नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दो हफ्ते पहले एक व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत राजनैतिक दलों के डोनर्स को अनिवार्य रूप से उनके द्वारा ए गए चंदे का विवरण देना होगा।
इलेक्टोरल बांड, नकद या किसी अन्य रूप में किए गए डोनेशन का विवरण देनेवाले यह आंकड़े केवल सरकार के पास रहेंगे और सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक करार देकर बंद करने का आदेश दिया, लेकिन सरकार ने अब एक ऐसा रास्ता निकाला है जिससे हर व्यक्ति, कॉर्पोरेट और संगठन द्वारा राजनैतिक दलों को दिए गए चंदे के संबंध में डेटा एकत्र किया जा सके।
इस व्यवस्था के लागू होने के बाद जो केंद्र सरकार अभी कुछ दिनों पहले तक राजनैतिक दलों को मिलने वाले डोनेशन की जानकारी पार्टियों और नागरिकों से छिपाकर रखने की वकालत करती थी, वही अब सभी प्रकार के राजनैतिक डोनेशन पर विस्तृत डेटा रखनेवाली एकमात्र संस्था बन जाएगी।
केंद्र सरकार के कानूनों में इतना विस्तृत डेटा एकत्र करने की अनुमति चुनाव आयोग तक को नहीं है, जिसपर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की संवैधानिक जिम्मेदारी है और जो कार्यपालिका से अलग हटकर काम करता है।
यह प्रक्रिया बेहद सरल है: वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने आयकर रिटर्न के नए फॉर्म जारी किए हैं। इन फॉर्मों में, सभी व्यक्तियों, कॉर्पोरेट घरानों और अन्य संगठनों को अपने वार्षिक रिटर्न में आयकर विभाग को राजनैतिक डोनेशन की जानकारी देनी होगी। डोनर्स को यह बताना अनिवार्य नहीं है कि उन्होंने किस पार्टी को चंदा दिया। लेकिन उन्हें यह बताना होगा कि उन्होंने नकद, चेक या किसी अन्य रूप में कितना पैसा दिया। उन्हें अपने प्रत्येक डोनेशन का बैंक विवरण भी जमा करना होगा। इसमें इलेक्टोरल बांड के जरिए दिया गया चंदा भी शामिल होगा। इन नए फॉर्म का उपयोग चालू वित्तीय वर्ष (FY23-24) से शुरू किया जाएगा और राजनैतिक दलों को मिले डोनेशन की जानकारी इकठ्ठा की जाएगी।
आयकर अधिनियम के तहत, आयकर विभाग को लेनदेन के विवरण का दूसरे डेटाबेस से मिलान करने का अधिकार है। जरूरत पड़ने पर वह कानूनी तौर पर अन्य सरकारी एजेंसियों, बैंकों और निजी निकायों से जानकारी मांग सकते हैं। इसके पास ऐसे तकनीकी उपकरण भी हैं जिनके द्वारा यह दूसरे सरकारी डेटाबेस के साथ इस जानकारी को क्रॉस-मैच कर सके।
वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया, “कटौती की कुल राशि (राजनैतिक डोनेशन पर टैक्स में मिलनेवाली छूट) की जानकारी पहले भी ली जाती थी। अब अधिक विस्तृत विवरण एकत्र किया जा सकता है, उदाहरण के लिए लेनदेन की औसत राशि, उच्चतम राशि, आदि। आईटीआर [आय कर रिटर्न] डेटा को वित्त मंत्रालय के तहत अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है”।
प्रवर्तन निदेशालय एक कानून प्रवर्तन एजेंसी है जो वित्त मंत्रालय को रिपोर्ट करती है। भारत में राजनैतिक विपक्ष को कथित रूप से निशाना बनाने के लिए यह अक्सर सुर्ख़ियों में रहती है।
“विभाग रिटर्न फॉर्म से इलेक्ट्रॉनिक रूप में डेटा एकत्र करता है। इसलिए यह सहजता से फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट के साथ साझा किया जाता है, जो फिर इसे सभी प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा करती है,” सीबीडीटी के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने बताया।
सीबीडीटी एक शीर्ष सरकारी प्राधिकरण है, जिसकी देखरेख में प्रत्यक्ष कर जैसे व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आयकर आदि का संग्रह किया जाता है। और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आती है। यह राष्ट्रीय एजेंसी संदिग्ध वित्तीय लेनदेन के बारे में जानकारी एकत्र करती है। यह इस जानकारी की प्रोसेसिंग और विश्लेषण करके फिर इसे प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा करती है।
“मेरे विचार से, यह (सभी प्रकार के राजनैतिक डोनेशन का विवरण एकत्र करना) कुछ ज्यादा ही है,” उपरोक्त सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा।
द कलेक्टिव ने राजनैतिक डोनेशन के आंकड़ों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने वाले परिवर्तनों के संबंध में वित्त मंत्रालय और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को सवाल भेजे। हमें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
नए इनकम टैक्स फॉर्म
“हाल के वर्षों में एक बड़ा घोटाला हुआ जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों के माध्यम से बहुत सा पैसा इधर-उधर किया गया। और लोगों ने इन फर्जी संस्थाओं को ‘डोनेट’ करके टैक्स में कटौती मांगी। इसलिए आयकर विभाग ने करदाताओं से इनके विवरण मांगकर पूछताछ की,” राजस्व विभाग के उपरोक्त अधिकारी ने बताया।
“नए आईटीआर फॉर्मों में केवल करदाताओं की ओर से जानकारी मांगी जाती है। उस राजनैतिक दल के बारे में कोई जानकारी नहीं मांगी जाती है जिसे डोनेशन दिया गया है, जैसे डोनेशन लेने वाले का नाम या पैन [भारतीय आयकर विभाग द्वारा जारी स्थायी खाता संख्या]। वे इस जानकारी को और अधिक सार्थक तरीके से मांग सकते थे ताकि उन फर्जी राजनैतिक दलों को बेहतर ढंग से पहचाना जा सके जो टैक्स में मिलनेवाली छूट का गलत तरीके से उपयोग कर रहे हैं,” चार्टर्ड अकाउंटेंट और ऑडिटर के तौर पर काम करने वाले चिराग चौहान ने कहा।
राजनैतिक दलों को डोनेशन में मिली राशि का खुलासा चुनाव आयोग के साथ-साथ टैक्स अधिकारियों को भी करना होता है।
अभी पिछले वित्तीय वर्ष तक डोनर्स को केवल राजनैतिक चंदे के तौर दी गई कुल राशि की जानकारी देनी होती थी। किसी भी रूप में दिए गए राजनैतिक डोनेशन को आयकर कानून की धारा 80जीजीसी के तहत टैक्स से छूट मिलती है।
दिसंबर 2023 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने एक अधिसूचना जारी कर राजनैतिक डोनेशन का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया। इसे अब नए आईटीआर फॉर्म के माध्यम से लागू किया गया है। अधिसूचना में धारा 80जीजीसी के तहत कहा गया है कि, ‘ई-फाइलिंग यूटिलिटी में दिए गए ड्रॉप डाउन में विवरण भरना होगा’।
इससे पहले, इस तरह के डोनेशन के लेनदेन का विवरण मांगने वाला कोई “ड्रॉप डाउन” विकल्प नहीं था। नए आयकर रिटर्न फॉर्म ने अब इन बदलावों की पुष्टि कर दी है।
इन फॉर्मों में, जिनमें वित्तीय वर्ष 2023-24 का डेटा भरा जाएगा, करदाताओं को विवरण देना होगा कि उन्होंने राजनैतिक दलों को कितना डोनेशन दिया — नकद पैसे, और “अन्य मोड” के माध्यम से डोनेट की गई राशि के लेनदेन के अतिरिक्त विवरण जैसे आईडी और चेक नंबर आदि भी देने होंगे।
गुमनामी का सवाल
राजनैतिक चंदे की इतनी विस्तृत जानकारी एकत्र करने का यह कदम केंद्र सरकार द्वारा 2018 में इलेक्टोरल बांड की घोषणा करते समय किए गए दावों के बिलकुल विपरीत है।
तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि डोनर्स किसी “राजनैतिक दल को दिए गए डोनेशन के विवरण का खुलासा करने के इच्छुक नहीं होते, क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने से (उस दल के) राजनैतिक विरोधी नाराज़ हो सकते हैं”। उन्होंने कहा था कि इलेक्टोरल बांड ऐसे डोनेशन को गुप्त रखेंगे और राजनैतिक दलों को चंदा देने के लिए नकदी के उपयोग को हतोत्साहित करेंगे।
केंद्र सरकार ने अपारदर्शी इलेक्टोरल बांड के उपयोग का बचाव करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी यही तर्क दिया। लेकिन अदालत ने इसे नहीं माना। शीर्ष अदालत ने अब चुनाव आयोग को अप्रैल 2019 के बाद इलेक्टोरल बांड के माध्यम से राजनैतिक दलों को मिले पूरे डोनेशन का खुलासा करने का निर्देश दिया है।
ऐसा नहीं था कि चुनावी बांड पूरी तरह से अपारदर्शी थे। पूनम अग्रवाल, जो तब द क्विंट के साथ थीं, उन्होंने एक रिपोर्ट में बताया था कि इलेक्टोरल बांड में एक यूनिक सीरियल नंबर होता है। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच से पता चला था कि सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने इलेक्टोरल बांड पर यूनिक सीरियल नंबर रखने पर जोर दिया था। इसकी मदद से एसबीआई इस बात का पूरा लेखा-जोखा रख सकता था कि यह बांड किसने खरीदे और किस राजनैतिक दल ने उन्हें भुनाया। एसबीआई एकमात्र बैंक था जिसे इलेक्टोरल बांड बेचने की अनुमति थी। आगे की जांच से पता चला कि एसबीआई ने पहले वित्त मंत्रालय से बांड्स की समाप्ति तिथि के बाद उन्हें भुनाने के निर्देश लिए थे।
अब तक इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनैतिक दलों को 16,518 करोड़ रुपए मिले हैं — लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने यह रास्ता बंद कर दिया है। इसमें से 6,566 करोड़ रुपए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मिले हैं। यदि चुनावी डोनेशन के माध्यम से प्राप्त धन के आधार पर रैंकिंग की जाए, तो भाजपा को अगली तीन सबसे बड़ी पार्टियों की तुलना में अधिक पैसे मिले हैं। इलेक्टोरल बांड के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को लगभग 1,123 करोड़ रुपए, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस को लगभग 1,093 करोड़ रुपए और बीजू जनता दल को लगभग 774 करोड़ रुपए मिले।
2022-23 में भाजपा को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से 1,294.14 करोड़ रुपए और अन्य स्रोतों से 825.92 करोड़ रुपए का डोनेशन मिला। कांग्रेस को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से 171.02 करोड़ रुपए और अन्य स्रोतों से 97.60 करोड़ रुपए मिले। अब इलेक्टोरल बांड बंद हो जाने से भाजपा और अन्य सभी पार्टियों को सीधे बैंक ट्रांसफर, कॉर्पोरेट डोनर्स और लोगों से नकद चंदे पर निर्भर रहना होगा। लेकिन इलेक्टोरल ट्रस्टों के माध्यम उन्हें डोनेशन मिलता रहेगा।
लेकिन, इस वित्तीय वर्ष से सरकार के पास अब इस तरह के हर लेनदेन का विवरण होगा, जिसका खुलासा डोनर्स द्वारा सालाना आयकर अधिकारियों को अनिवार्य रूप से किया जाएगा।
(साभार – द रिपोर्टर्स कलेक्टिव)