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जाति जनगणना का प्रश्न

जाति गणना का प्रश्न समाजिक सन्दर्भों के अध्ययन, और सामाजिक उन्नयन के लिए नीतियों के निर्धारण, दोनों के लिए बहुत जरूरी है। जो लोग जाति जनगणना के विरोध में झंडा बुलंद किए हैं, तर्क यह दे रहे कि इससे जातिवाद बढ़ेगा, यह मजाक के सिवा कुछ नहीं। गोया जातिवाद हो ही न? या आप जातिवाद […]

जाति गणना का प्रश्न समाजिक सन्दर्भों के अध्ययन, और सामाजिक उन्नयन के लिए नीतियों के निर्धारण, दोनों के लिए बहुत जरूरी है। जो लोग जाति जनगणना के विरोध में झंडा बुलंद किए हैं, तर्क यह दे रहे कि इससे जातिवाद बढ़ेगा, यह मजाक के सिवा कुछ नहीं। गोया जातिवाद हो ही न? या आप जातिवाद के विरोधी हैं? अगर हैं तो मांग कीजिए कि जातिवाद खत्म करने का विधान बने और जिन धर्मग्रंथों द्वारा इसे पाला पोसा गया है, उनको हटाया जाए। फिर तो जाति गणना की किसी मांग की जरूरत न पड़ेगी।

सुभाष चन्द्र कुशवाहा

आर्थिक रूप से देश की सम्पदा से कौन वंचित है और शिक्षा, रोजगार, भूमिहीन की स्थिति का पता भी जाति गणना बता सकती है। यह क्षेत्रवार असमानता को चिन्हित कर सकती है या जब आप कहते हैं कि अमुक ओबीसी जातियां मजबूत हो चुकी हैं, उनकी भी पहचान तो हो जानी चाहिए कि यह मजबूती कितनी है? कहीं कोई गणना से आफत नहीं आने वाली। हाँ, अगर आपने सदियों से वंचितों के साथ खेल किया है, तब आपकी बेचैनी समझ में आती है। वैसे गणना से मानसिक रूप से दास बनाई हुई जातियों की यातना का पता तब भी न चलेगा। जाति गणना से केवल इस समाज के वर्गीकरण का, असमानता के कुछ आंकड़ों का पता चलेगा। तभी समभाव और समानता का समाज बनाया जा सकता है। तो क्या आप समानता के विरोधी हैं? तो खुल कर कहिए कि हम असमानता चाहते हैं, हम अपनी सेवा में दासों को रखना चाहते हैं, उनकी नियति वैसी बनी रहे , उनकी दशा का पता न लगे, इसलिए हम जाति गणना के विरोधी हैं।
मगर हम, बिना किसी जातिगत मनोदशाओं को पाले, ओबीसी जाति गणना की भी मांग करते हैं। मण्डल आयोग की सभी सिफारिशों को लागू करने की मांग करते हैं। हम समानता की ओर बढ़ने के हिमायती हैं। हम मानते हैं कि देश की तरक्की, सामाजिक और आर्थिक उन्नयन तभी सम्भव है।

 

 सुभाष चन्द्र कुशवाहा इतिहासकार और कथाकार हैं।

गाँव के लोग
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