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उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन-फिक्शन साहित्य का सबसे बड़ा लेखक कौन?

आज फेसबुक पर विचरण करते समय मेरी निगाह एक बार फिर गत 12 नवम्बर के अपने पोस्ट पर स्थिर हो गयी। और जब उस पोस्ट पर आये कमेंट्स पर नजर दौड़ाया तो चेहरे पर फिर मंद मुस्कान उभर आयी और खुद से पूछा, ‘तो क्या दुसाध ही उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन फिक्शन का सबसे बड़ा […]

आज फेसबुक पर विचरण करते समय मेरी निगाह एक बार फिर गत 12 नवम्बर के अपने पोस्ट पर स्थिर हो गयी। और जब उस पोस्ट पर आये कमेंट्स पर नजर दौड़ाया तो चेहरे पर फिर मंद मुस्कान उभर आयी और खुद से पूछा, ‘तो क्या दुसाध ही उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन फिक्शन का सबसे बड़ा लेखक है!’ दरअसल, 12 नवम्बर को लेखन से जुड़ा एक खास सवाल जेहन में कौंधा था और उसका उत्तर जानने के लिए मैंने फेसबुक पर निम्न पोस्ट डाल दिया था।

‘किताबों की दुनिया से जुड़ा मेरा एक खास सवाल, जिसका सही जवाब कोई लेखक-पत्रकार या प्रोफेसर ही दे सकता है! वह सवाल है- आपकी नजरों में उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन फिक्शन साहित्य रचना में सबसे बड़ा लेखक कौन?

स्मरण रहे फिक्शन के अंतर्गत कल्पना पर आधारित कहानी, उपन्यास इत्यादि आते हैं, जबकि फिक्शन के विपरीत नॉन-फिक्शन में आमतौर पर, विभिन्न विषयों के अंतर्गत लिखी जाने वाली पत्र-पत्रिकाएं, समाचार-पत्र, शोध, आत्मकथाएँ, विभिन्न प्रकार के निबंध गैर-कथा साहित्य की श्रेणी में आते हैं। नॉन-फिक्शन सामाजिक समस्याओं या दुनिया में क्या चल रहा है, पर केंद्रित होता है।’

एचएल दुसाध की पुस्तक आजादी के अमृत महोत्सव पर : बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की अभिनव परिकल्पना

बहरहाल, 12 नवम्बर को साहित्य से जुड़ा जो उपरोक्त सवाल मेरे जेहन कौंधा था, उसके पृष्ठ में थी मेरी नवीनतम पुस्तक आजादी के अमृत महोत्सव पर : बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की अभिनव परिकल्पना की भूमिका, जिसे अंतर्राष्ट्रीय लेखक फ्रैंक हुजुर ने लिखा है। फ्रैंक साहब ने इसकी किताब की भूमिका में मेरी जिन शब्दों में तारीफ़ की है, दरअसल मैं उसका टेस्ट लेना चाहता था, इसलिए उस किताब की भूमिका में उन्होंने जो पहला वाक्य लिखा था, उसी को सवाल बनाकर पोस्ट किया था। सच कहूँ तो साहित्य पर कई दुर्लभ टिप्पणियां करने के बावजूद मेरे जेहन में कभी वह सवाल उठा ही नहीं, जो उपरोक्त पोस्ट में दिख रहा है। किन्तु उठा तो उसका सारा श्रेय फ्रैंक हुजुर को जाता है। इमरान वर्सेज इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी, सोहो, हिटलर इन लव विद मैडोना जैसी दुर्लभ कृतियों के लेखक फ्रैंक हुजुर ने मेरी नवीनतम किताब की अपनी छः पृष्ठीय भूमिका में पेज 7-8 पर लिखा है-

‘उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन-फिक्शन साहित्य रचना में डाइवर्सिटी मैन एचएल दुसाध का कोई मुक़ाबला नहीं है। दुसाध ने बीते ढाई दशकों में सबाल्टर्न सियासी और सांस्कृतिक लिटरेचर की जो हार्वेस्ट भारतीय और वैश्विक समाज को उपहार में दिया है, उसके लिए सदियों तक ना सिर्फ बहुजन कम्युनिटी बल्कि वह हर तबका उनका दिल की गहराइयों से आभारी रहेगा जो अपने देश और लोगबाग को आर्थिक रूप से सुदृढ़ और राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से आज़ाद देखना चाहता है।

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मेरी नज़र में दुसाध के विचार समकालीन भारत के अंग्रेजी में लिखने वाले रामचंद्र गुहा और प्रताप भानु मेहता जैसे भद्रलोक से भी अनमोल है। भारी वजन रखती हैं दुसाध के डाइवर्सिटी मिशन की थ्योरियां और उनके हिमालय पहाड़ जैसे भीमकाय जूनून का तो शायद कोई उफान मारता समंदर ही सामना कर सकता है। मैंने उनके आत्मविश्वास को अटलांटिक ओसियन जैसा गहरा पाया है। हर सुबह और शाम देश-विदेश के ज्वलंत मुद्दों पर दुसाध को डेजर्ट स्टॉर्म की माफिक एंग्री और एजीटेटेड  देखा है। भारतीय कुलीन जातिवादी मीडिया के धुरंधरों को दुसाध ने आर-पार पब्लिक डिबेट के लिए दर्जनों बार ललकारा है, मगर चाहे वो रवीश कुमार हों या रजत शर्मा या अजित अंजुम, किसी भी सो-कॉल्ड लिबरल या दक्षिणपंथी मीडिया पर्सनालिटी में दुसाध जैसे पब्लिक इंटेलेक्चुअल से लड़ने की इच्छाशक्ति में घनघोर कमी देखी गयी है। दुसाध को मैं दिलीप मंडल के साथ भारत का नॉम चोम्स्की या फिर कहे तो कैटलीन जोंस्टन मानता हूँ।

इस बहुप्रतीक्षित किताब के माध्यम से डाइवर्सिटी पुरुष दुसाध यूनिवर्सल रिजर्वेशन फ्रंट जैसे राजनीतिक सिद्धांत से एक नए माउंट एवेरेस्ट को फतह कर रहे हैं। अगर यूआरएफ को किसी भी सत्ताधारी दल ने जनता को समर्पित कर लागू कर दिया तब भारत में एक शानदार वेलफेयर और इक्वलिटी सोसाइटी का सपना साकार हो जाएगा जो वर्षों से बुद्ध, कबीर, फुले, आंबेडकर, लोहिया, सावित्री बाई और ना जाने कितने अनगिनत सोशल क्रांतिकारियों के दिलों में धधकती रही है और जिसकी चिंगारी यूरोप के फ्रांस में कभी गिरी तो कभी लैटिन अमेरिका के बोलीविया में तो कभी अफ्रीका के ट्यूनीशिया या मलेशिया में! भारत जैसी बेपनाह आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी की भुरभुरी ज़मीन पर ये चिंगारी डाइवर्सिटी पुरुष दुसाध लेकर आएं हैं- स्वागत करें, इस महानायक की नयी रचना का!’

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वैसे तो अपने लेखन को लेकर मैं खुद ही समय-समय पर चरम आत्म-मुग्धता का परिचय देता रहा हूँ, किन्तु जिस तरह फ्रैंक साहब ने यह लिखा कि उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन-फिक्शन साहित्य रचना में डाइवर्सिटी मैन एचएल दुसाध का कोई मुक़ाबला नहीं है, उससे खुद पर दबाव महसूस करने लगा। मुझे लगा वह मेरे बड़े कद्रदान हैं, इसलिए अतिशय भावावेग में आकर मेरी इतनी तारीफ कर डाले हैं। बहरहाल, खुद को लेकर कुछ झिझक होने के बावजूद मुझे यह सवाल बहुत रोचक लगा कि उत्तर आधुनिक भारतीय नॉन-फिक्शन साहित्य रचना में सबसे बड़ा लेखक कौन हो सकता है? क्योंकि मेरे जेहन में ऐसा सवाल कभी उभरा ही नहीं। ऐसे में इस सवाल का सही जवाब जानने तथा बेहतरीन नॉन-फिक्शन लेखकों में अपनी जगह तलाशने के लिए मैंने उपरोक्त पोस्ट डाल दिया। किन्तु, उस पर जो कमेन्ट आये, वे बेहद चौकाने वाले रहे!

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फेसबुक पर बहुत पॉपुलर नहीं हूँ। मेरे लेखों पर सामान्यतया बहुत कम कम लोग लाइक-कमेन्ट करते हैं। किन्तु, लेखन से जुड़े इस अनोखे सवाल को 59 लोगों ने लाइक तो 21 ने कमेन्ट किया। लाइक करने वालों में प्रख्यात शिक्षाविद प्रो. चौथी राम यादव, अजय तिवारी, बदर-ए आलम, कुमार अजय, शिवाजी राय, सत्येन्द्र पीएस, फाकिर जय, डॉक्टर विजया श्री मल्ल, विनय भूषण, कौलेश्वर प्रियदर्शी, कावेरी देवी, श्रीकांत लोखंडे जैसे विद्वान रहे। कमेन्ट करने वालों में पहला नाम चर्चित पत्रकार महेंद्र यादव का रहा, जिन्होंने लिखा था, ‘वन एंड ऑनली एचएल दुसाध!’ चर्चित उपन्यासकार श्याम लाल राही का कमेन्ट रहा, ‘आप से बड़ा कोई नहीं!’ उमेश कुमार जैसे शिक्षा शास्त्री और क्रिएटिव राइटर ने लिखा था, ‘Amongst the Hindi non-fiction writers, the accolade goes to mr. HL dusadh! kudos to your huge contribution to the writing. I salute your sangfroid!’ विनय भूषण का कमेन्ट रहा, ‘आप हैं, और कौन है!’ पत्रकार भाई अजय सरोज का कहना रहा, ‘खुद दुसाध सर!’ भारी आश्चर्य का विषय रहा कि ग्रेटेस्ट नॉन-फिक्शन रायटर के सवाल पर सिर्फ एक व्यक्ति, जिन्होंने अपना नाम तमिल या तेलगु लिपि में लिखा था, ने मशहूर लेखक कांचा इलैया का नाम सबसे अच्छे लेखक के रूप में चिन्हित किया था, जबकि गजलकार आर. रवि विद्रोही ने यह कहकर कि आगे का समय नॉन-फिक्शन का है, इस सवाल का सीधे जवाब देने से खुद को दूर रखा था।

बहरहाल नॉन-फिक्शन लेखन में अधिकतर ने मुझे सबसे बड़े लेखक के रूप में जरूर चुना। पर, मैं मानता हूँ कि लेखन से जुड़ा यह सवाल अभी अनुत्तरित है, क्योंकि दुसाध निर्विवाद रूप से ग्रेटेस्ट नहीं हो सकता! अतः इस सवाल को लेकर चर्चा आगे बढ़नी चाहिए। चर्चा जब और आगे बढ़ेगी तब जाकर निष्कर्ष निकलेगा। ‘आधुनिक भारतीय नॉन-फिक्शन साहित्य रचना में सबसे बड़ा लेखक कौन?’ खैर, निष्कर्ष जो भी निकले, किन्तु जिन्हें लगता है यह एक जरुरी सवाल है, उन्हें इस अनोखे सवाल को उठाने के लिए लेखक फ्रैंक हुजुर को जरुर साधुवाद देना चाहिए!

लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

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