Saturday, July 27, 2024
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प्रकृति के मोहक रूप और सांस्कृतिक द्वंद्व से गुजरता अफ्रीका

चौथी और अंतिम किस्त मिडिलबर्ग ब्लोम फोन्टेन से करीब 10 बजे चलकर हम 1.45 बजे औरेन्ज नदी पार करके मिडिलबर्ग पहुंचे। यह समुद्र तट से 1490 मीटर की उंचाई पर स्थित है। इसका नाम प्रिटोरिया और लिडेनबर्ग शहरों के मध्य होने के कारण मिडिलबर्ग रखा गया था। अंग्रेजों ने द्वितीय बोउर युद्ध में यहां कन्सन्ट्रेशन […]

चौथी और अंतिम किस्त

मिडिलबर्ग

ब्लोम फोन्टेन से करीब 10 बजे चलकर हम 1.45 बजे औरेन्ज नदी पार करके मिडिलबर्ग पहुंचे। यह समुद्र तट से 1490 मीटर की उंचाई पर स्थित है। इसका नाम प्रिटोरिया और लिडेनबर्ग शहरों के मध्य होने के कारण मिडिलबर्ग रखा गया था। अंग्रेजों ने द्वितीय बोउर युद्ध में यहां कन्सन्ट्रेशन कैम्प स्थापित किया था, जिसे म्यूजियम में बदल दिया गया है। कार मे से ही इस शहर को देखते हुए हम पोर्ट एलिजाबेथ की तरफ बढ़े।

पोर्ट एलिजाबेथ

मिडिलबर्ग से नीचे उतरते हुए पोर्ट एलिजाबेथ की तरफ का रास्ता शानदार पर्वत-श्रंखलाओं के बीच से होकर गुजरता है। कई नदियों और घाटियों से गुजरते हुए रास्ते का यह भाग प्रकृति के शानदार नजारों से भरा था।  यद्यपि अभी तक जो रास्ता गुजरा था वह भी शानदार था परन्तु बारिश ने धूप के तीखेपन को खत्म कर दिया था और हमें आभास नहीं हो रहा था कि हम सुबह से लगभग 1100 किमी लगातार चल चुके है। मार्ग के इस भाग में पहुंचने पर लगा कि वक्त थम जाय और हम बस यूं ही चलते रहें । शाम 6.00 बजे तक पोर्ट एलिजाबेथ आ गया और हिन्द महासागर अपने नीले सौन्दर्य के आभामण्डल के साथ लहरा रहा था। यहां पर समुद्र के किनारे सूर्यास्त लगभग 8.00 बजे होता है। शहर में घुसते ही घुमावदार लम्बे-लम्बे ओवर ब्रिजों के उपर नीचे से गुजरते हुए पश्चिमांचल में डूब रहे सूर्य की क्षैतिज किरणों मे लाल, कत्थई रंग के प्रस्तरों से निर्मित विशालकाय भवन मुस्कराते दिख रहे थे। जैसा कि इस मुल्क का रिवाज है। सात बजते-बजते सड़के खाली होने लगती हैं। दूर-दराज इलाकों में जाने वाली बसें अपनी सवारियों को लेकर निकल चुकी होती हैं और विरल जनसंख्या वाले इस देश की सड़कें और खाली हो जाती है। देर शाम तक सड़कों पर आदमी शायद ही दिखाई देते हैं। सिर्फ कारें दौड़ती हैं। बस कुछ व्यस्त पर्यटन स्थलों पर ही चहल-पहल बची रहती है। यदि कोई शहर बन्दरगाह हो तो निश्चय ही समुद्र तट उसका सबसे खूबसरत स्थल होगा । हमने गेस्ट हाउस में अपना सामान उतारा और समुद्र तट की तरफ निकल पड़े। समुद्र तट का दृश्य शाम ढलते-ढलते चमकती रोशनी में खूबसूरत होकर और निखर गया था।

पोर्ट एलिजाबेथ

भारतीय इतिहास से गहरा नाता

इस बन्दरगाह का हिन्दुस्तान से गहरा रिश्ता है। पुर्तगालियों ने इस क्षेत्र का नाम अलगोवा खाड़ी रखा था क्योंकि इस बन्दरगाह से अनुकूल हवाओं में गोवा के लिए जहाज प्रस्थान करते थे । तमाम उतार-चढ़ावों के बाद 1820 में ब्रिटिशों ने खोसा जनजाति के साथ समझौता करके क्षेत्र निर्धारण किया और इसका नामकरण केप गर्वनर सर रुफानेसा डांकिन की पत्नी एलिजाबेथ के नाम पर किया गया । 1830 तक यहां सैकड़ों मकान और हजारों लोग आबाद हो चुके थे। संयोग से 1873 के आसपास किंबरली की हीरा की खदानों के मिलने के बाद तो यहां की जनसंख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई । द्वितीय बोअर युद्ध में इस शहर में दस हजार सैनिक घोड़ों के सम्मान में स्मृति स्थल बना वहीं पर बोअर महिलाओं और बच्चों के यन्त्रणा शिविर की घुटती चीखों को भी इस शहर ने अपने सीने मे जज्ब किया है। ब्लैक इज ब्यूटीफुल जैसे खूबसूरत नारे से रंगभेद को तार-तार करने वाले स्टीव बीको की शहादत भी इस शहर की पत्थर की मीनारों ने देखा है तो 2010 के फीफा वर्ल्ड कप के दसियों मैचों  में नाचते-गाते उमड़े हुजूम का इस शहर के किनारे समन्दर की लहरों ने झूम कर स्वागत किया है।

[bs-quote quote=”पीढ़ियों से दक्षिण अफ्रीका में बसे एक परिवार से बात करने पर पता चला कि वह भारत के नए राजनैतिक उभार से खुश हैं लेकिन इसी राजनैतिक धारा का दक्षिण अफ्रीकी संस्करण उनको डरा रहा है। लोकतंत्र के अन्दर बहुमतवाद असहमत विचारों के प्रति कब असहिष्णु हो जाता है यह लोगों को जबतक समझ में आता है तब तक देर हो चुकी होती है। उपनिवेशकालीन और रंगभेदकालीन दौर में उत्पीड़ित काले समुदाय के कन्धे से कन्धा मिला कर लड़े गोरे और भारतीय नायक दक्षिण अफ्रीका को बहुमतवाद की आड़ में छिपे नस्लवाद को पहचानने में मदद करेंगे। जब कोई काला बच्चा उनकी तस्वीरों को निहारेगा तो वे उसके कान में धीरे से फुसफुसाएंगे कि तुम्हारे पुरखों की मजबूरी थी लड़ना, लेकिन हमने तो तुम्हारी मुस्कराहटों लिए पक्षद्रोह किया था!” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

देर रात तक हमने समुद्र तट का कई चक्कर लगाया। इसका रेत डरबन के समुद्र तट के मुकाबले महीन है और पानी कुछ ठंडा लगा जिससे पानी में उतरने की हिम्मत नहीं हुई । समुद्र तट के पास ही स्थित सन् 1799 मे बने फोर्ट फ्रेडरिक जो तत्कालीन ब्रिटिश कमाण्डर इन चीफ के नाम पर बना है तथा फ्रांसीसियों को रोकने के लिए बनाया गया था। यह छोटा-सा उपेक्षित किला अपने समय मे कभी इस बन्दरगाह की नियति तय करता था, अब चन्द इतिहास यात्रियों से सन्नाटे मे गुफ्तगू करता है।

अगली सुबह समुद्र तट का चक्कर लगाकर हम पेंग्विन पुनर्वास केन्द्र देखने गए, जहां पर घायल पेंग्विनों की देखभाल की जाती है। वहां पर बताया गया कि कुछ दूर स्थित बर्ड आइलैण्ड में या अन्य जगहों पर जो पेंग्विन घायल हो जाते हैं उनको देखभाल के लिए यहां लाया जाता है और स्वस्थ होने पर छोड़ दिया जाता है। केन्द्र की उत्साही बुर्जुग संचालिका से यह भी जानकारी मिली की यहां से छोड़ी गयी पेंग्विनें करीब 12 दिनों केप टाउन समद्र में तैरते हुए पहुंच जाती हैं। अपने खुशमिजाज गेस्ट हाउस संचालक से अगली यात्रा की शुभकामना लेते हुए हम गार्डन रूट से केप टाउन की तरफ निकल पड़े।

गार्डन रुट

पोर्ट एलिजाबेथ, जिसको संक्षेप में पीई भी कहते हैं, से केप टाउन की तरफ समुद्र के किनारे-किनारे जाने वाले मार्ग को गार्डन रूट कहते हैं। पीई से केपटाउन की दूरी लगभग 800 किमी है, जिसका अधिकांश भाग गार्डन रूट है। गार्डन ररूट का सौम्य तापमान और उसके मार्ग में प्रकृति की सुन्दरता किसी भी यात्री की स्मृति पटल में सदैव के लिए सुरक्षित हो जाती है। इस रास्ते मे करीब 7 घाटियां हैं और आपके मार्ग के एक तरफ पर्वत शृंखला तो दूसरी तरफ समुद्र और ऊपर रंग बदलता आसमान आपको पूरी यात्रा मे मंत्रमुग्ध किए रहेगा। रास्ते मे आपको नायज्ना, जार्ज जैसे खूबसूरत कस्बे मिलेंगे जो अपने खूबसूरत समुद्रतटों और हरीभरी पहाड़ियों से मंत्रमुग्ध करते हुए दम लेने का इसरार करेंगे और जब आप दम लेने रुकेंगे तो कहेंगे कि ‘दिल अभी भरा नहीं’। इस रास्ते पर आपको हजारों फीट गहरी खाई में रेंगती स्टार्म नदी मिलेगी जिसके छोटे से पुल की कारीगरी और प्रकृति की खूबसूरती देखने के लिए लकड़ी की बनी सीढ़ियां मिलेंगी। ऐसे ही गुजरते हुए आपको दो पहाड़ों और समुद्र के त्रिभुज को बीच से काटती ब्लाउ-क्रास नदी मिलेगी, जिस पर बने पुल की ऊँचाई इतनी होगी की पुल की नीचे बंजी जम्पिंग में झूलता इंसान एक छोटा-सा बच्चा नजर आएगा। दुनिया में किसी भी पुल के नीचे की सबसे गहरी बंजी जम्पिंग होगी और जब आप पुल से सामने देखेंगे तो आमने-सामने खड़े दो पहाड़ों से टकराते समुद्र की फेनिल लहरें आपको किसी अनन्त प्रवाह में शामिल होने या जड़वत खड़े रहने का आमंत्रण देंगी।इसी रास्ते में आगे चलकर हम कुछ देर के लिए प्लेटनबर्ग कस्बे में समुद्र के किनारे रुके थे। 1779 में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गर्वनर केप के नाम पर बसे इस कस्बे के समुद्रतट की खूबसूरती अवर्णनीय है।

गार्डन रूट

[bs-quote quote=”नाएज्ना का वाटर फ्रंट भी मनोहारी था । वाटर फ्रन्ट पर वाटर पोलो खेलने के लिए स्कूली बच्चों की टीमें आई हुई थीं। कस्बे में भारतीय खाने का रेस्तरां था जिसमें अफ्रीकी वेटर को हिन्दी बोलते देख कर अच्छा लगा। दक्षिण अफ्रीका के अधिकांश कस्बों की तरह यहां पर भी फाइन आर्टस की गैलरी थी। इस कस्बे के आस-पास समुद्र के कई बीच हैं, जहां पर आप दोपहर और शाम बिता सकते हैं। कस्बे से सटे काफी नीचे घने जंगल में पानी की एक पतली धारा के पास पिकनिक प्वाइंट बना हुआ है। जब हम पहुंचे तो दो श्वेत महिलाएं उस घने जंगल में पदयात्रा करने के लिए आयी हुई थीं। हमसे कुछ हाय-हलो हुई और वे उस जंगल मे गुम हो गयीं। उस घने जंगल में भी टायलेट काफी साफ सुथरा मिला और डस्टबिन रखे हुए थे जिसको देखकर लगता था कि उसकी भी नियमित सफाई होती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

केप टाउन

केप टाउन में हम सायं 8.30 तक पहुंचे। केप टाउन को दक्षिण अफ्रीका की मदर सिटी का सम्मान हासिल है तथा यह शहर दुनिया के शीर्ष पर्यटन-स्थलों में भी शुमार किया जाता है। इस शहर को प्रकृति ने भी दो महासागरों और टेबल माउन्टेन की छांव में रचा है। रात में इस महानगर मे चमकती रोशनी में इसके समुद्र तटों में आप खोए रहेंगे और सुबह आपको शहर के हर हिस्से से समुद्र से 3558 फीट की ऊँचाई पर सिर उठाए सफेद बादलों की झुरमुट से झांकता टेबुल माउण्टेन दिखेगा और उसी के बगल 2195 फीट उंचाई पर शेर मुखाकृत वाला लायन हेड माउण्टेन दिखेगा। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है टेबल माउण्टेन की चोटी नुकीली न होकर टेबल की तरह है और लायन हेड माउण्टेन लगता है बैठे हुए शेर की मुखाकृति वाला यह पर्वत इस शहर की सुरक्षा में प्रकृति ने बैठा दिया हो। इन्हीं पवर्तमालाओं मे 1150 फीट ऊँचा सिग्नल हिल भी है, जिस पर खड़े होकर हमें पूरा शहर दिखाई देता हैं ।

केप टाउन को सर्वप्रथम 1488 मे पुर्तगाली नाविक बार्थो लोलोपाड्र डियास ने खोजा था, 1497 में वास्को डि गामा ने भी इस जगह को यूरोप से एशिया जाने के मार्ग के रूप में  चिन्हित किया था । 1488 में  पुर्तगाली नाविक बार्थो लोलोपाड्र डियास केप टाउन की खोज की

केप टाउन पहुंचने पर हम उसी दिन रात में समुद्र तट पर गए । केप टाउन के समुद्र का पानी बहुत ठंडा था । समुद्र तट पर्यटकों से गुलजार था। उसके बाद वाटर फ्रन्ट पहुंचे । वाटर फ्रण्ट केप टाउन के समस्त सौन्दर्य को समेटे पर्यटकों की भीड़ और गीत, संगीत से गुलजार था। तट के किनारे बने होटलों मे खाते-पीते दर्शक, लोक संगीत गाते बजाते कलाकारों के साथ मानो आप एक जादुई दुनिया मे पहुंच गए हों । केप टाउन मे पर्यटकों को घुमाने वाली बसों से इस शहर को देखना बहुत ही सुविधाजनक है। ये बसें दो मंजिला होती हैं और लाल, नीली, पीली बसों का अलग-अलग रूट होता है। एक बार आप पूरे दिन का टिकट ले लीजिए और टिकट के साथ दिए गए ब्रोशर में दर्शाए गए स्थलों का भ्रमण करते रहिए । ये बसें आपको निर्धारित पर्यटक स्थल पर उतार देंगी और आप उस स्थल को देखकर पुनः उसी स्टाप पर अगली बस को पकड़ कर अगले स्थल पर निकल लीजिए । ये बसें प्रायः अपने निर्धारित समय से पांच मिनट भी लेट नहीं होती हैं और आपको लगभग हर 25 मिनट पर मिलती रहेंगी । इन बसों से केपटाउन के समुद्र तटों, अंगूर के बागान और उनमें बनने वाली शराब की फैक्ट्रियों, टेबल माउण्टेन आदि को देखा जा सकता है। टेबल माउण्टेन की चोटी पर पैदल जाना श्रम साध्य कार्य है इसलिए केबल कार की सुविधा उपलव्ध है। हमें दो बार प्रयास करने पर केबल कार नहीं मिल पायी क्योंकि चोटी पर काफी तेज हवा चल रही थी। तीसरे प्रयास में हम इस पहाड़ की चोटी पर चढ़ सके जो अपने आकार के कारण काफी चैड़ाई मे दूर तक फैला हुआ था। पर्यटन बसें कई तरह के म्यूजियमों में भी ले गई। इस महानगर के म्यूजियम बहुत ही समृद्ध हैं।

आजकल खबर आ रही है कि केप टाउन प्यासा है। आश्चर्य हो रहा है कि दो महासागरों के मिलन-स्थल पर बसा उपनिवेशकालीन जहाजियों का यह शहर लोभ पर विकसित हुई सभ्यता की त्रासदियों से मनुष्यता को दो-चार करा रहा है और नवोन्मेष की चुनौतियों को परोस रहा है क्योंकि हम जहां तक चले आए हैं वहां से वापस लौटना मुमकिन नहीं है ।

कारू का रेगिस्तान और आस्ट्रिच की सवारी

गार्डन ररूट पर वापस लौटते हुए हमें जार्ज कस्बे से होते हुए आस्ट्रिच फार्म पर जाने के लिए कारू का रेगिस्तान पार करना पड़ा। यह दक्षिण अफ्रीका का अर्द्ध रेगिस्तानी क्षेत्र है, जिसमे दूर-दूर तक छोटी-छोटी वनस्पतियां बैगनी रंग की दिखाई पड़ती हैं और जगह-जगह पर भेड़, शुतुरमुर्ग के फार्म भी पड़ते हैं। इस रास्ते में कई दर्रे पड़ते हैं, जिनको पार करते हुए हम कांगो केव शुतुरमुर्ग फार्म पर पहुंचे। फार्म पर उपलव्ध गाइड महोदय ने शुतुरमुर्गों के सम्बन्ध में बहुत-सी जानकारी दी। ताकतवर शुतुरमुर्गों को देखकर भय भी लग रहा था लेकिन उस पर सवारी का आनन्द भी उठाया गया।  हमारे साथ ही एक अंग्रेज बुर्जुग ने भी सवारी का आनन्द लिया । प्रस्तर युग के आदिम मानव के रिहाइश स्थल कांगो केव का पता 1780 में एक स्थानीय किसान से लगा था। इन गुफाओं में सुरगें प्रवेश द्वार से 25 किमी भीतर तक चली गयी हैं। हमारे पहुंचते-पहुंचते प्रवेश का समय खत्म हो चुका था लेकिन गुफा के सम्बन्ध में दिखाई जाने वाली फिल्म से पता चला कि इन गुफाओं में आदिम युग से मनुष्य का वास रहा है। कांगो केव तक जाने का रास्ता भी ऊँचे पहाड़ों की मनोरम हरियाली से भरा हुआ था।

नाएज्ना

केप टाउन से निकल कर गार्डन रूट पर एक छोटे से कस्बे हरमानस पहुंचे। हरमानस समुद्रतट पर व्हेल दिखाई पड़ने की सम्भावना रहती है लेकिन हम सौभाग्यशाली नहीं थे । नाएज्ना में रात्रि निवास किया गया। यह कस्बा पोर्ट एलिजाबेथ और केप टाउन के मध्य पड़ता है। नाएज्ना का वाटर फ्रंट भी मनोहारी था । वाटर फ्रन्ट पर वाटर पोलो खेलने के लिए स्कूली बच्चों की टीमें आई हुई थीं। कस्बे में भारतीय खाने का रेस्तरां था जिसमें अफ्रीकी वेटर को हिन्दी बोलते देख कर अच्छा लगा। दक्षिण अफ्रीका के अधिकांश कस्बों की तरह यहां पर भी फाइन आर्टस की गैलरी थी। इस कस्बे के आस-पास समुद्र के कई बीच हैं, जहां पर आप दोपहर और शाम बिता सकते हैं। कस्बे से सटे काफी नीचे घने जंगल में पानी की एक पतली धारा के पास पिकनिक प्वाइंट बना हुआ है। जब हम पहुंचे तो दो श्वेत महिलाएं उस घने जंगल में पदयात्रा करने के लिए आयी हुई थीं। हमसे कुछ हाय-हलो हुई और वे उस जंगल मे गुम हो गयीं। उस घने जंगल में भी टायलेट काफी साफ सुथरा मिला और डस्टबिन रखे हुए थे जिसको देखकर लगता था कि उसकी भी नियमित सफाई होती है। पानी की जल धारा बहुत ठंडी थी, जिसमे थोड़ी देर तक पांव डाल कर सुस्ताने के बाद वापस आया गया। यदि समुद्रतट का आनन्द लेना हो तो गार्डन रूट पर नाएज्ना सबसे शान्त और खूबसूरत स्थान है।

[bs-quote quote=”इस यात्रा में दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों को गुजरते हुए जहां पर काले लोगों की बढ़ती भागीदारी को देखकर संतोष हुआ कि आने वाले वर्षों में यह मुल्क अफ्रीकी महाद्वीप का वह हिस्सा बनकर पूरे महाद्वीप की  मिली-जुली नस्लों और धर्मों के सम्मिलित प्रयास का शक्तिशाली इंजन बन सकेगा। इस तरह यह महाद्वीप मानव विकास का नया मुकाम हासिल कर सकेगा।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

किंम्बरली

गार्डन रूट को छोड़कर हम नाएज्ना से 800किमी दूर किंबरली पहुंचे। यह शहर हीरे की खदान के रूप में  मशहूर है। अब खदान बन्द हो गयी है लेकिन खदान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इस खदान से 3000 किग्रा हीरे निकाले गए हैं, जिसके लिए 463 मी चौड़ाई में 240 मी गहरी खुदाई की गयी है। इसके बिग होल में कितने मजदूरों की जान गयी होगी इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1871 में इस सुनसान इलाके में हीरा मिला था और 1872 में इस इलाके में 50000 लोग खुदाई कर रहे थे।

वापस जोहान्सबर्ग में अपार्थीड म्यूजियम

अफ्रीका के इतिहास मे रंगभेद के दमनकारी अध्याय और रंगभेद के खिलाफ अफ्रीकी जनता के संघर्ष और शेष विश्व के समर्थन को सहेजने के लिए एक शानदार म्यूजियम बनाया गया है, जिसमें लघु फिल्मों और फोटोग्राफ के माध्यम से अफ्रीका के शानदार अतीत के साथ रंगभेद और उपनिवेशकाल के काले कारनामों  के विरुद्ध संघर्ष को दर्शाया गया है। इस म्यूजियम को देखने में कम से कम 4 घण्टा व्यतीत करना ही इस म्यूजियम के साथ न्याय होगा।

जोहान्सबर्ग में अपार्थीड म्यूजियम

प्रिटोरिया

प्रिटोरिया दक्षिण अफ्रीका की तीन राजधानियों में से एक राजधानी है, जहां पर राष्ट्रपति रहते हैं । यह जोहान्सबर्ग से 80 किमी दूरी पर है। तुलनात्मक रूप से प्रिटोरिया की साफ-सफाई अच्छी नहीं है। प्रिटोरिया में यूनियन बिल्डिंग और फ्रीडम पार्क दर्शनीय स्थल हैं। फ्रीडम पार्क में बना म्यूजियम उच्च स्तरीय है, जिसमें  मानव विकास से लेकर रंगभेद तक के इतिहास को बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया है। इस म्यूजियम मे भी कम से कम 4 घण्टे का समय चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से हमारे पास समय नही था।

इस यात्रा में दक्षिण अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों को गुजरते हुए जहां पर काले लोगों की बढ़ती भागीदारी को देखकर संतोष हुआ कि आने वाले वर्षों में यह मुल्क अफ्रीकी महाद्वीप का वह हिस्सा बनकर पूरे महाद्वीप की  मिली-जुली नस्लों और धर्मों के सम्मिलित प्रयास का शक्तिशाली इंजन बन सकेगा। इस तरह यह महाद्वीप मानव विकास का नया मुकाम हासिल कर सकेगा।

समृद्ध श्वेत तथा भारतीय समुदाय लोकतंत्र से दिन पर दिन मजबूत हो रही काली चेतना से आशंकित जरूर है लेकिन इस विश्वास के साथ खड़ा है कि मण्डेला के आभामण्डल ने दक्षिण अफ्रीका की राष्ट्रीय चेतना को इतना विस्तार दिया है जिसमें वह अपनी गरिमा के साथ नागरिक भागीदारी निभा सकते हैं।

आज के दक्षिण अफ्रीका में गोरे तथा भारतीय-अरबी समुदाय को साधारणतया लक्षित कर राजनैतिक बढ़त हासिल करने का एक अतिवादी नस्ली रुझान विकसित होता दिख रहा है और सम्पदा और समृ़द्धि के बंटवारे को नस्ली नजरिए से तय करना चाह रहा है। इसी के गर्भ से एक राजनैतिक शब्दावली भी विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें गैर काले समुदाय को दक्षिण अफ्रीका की मुक्ति के बाद बने रहने को समस्या के तौर पर रेखांकित कर उसके लिए मण्डेला की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जाय।

पीढ़ियों से दक्षिण अफ्रीका में बसे एक परिवार से बात करने पर पता चला कि वह भारत के नए राजनैतिक उभार से खुश हैं लेकिन इसी राजनैतिक धारा का दक्षिण अफ्रीकी संस्करण उनको डरा रहा है। लोकतंत्र के अन्दर बहुमतवाद असहमत विचारों के प्रति कब असहिष्णु हो जाता है यह लोगों को जबतक समझ में आता है तब तक देर हो चुकी होती है। उपनिवेशकालीन और रंगभेदकालीन दौर में उत्पीड़ित काले समुदाय के कन्धे से कन्धा मिला कर लड़े गोरे और भारतीय नायक दक्षिण अफ्रीका को बहुमतवाद की आड़ में छिपे नस्लवाद को पहचानने में मदद करेंगे। जब कोई काला बच्चा उनकी तस्वीरों को निहारेगा तो वे उसके कान में धीरे से फुसफुसाएंगे कि तुम्हारे पुरखों की मजबूरी थी लड़ना, लेकिन हमने तो तुम्हारी मुस्कराहटों लिए पक्षद्रोह किया था!

संतोष कुमार जाने माने कथाकार हैं ।

 

गाँव के लोग
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