सरकारें जब कुछ नहीं करती हैं तो ढोल बजाती हैं। कल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने भी एक बार फिर ढोल बजाया। ट्वीटर के जरिए उन्होंने यह जानकारी साझा की कि अब देश में 24 घंटे पोस्टमार्टम हो सकेंगे। अपने संदेश में उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया कि अब अंग्रेजों का कानून खत्म। दरअसल, अंग्रेजों ने अपने जमाने में यह नियम बनाया था कि सूर्यास्त के बाद कोई पोस्टमार्टम नहीं होगा। अबतक यही व्यवस्था देश भर के अस्पतालों में थी। स्वास्थ्य मंत्रालय के इस फैसले को मनसुख मांडविया ने केंद्र सरकार के तथाकथित सुशासन से जोड़ा है। हालांकि वे ऐसा करने में चूक गए हैं। दरअसल, स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो फैसला लिया है, उसमें हत्या, क्षत-विक्षत लाशें, बलात्कार, आत्महत्या व संदिग्ध मामले शामिल नहीं हैं। अब इस आधार पर मनसुख मांडविया के ढोल को देखें। अब यदि इस तरह के मामलों में 24 घंटे पोस्टमार्टम नहीं होंगे तब किस तरह के मामलों में होंगे? और बात केवल इतनी नहीं है कि यह एक आधा-अधूरा फैसला है। मनसुख मांडविया ने यह भी कहा है कि यह केवल उचित बुनियादी ढांचे वाले अस्पतालों में हो सकेगा। अब यह दिलचस्प है कि देश में उचित बुनियादी ढांचे वाले अस्पताल कितने हैं और कहां हैं।
खैर, नरेंद्र मोदी अमर हो जाना चाहते हैं। बिल्कुल अपने मित्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह हैं, जो अपनी अमरता के लिए पिछले पांच सालों में पौने दो लाख लोगों को जहरीली शराब से मर चुके हैं। हालांकि यह आंकड़ा केवल अनुमानित है और मेरे अनुमान का आधार बिहार से प्रकाशित अखबारों में शामिल खबरें हैं।
[bs-quote quote=”मैं यह सोच रहा हूं कि उपरोक्त घटना में अपराधी कौन है? निश्चित तौर पर वे जरूर आपराधी हैं, जिन्होंने भरत कुमार यादव को गोली मारी और उसके पास से करीब दस लाख रुपए लूटे। लेकिन क्या बैजनाथपुर ओपी और मिठाई ओपी के अधिकारी अपराधी नहीं हैं?” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मैं तो नरेंद्र मोदी के विशेष सहयोगी मनसुख मांडविया के बारे में सोच रहा हूं, जिन्होंने कल 24 घंटे पोटमार्टम किये जाने संबंधी घोषणा की है। कल देर रात एक खबर आयी। खबर बिहार के मधेपुरा जिले की है।वहां कल एनएच-107 पर एक युवक को गोली मार दी गयी और जख्मी हो गया। उसके पास से करीब दस लाख रुपए लूटे जाने की खबर है। जिसे गोली लगी, उसकी पहचान बहेरी थाना के चकला गांव के निवासी भरत कुमार यादव के रूप में हुई। वह एक निजी फाइनांसा कंपनी में काम करता था। अंतिम वाक्य का काल भूतकाल इसलिए कि कल देर रात उसकी मौत हो गई। मौत क्यों हुई, यह महत्वपूर्ण है।
दरअसल, कल दोपहर बाद जब भरत कुमार यादव को गोली मारी गयी और उसके पास से दस लाख रुपए लूट लिये गये तब वह केवल जख्मी था। एक गोली उसके पेट में लगी थी और दूसरी गोली उसके पैर में। खून का रिसाव हो रहा था। वह चिल्ला रहा था ताकि लोग उसकी मदद करें। करीब आधे घंटे तक तो उसके पास कोई नहीं आया। और बाद में भी कोई स्थानीय नागरिक उसकी मदद को आगे नहीं आया। हालांकि लोगों ने इस बीच बैजनाथपुर ओपी को इसकी सूचना दी कि एक नौजवान को गोली मार दी गयी है और वह जख्मी है। बैजनाथपुर ओपी की पुलिस मौका-ए-वारदात पर पहुंची। लेकिन उसने पाया कि जिस जगह भरत कुमार यादव को गोली मारी गयी, वह उसकी सीमा में नहीं है। तब मिठाई ओपी के अधिकारियों को इसकी सूचना दी गयी कि उनके इलाके में एक नौजवान को गोली मार दी गयी है और वह इलाज के लिए छटपटा रहा है।
जानकारी मिलने के बाद मिठाई ओपी के अधिकारी ने अपने सीमा की जांच की। इस काम में करीब दो घंटे लगे। इसके पहले बैजनाथपुर ओपी के अधिकारी को मौका-ए-वारदात पर पहुंचने और सीमा की पहचान करने में करीब दो घंटे लगे थे। कुल मिलाकर करीब पांच घंटे का समय बीत चुका था। खून भरत कुमार यादव के शरीर से बह चुका था। बाद में जब उसे अस्पताल ले जाया गया, उसकी मौत हो चुकी थी।
[bs-quote quote=”मनसुख मांडविया के ढोल को देखें। अब यदि इस तरह के मामलों में 24 घंटे पोस्टमार्टम नहीं होंगे तब किस तरह के मामलों में होंगे? और बात केवल इतनी नहीं है कि यह एक आधा-अधूरा फैसला है। मनसुख मांडविया ने यह भी कहा है कि यह केवल उचित बुनियादी ढांचे वाले अस्पतालों में हो सकेगा। अब यह दिलचस्प है कि देश में उचित बुनियादी ढांचे वाले अस्पताल कितने हैं और कहां हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
दरअसल, मैं यह सोच रहा हूं कि उपरोक्त घटना में अपराधी कौन है? निश्चित तौर पर वे जरूर आपराधी हैं, जिन्होंने भरत कुमार यादव को गोली मारी और उसके पास से करीब दस लाख रुपए लूटे। लेकिन क्या बैजनाथपुर ओपी और मिठाई ओपी के अधिकारी अपराधी नहीं हैं?
लेकिन बिहार के अखबार बता रहे हैं कि वहां सुशासन है। ठीक वैसे ही जैसे नीतीश कुमार के मित्र नरेंद्र मोदी के राज में पूरे देश में सुशासन है। मैं तो बिहार के पूर्णिया जिले में बीते दिनों एक कांग्रेसी नेता बंटी सिंह की हत्या के मामले को देख रहा हूं। इस मामले में मुख्य अभियुक्त बिहार सरकार के में मंत्री लेशी सिंह का भतीजा है, जिसका पति जो कि अनेक मामलों में कुख्यात था। इस मामले में मैं अखबारों में की जा रही रिपोर्टिंग को देख रहा हूं। अखबारों ने केवल मंत्री का भतीजा कहा है, मंत्री का नाम लेने से परहेज किया है।
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बिहार में सुशासन से जुड़ी एक खबर और। कल ही आरा के चरपोखरी में एक नवनिर्वावित मुखिया संजय सिंह की हत्या गोली मारकर कर दी गयी। मृतक बाबूबांध पंचायत का मुखिया अभी हाल ही में निर्वाचित हुआ था।
बहरहाल, यह देश है नरेंद्र मोदी का। बिहार है नीतीश कुमार का। दोनों मित्रों में अनेक समानताएं हैं। समानताएं केवल राजनीतिक चरित्र व आचरण का ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत भी है। सबसे बड़ी समानता तो यही कि दोनों अपनी-अपनी पत्नियों को जीते-जी विधवा बनाकर रखा। अंतर यह कि नरेंद्र मोदी की पत्नी जिंदा हैं और नीतीश कुमार की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं हैं। नीतीश कुमार की पत्नी के संबंध में मैं यह नहीं कह सकता कि उनकी हत्या की गयी। यदि की गई होगी तो किसे पता? कहां उनके लाश का पोस्टमार्टम हुआ था?
नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं