कल का दिन बहुत खास रहा। मन बहुत रोमांचित था। इसकी वजह भी बहुत खास थी। दरअसल कल दो रूसी फिल्म कलाकारों और एक अंतरिक्ष यात्री 12 दिनों तक अंतरिक्ष प्रवास के बाद धरती पर लौट आये। मैं फिल्मों का शौकीन रहा हूं। लेकिन मेरी पसंद की फिल्मों का चयन करना मेरे लिए ही बेहद मुश्किल होता है। फिल्मों को मैं साहित्य ही मानता हूं। मेरा मानना है कि यदि डेढ़ घंटा या इससे अधिक समय व्यतीत करने जा रहे हैं तो उस दौरान जेहन में कुछ नई जानकारियां अवश्य हों। यदि नई जानकारियां ना भी हों तो कम से कम नये अहसास हों। तभी डे़ढ़ घंटा या इससे अधिक का समय लगाया जा सकता है। हालांकि यह भी सच है कि हर बार मेरी पसंद की फिल्में मुझे अप्रभावित करती हैं और मुझे निराशा हाथ लगती है।
लेकिन तकरीबन पंद्रह दिन पहले यह खबर आयी थी कि चैलेंज नामक रूसी फिल्म के कुछ दृश्य अंतरिक्ष में फिल्माये जाएंगे। इसके लिए रूसी कलाकार ओलेगा नोवित्सकी, अभिनेत्री यूलिया पेरसिल्ड और क्लिम शिपेंको अंतरिक्ष जाएंगे। इनमें ओलेगा नोवित्सकी बेहद खास हैं। इन्होंने पहले भी अंतरिक्ष में छह माह से अधिक का समय व्यतीत किया है। फिल्म की कहानी जो कि गूगल के सहयोग से जानने को मिली है, उसके मुताबिक नोवित्सकी अंतरिक्ष यात्री हैं और अंतरिक्ष प्रवास के दौरान ही उन्हें एक बीमारी हो जाती है, जिसका इलाज करने के लिए उनकी सर्जरी आवश्यक है। हालात कुछ ऐसे हैं कि जबतक वे पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं होती हैं, तबतक उन्हें अंतरिक्ष से वापस धरती पर नहीं लाया जा सकता है। फिल्म में यूलिया पेरसिल्ड सर्जन की भूमिका निभा रही हैं और वह नोवित्सकी की सर्जरी करती हैं। अंतरिक्ष में सर्जरी भी की जा सकती है, यह सोचकर ही मन रोमांचित हो उठता है।
[bs-quote quote=”बहुत पहले पूर्णिया के एक डाक्टर थे। हालांकि वे अमरीका के कैलिफोर्निया में जा बसे थे। उनका नाम था डा. मोहन राय। करीब दो दशक पहले डा. राय का नाम चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में छा गया था। वजह यह रही कि उन्होंने पहली बार एक प्रतिष्ठित ईसाई पुजारी के हृदय की ब्लडलेस ओपेन हर्ट सर्जरी की थी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
खैर, तीनों कलाकार कल कजाकिस्तान में 4 बजकर 55 मिनट पर उतरे। उन्हें लेकर सोयूज अंतरिक्ष यान को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से वापस धरती पर आने में करीब साढ़े तीन घंटे लगे।
मैं इस फिल्म को लेकर बेहद उत्साहित हूं। वजह यह कि यह एक नये परिदृश्य से हमारा परिचय कराता है। बहुत पहले पूर्णिया के एक डाक्टर थे। हालांकि वे अमरीका के कैलिफोर्निया में जा बसे थे। उनका नाम था डा. मोहन राय। करीब दो दशक पहले डा. राय का नाम चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में छा गया था। वजह यह रही कि उन्होंने पहली बार एक प्रतिष्ठित ईसाई पुजारी के हृदय की ब्लडलेस ओपेन हर्ट सर्जरी की थी। सामान्य तौर पर जब ओपेन हर्ट सर्जरी होती है तो मरीज को खून चढ़ाया जाता है ताकि सर्जरी के दौरान होने वाले रक्त की कमी की भरपाई की जा सके और हृदय अपना काम निर्बाध रूप से करता रहे। परंतु डा. राय के समक्ष चुनौती यह थी कि उस ईसाई पुजारी ने अपने धार्मिक रूढ़िवादिता के कारण ऐलान कर रखा था कि वह किसी भी दूसरे व्यक्ति का खून अपने शरीर में स्वीकार नहीं करेगा। ऐसे में यदि उसकी सर्जरी की जाती तो उसकी मौत हो सकती थी। वह इस सत्य से वाकिफ था लेकिन धर्मांधता के कारण मुश्किलें आ रही थीं। तब अमरीका के किसी भी ईसाई डाक्टर ने उस ईसाई पुजारी की सर्जरी से इंकार कर दिया था। वजह शायद यह भी रही कि कोई भी पुजारी की मौत का कारण नहीं बनना चाहता था।
परंतु, डा. मोहन राय ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उन्होंने उस पुजारी की जान बचा ली। उनकी कामयाबी की यह खबर मैंने पटना से प्रकाशित दैनिक आज के लिए वर्ष 2009 में लिखी थी। तब डॉ. राय का निधन हो चुका था। लेकिन उनका नाम अमरीका के चिकित्सा जगत में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका था।
दरअसल मैं यह सोच रहा हूं कि अंतरिक्ष में किसी की सर्जरी यदि होगी तो किस तरह की परिस्थितियां होंगी। सबसे मुश्किल तो भारहीनता होगी। फिर ऐसे में रक्त चढ़ाना तो समस्या है ही, यदि किसी के शरीर में चीरा लगाया जाएगा तो शरीर से रक्त को निकलने से रोकना भी मुश्किल काम होगा। उपर से तापमान का चक्कर भी होगा। फिलहाल तो मुझे इस फिल्म के आने का इंतजार है।
[bs-quote quote=”एक ओर रूस है जहां अंतरिक्ष में जाकर किसी की जान बचाने के संबंध में कवायदें की जा रही हैं तो दूसरी ओर हमारे देश में तथाकथित ईश्वर तक सूरज की किरणें पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है। जबकि ईश्वर की जो अवधारणा है, उसके हिसाब से वह कायनात के जर्रे-जर्रे में है। वैसे राम की पूरी कहानी ही हिंसक रही है। उसे कभी किसी की जान बचाने के लिए याद नहीं किया जाता।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
एक बात और। कल ही बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे कामेश्वर चौपाल से जानकारी मिली कि अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के गर्भगृह के निर्माण के लिए आईआईटी की तीन टीमें बनाई गई हैं। इनमें खगोलशास्त्री भी शामिल रहेंगे। मैंने वजह के बारे में पूछा तो कहने लगे कि वे ऐसा गर्भगृह चाहते हैं ताकि रामलला तक सूरज की किरणें पहुंच सकें।
कामेश्वर चौपाल बिहार के दलित हैं और इन दिनों उस समिति का हिस्सा हैं, जो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करवा रही है। इनके ही हाथों 1992 में आरएसएस ने मंदिर के निर्माण के लिए पहली ईंट लगवायी थी। यह आरएसएस की चाल थी।
खैर, कामेश्वर चौपाल एकमात्र उदाहरण नहीं हैं, जो आरएसएस के ट्रैप में फंसे हुए हैं। जब मायावती और अखिलेश जैसे लोग आरएसएस के ट्रैप में हों तो कामेश्वर चौपाल के बारे में क्या बात करना।
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मैं तो यह सोच रहा हूं कि एक ओर रूस है जहां अंतरिक्ष में जाकर किसी की जान बचाने के संबंध में कवायदें की जा रही हैं तो दूसरी ओर हमारे देश में तथाकथित ईश्वर तक सूरज की किरणें पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है। जबकि ईश्वर की जो अवधारणा है, उसके हिसाब से वह कायनात के जर्रे-जर्रे में है। वैसे राम की पूरी कहानी ही हिंसक रही है। उसे कभी किसी की जान बचाने के लिए याद नहीं किया जाता।
बहरहाल, कल एक कविता जेहन में आयी–
मैं हड़प्पा के सबसे ऊंचे टीले पर खड़ा हूं
और मैं देख रहा
भूखे-नंगे-वहशियों को आते हुए।
हां, मैं इतिहास हूं
मुझसे तुम्हारी कालाबाजारी नहीं चलेगी
क्योंकि अब तुम्हारे वेद और स्मृतियों का महत्व नहीं
जांचे जाएंगे हर तथ्य
जरूरत पड़ी तो होगी कार्बन डेटिंग
और फिर भी आवश्यक हुआ तो
तुम्हारे रक्त की जांच भी होगी।
नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।