Saturday, January 25, 2025
Saturday, January 25, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमTagsDemocracy

TAG

Democracy

लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई संसद से ज्यादा सड़क पर लड़नी पड़ेगी

आजादी के बाद की पीढिय़ां इस दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से नहीं कर पाई हैं। इसीलिए संविधान विरोधी और देश विरोधी विचार और राजनीति आज संवैधानिक सत्ता पर काबिज है। उसका मुकाबला तभी हो सकता है जब हम संविधान की भाषा को जनता के मुहावरे और जनता के सरोकार से जोड़ें।

हैदराबाद का विलय : लोकतांत्रिक सफर की शुरुआत

भारत में हैदराबाद के विलय के पीछे इस्लामोफोबिया नहीं था। इसकी मुख्य वजहों में से एक थी भौगोलिक और दूसरी थी राजशाही से लोकतंत्र की ओर यात्रा। हैदराबाद रियासत की भौगोलिक स्थिति, जो भारत के लगभग मध्य में था, चारों ओर से भारत से घिरा एक स्वतंत्र देश या एक ऐसा राज्य जो पाकिस्तान का हिस्सा होता, एक स्थायी समस्या बन जाता। नेहरू-पटेल की नजरों में भी यही बात सबसे महत्वपूर्ण थी। हैदराबाद के विलय को रेखांकित करता राम पुनियानी का लेख ।

‘एक देश एक चुनाव’ का जुमला लोकतंत्र को कहाँ ले जायेगा

भाजपा लगातार लोकतान्त्रिक तरीके से काम करने वाली संस्थाओं में बदलाव करने का काम कर रही है। ऐसी संस्थाओं में अपने लोगों की नियुक्ति कर, अपने तरीके से चला रही है। 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा भाजपा के शासनकाल की उपज है। यह व्यवस्था देश में अधिनायकवाद या यूँ कहें कि हिटलरशाही अथवा तानाशाही को ही जन्म देगी। इस व्यवस्था के लागू होते ही देश में चौतरफा अराजकता का माहौल पैदा होने में देर नहीं लगेगी।

उदयपुर : प्रोफेसर हिमांशु पंड्या पर संघी गुंडों के हमले की देशभर में निंदा

लोकतान्त्रिक देशों में अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगे या बोलने वाले पर हमला किया जाए, तब इसे फासीवाद की संज्ञा दी जाती है। अभी 4 जून को इस विशाल लोकतान्त्रिक देश में नए चुनाव हुए। मतदातओं के हिंदुत्ववादी राजनीति के व्यापक निषेध के बावजूद फासीवाद दौर खत्म नहीं हुआ बल्कि अब अधिक बर्बर रूप में सामने आने की आशंका है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू : लोकतन्त्र को शासन व्यवस्था नहीं बल्कि एक संस्कार मानते थे

आज देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की 60वीं पुण्यतिथि है। नेहरू जी केवल प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि वे आधुनिक भारत के निर्माता थे। वे भारतीय राष्ट्र के समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष के प्रणेता माने जाते हैं । उन्होंने 1947 के बाद देश को किस तरह आगे ले जाना है इसकी बेहतर नींव रखी। लोकतन्त्र को केवल शासन-व्यवस्था नहीं, एक संस्कार मानते थे। वे स्वयं को देश का प्रधान सेवक मानते थे लेकिन आज के प्रधानमंत्री की तरह नहीं।

भाजपा ने देश के लोकतंत्र को बंदी बना लिया है, हमें लोकतंत्र को फिर से हासिल करना होगा

हालिया हालात में मोदी के सबसे चतुर राजनेता होने का एक कारण यह है कि उन्होंने इस बात पर काम किया है कि यदि आप अपनी पार्टी को स्थायी चुनाव मोड में रखते हैं तो आप उन घनी आबादी वाले राज्यों में जनता का समर्थन बनाए रख सकते हैं जो आपका आधार हैं। भाजपा के लोकतंत्र विरोधी चरित्र को उजागर करता यह लेख पढिए...

संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के आह्वान के साथ लॉयर्स यूनियन का चौथा छत्तीसगढ़ राज्य सम्मेलन संपन्न

बिलासपुर। भारत का संविधान स्वतंत्रता आंदोलन की देन है, जो धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक न्याय, भाईचारा और समाजवाद के मूल्यों को प्रतिपादित करता है। यह संविधान...

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है दलबदल की मौजूदा राजनीति

भारत देश के चुनावों को करोड़पतियों ने हाईजैक कर लिया है। जितने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरते हैं. उनमें से बहुसंख्यक करोड़पति होते हैं।...

स्याह सियासत का दौर और गर्त में जाता देश

अक्सर लोग अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते हैं। परिवार के दु:ख-सुख की सीमा ही उनका कार्य-क्षेत्र होता है। कुछ जाति और...

शांति, सद्भाव, सशक्त लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के संकल्प के साथ शुरू हुई पदयात्रा

समाज में शांति सद्भाव की स्थापना लोकतंत्र की मजबूती और सामाजिक न्याय का माहौल स्थापित करने के लिए संघर्ष का संकल्प लेते हुए दस...

सांप्रदायिकता, हिन्दुत्व और बीजेपी का चुनावी तरीका

आपने राम जन्मभूमि आंदोलन के समय और उसके बाद, उत्तर भारत में इस विषय पर अत्यंत विस्तृत अध्ययन किया है, विशेष रुप से दंगाग्रस्त स्थानों में।...

क्या सामाजिक लोकतंत्र लाए बगैर राजनैतिक लोकतंत्र बच सकता है

25 नवंबर, 1949 को भारत की संविधान सभा में संविधान का मसौदा पूरे होने पर उसको प्रस्तुत करते हुए बाबासाहब अंबेडकर ने बेहद महत्वपूर्ण...

संविधान दिवस के आलोक आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नज़र

भारत वर्ष में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था कोई नई बात नहीं है। प्राचीन काल में अल्पसंख्या वाली जाति समुदायों को बहुसंख्य...

आज का सबसे बड़ा मज़ाक, ‘लोकतंत्र ख़तरे में है’

'लोकतंत्र ख़तरे में है', क्या सचमुच! वैसे ये लोकतंत्र था कहाँ जो ख़तरे में आ गया! क़िताबों में जहाँ लोकतंत्र था, वहाँ तो आज...

ताज़ा ख़बरें