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ग्राउंड रिपोर्ट

प्रयागराज : आखिर कब तक विश्वविद्यालयों में दलित, पिछड़े और आदिवासियों को NFS किया जाता रहेगा?

देश के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदों पर साक्षात्कार के आधार पर चयन किया जाता है। विश्वविद्यालयों की साक्षात्कार समितियों में अधिकतम एक्सपर्ट सवर्ण प्रोफेसर होते हैं।  इसलिए वे बड़ी आसानी से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे की सीट को None Found Suitable कर देते हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज का है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 31अगस्त, 2020 को उप्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज अधिनियम 2020 के तहत उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य विधि के क्षेत्र में विद्या, अध्यापन एवं अनुसंधान का संवर्द्धन करने और उसमें ज्ञान का प्रसार करने तथा वकालत- न्यायिक सेवा के इच्छुक व्यक्तियों, विधायी आलेखन को अपना व्यवसाय बनाने वाले विधि अधिकारियों/प्रबंधकों की वृत्तिक कौशलों को विकसित कर समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 21 अगस्त, 2023 को उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत इसका नाम बदलकर ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज’ कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी की सरकार नाम बदलने में माहिर है, चाहे वह केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर राज्य की योगी सरकार।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज की कुलपति प्रोफेसर उषा टंडन हैं, वे इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय की अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता भी रह चुकी हैं। अतः स्पष्ट है कि इन्हें आरक्षित सीटों पर एनएफएस (None Found Suitable) करने का मनुवादी सूत्र दिल्ली विश्वविद्यालय से ही मिला है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज 21 दिसंबर 2023 को असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर विज्ञापन जारी करता है। इसमें इतिहास के 01 (SC), अंग्रेजी के 01 (UR), राजनीति विज्ञान के 01 (OBC-NCL), विधि के 01 (UR) एवं 01 (SC) और समाजशास्त्र के 01 (UR) पद के लिए आवेदन मंगाए गए, जिसमें आवेदन फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 20 जनवरी, 2024 निर्धारित की गई थी।

विश्वविद्यालय ने कुल 6 पदों का विज्ञापन निकाला था, जिसमें 5 पद पर चयन किया गया और एक मनुवादी सूत्र के तहत एनएफएस कर दिया गया, जो पद एनएफएस किया गया वह इतिहास विषय में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। इस पद पर अनुसूचित जाति के 15 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। सर्वविदित है कि साक्षात्कार में जाति, जनेऊ, जुगाड़ एवं रिश्वत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए इन 15 अभ्यर्थियों को अयोग्य ठहराते हुए साक्षात्कार समिति ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पद को एनएफएस कर दिया।

क्या डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज इतिहास विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर के अनुसूचित जाति के एनएफएस किए गए पद का पुनः विज्ञापन निकालकर 6 महीने के भीतर चयन-प्रक्रिया संपन्न कराएगा? यह बहुत बड़ा सवाल है। इस पर साक्षात्कार समिति और विश्वविद्यालय दोनों मौन हैं।

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर उषा टंडन, जो जाति से ब्राह्मण हैं। इस विश्वविद्यालय में अनारक्षित श्रेणी (UR) के कुल तीन पद तीन अलग-अलग विषयों में अंग्रेजी (01), समाजशास्त्र (01) और विधि विषय (01) विज्ञापित किये गए थे।

अंग्रेजी विषय में अनारक्षित श्रेणी के असिस्टेंट प्रोफेसर 01 पद के लिए 32 अभ्यर्थियों की स्क्रीनिंग की गई थी, जिसमें 9 ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थी थे, इन्हीं में से एक ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थी का चयन सवर्ण साक्षात्कार समिति ने कर लिया, शेष 23 गैर ब्राह्मण अभ्यर्थियों की प्रतिभा को दरकिनार कर दिया गया।

समाजशास्त्र विषय में अनारक्षित श्रेणी के असिस्टेंट प्रोफेसर के 01 पद के लिए 48 अभ्यर्थियों की स्क्रीनिंग की गई थी, जिसमें 20 ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थी थे, इन्हीं 20 ब्राह्मण अभ्यर्थियों में से एक का चयन साक्षात्कार समिति ने कर लिया गया, शेष 28 गैर ब्राह्मण अभ्यर्थियों की प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया गया।

विधि विषय में अनारक्षित श्रेणी के असिस्टेंट प्रोफेसर 01 पद के लिए 88 अभ्यर्थियों की स्क्रीनिंग की गई थी, जिसमें 34 ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थी थे, इन्हीं 34 ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थियों में से एक का चयन साक्षात्कार समिति ने कर लिया, शेष 54 गैर ब्राह्मण अभ्यर्थियों की प्रतिभा को दरकिनार कर दिया गया।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने अनारक्षित श्रेणी के असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल तीन पदों के लिए सभी ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थियों का चयन कर ब्राह्मणवाद या मनुवाद का सनातन  परिचय दिया। यह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर उषा टंडन की मंशा के अनुरूप है।  क्या यही मंशा विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन योगी आदित्यनाथ (मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश) की भी है?

आखिर क्या कारण है कि केंद्र एवं राज्य की भाजपा सरकार केन्द्रीय विश्वविद्यालयों एवं राज्य के विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर के पदों को लगातार एनएफएस कर रही है?

क्या आजादी के अमृतकाल में पिछड़े, दलित और आदिवासी असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, एवं प्रोफेसर पद पर चयनित होने के योग्य नहीं हैं? क्या भारत के विश्वविद्यालय सिर्फ ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थियों में ही प्रतिभा उत्पन्न कर पा रहे हैं? ऐसे सवालों पर विचार करना और उनका समाधान ढूंढना 21वीं सदी के भारत की उपलब्धि होगी।

ज्ञानप्रकाश यादव
ज्ञानप्रकाश यादव
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं और सम-सामयिक, साहित्यिक एवं राजनीतिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं।

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