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आग, तेरे कितने रूप? (डायरी 12 मई, 2022)

इसे मैं इत्तेफाक नहीं मानता। कल तीन घटनाएं लगभग एक ही समय घटित हुईं। समय में उन्नीस-बीस का फर्क संभव है। लेकिन ये तीनों घटनाएं बेहद खास हैं। पहली घटना जिसके बारे में कल जो जानकारी मिली, उसने रोंगटे खड़े कर दिये। पहले तो यह यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा कुछ भी संभव है […]

इसे मैं इत्तेफाक नहीं मानता। कल तीन घटनाएं लगभग एक ही समय घटित हुईं। समय में उन्नीस-बीस का फर्क संभव है। लेकिन ये तीनों घटनाएं बेहद खास हैं। पहली घटना जिसके बारे में कल जो जानकारी मिली, उसने रोंगटे खड़े कर दिये। पहले तो यह यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा कुछ भी संभव है कि आदमी एक लोकतांत्रिक देश में इस कदर मजबूर हो जाय कि वह आत्मदाह करने का प्रयास करे और वह भी अकेले नहीं, बल्कि अपने घर की दो महिला सदस्यों के साथ। खास बात यह कि उन्होंने यह प्रयास किया और वह भी जिलाधिकारी के कार्यालय के सामने।
जाने उन्होंने क्या सोचा होगा या फिर क्या कुछ कहा होगा, घर से निकलने से पहले। मुमकिन है कि कल का दिन उनके लिए भी सामान्य दिनों की तरह शुरू हुआ होगा या फिर उनके मन में बेचैनी रही होगी। परसों रात भी वे सो नहीं सके होंगे। आखिर इतना आसान नहीं हुआ होगा यह निर्णय लेना कि अगले दिन खुद को जला लेना है। महिला सदस्यों में से एक शायद उसकी पत्नी है और एक उसकी बेटी। मैं यह बात शायद शब्द के साथ इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं पूरा सच नहीं जानता। मैं तो यह भी नहीं जानता कि तीनों ने जिलाधिकारी के आवास के सामने आत्मदाह का फैसला क्यों किया।
मैं तो केवल इतना ही जान सका कि तीनों ने आत्मदाह करने का प्रयास किया। वे अपने घर से किरासन तेल साथ लेकर निकले और जिलाधिकारी कार्यालय के पास पहुंचे। सबसे पहले पुरुष, जिसकी उम्र करीब 60-65 रही होगी, ने किरासन तेल अपने उपर उड़ेला और उसके घर की एक महिला सदस्य ने माचिस जलाने का प्रयास किया। इस बीच दूसरी महिला ने भी अपने उपर किरासन तेल उड़ेल लिया। यह सब दिन के उजाले में हो रहा था, इसलिए उपस्थित लोगों में से कुछ ने हिम्मत की और महिला से माचिस छीन लिया। तीनों रो रहे थे। वे बार-बार कह रहे थे कि उनके पास अब और कोई विकल्प नहीं है। फिर पुलिस मौके पर पहुंची और उसने तीनों को हिरासत में ले लिया।
यह घटना बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की है। आत्मदाह का प्रयास करनेवाले बुजुर्ग का नाम इंदल पासवान है। बिहार में पासवान जाति दलित वर्ग में शामिल है। इंदल पासवान मीनापुर प्रखंड के खरहर गांव के निवासी हैं।
दूसरी घटना भी आग से जुड़ी है। कल पटना में बिहार सरकार के अति महत्वपूर्ण इमारतों में से एक विश्वेश्वरैया भवन में आग लग गई। इमारत के जिस हिस्से में आग लगी, उस हिस्से में पथ निर्माण विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग और लोक निर्माण विभाग का राज्य मुख्यालय है। आग इतनी जबरदस्त थी कि बुझाने में बिहार सरकार को करीब 9 घंटे का समय लगा। मजे की बात यह कि यह नजारा देखने स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहुंचे और कुछेक फोटो खिंचवाये तथा बयान भी दिया। बयान बहुत ही मासूमियत वाला था। उनका कहना था कि उन्होंने पहले कभी सरकारी इमारत में ऐसी भंयकर आग नहीं देखी।
मैं यह सोच रहा हूं कि बिहार के मुख्यमंत्री की मेमोरी पॉवर कम है या वे ऐसा होने का ढोंग करते हैं? सितंबर, 2016 में ऐसी ही आग लगी थी विकास भवन में। यह भी सचिवालय परिसर का ही हिस्सा है। तब मैं भी पटना में ही था। आग शिक्षा विभाग के दफ्तर में लगी/लगायी गयी थी। तब भी आग जबरदस्त ही थी। इतनी कि शिक्षा मंत्री का चैंबर तक जल गया था और सारे रिकार्ड्स भी। मुझे स्मरण हो रहा है कि करीब एक साल बाद पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार के द्वारा इस अगलगी को कारण बताया गया था कि अगलगी की वजह से रिकार्ड्स जल गये।
खैर, यह तो सितंबर, 2016 और मई, 2017 की बात है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उम्र भी अब 65 सााल से अधिक हो चुकी है तो यह मुमकिन है कि उन्हें याद ना हो। लेकिन 19 अक्टूबर, 2020 को पुराना सचिवालय स्थित ग्रामीण कार्य विभाग के दफ्तर में लगी आग को वे कैसे भूल सकते हैं। दिलचस्प यह कि तब भी मनरेगा में घोटाले का मामला जोरों पर था और आग को बुझाने में 48 घंटे लगे थे। हालांकि तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस आग को देखने नहीं गए थे। कुछ ना कुछ तो वजह रही ही होगी।
बहरहाल, आज मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहता। मैं तो एक और आग को दर्ज करना चाहता हूं। हेमंत सोरेन ने कल एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि झारखंड के साथ भारत सरकार वही व्यवहार कर रही है जो रूस यूक्रेन के साथ कर रहा है। हालांकि सोरेन का यह बयान इस वजह से है कि भाजपा उन्हें फंसाने के लिए पॉलिटिकल गेम खेल रही है। यह 2007 में जारी एक खनन पट्टा से संबंधित है।

झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

सबसे खास यह कि देश में न्यायपालिका और कार्यपालिका आमने-सामने है। मामला राजद्रोह के काले कानून को खत्म करने का है। कल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन, न्यायाधीश हिमा कोहली अैर न्यायाधीश सूर्यकांत की खंडपीठ ने एडिटर्स गिल्ड द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान भारत सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि जबतक भारत सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं कर लेती है तबतक 162 साल पुराने इस कानून के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया जाएगा। वहीं इस मामले में केंद्रीय कानून मंत्री किरेण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को लक्ष्मण रेखा (मेरे हिसाब से असंवैधानिक शब्द) पार नहीं करने की सलाह दी। वैसे साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कल सुप्रीम कोर्ट को खूब सुझाव दिये। मुमकिन है कि खंडपीठ को यह नागवार गुजरा ही होगा। हालांकि मैं यह मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने सकारात्मक प्रहार किया है।
यह भी इत्तेफाक नहीं कि कल मेरी प्रेमिका ने भी मुझे ‘प्रहार’ शब्द ही दिया था। कुछ सोचा तो लगा कि 857वीं कविता बन गयी।
प्रहार जरूरी हैं ताकि
रूढ़ियां खत्म हों
और हो एक नया सवेरा
और हम जी सकें
पूरी दुनिया के सामने 
बिना मुंह छिपाए
गोया हमने इश्क नहीं
कोई अपराध किया हो।
देखो, प्रहार करना जरूरी है ताकि
बन सके एक समतामूलक समाज
और सब जी सकें 
जैसे वह जीना चाहते हैं
बेखौफ और बेरोक-टोक।
हां, प्रहार करना जरूरी है ताकि
सब प्यार कर सकें
और बना सकें दुनिया को
एक खूबसूरत दुनिया।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।

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