संगोष्ठी के पहले सत्र में ‘दलित साहित्य की सृजनधर्मिता और नई संभावनायें’ विषय पर परिसंवाद किया गया। विश्वभारती शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. रणवीर सुमेध भगवान ने अपने बीज वक्तव्य में दलित आंदोलन और लेखन की पूरी परंपरा का जिक्र करते हुए मराठी और हिंदी साहित्य का तुलनात्मक वर्णन किया। पश्चिम बंगाल दलित साहित्य आकदेमी के सह सभापति डॉ. आशीष हीरा ने सत्र के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने वक्तव्य में बांग्ला दलित साहित्य की रचनाधर्मिता में पीड़ा के इतिहास का स्मरण कराते हुए सहानुभूति और स्वानुभूति पर भी दृष्टि इंगित किया।