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नहीं रहीं कथाकार मन्नू भण्डारी

हिन्दी की शीर्षस्थ कथाकारों में शुमार मन्नू भण्डारी ने आज नब्बे वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा। उन्हें कुछ दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मन्नू भण्डारी छठे-सातवें दशक की सर्वाधिक चर्चित कथाकार मानी जाती हैं। उनके लेखन में स्त्री जीवन के अनेकानेक शेड्स मिलते हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों […]

हिन्दी की शीर्षस्थ कथाकारों में शुमार मन्नू भण्डारी ने आज नब्बे वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा। उन्हें कुछ दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मन्नू भण्डारी छठे-सातवें दशक की सर्वाधिक चर्चित कथाकार मानी जाती हैं। उनके लेखन में स्त्री जीवन के अनेकानेक शेड्स मिलते हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों में औरतों के जीवन का जैसा त्रासद, विडंबनापूर्ण  और दमित  चित्रण मिलता है वह हिन्दी कथा साहित्य की अनमोल धरोहर है। उन्होंने पुरुष सत्ता और उसके बहुस्तरीय पाखंडों पर अपने लेखन से जमकर प्रहार किया।

उनकी प्रमुख कृतियों में आपका बंटी, महाभोज जैसे सशक्त और बहुचर्चित उपन्यासों के अलावा मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, आंखों देखा झूठ और त्रिशंकु जैसी बहुचर्चित कहानियाँ लिखी। आपका बंटी में प्यार, शादी, तलाक और वैवाहिक रिश्ते के टूटने-बिखरने की कहानी है।  इसे हिन्दी साहित्य का मील का पत्थर माना जाता है। उनकी कहानियों और उपन्यास पर फिल्में बनी हैं जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध रजनीगंधा है।

3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा  में जन्मी मन्नू भण्डारी ने कलकत्ता और दिल्ली में अध्यापन किया। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन लिखती रहीं। वे अत्यंत संवेदनशील इंसान थीं।

चार दिनों पहले हमने अपनी माँ पर लिखे उनके लंबे संस्मरण को चार हिस्सों में प्रकाशित करना शुरू किया। पहला हिस्सा पढ़ने के बाद कथाकार सुधा अरोड़ा ने उनके आई सी यू में भर्ती होने की खबर दी।

मन्नू भण्डारी को गाँव के लोग की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि!

सीढ़ियों पर बैठी वह लड़की ….  (भाग – एक)

 अविश्वसनीय थी मां की यातना और सहनशीलता (भाग – दो )

माँ की बनाई ज़मीन पर खड़े होकर पिता यह सब कर सके…(भाग -तीन)

पीढ़ियों का अन्तराल जहाँ बाहरी बदलाव करता है वहीँ सोच और परिभाषाएँ भी बदल जाती हैं (चौथा और अंतिम भाग)

गाँव के लोग
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