संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदना के लोकधर्मी कवि और फ़ासीवाद विरोधी कार्यकर्ता रमाशंकर विद्रोही की जयंती के सुअवसर पर जन संस्कृति मंच दरभंगा के तत्वावधान में जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य की अध्यक्षता में संगोष्ठी आयोजित की गई।
इस अवसर पर जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि पूरे हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर के बाद वाचिक परंपरा के सबसे बड़े कवि हैं। कबीर और विद्रोही जी दोनों का उद्देश्य फकत कविताई नहीं था। दोनों सीधे इंकलाब चाहते थे। कविता तो उन्हें फोकट में मिली थी। कविता बस जरिया था उनके लिए। आगे उन्होंने कहा कि जब कभी अपवंचितों का राष्ट्र बनेगा विद्रोही उसके पहले महाकवि होंगे।
साथ ही साथ मजाज़ साहब के स्मृति दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने मज़ाज और विद्रोही के मिजाज को एक-सा बतलाया। दोनों को शोषण आधारित व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने वाले सहयोद्धा के रूप में याद किया जाना चाहिए।
प्रो. विनय शंकर जी ने विद्रोही जी को याद करते हुए कहा कि उनका जीवन एक क्रांति है। विद्रोही आम अवाम के स्वप्नों के लिए युद्धरत कवि थे।
कवि और फ़ासीवाद विरोधी कार्यकर्ता विद्रोही जी की आज के दौर में प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सूरज ने कहा कि विद्रोही जी समाजवाद लाना चाहते थे, सिस्टम बदलना चाहते थे। क्योंकि आज भी जो सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था है उसमें निचले पायदान का व्यक्ति शोषण का शिकार है।
इस व्यवस्था के ध्वंस के लिए जब-जब जनांदोलन उभरेंगे, विद्रोही जी हमारे आगे-आगे मशाल लेकर चलते प्रतीत होंगे।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि मनुष्यता के बड़े कवि थे विद्रोही जी। फ़ासीवाद की आहट को मुक्तिबोध ने बहुत पहले चिन्हित कर दिया था। साम्प्रदायिक-कॉरपोरेट फ़ासीवाद से धूमिल, वेणुगोपाल, आलोक धन्वा, गोरख पांडेय की तरह विद्रोही अपने पूरे कवि जीवन संघर्षरत रहते हैं। उनकी कविता शोषण-दमन पर आधारित इस व्यवस्था की समाप्ति का घोषणापत्र साबित होगा।
कवि विद्रोही जयंती समारोह में मंजू कु.सोरेन, डॉ. दुर्गानंद यादव, मयंक कुमार, रूपक कुमार, पवन कुमार शर्मा आदि ने भी अपनी बात रखी।
किशुन कुमार, निरंजन भारती, राजीव कुमार आदि कतिपय लोगों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन जिला सचिव समीर ने किया।
कार्यक्रम का समापन सामूहिक कविता पाठ एवं फ़ासीवाद विरोधी अभियान को बुलन्द करने के संकल्प से हुआ।
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