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नियंत्रित स्वतंत्रता की प्रतीकात्मक प्रस्तावना तो नहीं है लोकतंत्र की पीठ पर राज-दंड की स्थापना

राजदंड के माध्यम से राजा होने का सपना बुना जा रहा है या धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की भावना पर धर्म और राज-सत्ता का प्रतीक चिन्ह लटकाकर लोकतंत्र को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है? वाराणसी। खूबसूरत वास्तुकला की नुमाइंदगी करता संसद भवन आने वाले कल में आजादी के पूर्व से अबतक के तमाम उतार-चढ़ाव […]

राजदंड के माध्यम से राजा होने का सपना बुना जा रहा है या धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की भावना पर धर्म और राज-सत्ता का प्रतीक चिन्ह लटकाकर लोकतंत्र को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है?

वाराणसी। खूबसूरत वास्तुकला की नुमाइंदगी करता संसद भवन आने वाले कल में आजादी के पूर्व से अबतक के तमाम उतार-चढ़ाव का किस्सा मात्र बनकर रहा जाएगा। भारत के हर हित में इस इमारत का अब तक हस्तक्षेप रहा है। अब यह हस्तक्षेप खत्म हो जाएगा। 28 मई, 2023 को नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन होने जा रहा है। संसद नई इमारत में चलेगी। नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सियासी जंग भी छिड़ी हुई है। उद्घाटन सेरेमनी का लगभग 19 राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं। इस जंग के पीछे दो अहम कारण हैं, पहला उद्घाटन की तारीख और दूसरा उद्घाटक के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम। भाजपा सरकार ने नए भवन के लिए 28 मई की तारीख इसलिए सुनिश्चित की है कि उस दिन आरआरएस के नेता रहे विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है। सावरकर को लेकर कांग्रेस पहले भी भाजपा को घेरती रही है और उन्हें अंग्रेजों के पेंशनयाफ़ता पैरोकार के रूप में देखती रही है। भाजपा के खिलाफ खड़ी हर पार्टी आजादी के आंदोलन में सिर्फ सावरकर ही नहीं, बल्कि पूरे संघ की भूमिका को संदिग्ध मानती रही है। ऐसे में सावरकर की जयंती पर भारतीय लोकतंत्र का प्रतिनधित्व करने वाले भवन के उद्घाटन पर विपक्ष की तमाम पार्टियां विरोध कर रही हैं। इस विरोध की शुरुआत कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्वीट के बाद हुई।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ट्वीट

विरोध का दूसरा पहलू यह है कि नई इमारत का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। वैसे तो भाजपा के शासन काल में निर्मित हर बड़ी चीज का उद्घाटन नरेंद्र मोदी ही करते रहे हैं, पर इस इमारत के उद्घाटन को लेकर विपक्ष हमलावर है। विपक्ष का कहना है कि संसद भवन भारतीय संविधान और लोकतंत्र की सुरक्षा की सबसे बड़ी पीठ है, इसलिए  इसका उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू या सभापति जगदीप धनखड़ द्वारा किया जाना चाहिए। इसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी ट्वीट किया- ‘पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर आमंत्रित नहीं किया गया, ना ही अब राष्ट्रपति मुर्मू को उद्घाटन के मौके पर आमंत्रित किया गया है। केवल राष्ट्रपति ही सरकार, विपक्ष और नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह भारत की प्रथम नागरिक हैं। नए संसद भवन का उनके (राष्ट्रपति) द्वारा उद्घाटन सरकार के लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक मर्यादा को प्रदर्शित करेगा।’

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का ट्वीट

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद का उद्घाटन क्यों करना चाहिए? वह कार्यपालिका के प्रमुख हैं, विधायिका के नहीं। हमारे पास शक्तियों का बंटवारा है। माननीय लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति उद्घाटन कर सकते हैं। यह जनता के पैसे से बना है, पीएम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहैं, जैसे उनके ‘दोस्तों’ ने अपने निजी फंड से इसे स्पांसर किया है?

कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी, कांग्रेस नेता शशि थरूर और तमाम विपक्षी नेता इस नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। वहीं, विपक्षी दलों ने संसद के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। इन दलों में कांग्रेस, डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम), AAP, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), समाजवादी पार्टी, भाकपा, झामुमो, केरल कांग्रेस (मणि), विदुथलाई चिरुथिगल कोच्ची, रालोद, टीएमसी, जदयू, एनसीपी, सीपीआई (एम), आरजेडी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, नेशनल कॉन्फ्रेंस, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और मरुमलार्ची द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एमडीएमके) शामिल हैं।

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यह सियासी जंग 28 मई तक जारी रहेगी। इसी बीच देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि इस नवनिर्मित संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता के प्रतीक राज दंड की स्थापना की जाएगी। इस राजदंड का एक लंबा इतिहास रहा है। सेंगोल के नाम से जाना जाने वाला यह राजदंड चोल साम्राज्य का था, जो बाद में मौर्य साम्राज्य से होते हुए अंग्रेजों तक आया था। ज्यादातर राज सत्ताएं शक्ति के प्रतीक के रूप में अपना राज दंड रखती थीं। यह राज दंड राजा को जमीन पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भी उल्लेखित करता था। 14 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश वायसराय लार्ड माउण्टबेटन ने राज सत्ता के हस्तानान्तरण के प्रतीक के रूप में यह राजदंड भी पंडित जवाहर लाल नेहरू को प्रदान किया था। राज सत्ता से सत्ता लेने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने इस राज दंड को स्वीकार जरूर किया था, पर नेहरू ने इस राज दंड को सत्ता के प्रतीक के रूप में मान्यता नहीं दी। पंडित नेहरू का कहना था कि, “हमने राज-सत्ता से सत्ता ली है, पर अब हम राज-तंत्र नहीं बनने जा रहे हैं और लोकतंत्र में किसी भी राज दंड की कोई भूमिका नहीं हो सकती।” इसलिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस राज दंड को ‘इलाहाबाद संग्रहालय’ में राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में रखवा दिया था। इसके बाद भारतीय राजनीति में इस राज दंड का कोई जिक्र ही नहीं किया गया। अब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाने वाला संसद भवन की नई इमारत का उद्घाटन होने जा रहा है, तब गृह मंत्री अमित शाह ने बताया है कि नए भवन के उद्घाटन अवसर पर यह राजदंड प्रधानमंत्री मोदी को दिया जाएगा। इसे सभापति के आसन के पास सत्ता की शक्ति के प्रतीक के रूप में रखा जाएगा।

कांग्रेस नेता अजय राय

वाराणसी लोकसभा सीट पर नरेंद्र मोदी को चुनावी चुनौती देने वाले कांग्रेस नेता अजय राय ने इस पूरे मामले को लेकर कहा कि भाजपा पूरी तरह से निरंकुश हो चुकी है और तानाशाही कर रही है। राष्ट्रपति को उद्घाटन में ना बुलाए जाने को लेकर उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षक को ही जब संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाया जा रहा है, ऐसे में इस सरकार की सोच को समझा जा सकता है। यह लोग देश में गांधी के हत्यारों को महिमा मंडित करते हैं और देश के बाहर जाकर गांधी पर फूल चढ़ाते हैं, यह दोहरे चरित्र के लोग हैं। देश और संविधान के प्रति नहीं, बल्कि यह सरकार सिर्फ अडानी के लिए काम कर रही है। उन्होंने संसद में राज दंड रखने को लेकर कहा कि भाजपा सरकार पूरी तरह से लोकतंत्र को खत्म करने पर अमादा है, नरेंद्र मोदी सेवक और चौकीदार से अब राजा बनने का यत्न कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए हर लड़ाई लड़ेगी। साथ ही भाजपा के राजदंड को वापस संग्रहालय में भेजने का काम करेगी।

बहुजन समाज पार्टी के नेता रघुनाथ चौधरी ने कहा कि भाजपा बाबासाहब डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा तय किए गए लोकतान्त्रिक मूल्यों पर मनुवादी व्यवस्था थोपने की पूरी कोशिश कर रही है। निजीकरण के माध्यम से वह सरकारी उपक्रमों को खत्म कर रही है, ताकि आरक्षण के माध्यम से भी बहुजन समाज आगे ना बढ़ सके। लोकतंत्र के केंद्रस्थल पर राज दंड की भला क्या आवश्यकता है. पर भाजपा इस राज दंड की धौंस दिखाकर बहुजन समाज की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रही है। 2024 में बहुजन समाज इन्हें जवाब देने का काम करेगा।

सपा नेता मनोज राय धूपचंडी

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी संसद में राजदंड की स्थापना को लेकर कहते हैं कि यह साबित कर रहा है कि आजादी के संघर्ष में भाजपा की कोई भूमिका नहीं थी। यह लोग अंग्रेजों के सहयोगी थे और उनका दिया हुआ राज दंड भारत के संसद में रखकर अंग्रेजों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं और देश के स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत को अपमानित करने का काम कर रहे हैं। 2024 में देश इनके नफरती मंसूबों को ध्वस्त करने का काम करेगा।

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फिलहाल 28 मई को संसद भवन की नई इमारत का उद्घाटन होने जा रहा है। विपक्ष की कई पार्टियां इस आयोजन का बायकाट कर रही हैं पर बसपा सुप्रीमो मायावती इस मामले में भाजपा के साथ खड़ी हैं। नई संसद में लोकतंत्र के साथ स्थापित होने जा रहा राज दंड संविधान की रक्षा करेगा या फिर संविधान पर ही हमला करेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। राज दंड हमेशा राजा की शक्ति का प्रतीक रहा है। इस बार राजदंड के माध्यम से राजा होने का सपना बुना जा रहा है या धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की भावना पर धर्म और राज सत्ता का प्रतीक चिन्ह लटकाकर लोकतंत्र को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है।

कुमार विजय गाँव के लोग डॉट कॉम के मुख्य संवाददाता हैं।

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