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ग्राउंड रिपोर्ट

Loksabha chunav : फ़तेहपुर जिले की विनोबानगर मलिन बस्ती के युवा और उनके अभिभावक पेपरलीक वाली सरकार बदलना चाहते हैं

जहाँ एक तरफ सरकार देश के युवाओं को रोजगार मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला बता रही है वहीं फतेहपुर के युवा कॉलेज से डिग्रियां लेने के बाद भी रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के चार सौ पार के दावे के बावजूद इस बार लोगों के बीच कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका जवाब सत्ता के पास नहीं है। जनता का मन-मिजाज़ जानने के लिए हम लगातार लोगों के बीच जा रहे हैं।

इस क्रम में उत्तर प्रदेश की फ़तेहपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत कई इलाकों में भी हम गए। शहर के पूर्वी छोर पर रेलवे फ्रेट कॉरीडोर के पश्चिमी किनारे पर बसे विनोबा नगर की कंजर बस्ती में जब लोगों से बात की गई तो वे वर्तमान सत्ता की नीतियों से खासे क्षुब्ध दिखे।

उनका गुस्सा इस बात पर था कि इस बस्ती के पढे-लिखे युवाओं ने सरकारी नौकरी के लिए जब-जब परीक्षा में बैठे तब-तब पेपर लीक की घटना हुई और उनकी इच्छाओं पर तुषारापात हो गया। कई अभिभावकों का कहना था कि हमने अपनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद परीक्षा के लिए तीन बार फार्म भरने में पैसे लगाए लेकिन वह पैसा बट्टे खाते में चला गया।

कंजर जाति पहले घुमंतू समुदाय के तौर पर जानी जाती थी। यहाँ के लोग उत्तर प्रदेश के कई जिलों के अनेक इलाकों के नाम इतनी सहजता से बताते हैं कि सामान्य लोग शायद मुश्किल से बता पाएँ। इसके पीछे कारण यह है कि उन्होंने इतिहास में लंबे समय तक ख़ानाबदोश समुदाय के रूप में अलग-अलग इलाकों में जीवन गुजारा है।

लेकिन अब वे स्थायी रूप से बसाई गई कॉलोनियों में रह रहे हैं। विनोबा नगर में रहनेवालों के पास अपना स्थायी घर है। ये घर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें मिले हैं। इसके बावजूद उनकी बेचैनी रोजगार को लेकर है। दो हजार की आबादी वाली इस बस्ती में बीस-बाइस ऐसे युवा हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है।

इन्हीं में एक युवक अनुज कुमार ने बीएचयू से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की है लेकिन कोई सरकारी नौकरी न मिलने के कारण अब कपड़े का व्यवसाय करते हैं। अनुज कहते हैं कि ‘सरकारी नौकरी मिली नहीं और प्राइवेट नौकरी में दस हज़ार से ज्यादा वेतन मिल नहीं रहा था जबकि मुझे अपने बच्चों के साथ ही बहन को उच्च शिक्षा दिलाना था इसलिए मैंने अपना व्यवसाय करना ही उचित समझा।’

कपड़े की फेरियाँ लगाने का काम यहाँ कई पुरुष और महिलाएं करती हैं। कुछ महिलाएं भिक्षावृत्ति भी करती हैं लेकिन अब वे इसको जल्दी से जल्दी छोड़ कर रोजगार करना चाहती हैं ताकि एक सम्मानजनक जीवन गुजारा जा सके।

बस्ती की एक महिला कहती हैं कि ‘हमारे जो बच्चे पढ़े-लिखे हैं उनको कुछ रोजगार तो मिलना चाहिए। उनको सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए लेकिन सरकार क्या कर रही है? जब हमारे बच्चे पेपर देने जाते हैं और पता चलता है कि पेपर लीक हो गया तो बताओ कि फिर हमारे बच्चे कहाँ जाएँ। सारी तैयारी बेकार जाती है। उम्र बीत रही है। जो पैसा खर्च किया गया वह भी पानी में चला गया।’

उनका कहना है कि ‘मेरा बच्चा बीएससी और बीएड कर चुका है। उसको नौकरी नहीं मिल रही है। सरकार ने हम लोगों को एससी कैटेगरी में डाल दिया है तो आरक्षण का भी लाभ हम यहाँ नहीं ले पाएंगे जबकि हमको एसटी का सर्टिफिकेट देना चाहिए।’

नवजवान छात्र रवि कुमार
नवजवान छात्र रवि कुमार

एक नौजवान रवि कुमार का कहना था कि ‘हमें राजनीतिक रूप से धोखा मिलता रहा है। वोट के लिए बरगलाया जाता है। सरकार हमें अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं करती लेकिन पार्टियाँ हमें अनुसूचित जनजाति में माने बैठी हैं। लेकिन वही पार्टियाँ जब सरकार में आती हैं तो वे भी हमको वही मानती हैं जो पिछली सरकारें मानती रही हैं। इस तरह सरकारें हमारे साथ बस खिलवाड़ कर रही हैं और हमें जो संवैधानिक अधिकार मिलना चाहिए वह आज तक नहीं मिल पाया है।’

रवि कुमार कहते हैं कि ‘जब हमारे पूर्वज बनवासी के रूप में जंगलों में घूमते रहे तब भी वही हालात रहे और आज हमारे पढ़ने-लिखने के बाद भी हम उसी समस्या से जूझ रहे हैं। जिनको कई पीढ़ियों से सरकारी नौकरियाँ मिलती रहेंगी वे आगे रहेंगे कि हमलोग रहेंगे जिनको कहीं कोई नौकरी नहीं मिल रही है।’

भगवा लुंगी पहने पतिराम कहते हैं कि ‘वह इस गाँव में चालीस-पैंतालीस साल से इस बस्ती में रह रहे हैं। वह कहते हैं कि तब से अब तक बहुत फर्क है। पहले गली-गली में डेरा डालते थे और मांगते-खाते थे। आज की स्थिति यह है कि हम लोगों के मकान बन गए। छाया मिल गई और गैस भी मिल गई। हम मेहनत-मजूरी करते हैं। कभी फेरी लगा लेते हैं। कभी ईंट-गारा कर लेते हैं। यहाँ धंधा-रोजगार नहीं है। जैसा मिल जाता है वैसा काम कर लेते हैं।हम अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहते हैं लेकिन सरकार कर नहीं रही है।’

आमतौर पर इस बस्ती में लोग राजनीतिक पार्टियों की वादाफरोशी की शिकायत करते मिले। जैसा कि आमतौर पर मान लिया गया है कि अति पिछड़ी और दलित जातियों के लोग सरकारी राशन पाकर खुश हैं वहाँ इस बस्ती में यह आश्चर्यजनक था कि किसी एक ने भी राशन की बात नहीं की बल्कि उनकी बातचीत में सरकारी नौकरी की आकांक्षा थी क्योंकि इस बस्ती में नयी पीढ़ी शिक्षा के प्रति काफी जागरूक है। लोग कपड़े की फेरी लगाकर और दूसरे काम करके पैसा कमा रहे हैं लेकिन उनके मन में यह कसक है कि उन्हें नौकरी नहीं मिली। जो युवा कई बार नौकरियों के लिए परीक्षा दे चुके हैं उनके लिए पेपर लीक की घटनाएँ गहरी निराशा और सत्ता के प्रति अविश्वास पैदा करने वाली साबित हुई हैं।

वहीं मौजूद एक अन्य महिला ने इस बात पर गुस्सा प्रकट किया कि सरकार तो हर इम्तहान का पेपर लीक कर रही है। मजदूरी करके हम लोग कहाँ तक पढ़ाएँ-लिखाएँ?’

यह कहने पर कि सरकार तो पेपर लीक पर अंकुश लगा रही है, वहाँ मौजूद एक बुजुर्गवार ने कहा- ‘हमको बेवकूफ समझते हैं। क्या सरकार इतनी कमजोर है कि वह पेपरलीक करने वालों को नहीं पकड़ पा रही है। क्या बिना अंदर के आदमी के मिले पेपर लीक हो जाएगा?’ ज़ाहिर है हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं था।

विनोबा नगर के इन परिवारों से बातचीत करके लगता है कि अब लोग अपनी पुरानी स्थितियों से छुटकारा पाना चाहते हैं। एक महिला से हमने पूछा कि आप क्या करती हैं तो उसने बताया कि ‘यही माँगते-खाते हैं।’ इस पर वहाँ मौजूद दूसरी महिला ने तपाक से कहा कि ‘अरे लेबरगीरी करते हैं। पहिले जरूर माँगते थे लेकिन अब हम मेहनत से जीना चाहते हैं। हमारे मरद लोग कपड़ा बेचते हैं। लेकिन हम लोगों के पास ज्यादा कोई काम नहीं है। बच्चे नौकरी पर लग जाते तो हमारी भी हालत सुधर जाती लेकिन सरकार सुधरने दे तब न।’

इस बस्ती के सामाजिक कार्यकर्ता बीरन का कहना है कि बहुत से नेता लोग आते हैं और कहते हैं कि हमने आपको कॉलोनी दे दिया लेकिन हम कहते हैं कि इस कॉलोनी से हमारा विकास होनेवाला नहीं है। हमको रोजगार चाहिए। लोगों को शिक्षा चाहिए। जब हमको शिक्षा मिल जाएगी तो हम रोजगार भी हासिल कर सकते हैं। यहाँ स्कूल नहीं है और न ही बच्चों को किसी योजना का कोई लाभ मिल रहा है आज मंदिर बनवाया जा रहा है लेकिन इनसे हमको कोई फायदा होने वाला नहीं है। आप हमारे लिए स्कूल बनवा दीजिये, अस्पताल बनवा दीजिये जिससे हम भी मुख्यधारा में आ सकें।

बस्ती के बाहर मंदिर के पास बुजुर्ग चंद्रपाल, जो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में रह चुके हैं और अनुभवों का जखीरा हैं, काफी गुस्से में दिखे। उनका गुस्से के केंद्र में पेपरलीक और ईवीएम था। वह मानते हैं कि सरकार हमको बरगला रही है। वह हमारे बच्चों को शिक्षा की व्यवस्था नहीं करना चाहते लेकिन मंदिर बनवा रहे हैं।

उनका गुस्सा इस बात पर भी था कि मायावती के शासनकाल में यहाँ स्कूल था लेकिन बाद में उसे यहाँ से हटाकर कहीं और कर दिया गया। अब हमारे बच्चे एक किलोमीटर दूर जाते हैं पढ़ने के लिए।

दो हजार की आबादी वाले इस गाँव में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है क्योंकि जो स्वास्थ्य केंद्र था उसे यहाँ से उठाकर पास के गाँव ले जाया गया। पूछने पर जवाब दिया बगल के गाँव में यहाँ के स्वास्थ्य केंद्र को विनोबा नगर से विस्थापित करके जयराम नगर में स्थापित कर दिया गया है।

जब ग्रामीणों ने जिलाधिकारी और सांसद से कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि जयरामनगर के लोगों को स्वास्थ्य केंद्र की ज्यादा जरूरत है। यही बताकर ग्रामीणों को वापस भेज दिया।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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