संघ का राजनीतिक संगठन भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसका 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में नए सिरे से गठन हुआ। गठन के बाद इसने पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा, जिसमें उसे महज 7.74 प्रतिशत वोट और 2 सीटें मिलीं। किन्तु 1984 के बाद से उसका सफर हैरतंगेज़ रहा। पार्टी 1989, 1991, 1996, 1998 और 1999 में क्रमशः 11.36, 20.11, 20.29, 25.59 और 23.75 प्रतिशत वोट पाकर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रही। इस दौरान उसे क्रमशः 85, 120, 161, 182 और 182 सीटें मिलीं। अवश्य ही 2004 से सोनिया गांधी की आंधी में इसका ग्राफ गिरा और 2004 और 2009 में इसे क्रमशः 138 और 116 सीटों पर सिमट कर रह जाना पड़ा। लेकिन 2014 से मोदी के नेतृत्व में इसके ग्राफ में आश्चर्यजनक सुधार हुआ। इसने 2014 में 31.34% वोट और 282 सीटों से आगे बढ़कर 2019 में 37.46 %वोट और 303 पाकर पूरी दुनिया को विस्मित कर दिया। लेकिन 1984 में महज 2 सीटें जीतने वाली भाजपा 2019 में कैसे 303 सीटें जीत ली, इसके कारणों की तह में जाने पर जो तथ्य स्पष्ट नजर आएगा, वह यह कि इसने मुख्य रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति को हवा देकर ही यह ऊंचाई हासिल की है। यही नहीं मण्डल उत्तरकाल में उसने चुनाव दर चुनाव यह भी साबित किया है कि उसकी प्राणशक्ति मुस्लिम विद्वेष का प्रसार है और वह किसी भी सूरत में इससे बाज नहीं आ सकती।
राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के जरिए सत्ता में आई भाजपा मण्डल के उत्तरकाल में केंद्र से लेकर राज्यों तक जितने भी चुनावों में उतरी है, प्रायः सभी में मुसलमानों के खिलाफ नफरत का प्रसार करके ही सफलता अर्जित की है। अवश्य ही वह बीच-बीच में सबका साथ-सबका विकास का नारा भी देती रही है, किन्तु उसका अधिकतम फोकस मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने पर ही रहा है। बहरहाल चुनाव दर चुनाव मुस्लिम विद्वेष के सहारे सफलता की नई-नई ऊंचाई छूने वाली भाजपा 2024 में एक बार फिर नफरत की राजनीति को हवा देने जुट गई है। लेकिन 2024 में सिर्फ वह नफरत की राजनीति का इतिहास ही नहीं दोहरात प्रतीत हो रही है, बल्कि इस मामले में अतीत के सारे रिकार्ड भी ध्वस्त करती नजर आ रही है।
इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के जमाने से उसने मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जो लगातार माहौल बनाने की कोशिश की, उसमें उसने उनको विदेशी आक्रांता, हिन्दू धर्म संस्कृति का विध्वंसक, आतंकवादी, पाकिस्तानपरस्त, ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली जमात इत्यादि के रूप में चिन्हित करने का प्रयास किया, किन्तु 2024 में ऐसा पहली बार हो रहा है कि उन्हे सीधे मुसलमान कहकर निशाने पर लिया जा रहा है। बहरहाल, भाजपा इस बार नफरत की राजनीति की सारी हदें पार कर रही है तो, उसके पीछे ऐसे एकाधिक कारण हैं, जिसका सामना उसे पहली बार करना पड़ रहा है। मोदी राज में यह पहला चुनाव है, जिसमें भाजपा वर्तमान के बजाय अतीत के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। 2014 में उसके समक्ष कांग्रेस का भ्रष्टाचार और मंहगाई तो 2019 में पुलवामा जैसी तात्कालिक समस्या थी, जो उसकी सफलता का कारण बने थे। इसके विपरीत कांग्रेस उन तात्कालिक मुद्दों पर लड़ रही है जिससे देश के मजदूर ,किसान, युवा, महिलाएं और दलित, आदिवासी, पिछड़ी इत्यादि वंचित जातियाँ त्रस्त हैं। इन वर्गों को उनकी समस्या से निजात दिलाने के लिए पाँच न्याय और 25 गारंटियों से लैस उसका घोषणापत्र है, जिसे एक स्वर में सभी क्रांतिकारी कह रहे हैं। कांग्रेस के इसी घोषणापत्र ने भाजपा के समक्ष सबसे बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
चुनाव में संकट की स्थिति में भाजपा सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है
भाजपा की राजनीति पर नजर रखने वाले तमाम लोगों का मानना है कि चुनावों में जब भी उसके समक्ष संकट आता है, वह सांप्रदायिकता की पनाह में चली जाती है। चूंकि कोई भी चुनाव आसान नहीं होता, इसलिए भाजपा मण्डल के उत्तरकाल के हर चुनाव में राम नाम जपने और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के लिए बाध्य रही। लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस का घोषणापत्र भाजपा पर इस कदर कहर बनकर टूटा कि प्रधानमंत्री मोदी भौचक्का रह गए और उसकी कोई काट न मिलते देख वह नफरती राजनीति की शरण में जाने के लिए मजबूर हो गए। देखते ही देखते मुस्लिम लीग, मटन, मछली से आगे बढ़ते हुए मंगलसूत्र तक पहुंच गए। मंगलसूत्र और मुसलमान का सबसे पहले उल्लेख उन्होनें 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा की चुनावी सभा में किया और कहा,’ कांग्रेस का घोषणापत्र माओवादी सोच को धरती उतारने की उनकी कोशिश है। अगर उनकी सरकार बनी तो हरेक की संपत्ति का सर्वे किया जाएगा। हमारी बहनों के पास कितना सोना है, इसकी जांच की जाएगी। हमारे आदिवासी परिवारों में चांदी होती है, उसका हिसाब लगाया जाएगा। जो बहनों का सोना है, और जो संपत्तियाँ हैं, वे सबको समान रूप से वितरित कर दी जाएंगी, क्या ये आपको मंजूर है? आपकी संपत्ति सरकार को लेने का अधिकार है क्या? पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे-जिनको ज्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे।
भाइयों और बहनों ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी माँ-बहनों, ये मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे, ये यहाँ तक जाएंगे।’ मोदी का यह बयान झूठ का चरम था, जिसे लेकर पूरी दुनिया में उनकी थू-थू हुई, क्योंकि कांग्रेस के पूरे घोषणापत्र में न तो मुसलमान शब्द का उल्लेख था और न ही लोगों की संपत्ति छीनकर उनको देने का कहीं उल्लेख! लेकिन जगहँसाई से बेपरवाह मोदी रुके नहीं और मंगलसूत्र से कूद कर भैंस पर सवार होकर पाकिस्तान पहुंच गए।
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बहरहाल, भाजपा के लिए संकट कांग्रेस का क्रांतिकारी घोषणापत्र ही नहीं, बल्कि यह संदेश भी बन गया कि वह सत्ता में आने के बाद संविधान बदलने के साथ आरक्षण भी खत्म कर देगी। इससे देखते ही देखते संविधान और आरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। इस मुद्दे के कारण ही चुनाव के शुरुआती दो चरणों में भाजपा को भारी नुकसान होते देख मोदी, आरक्षण के जरिए मुसलमानों को फिर निशाने पर लेने के लिए आगे बढ़े और मंगलसूत्र वाले बयान के कुछ दिन बाद ही शोर मचाना शुरू किये कि कांग्रेस और सपा आरक्षण लूटकर मुसलमानों को दे देगी।इस बात को विस्तार से समझाते हुए उन्होनें 25 मई को बरेली और शाहजहांपुर की चुनावी सभा में कहा,’ कर्नाटक की तर्ज पर कांग्रेस एससी–एसटी व ओबीसी को मिले आरक्षण को धर्म के आधार पर मुसलमानों की सभी जातियों में बांट देना चाहती है। गठबंधन के लोग धर्म आधारित आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए वोट मांग रहे हैं, जबकि हम 400 पार की बात इसलिए कर रहे हैं ताकि एससी,एसटी ओबीसी के साथ ही सामान्य वर्ग के गरीबों को मिल रहे आरक्षण का लाभ सदैव सुरक्षित रहे। सपा भी कांग्रेस के साथ मिलकर आपकी पीठ में छुरा घोंप रही है,लेकिन मेरे रहते ऐसा नहीं होगा, यह मोदी की गारंटी है।‘
कांग्रेस और सपा आरक्षण लूटकर मुस्लिमों को दे देगी, मोदी का यह संदेश भाजपा के लिए मंगलसूत्र से भी कहीं ज्यादा कारगर लगा इसलिए गोदी मीडिया सहित भाजपा के बड़े-बड़े नेता इसे हवा देने में युद्ध स्तर पर मुस्तैद हो गए। अमित शाह ने मोदी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस ने ओबीसी के लिए निर्धारित चार प्रतिशत आरक्षण को लूटकर मुसलमानों को दे दिया। आंध्र प्रदेश में उन्होंने मुसलमानों को पाँच प्रतिशत आरक्षण दिया, जिससे ओबीसी का कोटा कम हो गया। अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आया तो वह इन वर्गों के लिए निर्धारित कोटा छीनकर मुसलमानों को दे देगा।‘ मोदी की बात को आगे बढ़ते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहना शुरू किया कि संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का तो बहुसंख्य कहां जाएंगे!
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उधर योगी-शाह वगैरह मंगलसूत्र और आरक्षण लूटकर मुसलमानों को देने का हौव्वा खड़ा करने में व्यस्त हो गए तो मोदी कुछ और कदम आगे बढ़कर गोधरा का इतिहास बताते हुए कहने लगे कि लालू, सोनिया ने गोधरा कांड के जिम्मेवार लोगों को बचाने की कोशिश की थी। उन्होंने दरभंगा की एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इस विषय में विस्तार से बताया ,’राजद का इतिहास सामाजिक न्याय का मुखौटा लगाकर हमेशा तुष्टीकरण करने का रहा है। जब गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जलाया गया था, तब रेलमंत्री राजद के शाहजादे के पिता थे, जो (चारा घोटाले मामले में) सजा काटकर जमानत पर घूम रहे हैं। आरोपियों को बचाने के लिए उन्होंने (लालू प्रसाद यादव) एक जांच समिति गठित की थी और एक रिपोर्ट बनावाई जिसने इस भयानक अपराध के दोषियों को दोषमुक्त कर दिया। लेकिन अदालत ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।’
कांग्रेस के घोषणापत्र से पार पाने की कोशिश में खुद के ही जाल में उलझती भाजपा
गोधरा को लेकर मोदी का यह बयान भयानक रूप से झूठ था, क्योंकि गोधरा के समय देश की बागडोर मोदी को राजधर्म की सलाह देने वाले वाजपेयी के हाथ में थी, जबकि रेलमंत्री उनके गठबंधन के सहयोगी नीतीश कुमार थे। बहरहाल, मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए भाजपा की ओर से इंस्टाग्राम पर एक वीडियो डालकर यह बात फैलाई गई कि ‘हरेक भारतीय को एकजुट होकर मोदी को सपोर्ट करना ही होगा। अगर कांग्रेस सत्ता में आ गई तो देश का सारा कुछ छीनकर मुसलमानों को दे देगी। यदि आप भारत की सभ्यता-संस्कृति को बचाना चाहते हैं तो आपको मोदी को वोट करना होगा। अबकी बार 400 पार भारत की जरूरत है।‘ बहरहाल कांग्रेस के घोषणापत्र से उपजे संकट से पार पाने के लिए भाजपा नफरती राजनीति को हवा देने की जितनी भी कोशिश कर रही है, वह और संकट में फँसती जा रही है। इसका कारण है कि सूचना क्रांति के इस चरम दौर में उसके झूठ की पोल आसानी से खुल जा रही है, जिससे मतदाताओं में उसकी छवि और खराब होती जा रही है। बहरहाल, मोदी इस बार नफरत की राजनीति का सारा रिकार्ड ध्वस्त करते हुए तरह-तरह के जो झूठ बोल रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा जोर वह धर्म आधारित आरक्षण पर दे रहे हैं। ऐसा इसलिए कि कि बहुसंख्य वंचित मतदाता संविधान और आरक्षण बचाने के लिए वोट को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का मन बना लिए हैं और इस हथियार को बेअसर करने के लिए उनके पास धर्म आधारित आरक्षण का मुद्दा खड़ा करने से भिन्न कोई उपाय नहीं है। पर, सवाल पैदा होता है क्या धर्म आधारित आरक्षण की बात उठाकर मोदी भाजपा को बचा पाएंगे! जवाब है ‘नहीं’!
मोदी इस लोकसभा चुनाव में धर्म आधारित आरक्षण के जरिए आरक्षित वर्गों को अपने पाले में लाने का जो उपक्रम चला रहे हैं, उसका चरम प्रयोग उन्होंने 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किया था। लेकिन कांग्रेस ने उस चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर उनके मंसूबों पर बुरी तरह पानी फेर दिया था। दलित बहुजन बुद्धिजीवी वर्षों से कहते रहे हैं कि भाजपा की नफरती राजनीति की काट सिर्फ डाइवर्सिटी और सामाजिक न्याय के विस्तार जरिए ही किया जा सकता है। चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने पर भाजपा कभी जीत ही नहीं सकती। इसका बड़ा दृष्टांत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हो चुका था। कर्नाटक में कॉंग्रेस ने इस सच्चाई को ध्यान रखते हुए चुनाव को पूरी तरह सामाजिक न्याय पर खड़ा कर दिया था। इसके लिए उस ने एससी,एसटी,ओबीसी, अल्पसंख्यक, लिंगायत और वोक्कालिगा के आरक्षण को 50 से 75% करने का जो वादा किया, उससे भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफरत का अभूतपूर्व माहौल पैदा करके भी बुरी तरह मात खा गई। अवश्य ही आरक्षण की 50% सीमा खत्म कर 75% करने की घोषणा के साथ सामाजिक न्याय से जुड़ी अन्य घोषणाएं भी उसके मैनिफेस्टो में थीं।
इस बार कांग्रेस के घोषणापत्र में आरक्षण की 50 % सीमा खत्म करने के साथ आधी आबादी के लिए 50% आरक्षण देने की बात भी आई है। इससे 2024 का चुनाव अभूतपूर्व रूप से उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित हो गया, जिस पर भाजपा हार का वरण करने के लिए बराबर अभिशप्त रही है। इसके अतिरक्त कांग्रेस के घोषणापत्र में एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, हर गरीब परिवार की एक महिला को साल में एक लाख देने, युवाओं को पहली नौकरी पक्की के साथ 30 लाख सरकारी नौकरियां देने जैसी अन्य कई घोषणाओं हैं, जिससे 90 % वंचित आबादी की ऐसी लामबंदी होती दिख रही है, जिसके समक्ष भाजपा की नफरती राजनीति का फुस्स होना तय सा दिख रहा है।