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ग्राउंड रिपोर्ट

त्र्यंबकेश्वर मंदिर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति

हिंदुत्ववादी संगठन जो लगातार धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। देश में मंदिर की राजनीति ज़ोरों पर हैं।

नागपुर। जो गाँव करें तो राव क्या करें?… यह एक मराठी कहावत है। इसका मतलब है जो काम गाँव के लोग मिलकर करेंगे तो वह लोग क्या करेंगे जिन्हें अंग्रेज सरकार ने ‘राव’ का ख़िताब दिया है? यही कहावत बीते दिनों त्र्यंबकेश्वरवासियों पर सटीक बैठी जब नगर परिषद की बैठक में सर्वसम्मति से संदल जुलूस में मंदिर को उत्तर दिशा की ओर से धूप दिखाने की परंपरा के खिलाफ उग्र हिंदूत्वादियों द्वारा किए जा रहे द्वेषपूर्ण प्रचार का विरोध गांव के लोगों ने मिलकर किया। नगर वासियों ने भी संदल के धूप दिखाने की परंपरा का समर्थन किया है। यह भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने वालों के मुँह पर झन्नाटेदार तमाचा है।

नासिक का त्र्यंबकेश्वर गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक बीते शनिवार (13 मई) को संदल जुलूस निकाला गया था यह सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा है जुलूस त्र्यंबकेश्वर मंदिर के उत्तर दिशा की सीढ़ियों को धूप दिखाकर आगे बढ़ता है इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों को धूप दिखाने से रोका गया वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों से जब विनती की गई तब उन्होंने कहा कि ‘यहां गैर हिन्दुओं को अंदर जाने की इज़ाज़त नहीं है‘ इस पर संदल के लोगों ने कहा कि ‘हमें सिर्फ मंदिर की पहली सीढ़ियों तक जाने की अनुमति दीजिए हम वहीं से भगवान को धूप दिखाकर आगे बढ़ जाएंगे हम त्र्यंबकेश्वरजी के साथ सभी भगवान को मानते हैं भगवान को धूप दिखाने की परंपरा काफी पुरानी है।’

हिंदूत्ववादी संगठनों में ऐसी कोई परंपरा नहीं है इसी को लेकर मौके पर कहा-सुनी हुई इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी होने लगात्र्यंबकेश्वर मंदिर के स्थानीय लोग ही वहां की सुरक्षा व्यवस्था करते थे और उन्हें भी इस परंपरा की जानकारी थी अभी हाल ही में महाराष्ट्र सुरक्षा दल के जवानों को वहां तैनात किया गया है। उन्हीं के द्वारा मुस्लिम युवकों को रोकने की घटना हुई महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विशेष रूप से इस घटना पर नज़र रखे हुए हैंवह इस मामले की एसआईटी द्वारा जांच और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की घोषणा भी कर चुके हैं

यही देवेंद्र 2018 की एक जनवरी को भीमा कोरेगांव के शौर्य दिवस के बाद हुए दंगों में भी राजनीति किए थे। उन्होंने कहा था कि उस घटना की जांच मैंने अपने सहयोगियों के साथ जाकर की थी। भीमा कोरेगांव के ग्राम पंचायत की तुलना में त्र्यंबकेश्वर के नगर परिषद के सभी सदस्यों और नागरिकों का हृदय से धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश के सभी नागरिकों को त्र्यंबकेश्वर मॉडल का अनुकरण करना चाहिए इससे सांप्रदायिक तनाव फैलाकर राजनीति करने वालों को सबक मिल सकता है

लेकिन हिंदूत्ववादी संगठन जो लगातार धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह बात नागवार लगीइस घटना को लेकर गलत जानकारी और अफवाहों का दौर शुरू करने की कोशिश की गई थी

दूसरी तरफ, त्र्यंबकेश्वर नगर पंचायत के समझदारी की दाद देनी चाहिए कि उन्होंने इस मामले में बुधवार (17 मई) को गांव के समस्त लोगों के साथ बैठक कर समझदारी और सामाजिक एकता की भूमिका निभाई। बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने एक स्वर में ‘वर्षों से चली आ रही धूप दिखाने की परंपरा में कभी भी कोई अनुचित कार्य नहीं हुआ और शहर में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं है।कहते हुए इस घटना को लेकर राजनीति करने वालों को आड़े हाथ लिया है

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लेकिन दूसरी तरफ हिंदू महासभा के नेतृत्व में हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा किया है कि सीढ़ियों के शुद्धिकरण और महाआरती के बाद धूप दिखाने की कोई परंपरा नहीं है

इस पूरे प्रकरण को लेकर पिछले दो दिनों से हिंदुत्ववादी संगठनों (हिंदू महासभा, आखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ, भाजपा आध्यात्मिक अघाडी, युवा मोर्चा, नासिक पुरोहित संघ, लव जेहाद) के प्रतिनिधियों ने बुधवार को त्र्यंबकेश्वर मंदिर की सीढ़ियों के शुद्धिकरण से लेकर महाआरती करने के बाद हिन्दुओं के अलावा और किसी भी धर्म के लोगों को मंदिर में जाने की सख्त मनाही… लिखा हुआ बोर्ड प्रवेश द्वार (उत्तर) के ऊपर लगा दिया है

उसी समय त्र्यंबकेश्वर नगर परिषद की बैठक में सर्वसम्मति से संदल जुलूस की तरफ से परंपरा के अनुसार ही भगवान को धूप दिखाने की परंपरा की बात एक स्वर में कही गई हैइस घटना को राजनीतिक रंग देकर गांव की शांति और सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश करने वालों को गांव के लोगों ने आड़े हाथ लिया है। लोगों ने कहा कि त्र्यंबकेश्वर गांव के लोगों से मिले बगैर तथाकथित हिंदुत्ववादी संगठनों के लोग यहां की शांति और सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं इसकी त्र्यंबकेश्वरवासियों ने कड़े शब्दों में निंदा की

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ‘इस्लाम या ईसाई धर्म तलवार के जोर पर नहीं फैला हिंदू धर्म की छुआछूत और गैरबराबरी के व्यवहार के कारण दलितों ने इस्लाम या ईसाई धर्म को खुशी-खुशी अपनाया

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डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में दलित को प्रवेश दिलाने के लिए भारत के इतिहास का सबसे लंबा सत्याग्रह 2 मार्च, 1930 को शुरू किया, जो 1936 में समाप्त हुआ। लगभग छह साल (5 वर्ष 11 महीने और 7 दिन) चले इस आंदोलन में दादासाहेब गायकवाड़, सहस्रबुद्धे, देवराव नाईक, वीडी प्रधान, बालासाहेब खरे, स्वामी आनंद तथा पंद्रह हजार से अधिक लोगों ने इस सत्याग्रह में भागीदारी की थीस्थानीय सनातनियों की तरफ से पत्थरबाजी भी की गई थी लेकिन आंदोलनकारियों की तरफ से एक भी प्रतिकार या हमले का उदाहरण नहीं है इतने लंबे समय तक आंदोलन करने के बावजूद भी सनातनियों ने मंदिर में दलितों को प्रवेश करने की इज़ाज़त नहीं दी

उसी नासिक जिले के येवला में बाबासाहेब आंबेडकर ने घोषणा की कि ‘मैं हिंदू धर्म में पैदा जरुर हुआ लेकिन मरने के पहले मैं हिंदू धर्म का त्याग करुंगा।’ 14 अक्टूबर, 1956 में उन्होंने अपने लाखों अनुयायियों के साथ नागपुर के दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म को स्वीकार कियाउसके बाद 6 दिसंबर, 1956 के दिन महानिर्वाण किया

क्या इतिहास की इन घटनाओं से तथाकथित हिंदुत्ववादी लोगों को कोई सबक नहीं मिल रहा है? मेरी राय में आज भारत में रह रहा कोई भी मुस्लिम या ईसाई ऐसा नहीं हैं, जिनके पूर्वजों ने भारत की जाति व्यवस्था से तंग आकर हिंदू धर्म का त्याग नहीं किया है

उसके बावजूद त्र्यंबकेश्वर जैसी घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश की जा रही हैबहुत खुशी की बात है कि त्र्यंबकेश्वर गांव के लोगों ने मिलकर वहां की शांति और सद्भाव को बिगाड़ने वालों को करारा जवाब दिया है अब इसके बाद भी उपमुख्यमंत्री कौन-सी जांच कर रहे हैं और किसे सजा देने जा रहे हैं? मेरे हिसाब से उनकी चिंताओं में अपनी पार्टी की सरकार स्थापित करना है और उनका यही एकमात्र एजेंडा हैफिर उसके लिए महाराष्ट्र में कितने खून बहाए जा सकते हैं, यह बात वही जानें

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
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