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ग्राउंड रिपोर्ट

उदयपुर : प्रोफेसर हिमांशु पंड्या पर संघी गुंडों के हमले की देशभर में निंदा

लोकतान्त्रिक देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगे या बोलने वाले पर हमला किया जाए, तब इसे फासीवाद की संज्ञा दी जाती है। अभी 4 जून को इस विशाल लोकतान्त्रिक देश में नए चुनाव हुए। मतदातओं के हिंदुत्ववादी राजनीति के व्यापक निषेध के बावजूद फासीवाद दौर खत्म नहीं हुआ बल्कि अब अधिक बर्बर रूप में सामने आने की आशंका है।

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर में 8 जून को हिंदी के जाने-माने आलोचक प्रोफेसर हिमांशु पंड्या के साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े असामाजिक तत्वों ने घोर अपमानजनक व्यवहार किया।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बताया कि प्रोफेसर हिमांशु ने अपने फेसबुक पर बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना पर 6 महीने पहले अपने विचार व्यक्त करते हुए एक पोस्ट लिखी थी। इसी बात को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने उनके साथ कक्षा में बदतमीजी की।

हिमांशु पंड्या मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर में अतिथि प्रोफेसर हैं। जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन वे शोध पद्धति विषय की एक विशेष कक्षा ले रहे थे। कक्षा के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े नौजवान बिना इजाजत वहां पहुंचे। उन्होंने प्रोफेसर को क्लास छोड़ने पर मजबूर किया। उनके खिलाफ अपशब्द कहे। उन पर गालियों की बौछार की और अपमानजनक नारे लगाते हुए एक जुलूस की शक्ल में कैंपस के बाहर दूर तक उनका पीछा किया। उसके बाद वे लोग कोर्स कोआर्डिनेटर प्रो. सुधा चौधरी और संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर हेमंत द्विवेदी के पास पहुंचे और वहां भी अपना तथाकथित प्रदर्शन जारी रखा।

ज्ञातव्य है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित कोई भी पोस्ट आपत्तिजनक नहीं मानी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को संविधान के विरुद्ध अक्षम्य अपराध माना है।

बाद में आरोपियों ने यूट्यूब और सोशल मीडिया पर इस घटना को एक अलग ही मोड़ देने की कोशिश की। इन प्रस्तुतियों में प्रोफेसर हिमांशु को फिलिस्तीन समर्थक बताते हुए  कहा गया है कि यही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आक्रोश का मूल कारण था। इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि स्वयं भारत सरकार ने फिलिस्तीन के प्रति अपने निरंतर समर्थन को जारी रखने की बात बार-बार कही है।

एक लोकतंत्र में किसी भी विषय पर विरोध और समर्थन हो सकता है। महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय संविधान किसी भी विषय के विरोधियों और समर्थकों के बीच खुले संवाद और बहस का पक्षधर है। इसी कारण  अभिव्यक्ति की आजादी को मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। चिंता की बात है कि दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों ने अपने हिंसक व्यवहार से विश्वविद्यालय तक में संवाद और बहस की गुंजाइश समाप्त कर दी है। वे चाहते हैं कि कक्षा के भीतर भी शिक्षक और छात्र वही पढ़ें/पढ़ायें जो हिंदुत्ववादियों के पक्ष में हो। यह भारतीय संविधान के विरुद्ध है। हालांकि जिस कक्षा  के दौरान उपरोक्त घटना हुई, उसका इन विषयों से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था। जाहिर है कि हमलावरों का उद्देश्य यही था कि विश्वविद्यालय परिसर में ऐसे किसी शिक्षक को प्रवेश ही न करने दिया जाए जो उनके सांप्रदायिक राष्ट्रवादी नजरिए से सहमत न हो।

देशभर के बुद्धिजीवियों और शिक्षकों ने इस घटना की घोर निंदा की है। लोगों का कहना है कि यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकसभा चुनावों में मतदाताओं द्वारा हिंदुत्ववादी राजनीति के व्यापक निषेध के बावजूद भारत में फासीवाद का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि वह एक नए चरण में प्रवेश कर गया है। इससे यह आशंका प्रबल होती है कि हिंदुत्ववादी राजनीति आने वाले समय में और अधिक खूंखार और बर्बर रूप में सामने आएगी।

देश भर के लोगों ने कहा कि यही समय है जब लोकतंत्रप्रेमी व्यक्तियों को ऐसे प्रत्येक हमले के विरुद्ध एकजुट और मुखर होना चाहिए। यह भारत में लोकतंत्र की रक्षा के लिए चल रहे संघर्ष का जरूरी हिस्सा है और हम सब इस संघर्ष में शामिल थे और हमेशा रहेंगे।

गाँव के लोग
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