू करेगी? क्या आपको लगता है कि देश की महिलाएं मूर्ख हैं? महिला विरोधी भाजपा एक और ‘जुमला’ लेकर आई है। बिल के नाम पर जुमला। देश की महिलाएं, राजनीतिक दल इन चुनावी हथकंडों को समझते हैं। इसलिए हम कहते हैं कि अगर उनकी मंशा साफ है तो 2024 में इसे लागू करें..

संसद में नारीशक्ति वंदन विधेयक के रूप में पेश किए गए महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इसके लागू होने की स्थितियों पर सवाल उठाए हैं।

महुआ मोइत्रा

उन्होंने संसद के पटल पर अपनी बात कैफी आजमी की कविता के माध्यम से शुरू करते हुये कहा कि, ‘उठ मेरी जान.. मेरे साथ ही चलना है तुझे, जन्‍नत एक और है जो मर्द के पहलू में नहीं, उसके आजाद रविश पर भी मचलना है तुझे, छलकना है उबलना है तुझे.. उठ मेरी जान मेरे साथ चलना है तुझे।’ मोइत्रा ने लोकसभा में कहा, ‘कल हमने संसद के इस मंदिर में नई शुरुआत की। प्रधानमंत्री ने ऐसा जताया कि उन्‍हें देश के लिए बहुत बड़े-बड़े काम करने हैं। उनमें से एक यह बिल भी था। लेकिन यह बिल कहता क्‍या है? परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू होगा,  मतलब क्‍या है, बीजेपी कह रही कि हमें नहीं पता कि कब आरक्षण लागू होगा।’ 2024 भूल जाइए, 2029 में भी बिल लागू हो पाएगा या नहीं, ये भी नहीं पता। लोग हमसे पूछते हैं कि तृणमूल कांग्रेस इस बिल का समर्थन करेगी या नहीं। ममता बनर्जी इस बिल की मां है, उन्‍होंने यह सिद्धांत काफी पहले ही लागू कर दिया था। फिलहाल बिल की चर्चा को देखते हुये यह कहा जा सकता है कि अभी सिर्फ प्रस्ताव आया है हकीकत की मंजिल अभी भी दूर है।

समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने सामाजिक भागीदारी की स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुये कहा है कि  ‘सपा की हमेशा से मांग रही है कि पिछड़ा वर्ग महिला तथा अल्पसंख्यक महिला को नारीशक्ति वंदन अधिनियम में शामिल किया जाए और इसमें उनको आरक्षण दिया जाए। लोकसभा और विधानसभा में यह महिला आरक्षण बिल तो लागू होगा लेकिन हम पूछना चाह रहे हैं कि राज्यसभा और विधान परिषद में लागू होगा कि नहीं? आने वाले चुनाव में यह लागू हो पाएगा कि नहीं और 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में ये लागू हो पाएगा कि नहीं? सवाल ये भी है कि जनगणना कब होगी और परिसीमन कब होगा?’ डिम्पल यादव ने एक बार फिर पिछड़ों के हिस्सेदारी की बात उठाई जबकि एनडीए में शामिल अपना दल नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने पिछड़ी जाति की आरक्षण की मांग को जरूरी नहीं माना है।

अनुप्रिया पटेल ने सदन के पटल पर विपक्ष की मांग के विरोध में कहा है कि,’ ओबीसी, एससी-एसटी का ख्‍याल आपको तब नहीं आया था जब राज्यसभा में आपने यह बिल पारित कराया था। उस समय किसी ने इस बारे में प्रावधान न होने का सवाल उठाया था क्‍या? यह महत्वपूर्ण मुद्दा है लेकिन आप टाइमिंग पर सवाल उठा रहे। कहते हैं कि चुनाव के लिए लाए हैं, कुछ चीजें चुनावी फायदों से परे होती हैं।’ ज्ञात हो कि अनुप्रिया पटेल खुद भी उत्तर प्रदेश की पिछड़ी जाति से आती हैं। उनका बयान आने के बाद पिछड़ी जाति के लोग सोशल मीडिया पर उनका विरोध करते भी दिख रहे हैं।

डीएमके सांसद कनिमोझी का कहना है, “मैंने खुद आरक्षण बिल लाने का मुद्दा कई बार संसद में उठाया है। मेरा मानना है कि विधेयक तैयार करने में सभी हितधारकों, राजनीतिक दलों को शामिल करना चाहिए था और फिर विधेयक लाने से पहले आम सहमति बनाई जानी चाहिए थी। मैं जानना चाहूंगा कि किस तरह की आम सहमति बनी। क्या चर्चाएं हुईं। यह विधेयक गोपनीयता में छिपाकर लाया गया। हमें नहीं पता कि यह सत्र किस लिए बुलाया गया था।

संसद के बाहर भी सवाल हैं 

दक्षिण भारतीय फिल्म अभिनेता कमल हासन ने भी महिला आरक्षण विधेयक पास होने पर खुशी जताते हुये इसके लागू होने कि स्थितियों पर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुये लिखा है कि, हमारे गणतंत्र के इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन, जब हमारे लोकतंत्र की सीट अपने नए घर में चली गई। मुझे खुशी है कि इस नई संसद में पेश किया गया पहला विधेयक हमारे देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक, भारत की महिलाओं के खिलाफ लंबे समय से हो रहे अन्याय को सही करता है।

कमल हासन

उन्होंने लिखा है कि मैं कल पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक की तहे दिल से सराहना करता हूं। जो राष्ट्र लैंगिक समानता सुनिश्चित करते हैं वे हमेशा समृद्ध रहेंगे। विधेयक पर संसदीय चर्चा के दौरान, मैं सभी दलों से निम्नलिखित चिंताओं को दूर करने का आह्वान करता हूं, विधेयक अगली जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही प्रभावी होता है, दोनों में अतीत में देरी हो चुकी है। कार्यान्वयन की समय-सीमा में देरी से इस महत्वपूर्ण निर्णय को विषय के प्रति केवल दिखावा मात्र बनाने का जोखिम है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए। – बिल केवल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं पर लागू होता है और इसे राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों तक बढ़ाया जाना चाहिए। मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब महिलाओं को किसी भी सकारात्मक कार्रवाई की सहायता के बिना विधायी निकायों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व मिलेगा।

महिला आरक्षण से लोकसभा और विधानसभा तक महिलाओं को पहुंचाने की होड़ में लगी राजनीतिक पार्टियों को लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की चिंता कितनी भी हो पर जब हमने उत्तर प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों के सांगठनिक ढांचे को खंगालना शुरू किया तो स्थिति अप्रत्याशित रूप से बेहद निराश करने वाली थी। सामाजिक न्याय की मांग करने वाली पार्टियों में भी सांगठनिक स्तर पर यह हिस्सेदारी नहीं दिखती है। जिसकी वजह से कहा जा सकता है कि इन राजनीतिक पार्टियों को थोड़ी उदारता दिखाते हुये कम से कम अपने सांगठनिक ढाँचे में तो आधी आबादी को विधेयक के अनुरूप 33%हिस्सेदारी देनी ही चाहिए और उस हिस्सेदारी में पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अल्पसंख्यक समुदाय की हिस्सेदारी सुनिश्चित कर देनी चाहिए। उत्तर प्रदेश की दो पार्टियां समाजवादी पार्टी और भाजपा के पास अपनी महिला इकाइयां हैं जो समानान्तर रूप से सक्रिय हैं पर अन्य पार्टियों में महिला मोर्चा का फिलहाल बूथ स्तर तक का कोई ढांचा काम करता नहीं दिखता है। बसपा में, जिस पार्टी की मुखिया स्वयं महिला हैं वहाँ राजनीतिक तौर पर उनके सिवा कोई दूसरा राजनीतिक महिला चेहरा आज तक नहीं उभर पाया। पिछले विधानसभा चुनाव में महिलाओं की चुनावी हिस्सेदारी बढ़ाने में प्रियंका गांधी ने जरूर बड़ी भूमिका निभाई थी और राजनीति के पुरुष-वर्चस्व को चुनौती दी थी। यह अलग बात है कि बिना मजबूत पार्टी संगठन के उनकी यह कोशिश अर्थपूर्ण नहीं साबित हो सकी थी। उनका नारा ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूँ’ ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक नैरेटिव में स्त्री को एक सम्मानजनक स्थान दिलाया था पर वह इसे चुनावी परिणाम में नहीं बदल सकी थी। फिलहाल संवैधानिक तौर पर स्त्री के हक में एक रास्ता जरूर खुला है पर अभी इस रास्ते पर चलने का हक किस समाज को कितना मिल सकेगा इसका उत्तर तो वक्त ही बताएगा और इस रास्ते पर चलने का वक्त अभी दूर है। भाजपा ने महिलाओं के सामने एक बार फिर अच्छे दिन के सपने का चित्र चस्पा कर दिया है,  यह सपना कब फलीभूत होगा इसे तो वक्त ही बताएगा।

गाँव के लोग
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1 COMMENT
  1. कमल हासन साहब कह रहे हैं देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक यदि मैं पढ़ने में गलती नहीं कर रहा हुँ तो

    क्या मतलब है इस वक्तब्य का

    50% संख्या है वह अल्प संख्यक कैसे हो गई ?

    यह सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समाजों के मुँह पर तमाचा है
    इसमें sc st obc आरक्षण का प्रविधान का न होना अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है

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