स्विट्जरलैण्ड का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने स्विस बैंक और खूबसूरत आल्पस की पहाड़ियों का नजारा होता है। लिहाजा फियान की ओर से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उपसमिति की बैठक में आने का निमंत्रण मिला तो प्रसन्नता का होना स्वाभाविक था।
दिल्ली से लुफ्तहांसा की उड़ान से फ्रेंकफर्ट होते हुए मैं सुबह लगभग 10 बजे जेनेवा पहुंच गया था। हवाई अड्डे पर ही मैक्सिको के मेरे मित्र कार्लोस से मुलाकात हो गई। हमने पासपोर्ट कन्ट्रोल पार किया और सामान लाने वाले बेल्ट पर अपने सामान का इंतजार करने लगे। यहां पर पासपोर्ट कन्ट्रोल बहुत आसान है और केवल वीजा देखकर उस पर स्टैम्प लगा दी जाती है। फार्म भर कर दस घंटे लाइन में खड़े होने की परम्परा यहां नहीं है।
मेरा सामान जल्दी आ गया परन्तु कार्लोस के सामान में देरी हो गई। फिर पता चला कि सामान शायद छूट गया है। फिर हमने खोया-पाया के विशेष काउण्टर पर रिपोर्ट लिखाई और सामने के बैंक से कुछ विनिमय किया। स्विस मुद्रा फ्रांक है और एक डॅालर के मुकाबले 1.68 फ्रांक मिल जाते है। बाहर निकले तो तापमान 3 डिग्री सेल्सियस था और इस अप्रैल के आखिर में शरीर बिल्कुल जम सा गया था। पता चला कि जेनेवा और स्विटजरलैण्ड बहुत खर्चीले शहर हैं और टैक्सी से जाना बहुत खर्चीला होगा। हम बस नं. 18 का इंतजार करने लगे। यहां पर बहुत समस्या है क्योंकि हर काम मशीन कर रही है। अतः बस स्टॉप पर बस का नम्बर और उसके रूट का नक्शा होता है और उसके नक्शे को देखकर ही आपको अंदाज लगाना है कि टिकट कितने का खरीदना है और टिकट के लिए आपको मशीन में कितने सिक्के डालने हैं।
खैर 2.20 फ्रांक से मैने टिकट लिया और बस में बैठ गये। आल्पस की पर्वत श्रृंखलायें बर्फ से ढँकी दिखाई दे रही थी, निष्ठुर और कंपा देने वाली ठंढ भविष्य का संकेत कर रही थी। ग्रांड सेकोनेक्स में हम लोग उतरे और किसी सज्जन से जॉन नॉक्स सेन्टर के बारे में पता किया और फिर पैदल प्रस्थान किया। जॉन नॉक्स सेन्टर बिल्कुल प्रकृति के खूबसूरत वातावरण से घिरा हुआ एक केन्द्र है। हम लोग यहाँ पहले पहूँचने वालों में से थे, फिर हमने 12.30 बजे खाना खाया और आराम किया। शाम को मैने 10 फ्रांक का टेलीफोन कार्ड खरीदकर घर फोन किया और देर रात पाकिस्तान में अपनी प्यारी बहिन आमना से बात की। मेरे लिए यह खुशी का क्षण था। लेकिन जेनेवा ने हमारी मुलाकात करवा दी। मुझे यकीन है कि उसके लिए भी यह अनुभव सुखद था और इस उपमहाद्वीप के सुख शांति के लिए कामयाबी की राह तलाशेगा।
शुक्रवार को हमारी मुख्य बैठक शुरू हुई स्वीडन से लीजा जर्मनी से मैरी रेनण्ड, बेल्जियम से मैरी टेलर और मैक्सिको से लुज हमारी सदस्यों में थे। दिन में मैने सूचना और हस्तक्षेप के मामले में फियान की स्थाई समिति के सदस्य कृष्णा घिमरे से बात की और बड़ी गर्मजोशी से कृष्णा ने मुझे शनिवार दोपहर को मिलने की बात कही। सुबह अपना काम निपटाने के बाद मैने आल्पस के बर्फ से ढंके दृश्य अपने कैमरे में कैद किये। ठीक 12.45 मिनट पर कृष्णा जॉन नॉक्स सेन्टर पर मुझे लेने पहुँच गये। मैने अपना कैमरा लिया और उनकी कार तक चल पड़ा। कृष्णा ने बड़े रौनक से गले मिलकर मेरा अभिवादन किया। कृष्णा की पुत्री लूसी और बेटे एरी ने मेरा अभिवादन किया और हम दोपहर के भोजन के लिए स्थानीय सिटी सेन्टर के शॉपिंग माल में पहुँचे। मछली और चावल खाने के बाद हम संयुक्त राष्ट्र कार्यालय को देखते हुए बॉटनीकल गार्डन में पहुँचे। यह कृष्णा के संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के बगल में था। निष्ठुर ठंढ ने इस खूबसूरत बगीचे में हमारा मजा किरकिरा कर दिया था। बीच-बीच में छिट-पुट बारिश और भी बोर कर देती। हम लोगों ने कई विशालकाय वृक्षों को देखा। यहाँ पर विभिन्न किस्मों के रंग-बिरंगे फूल हमारा मन मोह रहे थे। विशेषकर गुलाब और ट्यूलिप के फूलों की विभिन्न किस्मों पर धूप की चमकीली किरणे चांदी के समान नजर आती है। कृष्णा के बच्चों ने पूरे मैदान में स्कीइंग, साइकिलिंग की और झूलों में भी खूब मस्ती की। और फिर हम अन्डर ग्राउण्ड रास्ते से जेनेवा लेक को देखने पहुँचे। पार्श्व में विश्व व्यापार संघ के कार्यालय का पिछवाड़ा था तो आगे खूबसूरत झील ओर उसमें तैरते पक्षी, बत्तख, और छोटे-मोटे जहाज। झील को पार कर आल्प्स के दूसरी ओर आप फ्रांस पहुँच जाते हैं। हमने सर्दी में झील का आनन्द लिया और वापस पार्क की ओर आ गये। इस बॉटनीनिकल गार्डन में कई ग्रीन हाउस बनाये गये हैं जिनमें दुनिया के विभिन्न देशों के पेड़-पौधों की प्रजातियों को पैदा करने का प्रयास किया गया है। इसके अन्दर एक निश्चित अवधि में एक निश्चित प्रकार का तापमान पैदा किया जाता है। आम, गन्ना, पपीता, अनानास, अदरक जैसी प्रजातियां जो स्विटजरलैण्ड में नहीं होती हैं इन ग्रीन हाऊसों में पैदा की जाती हैं। शाम को ठीक पाँच बजे हम लोग वापस जॉन नॉक्स सेन्टर पहुँचे।
शाम 6.30 बजे फियान स्विटजरलैण्ड ने बारबेक्यू का इंतजाम किया था। हम लोग सब तैयार हैं। जेनेवा से करीब बीस किलोमीटर दूर एक गांव में पीटर ने अपनी पत्नी के साथ यह सुन्दर व्यवस्था की थी। फियान के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि यहाँ पर मौजूद थे और बड़े आनन्द के साथ उन्होने भेड़ का मांस खाया। पीटर का घर खूबसूरत गांव के बीच में था जिसके पीछे एक बड़ा लॉन था। पीटर के दो बच्चे हैं और उसकी फिलीपीनी पत्नी एक अन्तर्राष्ट्रीय शरणार्थी संगठन के लिए काम करती हैं। सभी लोगो ने बड़ी आत्मीयता से भोजन किया। यहाँ पर जेनेवा के बहुत से मानवाधिकार प्रतिनिधि थे और बहुतों को भारत के विषय में बेहद जानकारी थी। रात के 10.30 बजे हम अपने विश्राम स्थल जॉन नॉक्स में वापस आ गये।
रविवार की सुबह पहली बार यहाँ पर धूप देखी। तापमान मे थोड़ा गर्माहट थी हालांकि बीच-बीच में कई अवसर ऐसे आये जब बादलों की भीड़ सूरज को ढँक देती थी।
सुबह बहुत से लोगों से बात के बाद नाश्ते पर गंभीर चर्चा हुई। आपकी जानकारी हेतु बताएं कि नाश्ते में यहाँ पर दूध-कार्नफ्लेक्स के साथ ब्रेड, बटर, जैम, जूस और चाय ली जाती है।
[bs-quote quote=”खाने में अमूमन भारी भरकम ही होता है हालांकि यहां पर पानी पीने की आदत बहुत कम देखी गई है और लोग पेप्सी, कोक बियर या वाइन ही खाने के साथ लेते हैं। दोपहर में डलरिश (जर्मनी), जीसस (होंडयूरास) और आन (बेल्जियम) के साथ धूप में बैठकर बातें की। भोजन के बाद कुछ देर आराम किया और लगभग 4 बजे मारग्रेट (नार्वे) आन, मरी (बेल्जियम) और ल्यूज (मैक्सिको) ने जेनेवा शहर घूमने का कार्यक्रम बनाया। लगभग 5 लाख की आबादी वाले शहर जेनेवा को पैदल घूमने का मजा है क्योंकि सडकों पर न तो ट्रैफिक है और न ही भीड़।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जेनेवा शहर की खूबसूरती का आनन्द लेते हुए हम लोग जेनेवा झील के आस-पास पहुँचे। प्रेमी युगल आपसी बाहपाश में बंधे उस प्रेमक्रीड़ा में मग्न बिना किसी चिंता के अपने कार्यों को अन्जाम दिये जा रहे थे। आज झील का नीला पानी आंखों में ताजगी दे रहा था। सामने स्विटजरलैण्ड का सबसे बड़ा कैसीनों दिखाई दे रहा था। झील के तट पर सैलानियों की भीड़ और छोटे-मोटे होटल रेस्टोरेन्ट और दुकानें बच्चों को अनायास आकर्षित कर रही थीं। भीड़ में बहुत से भारतीय चेहरे भी नजर आये। शायद संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय होने के कारण यहाँ पर दुनिया के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि हर वक्त मौजूद रहते हैं।
मान्ट ब्लांक से घूमते-घामते हम लोग एक बस स्टेशन पर पहुँचे और वहाँ से 3 नम्बर बस से एक स्थानीय होटल ’पेटी सेकोनेम्स‘ स्टेशन पर पहुंचे जहाँ हमारे रात के खाने का इंतजाम था। हम लोगों ने थोड़ा पहले पहुँचकर ’सफेद वाइन‘ लेना शुरू किया और साथ में ब्रेड भी लिया। खाने पर जेनेवा का प्रसिद्ध डिश फॉन्डयू लिया। फॉन्डयू बीज को गरम करके बनता है जिसे एक बर्तन में दिया जाता है और नीचे एक छोटी अंगीठी की व्यवस्था होती है। बर्तन में ब्रेड को लगाकर फाॅन्डयू के बर्तन में घुमाया जाता है फिर उसे खाया जाता है। यह कुछ-कुछ भारतीय खाने की तरह है हालांकि मुझे इसका स्वाद अच्छा नहीं लगा। फिर वाइन लेने के बाद हमने कॉफी ली और लगभग 10.30 बजे वापस अपने गन्तव्य को प्रस्थान किया।
मारग्रेट, नार्वे में ओस्लो विश्वविद्यालय में काम करती है और भारत की वर्ण व्यवस्था पर बहुत जानकारी रखती है। भारत से उसे बहुत लगाव भी है। उसके पति टॉम वर्ण-व्यवस्था पर पी.एच.डी. कर रहे हैं। मारग्रेट, बाम्बे के एक अनाथालय से बच्चा गोद ले रही है और बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रही है जब उन्हे यह जानकारी मिले कि बच्चा लेने के लिए आ जाओ। उसको ऐसा महसूस होता है कि जैसे वह खुद गर्भवती हो। कितनी महान फीलिंग है! क्या हम लोगों में उन अनाथों को गोद लेने का प्रचलन बढ़ना नहीं चाहिए? हाँ, मारग्रेट बौद्ध धर्म के प्रति बहुत आकर्षित है।
स्विटजरलैण्ड में संचार सुविधाएं बहुत खर्चीली हैं। भारत, पाकिस्तान और जेनेवा में बात करने पर मेरे 10 फ्रांक यानी 250 रुपये खर्च हुए, और इन्टरनेट पर 1/2 घंटा काम करने पर 8 फ्रांक जो कि वाकई में खर्चीला है कल प्रेरणा और आमना को मेल भेजने के बाद मैने सोच लिया कि बाकी सब हाइडलवर्ग से करूंगा।
सोमवार 24 अप्रैल की सुबह मैं 6 बजे उठकर अपना लेखन कार्य निपटा रहा था। मेरा मित्र कार्लोस अभी सो रहा था। वह रात में भी बहुत देर से आया, क्योंकि यूरोप में लोगों को देर से सोने की आदत है। क्योंकि उनका शराब का कोटा पूरा नहीं होता। अभी नहाने धोने के बाद नाश्ता और फिर आज यू.एन. सब कमीशन की बैठक मे हिस्सेदारी होनी थी। और सुबह एयर पोर्ट जाना था। फ्रेंकफर्ट वापस जाने के लिए।
23 अप्रैल को सुबह से ही घनघोर अंधेरा था। बारिश और बर्फ की बूंदा-बांदी हो रही थी और हम सभी यू.एन. सब-कमीशन की बैठक में भाग लेने 10 बजे होटल विल्सन चल पड़े। कमीशन की बैठक में भाग लेने का पहला अवसर था। अच्छा लगा। बहुत से लोगों ने विचार व्यक्त किए और दोपहर से पूर्व हम लोग स्विटजरलैंड विश्वविद्यालय में एक प्रेस वार्ता के लिए आ गये। प्रेस मीट वेनुजुएला, होंड्यूरास और ब्राजील की स्थिति पर बात करने के लिए थी जिसके लिए फियान ने वैकल्पिक रिपोर्ट तैयार की थी।
पेरस मीट के बाद हम लोग विश्वविद्यालय के कैन्टीन में खाना खाने पहुँचे। यह कैन्टीन स्विटजरलैण्ड में रह रहे शरणार्थियों द्वारा चलाया जाता है और आज का भोजन अफगानी था। हमने 12 फ्रांक में अफगानी बिरयानी आर्डर की और फिर एक अफगानी महिला बेहरुन्निसा बक्सी से बात करने का मन बनाया। बेहरून्निसा काबुल की रहने वाली थीं और अफगानिस्तान के तालिबान सरकार के बाद से पेशावर में रहने लगी और फिर अपने पति के साथ 5 वर्ष पूर्व वह स्विटजरलैण्ड आईं। 5 बच्चों की इस माँ का पति चार वर्ष पूर्व काबुल गया और लौटा नहीं है…… वह उसके इंतजार में थीं हालांकि यहाँ पर शरणार्थियों को काफी सहायता मिल जाती है। फिर भी वह अपने मुल्क जाना चाहती हैं और अपने बच्चों को पश्चिम की ’अप संस्कृति‘ से दूर रखना चाहती हैं। आज का खाना बेहरून्निसा ने तैयार किया और यह एक बेहतरीन अफगानी भोजन था जो इतने दिनों के बाद खाने को मिला। हमने उनका धन्यवाद किया और मानवाधिकार सम्मेलन में भाग लेने होटल विल्सन आ पहुँचे।
दूसरा सत्र 2.45 पर शुुरू होना था जिसने फियान द्वारा ब्राजील के किसानों के सरकारी दमन पर एक मर्मस्पर्शी फिल्म दिखाई गई और फिर बेनेजुएला होंड्यूरास और ब्राजील के समानान्तर रिपोर्टे प्रस्तुत की गई। सायं 6 बजे फियान ने एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया जिसमे उपसमिति की अध्यक्षा और अन्य लोगों ने भी हिस्सा लिया। यूनेस्को के पेरिस स्थित प्रतिनिधि किशोर सिंह से बात कर बहुत अच्छा लगा फिर कई अन्य प्रतिनिधियों से बात कर लीजा, अन, कार्लोस और मैं जेनेवा की सैर पर निकले…. झील के किनारे मनोरम दृश्यों को देखते हम लोग पुराने शहर पर चर्च के पास एक रेस्टोरेंट मे पहुँचे और शाम के भोजन और बातें करने के बाद फिर जान लाॅक्स की ओर पैदल प्रस्थान किया। झील के ऊपर बने पुल पर खड़े होकर 10.00 बजे रात में शहर का नजारा ही कुछ और था चमकती बिजली और कारों के सायरन से शान्त झील के पानी में उठती लहरें, कूल मिलाकर एक बेहतरीन नजारा था जिसे भुलाया नहीं जा सकता। रेस्टोरेंट में हमारी बातचीत पर चर्चा फिर कभी विस्तार से।
लीजा इस वक्त प्यार में थीं, उनका पुरूष मित्र एक नार्वेजियन नागरिक था और विश्वविद्यालय में शोध छात्र था, दोनों एक साथ रहते हैं जब भी समय मिलता तो दोनों साथ में छुट्टियां बिताते हैं। मैंने पूछा क्या तुम्हारी शादी की योजना है? लीजा तो चाहती है कि वे जल्दी ही विवाह कर लें परन्तु यूरोप में विवाह के नाम पर कोई विशेष उत्साह नहीं होता और इसका मुख्य कारण है इन लोगों की जीवनशैली। अब इस उम्र में हर एक लड़के की गर्लफ्रेन्ड और लड़की का ब्वाय फ्रेंड होता है और जब वे बिना विवाह के एक साथ रहना शुरू कर देते हैं तो वह विवाह ही है। हम लोगों को यह बड़ा अजीब-सा लगता है और हमारे भारतीय मित्र इसको ’अपसंस्कृति‘ का हिस्सा मानते हैं परन्तु जब महिला-पुरुष बराबरी की तर्ज पर बात करते हैं और बिना किसी समस्या के अलग होना चाहते हैं इसीलिए वे विवाह की फारमेल्टी में नहीं आना चाहते। क्या विवाह महिला उत्पीड़न का नाम नही है? क्या विवाह सैक्स का लाइसेंस नहीं है… यदि हाँ तो फिर साथ रहने मे क्या बुराई? आखिर विवाह जैसी संस्था ने तो भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, दहेज, इज्जत आदि बेसिर-पैर के सवाल खड़े किये। लेकिन हकीकत यह है कि यदि विवाह सम्भव न हो तो भारत के पुरुषों का जीवन दूभर हो जायेगा और स्त्रियों को लोग मारने लगेंगे। मैंने बेल्जियम की अपनी मित्र आन से पूछा कि उसका क्या इरादा है? आन एक मस्तमौला लड़की है। उसे पढ़ने और घूमने का शौक है। कहती है मैं शादी, बच्चों आदि से बंधना नहीं चाहती। यह हमारी स्वतंत्रता को रोकता है। मैंने अपने मां-बाप को देखा है।
मैं इस बहस को अच्छा मानता हूँ। मैं यह मानता हूँ कि औरत के पास यहां सोचने की क्षमता है। वह पूरा समय अपनी गृहस्थी या बच्चों के लिए नहीं देती और सोचती भी है।
[bs-quote quote=”वह अपनी पहचान के लिए समर्पित है लेकिन इस लडाई से भविष्य धर्मसंकट में है जहां हम लोग एक अरब हो गये।’ (हमारी महान संस्कृति और परम्पराओं के बल पर) ‘वहीं यूरोप में 2015 तक आबादी के घटने के खतरा बढ़ गया है। यही यूरोप जो व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के मामले में इतना अराजक है, अपने राजपरिवारों से बिल्कुल भारतीय परम्पराएं चाहता है। नार्वे के भविष्य के राजा ने अपनी महिला मित्र से विवाह करने का फैसला कर लिया है जिसकी पर पुरुष से एक सन्तान है… अब पूरे नार्वे में इस बात पर बहुत गर्मा-गरम बहस है कि क्या हमारे राजा को इतनी साधारण महिला से विवाह करना चाहिए लेकिन दूसरी ओर यदि आप राजकुमारी डायना को मिले जन समर्थन की बात देखें तो यह बात साफ है कि लोग इन संस्थाओं से भी अपनी तरह उम्मीद करते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
राजकुमारी डायना ब्रिटेन की राजशाही परिवार की रूढ़िवादियों के विपरीत एक साधारण महिला की तरह रहना पसन्द करती थी जिसके जीवन में प्यार हो, रोमान्स हो और जिसका पति उसे खूब प्रेम करे वहीं प्रिंस चार्ल्स अपने राजशाही तरीकों से रहने में व्यस्त हों जिनके पास महिलाओं की कमी नहीं और अपनी पत्नी के लिए समय नहीं…. फलतः डायना ने प्रतिरोध किया और उसकी परिणति उसका असमय चला जाना हुआ।
लेकिन अपने प्रेमी के साथ छुट्टियाँ मनाने गई डायना को मृत्यु के बाद मिले अभूतपूर्व समर्थन और सहानुभूति ने राजपरिवार की जड़ों को हिलाकर रख दिया। परन्तु क्या यह भारत में सम्भव था? मैं समझता हूँ कि ऐसी स्थिति में हमारा रूढ़िवादी समाज कभी भी डायना का समर्थन नहीं करता। वह उसका दूसरे पुरूष के साथ जाना परम्परा को चुनौती मानता… मतलब यह कि ’संस्कृति‘ को ढोते रहना ही हमारी नियति है चाहे वह हमारे व्यक्तिगत सम्बन्धों को समाप्त ही क्यों न कर दें। यह चर्चा बहुत अच्छी थी। रात को घर पहुँचकर हम सुबह की तैयारी में व्यस्त हो गए।
अगले दिन की सुबह मौसम बिल्कुल ठण्डा था तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक अैर 8.30 बजे अपने नाश्ते के बाद मैं लीजा और विप्लव एयरपोर्ट की ओर चल पड़े…लीजा को स्टाॅकहोम जाना है और विप्लव ज्यूरिख होते हुए फ्रैंकफर्ट आयेंगे जबकि मुझे सीधे फ्रैंकफर्ट प्रस्थान करना था।
ठीक 10.40 मिनट पर हमारी फ्लाइट जेनेवा एयर पोर्ट से छूटी…. हल्की बूंदा-बांदी थी परन्तु जैसे ही जहाज ऊपर आता गया हमारी चिंताए बढती गईं। मौसम बहुत खराब था और बादलों की घनघोर गड़गड़ाहट और बिजली की चमक…. हमने पाइलट को याद किया… भइया आप खयाल रखें। फिर लगभग 15 मिनट बाद धूप की सुनहली किरणें दिखाई पड़ी…. नीचे आल्पस श्रृंखलाओं से जुडे़ छोटे-छोटे स्विस गांव दिखाई दे रहे थे और उनके ऊपर बर्फ की खूबसूरत सफेद चादर, नजारा वाकई देखने वाला था फिर जैसे-जैसे विमान जर्मनी की ओर आया हरे-भरे छोटे खेत और धूप का शानदार नजारा दिखने लगा। हम लोग ठीक 12.00 बजे फ्रेंकफर्ट हवाई अड्डे पर पहुँचे अपना सामान लेने के बाद मैं बाहर आया तो हाइडलबर्ग की विशेष एयरपोर्ट बस छूट चुकी थी लिहाजा मैंने ट्रेन से जाने का फैसला किया। 25 फ्रांक का टिकट लेकर मैं ट्रेन में बैठा और हाइडलबर्ग के लिए चल पड़ा और ठीक 2.45 पर हाइडलबर्ग पहुँच गया।
विद्याभूषण रावत प्रखर सामाजिक चिंतक और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने भारत के सबसे वंचित और बहिष्कृत सामाजिक समूहों के मानवीय और संवैधानिक अधिकारों पर अनवरत काम किया है।