Thursday, March 28, 2024
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एक यात्रा जो भुलाए नहीं भूलती

वैसे तो यात्रायें की ही इसलिए जाती हैं कि न सिर्फ व्यक्ति उसके बाद तरोताजा हो जाए और यात्रा में देखे गए स्थलों को किसी भी हाल में भूल नहीं पाए बल्कि उनकी स्मृतियों को अपने मन के किसी कोने में सहेज कर रख दे। इस लिहाज से हर यात्रा अविस्मरणीय ही होनी चाहिए लेकिन […]

वैसे तो यात्रायें की ही इसलिए जाती हैं कि न सिर्फ व्यक्ति उसके बाद तरोताजा हो जाए और यात्रा में देखे गए स्थलों को किसी भी हाल में भूल नहीं पाए बल्कि उनकी स्मृतियों को अपने मन के किसी कोने में सहेज कर रख दे। इस लिहाज से हर यात्रा अविस्मरणीय ही होनी चाहिए लेकिन कुछ यात्रायें सचमुच ऐसी होती हैं जो भुलाये नहीं भूलतीं। ऐसी ही एक यात्रा हम लोगों ने जनवरी 2017 में, जब हम लोग जोंहानसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में थे, तब की थी जो आज भी मानस पटल पर छपी हुई है। दक्षिण अफ्रीका के लगभग साढ़े तीन साल के प्रवास में हम लोगों ने उस देश की खूबसूरती को खूब देखा और जहाँ भी गए, वह जगह हमें दुबारा बुलाती रही। और इसी का नतीजा था कि एक ही जगह को हम लोगों ने कई-कई बार देखा। मसलन जोहानसबर्ग से सबसे नजदीक और दर्शनीय शहर डरबन था जिसे हमने कई बार देखा। सबसे खूबसूरत शहर केपटाउन था जिसे हमने कई बार देखा और ऐसे ही कई अन्य जगहें थीं जिन्हें हमने कई बार देखा।

लेकिन अगर आपको वन्य प्राणियों में दिलचस्पी हो तो आप वहां स्थित क्रूगर नेशनल पार्क कभी भी मिस नहीं कर सकते। (वैसे भी अफ्रीका अपने बिग 5 जानवरों के लिए जाना जाता है, भैंसा, हाथी, शेर, चीता और गैंडा)। एक तो यह पार्क लगभग 19000 वर्ग किमी में स्थित है जिसे पूरी तरह से देखने में आपको कई हफ्ते भी लग सकते हैं। इसी वजह से इसमें प्रवेश और निकास के लिए लगभग 10 गेट बने हुए हैं जिनमें आपस में सैकड़ों किमी का फासला है। और अमूमन आप किसी एक गेट से प्रवेश करते हैं और अगर आपको अंदर नहीं रुकना है तो शाम को 6 बजे के पहले आपको किसी अन्य गेट से बाहर निकलना पड़ता है। पार्क के अंदर गति सीमा भी निर्धारित है जो अधिकतर जगह 40 किमी प्रति घंटा है और आपको पूरा दिन लगातार चलना पड़ता है तब जाकर आप किसी दूसरे गेट से बाहर निकल सकते हैं।

[bs-quote quote=”विशालकाय पेड़ को देखकर रोमांच हो आया और उसके इर्द गिर्द खूब फोटोग्राफी की गयी। एक अश्वेत महिला वहां देखभाल और टिकट देने के लिए थीं और उन्होंने हमारा स्वागत किया। वहां पर अमूमन अश्वेत महिलाओं को लोग “ममा” पुकारते हैं जो उनके लिए आदरसूचक शब्द है और हम भी उनको इसी सम्बोधन से पुकारते रहे। उस विशालकाय पेड़ के आस पास तमाम आम के पेड़ भी थे जिनपर लाल लाल आम लगे हुए थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

खैर हमने जब दुबारा जनवरी 2017 में क्रूगर नेशनल पार्क जाने का निश्चय किया तो सबसे पहले प्रवेश द्वार के बारे में सोचा गया। इसके पहले जब हम गए थे तब हम लोगों ने फलाबोरवा गेट से प्रवेश किया था, इसलिए इस बार किसी अन्य गेट से प्रवेश करने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के पीछे एक कारण था और वह कि पिछली बार शेर को नहीं देख पाने का था। इसलिए किसी अन्य गेट से अंदर जाकर घूमने में हमें उम्मीद थी कि वनराज इस बार अवश्य देखने को मिल जाएंगे। इस बार हम लोगों ने पुण्डा मारिया गेट से क्रूगर में प्रवेश करने का निर्णय लिया और उसी आधार पर मैंने उसके आस पास के एक होटल को ऑनलाइन बुक भी कर लिया। चूँकि पिछली बार वाला होटल बहुत अच्छा था जिसे हमने ऑनलाइन ही बुक किया था इसलिए इस बार भी उसी उम्मीद में हमने बुक कर लिया। होटल से कमरा बुक होने का सन्देश भी फोन पर आ गया और हम लोग वहां जाने की तैयारी में लग गए। चूँकि जोहानसबर्ग से पुण्डा मारिया गेट की दूरी लगभग 8 घंटे की थी इसलिए सुबह जल्दी निकलकर वहां पहुँचने की योजना बनी। रास्ते को खंगालते समय पता चला कि उस गेट के पास ही, जो लिंपोपो प्रान्त में था, दक्षिण अफ्रीका के सबसे पुराने पेड़ों में से एक पेड़ सागोले बाओबाब है जिसके बारे में धारणा थी कि वह हजारों साल पुराना है और बेहद विशालकाय है। अब हमारे पास थोड़ा समय भी था क्योंकि होटल में तो रात में आराम ही करना था जिससे सुबह तड़के ही क्रूगर में प्रवेश किया जा सके (सुबह 6 बजे से ही लोगों के लिए गेट खुल जाता है और शाम को 6 बजे बंद होता है)। इसलिए हमने पहले जीपीएस की मदद लेते हुए उस बिग ट्री के पास जाने का फैसला किया और सुबह 6 बजे ही जोहानसबर्ग से अपनी कार द्वारा निकल पड़े। हर यात्रा में हम लोग कुछ खाने पीने का सामान भी लेकर ही चलते थे जिससे न सिर्फ समय की बचत होती थी बल्कि जेब पर भी वजन कम पड़ता था। सड़क के किनारे रास्ते भर आपको जगहें मिलेंगी जहाँ आप अपनी गाड़ी खड़ा कीजिये और मजे में भोजन कीजिये। हम लोग लगभग 2 बजे दोपहर में उस विशालकाय पेड़ सागोले बाओबाब के पास पहुँच गए।

सबसे पुराने पेड़ सागोले बाओबाब

वास्तव में पेड़ तो बेहद विशाल था, उसकी उम्र भी लगभग 1700 साल थी और उसके चारो तरफ उसकी डालें जमीन पर कुछ इस तरह से पड़ी हुई थीं, गोया वे उसे तीनों तरफ से सहारा दे रही हों। पेड़ के तने के बीच में काफी जगह थी और उसके अंदर एक बार भी बना हुआ था जिसमें 6 -7 लोग आराम से खड़े होकर खा पी सकते हैं। बहरहाल इतने विशालकाय पेड़ को देखकर रोमांच हो आया और उसके इर्द गिर्द खूब फोटोग्राफी की गयी। एक अश्वेत महिला वहां देखभाल और टिकट देने के लिए थीं और उन्होंने हमारा स्वागत किया। वहां पर अमूमन अश्वेत महिलाओं को लोग “ममा” पुकारते हैं जो उनके लिए आदरसूचक शब्द है और हम भी उनको इसी सम्बोधन से पुकारते रहे। उस विशालकाय पेड़ के आस पास तमाम आम के पेड़ भी थे जिनपर लाल लाल आम लगे हुए थे। उनको देखकर हम लोगों के मन में उन्हें खरीदकर खाने की इच्छा हुई और हमने ममा से कहा कि हमें आम खाने हैं। ममा ने आम के मालिक को फोन करने की कई बार कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। दरअसल शनिवार का दिन था और वह वहां पर वीकेंड होता है जिसमें अमूमन कोई न तो कार्य करता है और न ही किसी के फोन का जवाब देता है। बहरहाल हम लोग मन मसोसकर वहां से उन आमों को खाने की हसरत मन में ही रखे आगे बढ़ गए।

वहां से हमारे होटल की दूरी लगभग 2 घंटे की थी लेकिन हम रास्ता भटक गए और इसी बहाने लिंपोपो के ग्रामीण क्षेत्रों को देखते हुए अपने होटल पर पहुंचे। होटल के पहुँचने के रास्ते से ही मुझे अंदाजा हो गया कि इस बार होटल के चुनाव में गड़बड़ी हो गयी है। दरअसल होटल जिस क्षेत्र में था वहां सिर्फ अश्वेतों की ही आबादी नजर आ रही थी और वह हमारे लिए थोड़ा असुरक्षित महसूस हो रहा था। इसके बावजूद भी हम लोग होटल पहुंचकर वहां के स्वागत कक्ष पहुंचे और सोचा कि रात ही तो बितानी है, रुक लिया जाएगा। लेकिन स्वागत कक्ष में बैठी महिला से जब हमने अपने कमरे के बारे में पूछा तो उसने किसी भी बुकिंग से इंकार कर दिया। मेरे पास बुकिंग डॉट काम से आया सन्देश था लेकिन जब मैंने उसे दिखाया तो वह अपना सर इंकार में हिलाने लगी। इसी बीच मेरे जोर देने पर उसने किसी को फोन किया और मेरी बात कराई, उस व्यक्ति ने थोड़ा समय माँगा और बोला कि मैं देखता हूँ कि आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। अब मेरे पास थोड़ा समय था तो मैंने सोचा कि पुण्डा मारिया गेट के बारे में पूछ लिया जाए कि वहां तक जाने में कितना समय लगेगा। मुझे उम्मीद थी कि अधिक से अधिक आधे घंटे में हम गेट पर पहुँच जाएंगे लेकिन उस महिला ने बताया कि यहाँ से गेट लगभग दो घंटे की दूरी पर स्थित है। अब मुझे समझ में आ गया कि मैंने इस बुकिंग में गलती कर दी है और फिर हमें उस होटल को छोड़ना ही बेहतर लगा। वैसे भी न तो वहां बुकिंग कन्फर्म हुई थी और वहां से सुबह 6 बजे गेट पहुँचने के लिए हमें चार बजे ही निकलना पड़ता जो उचित नहीं था। इसलिए हमने अपना बैग उठाया और उस महिला को नमस्ते करके हम लोग वहां से गेट की तरफ रवाना हो गए।

इन सब में शाम हो गयी थी और मुझे उम्मीद थी कि जैसे पिछली बार फलबोरवा गेट के एकदम पास एक होटल मिल गया था, वैसे ही इस गेट के पास भी कोई न कोई होटल मिल ही जाएगा। मन में यह भी था कि रात ही तो बितानी है, कैसा भी होटल चलेगा और हम लोग पुण्डा मारिया गेट के पास लगभग 7 बजे पहुंचे। अब अँधेरा हो चला था और गेट एकदम सुनसान था, आसपास कोई भी रहने का ठिकाना नहीं था। गेट तक पहुँचने का रास्ता भी एकदम सुनसान था और सड़क के आस पास बेहद गरीब अश्वेत लोग कच्चे घरों में रह रहे थे। हम लोगों ने गेट पर जाकर पूछा कि आस पास कोई रहने की जगह है तो उसने बताया कि सबसे नजदीक और सबसे बढ़िया जगह कोपा कोपा रिसोर्ट है जिसका बोर्ड हमें रास्ते में आते समय भी दिखा था। अब हमारे पास वहां जाने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था, बस चिंता इतनी ही थी कि कहीं वहां कोई कमरा नहीं मिला तो फिर कहाँ जाएंगे क्योंकि रात हो गयी थी। वापस कोपा कोपा रिसोर्ट जाते समय सड़क के दोनों तरफ घुप्प अँधेरा था, कहीं कोई बिजली बत्ती का नामोनिशान नहीं था। बस हमें कार के हेड लाइट से सड़क दिखाई दे रही थी और हम लोग तेज गति से वापस जा रहे थे। अचानक सामने सड़क पर एक गधा खड़ा मिला जो कि आते समय नहीं मिला था, वैसे भी दक्षिण अफ्रीका में सड़क पर जानवर शायद ही कभी मिलते थे तो आदत भी छूट गयी थी (अपने देश में तो यह आम दृश्य है)। अब कार की गति तो काफी तेज थी लेकिन उस समय दिमाग ने काम करना बंद नहीं किया था इसलिए ब्रेक लगाकर कार को जैसे ही बगल की तरफ मोड़ा और आगे निकले तभी सामने एक गाय भी खड़ी मिल गयी। अब उस समय कैसे मैंने उस गाय को बचाते हुए सड़क पार किया, मुझे भी याद नहीं, बस हम लोग बिना दुर्घटना के किसी तरह निकल गए। दिल की धड़कनें काफी बढ़ गयी थीं और जल्दी जल्दी गेस्ट हाउस पहुँचने का ख्याल ही दिमाग में आ रहा था। दरअसल उस समय कई चीजें एक साथ गलत हो रही थीं इसलिए घबराना स्वाभाविक ही था और ऐसी अवस्था में दिमाग सही काम करे, यह थोड़ा अस्वाभाविक था। थोड़ी देर में वह चौराहा आ गया जहाँ से हमें दाहिने मुड़कर रिसोर्ट पहुंचना था। आगे रास्ता भी थोड़ा खराब था और उस समय दुर्भाग्य से उस इलाके में बिजली भी गायब थी इसलिए घटाटोप अँधेरा छाया हुआ था (दक्षिण अफ्रीका में अमूमन बिजली रहती ही है, शायद ही कभी इस तरह का अनुभव हुआ हो)। किसी तरह हम लोग रिसोर्ट पहुंचे और वहां के स्वागत कक्ष में प्रवेश किया। रात के लगभग 9 बज रहे थे और हम लोग पिछले तीन घंटे के खराब अनुभवों से सहमे हुए थे। बहरहाल वहां एक प्रौढ़ पुरुष मिले जो अँधेरे में लालटेन जलाकर बैठे हुए थे, जैसे हमने उनका अभिवादन किया उसी समय हमें समझ में आ गया कि वह सज्जन नशे में धुत्त थे लेकिन जब हमने कमरे के बारे में पूछा तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया। उस एक हाँ ने हमें तमाम तनावों से मुक्त कर दिया जो हमारे दिमाग में लगातार चल रहा था कि यदि यहाँ पर रहने की जगह नहीं मिली तो इस अँधेरी रात में और इस बियाबान में हम लोग कहाँ जाएंगे।

बहरहाल हमें चंद मिनट लगे अपने आप को सामान्य करने में और यह महसूस करने में कि अब सब सही होगा। मैंने जाकर कार से अपना सामान निकाला और फिर हम लोग वापस उस स्वागत कक्ष में आ गए। बिजली अभी भी गायब थी और उस जगह के मैनेजर ने हमें बता दिया कि उस रिसोर्ट में एक कॉटेज हमें दे रहा है। वहां की औपचारिकता पूरा करके हम लोग उसी लालटेन की रौशनी में अपने फ्लैट की तरफ बढ़े जहाँ हमें रात बितानी थी। अंदर का पूरा इलाका जंगल का ही एक भाग जैसा लग रहा था और पगडण्डी पर चलते समय लग रहा था कि न जाने किस तरफ से कोई जंगली जानवर आ जायेगा। लगभग आधा किमी चलने के बाद हमारा कॉटेज आ गया और वह सज्जन उसे खोल कर चले गए। फिलहाल तो हम लोगों ने मोबाइल की रोशनी में अपना सामान अंदर किया लेकिन थोड़ी देर में ही समझ में आ गया कि बिना किसी लालटेन या लैंप के भोजन इत्यादि कैसे किया जाएगा। बहरहाल उस प्रौढ़ सज्जन को हमने इण्टरकॉम पर फोन किया तो वह थोड़ी देर में ही हमारे लिए भी एक लालटेन लेकर आ गए। अब उसी लालटेन की रोशनी में हम लोगों ने भोजन किया और सोने की तैयारी करने लगे। उस समय रात के लगभग 11 बज चुके थे और अगले दिन हमें सुबह 6 बजे पुण्डा मारिया गेट भी पहुंचना था। लेकिन जैसे ही हम लोग लेटे, उसी समय बिजली आ गयी और फिर हम लोगों ने एक बार आसपास का मुआयना करना शुरू कर दिया। कॉटेज के पीछे की तरफ एक बढ़िया सा स्विमिंग पूल था और ब्राई करने की जगह भी थी, कुल मिलाकर बेहद शानदार जगह थी। लेकिन सुबह के चलते हमें फटाफट सोना पड़ा और जल्दी ही नींद आ गयी।

[bs-quote quote=”आगे बढ़े तो एक और हाथियों का झुण्ड मिला जो सड़क के किनारे खड़ा था। हम लोग दुबारा रुके और उनको देखने लगे। थोड़ी देर में ही जब वे सड़क पार करने लगे और हमें उनके छोटे छोटे बच्चे भी सड़क पार करते दिखाई पड़े तो हम कौतूहलवश उनके नजदीक तक अपनी कार लेकर आ गए। वहीं हमसे गलती हो गयी और एक मादा हाथी ने हमारी तरफ गुस्से में दौड़ना शुरू किया तो हमें अपनी गलती का एहसास हुआ। हम लोग वहां से सरपट भागे और एकाध किमी बाद जब पीछे देखा तो हाथी नहीं थे और हमारी जान में जान आयी।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

सुबह 6 बजे तक हम लोग उस रिसोर्ट से निकल गए और वापस उसी सड़क पर चल पड़े जो पिछली रात के भयानक अनुभव समेटे हुए थी। लेकिन सुबह बहुत खुशनुमा थी, ठण्ड लग रही थी और सड़क बिलकुल सुनसान। हम लोगों ने थोड़ी देर में ही उस जगह को भी पार किया जहाँ पिछली रात हमें गधा और गाय मिली थी लेकिन सुबह उनमें से कोई भी मौजूद नहीं था। शायद रात को वे भी डर गए थे और फिर कभी सड़क पर खड़े नहीं होने की कसम खाकर चले गए थे। 7 बजते बजते हमने पुण्डा मारिया गेट से क्रूगर नेशनल पार्क में प्रवेश किया और फिर धीरे धीरे चारो तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगे। सबसे पहले हमें बिग फाइव में से जंगली भैंसे के दर्शन हुए जो मजे में जंगल की घास चर रहे थे। चूँकि उस जंगल में शेरों का एक निश्चित क्षेत्र था इसलिए ये भैंसे बिना किसी फिक्र के भोजन कर रहे थे। थोड़ा और आगे चलने पर सड़क के दोनों तरफ हिरन इत्यादि जानवर भी दिखाई पड़े। लगभग 30 किमी की यात्रा के बाद पहला जंगली हाथी का झुण्ड मिला जो सड़क पार कर रहा था। हम लोग उन्हें देखकर दूर ही खड़े हो गए और उनकी तस्वीरें लेने लगे तथा वीडियो बनाने लगे। उनके गुजरने के बाद हम लोग आगे बढ़े तो एक और हाथियों का झुण्ड मिला जो सड़क के किनारे खड़ा था। हम लोग दुबारा रुके और उनको देखने लगे। थोड़ी देर में ही जब वे सड़क पार करने लगे और हमें उनके छोटे छोटे बच्चे भी सड़क पार करते दिखाई पड़े तो हम कौतूहलवश उनके नजदीक तक अपनी कार लेकर आ गए। वहीं हमसे गलती हो गयी और एक मादा हाथी ने हमारी तरफ गुस्से में दौड़ना शुरू किया तो हमें अपनी गलती का एहसास हुआ। हम लोग वहां से सरपट भागे और एकाध किमी बाद जब पीछे देखा तो हाथी नहीं थे और हमारी जान में जान आयी। एक तो वहां के हाथी हमारे देश में पाए जाने वाले हाथियों से डील डौल में काफी ज्यादा बड़े और ताकतवर थे और उनके सामने हमारी कार भी खिलौने जैसी ही दिखाई पड़ती थी। वास्तव में मादा हाथी अपने बच्चों को लेकर बहुत पजेसिव होती है और उसे अगर लगता है कि कोई उनको नुक्सान पहुंचा सकता है तो वह तुरंत उसपर आक्रमण कर देती है। खैर हम लोग सकुशल आगे बढ़ गए और फिर भविष्य में कभी भी हाथी के बच्चों के आस पास भी नहीं जाने का निश्चय कर लिया।

वहां से आगे बढ़ने पर थोड़ी थोड़ी दूर पर कभी हिरणों के झुण्ड तो कभी जिराफ तो कभी जेब्रा के झुण्ड मिलते रहे और हम लोग उनको निहारते, उनकी तस्वीरें खींचते आगे बढ़ते रहे। एकाध जगह जंगली सूअर भी दिखाई दिए और कहीं कहीं सांभर इत्यादि भी दिखे। एकाध घंटे बाद एक जगह हमारी नजर सड़क के किनारे मजे में घूमते छोटे से कछुए पर पड़ी जो स्टार कछुए जैसा था। वह देखने में इतना सुंदर लग रहा था कि हमारी गाड़ी अपने आप ही वहां रुक गयी। हम लोगों ने उसे प्यार से उठाया, कुछ मिनट तक हम सब उसे देखते रहे, फिर उसके फोटो कई ऐंगल से खींची गयी और उसके बाद उसे वहीं छोड़कर हम सब आगे बढ़ गए। कुछ आगे जाने पर हमें एक जगह चीता के भी दर्शन हुए जो पेड़ पर मजे में आराम फरमा रहे थे। क्रूगर पार्क के अंदर हर 40 से 50 किमी पर कोई न कोई पेट्रोल पंप और पिकनिक का स्थान रहता है और आप बिना पेट्रोल के खत्म होने की चिंता किये आराम से घूम सकते हैं। हम लोग भी कुछ घंटे घूमने के बाद के बाद एक पिकनिक वाली जगह पर रुके, थोड़ा नाश्ता किया और पेट्रोल भरकर आगे बढ़ गए।

एकाध घंटे और घूमने के बाद हम लोग उस क्षेत्र में पहुँच गए थे जहाँ अमूमन शेर पाए जाते हैं। पिछली यात्रा में हम उन्हें नहीं देख पाए थे इसलिए इस बार मन ही मन ठान के आये थे कि हर हाल में उनको देखकर ही जाना है। अचानक दूर सामने ढेर सारी गाड़ियां खड़ी दिखाई पड़ी तो लगा जैसे हो न हो आज तो शेर के दर्शन हो ही गए। जब हम पास पहुंचे तो लोगों ने बता दिया कि सड़क के साथ साथ बहती बरसाती नदी के तलछट में कई शेर आराम फरमा रहे हैं और यह भीड़ उनको ही देखने के लिए खड़ी है।

सड़क के किनारे भी पेड़ थे और नीचे नदी के ढलान पर भी पेड़ थे तो दूर से वनराज के दर्शन संभव नहीं थे। अब इन्तजार करने के सिवाय और कोई रास्ता भी नहीं था कि लोग वहां से हटें तो हम लोग शेरों को नजदीक से देखें। आधे घंटे में सारी गाड़ियां वहां से चली गयीं और सिर्फ हम लोग ही बचे तो हमने अपनी कार सड़क से नीचे उतार ली और शेरों को देखने लगे। लगभग 10 शेर रहे होंगे जो आराम से लेटे हुए थे और बिलकुल भी हिलडुल नहीं रहे थे। अब कोई और पास था नहीं तो हमारे मन में आया कि शेर तो आराम फरमा रहे हैं इसलिए हम लोग गाड़ी से उतर कर उनको पास से देखते हैं और कुछ फोटो भी खींच लेते हैं। हमें सपने में भी यह गुमान नहीं था कि हम अपनी जिंदगी की शायद सबसे बड़ी भूल करने जा रहे हैं और आगे आने वाले तमाम वर्षों में अपनी इस भूल को याद करके हम लोग सिहरते रहेंगे।

हमारी कार सड़क के नीचे कच्ची जगह पर खड़ी थी और वहां से नदी का किनारा बिलकुल सटा हुआ था। मतलब कि हम तीन चार कदम चलकर नदी के कगार पर पहुँच सकते थे और शेरों को नीचे साफ़ साफ़ देख सकते थे। लेकिन जैसे ही हम दोनों कार से उतरकर बमुश्किल दो कदम आगे बढ़े होंगे, तभी हमें नदी के तलहटी में हलचल नजर आयी। तीन चार शेर जो शायद मानव से बिलकुल भी नजदीकी पसंद नहीं करते थे, वे उठकर खड़े हुए और पलट कर भाग गए। तीन चार शेर हमारी तरफ मुंह करके खड़े हो गए और शायद अंदाज लगाने लगे कि अगर हम लोग उनके पास जाते हैं तो उनको क्या करना चाहिए। बचे हुए एक दो शेर भी वापसी के लिए तैयार हो गए थे। इन सब में शायद दस सेकेण्ड ही लगा होगा और हमें यह एहसास हो गया कि हमने एक बहुत बड़ी भूल कर दी है। वैसे तो ऐसे मौकों पर दिमाग काम करना बंद कर देता है लेकिन उस वक़्त दिमाग ने काम किया और हम बिजली की फुर्ती से वापस अपने कार की तरफ मुड़े और फटाफट अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया। हमारे दिल बुरी तरह धड़क रहे थे और हम अगले दस मिनट तक यही सोचते रहे कि अगर शेरों ने हमारी तरफ छलांग लगायी होती तो क्या होता। वो शेर बस इतनी दूरी पर थे कि वे दो तीन छलांग में हमारे पास आ सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं सोचा और हम सही सलामत अपनी कार में बैठे थे। उसके बाद अगले कई घंटे, जब तक हम क्रूगर पार्क में विचरण कर रहे थे, हम अपने दिमाग से इस घटना को निकाल ही नहीं पाए। आगे हमें एक जगह अफ्रीकन गैंडा भी दिखाई दिया, फिर से जिराफ और अन्य जंगली जानवर भी दिखे लेकिन शायद वह आनंद नहीं आया जो ऐसे में आना चाहिए था। लेकिन एक बात जरूर हुई कि इस बार हमने अफ्रीका के बिग फाइव जानवरों के दर्शन कर लिए, जिनके लिए अफ्रीका जाना जाता है और जिनको देखे बिना आपकी जंगल यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है।

शाम छह बजे से पहले हमें फाबेनी गेट पहुंचना था जहाँ से हमें आगे ग्रासकोप जाना था और फिर आगे की यात्रा अगले दिन प्रारम्भ होनी थी। हम लोग लगभग छह बजे फाबेनी गेट पहुँच गए और फिर वहां से डूबता सूरज को निहारते हुए ग्रासकोप के लिए निकल पड़े। जिंदगी में कुछ यात्रायें ऐसे ऐसे अनुभव दे कर जाती हैं जिन्हें अमूमन हम लेना नहीं चाहते। लेकिन दो दिन की यह यात्रा जिसमें बहुत रोमांचक और खतरनाक अनुभव हुए थे, वह आज भी दिमाग पर काबिज है और हम चाह कर भी उसे भूल नहीं सकते।

विनय सिंह युवा कहानीकार हैं। फिलहाल उज्जैन में रहते हुए बैंक में पदस्थ हैं ।

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2 COMMENTS

  1. बहुत बढ़िया रोचक, रोमांचक और पठनीय यात्रा वृत्तांत। बधाई।

  2. बहुत सुंदर विनय जी। बिल्कुल जीवंत बन पड़ा है, वैसे भी आपकी प्रभावी लेखनी किसी भी संस्मरण में पाठक को अपने साथ बांध लेती है।
    हार्दिक बधाई स्वीकारें। ?

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