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साल 2022 में वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड 75 लाख लोगों में टीबी का पता चला- डब्ल्यूएचओ

नयी दिल्ली, (भाषा)।  वर्ष 2022 में दुनिया में कुल 75 लाख लोगों में तपेदिक (टीबी) होने का पता चला। यह 1995 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वैश्विक टीबी निगरानी शुरू किए जाने के बाद यह सर्वाधिक है। यह जानकारी 192 देशों और क्षेत्रों के आंकड़ों वाली एक रिपोर्ट में दी गई है। विश्व स्वास्थ्य […]

नयी दिल्ली, (भाषा)।  वर्ष 2022 में दुनिया में कुल 75 लाख लोगों में तपेदिक (टीबी) होने का पता चला। यह 1995 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा वैश्विक टीबी निगरानी शुरू किए जाने के बाद यह सर्वाधिक है। यह जानकारी 192 देशों और क्षेत्रों के आंकड़ों वाली एक रिपोर्ट में दी गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2023 वैश्विक टीबी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर, 2022 में अनुमानित एक करोड़ छह लाख लोग टीबी से बीमार पड़े, जो 2021 के आंकड़े एक करोड़ तीन लाख से अधिक है।

रिपोर्ट 2022 में टीबी निदान और उपचार सेवाओं के पैमाने में एक महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सुधार को रेखांकित करती है। यह टीबी संबंधी सेवाओं पर कोविड-19 व्यवधानों के हानिकारक प्रभावों को दूर करने के लिए एक उत्साहजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है।

वर्ष 2020 और 2021 में टीबी के नए मामलों का पता चलने में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई थी, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक गिरावट भारत, इंडोनेशिया और फ़िलीपीन में दर्ज की गई थी। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, ‘सदियों तक, हमारे पूर्वज तपेदिक से पीड़ित रहे और मरते रहे, बिना यह जाने कि यह क्या था, इसका कारण क्या था, या इसे कैसे रोका जाए।’ उन्होंने कहा, ‘आज, हमारे पास ज्ञान और उपकरण हैं जिनका उन्होंने केवल सपना देखा होगा। हमारे पास राजनीतिक प्रतिबद्धता है, और हमारे पास एक अवसर है जो मानवता के इतिहास में किसी भी पीढ़ी के पास नहीं है, टीबी की कहानी में अंतिम अध्याय लिखने का अवसर।’

भौगोलिक रूप से, 2022 में, टीबी की चपेट में आने वाले अधिकतर लोग दक्षिण-पूर्व एशिया (46 प्रतिशत), अफ्रीका (23 प्रतिशत) और पश्चिमी प्रशांत (18 प्रतिशत) के डब्ल्यूएचओ क्षेत्रों में थे, जबकि पूर्वी भूमध्य सागर क्षेत्र में यह आंकड़ा (8.1 प्रतिशत), अमेरिका (3.1 प्रतिशत) और यूरोप (2.2 प्रतिशत) था। रिपोर्ट के अनुसार, टीबी से संबंधित मौतों की कुल संख्या (एचआईवी वाले लोगों सहित) 2022 में 13 लाख थी, जो 2021 के आंकड़े 14 लाख से कम है।

मगर, कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुए व्यवधान के परिणामस्वरूप, 2020-2022 की अवधि में लगभग पाँच लाख अतिरिक्त मौतें हुईं। एचआईवी के साथ जीवन गुज़ार रहे लोगों के लिए यह अब भी एक घातक बीमारी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बहु औषधि-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बना हुआ है।

भविष्य में भीषण लू की चपेट में आ सकते हैं भारत के उत्तर-पश्चिमी, दक्षिण-मध्य क्षेत्र

नयी दिल्ली। देश में उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य भारत का इलाका भविष्य के ‘लू क्षेत्र’ के रूप में उभर रहा है तथा मध्यावधि और दीर्घकालिक भविष्य में लू की आवृत्ति में चार से सात गुना वृद्धि देखी जा सकती है। एक नए अध्ययन में यह बात कही गई है। अध्ययन में कहा गया है कि देश के दक्षिण-मध्य क्षेत्र के तीन लू प्रभावित क्षेत्रों में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज होने की संभावना है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत महामना जलवायु परिवर्तन उत्कृष्ट शोध केंद्र द्वारा किए गए एक अध्ययन में मध्य अवधि (2041-2060) और दीर्घकालिक (2081-2099) के लिए भारत में क्रमशः आरसीपी 4.5 और आरसीपी 8.5 उत्सर्जन परिदृश्य के तहत लू की लहर की विशेषताओं में भविष्य में होने वाले बदलावों का विश्लेषण किया गया।प्रतिनिधि एकाग्रता पथ (आरसीपी) का उपयोग भविष्य के रुझानों को समझने के लिए किया जाता है कि मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप भविष्य में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता कैसे बदलेगी। आरसीपी 4.5 परिदृश्य में, उत्सर्जन सदी के मध्य में चरम पर होता है और सदी के अंत में गिरावट आती है, जबकि आरसीपी 8.5 उच्चतम आधारभूत परिदृश्य है जिसमें उत्सर्जन पूरी सदी में बढ़ता रहता है।

अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य के अनुमान आरसीपी 4.5 परिदृश्य के तहत मध्यावधि और दीर्घकालिक भविष्य के लिए लू की आवृत्ति में चार से सात गुना वृद्धि और आरसीपी 8.5 परिदृश्य के तहत पांच से 10 गुना वृद्धि दर्शाते हैं।रिपोर्ट में कहा गया, ‘उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र भविष्य में लू से सर्वाधिक प्रभावित हो सकते हैं जबकि दक्षिण-मध्य क्षेत्र में भीषण लू की स्थिति देखी जा सकती है। भविष्य के लिए लू का यह उच्चस्तरीय पूर्वानुमान मानव स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचे पर संभावित प्रभाव को कम करने के लिए परिवर्तनकारी एवं लचीली नीतियों को विकसित करने के लिए आधार रेखा के रूप में काम करेगा।’

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने अपने नवीनतम ‘विश्व ऊर्जा परिदृश्य’ में कहा है कि भारत में अगले तीन दशकों में दुनिया के किसी भी देश या क्षेत्र की तुलना में सबसे अधिक ऊर्जा मांग होगी।घरेलू एयर कंडीशनर चलाने के लिए भारत की बिजली की मांग 2050 तक नौ गुना बढ़ने का अनुमान है।

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