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मेरा लेख छपने के बाद क्रांतिकारियों ने जहाँ भी बैंक लूटे, उसका लिंक मुझसे जोड़ा गया

बातचीत का दूसरा हिस्सा  इधर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर हमले बढ़े हैं? आज की खबर है कि छत्तीसगढ़ में 10 आदिवासी मारे गये हैं। जिनमें सभी महिलाएं हैं। पहली मार्च को 8 लोग मारे गये हैं, जिनमें 5 महिलाएं हैं। इस 3 माह में 100 से ज्यादा आदिवासी सुकमा, दंतेवारा, बीजापुर, माड, नारायणपुर में मारे […]

बातचीत का दूसरा हिस्सा 

इधर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर हमले बढ़े हैं?

आज की खबर है कि छत्तीसगढ़ में 10 आदिवासी मारे गये हैं। जिनमें सभी महिलाएं हैं। पहली मार्च को 8 लोग मारे गये हैं, जिनमें 5 महिलाएं हैं। इस 3 माह में 100 से ज्यादा आदिवासी सुकमा, दंतेवारा, बीजापुर, माड, नारायणपुर में मारे गये। अब बच्चे, स्त्री किसी को भी नहीं छोड़ रहे हैं। इनकाउंटर किलिंग में महिलाओं के साथ बलात्कार कॉमन फार्मूला हो गया है। सी.एल.सी.(सिविल लिबट्री फोरम), एच.आर.एफ(ह्यूमन राइट्स फोरम) लगातार दुनिया भर में मानवाधिकार संगठनों के पास सूचना भेज रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में फैक्ट फाइंडिग कमिटि को भेज रहा है। जगदलपुर में आदिवासियों के दमन के विरुद्ध कानूनी सहायता उपलब्ध कराने वाली लायर्स इनिसिएटिव की 5 महिला अधिवक्ताओं को राज्यपोषित बार एशोसिएशन ने जगदलपुर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। लोकल बार एशोसिएशन ने इन 5 महिला वकीलों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर जगदलपुर से बाहर कर दिया है। ये वकील भी महिलाएं ही हैं और इन पर आदिवासी महिलाओं के मानवाधिकार का पक्ष लेने का आरोप है। इन्हीं महिला वकीलों से मिलकर लौट रही सोनी सोरी पर इधर हमला हुआ है। 2 पत्रकार जेल में हैं। हिमांशु तो गांधीवादी थे, उन्हें दंतेवारा इलाके से भगा दिया गया। प्रोफेसर साई बाबा को क्यों जेल भेजा गया है? नंदिनी सुंदर सलवा जुडूम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा की थी तो नंदिनी सुंदर को भी धमकी दी गई है।

क्रांतिकारी रचनाकारों के संगठन ‘विरसम’ की स्थापना और आपके संपादन में प्रकाशित ‘सृजना’ के बारे में बताएंगे। ‘विरसम’ और ‘सृजना’ पर कई बार प्रतिबंध भी लगे।

श्रीकाकुलम में नक्सलवादी संघर्ष की प्रेरणा से क्रांतिकारी रचनाकारों के लिए संगठन खड़ा करने की समझ बनी। प्रेमचंद के नेतृत्व वाला प्रगतिशील लेखक संघ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा हो गया था तो आंध्र प्रदेश में प्रगतिशील रचनाकारों की तीन धाराएं थीं। कुटुंबा राव, आर वी. शास्त्री, के वी आर (के.वी.रमना रेड्डी) ऐसे लोगों की पहली धारा नक्सलवादी-श्रीकाकुलम के समर्थन में इकट्ठे हुए। दूसरी धारा में दिगंबर कबलू, ज्वालामुखी, निखिलेश्वर, चरबंड राजू जैसे कवि थे। इस धारा में 6 कवि साथ थे। इस धारा का कहना था, मुखौटा हटाओ, साफ-साफ चेहरा दिखना चाहिए, जैसे हम सब नंगे हैं। ‘दिगंबर कबलू’ का तीन खंडों में कविता संग्रह प्रकाशित हुआ। तीसरी धारा तिरुगबडु Revolt ,यह समूह वरंगल से आया। यह समूह सशस्त्र संघर्ष की प्रेरणा से रचना कर रहा था। मैं वरवर राव, लोचन, अशोक सहित 10 कवि इस समूह में साथ थे। तीनों समूह ने नक्सलबाड़ी-श्रीकाकुलम के प्रभाव में इकट्ठे होकर ऐलान किया कि ‘हम तेलंगाना, नक्सलवाड़ी, श्रीकाकुलम के सशस्त्र संघर्ष के पक्ष में हैं। हम देश भर में जारी क्रांतिकारी वर्ग संघर्ष का समर्थन करते हैं।’ हमने 4 जुलाई 1970 को 9 कवियों के साथ मिलकर विरसम की नींव रखी। 4 जुलाई अमरीकन सिविल वार का दिवस है। तेलंगाना में डोड्डी कोमरय्या की शहादत का ऐतिहासिक दिवस 1946 का 4 जुलाई है। विरसम (विप्लव रचेयतला संघम) का मतलब स्पष्ट है-विप्लवी रचना लिखने वाले रचनाकारों का समूह। जनकवि सुब्बाराव पाणिग्रही की शहादत से हम ‘विरसम’ के लिए प्रेरित हुए। पाणिग्रही ने कविता लिखने के साथ-साथ जनता के पक्ष में बंदूक उठाया था। पाणिग्रही तो 1969 में ही शहीद हो गये लेकिन पाणिग्रही की शहादत विरसम को प्रेरित करता रहा। विरसम के कवि सांबा शिवाराव भी सशस्त्र संघर्ष में शामिल हुए। वे पीपुल्स वार ग्रुप के सेंट्रल कमिटी सदस्य भी हुए। 20 साल पहले सांबा शिवाराव की कैंसर से मौत हो गयी।

[bs-quote quote=”विरसम और सृजना पर प्रतिबंध लगाना-हटाना तो सरकारी खेल है। हर हमले का जवाब देते हुए अपना काम करने का रास्ता हम जान चुके हैं। विरसम पर अंतिम प्रतिबंध 2005 के अगस्त माह में लगाया गया था, जो 3 माह के बाद समाप्त हो गया। विरसम तमाम प्रतिबंधों और मुकदमों के रास्ते बढ़ते हुए आज काफी सक्रिय है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

विरसम की स्थापना के बाद ‘विरसम’ ने 1970 के उत्तरार्ध में 2 कविता संग्रह ‘मार्च’ और ‘झेंझा’ को श्री श्री के नेतृत्व में प्रकाशित किया। दोनों कविता संग्रह को सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया। मार्च और झेंझा पर प्रतिबंध के बाद राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ। 1971 के अगस्त में विरसम के 3 कवि-लेखक ज्वालामुखी, चेरबंड राजू और निखिलेश्वर को गिरफ्तार किया गया। 1973 में विरसम के तीन कवि चरबंड राजू, एम.टी.खान और मुझे मीसा की  तहत गिरफ्तार किया गया।

अंपासैय्या नवीन, जी.रामारेड्डी, वी.नरसिंहा रेड्डी के साथ होकर हम 4 कवि लेखकों ने 1966 में त्रैमासिक पत्रिका ‘सृजना’ का प्रकाशन शुरू किया था। हमने इसे वैज्ञानिक चिंतन, प्रयोगशीलता और प्रगतिवादी मूल्यों पर केंद्रित आधुनिक साहित्य का मंच घोषित किया था। 1967 में जब नक्सलबाड़ी शुरू हुआ तो उसके प्रभाव में मेरे एक छात्र ने कविता लिखी थी-‘रक्त चलन संगीतश्रुति’। कवि चंद्रा की यह कविता सृजना में छपने से काफी चर्चित हुई थी। 1969 में तेलंगाना राज्य का आंदोलन तेज हुआ तो कवि लोचन की कविता ‘सृजना’ में छपी। उस कविता का शीर्षक था-ट्रिगर पर अंगुली रख कर आओ। तेलुगु कविता में लोचन की इस कविता को टर्निंग-प्वाइंट माना जाता है। विरसम की स्थापना की पृष्ठभूमि में ‘सृजना’ की भी बड़ी भूमिका है। विरसम का सहयोग मिलने पर ‘सृजना’ मासिक हो गयी। ‘सृजना’ का संपादक, प्रकाशक, मुद्रक तो वरवर राव ही थे। 1973 में जब गिरफ्तार हुआ और जेल गया तो पत्नी हेमलता ‘सृजना’ की संपादक, प्रकाशक, मुद्रक हुई। हेमलता के संपादन में प्रकाशित ‘सृजना’ के 6 अंकों को प्रतिबंधित किया गया। जिन अंकों को प्रतिबंधित किया गया, उन पर मुकदमे भी हुए। 1974 में जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में 35 दिनों का अखिल भारतीय रेलवे हड़ताल बहुत बड़ा आंदोलन हो गया था। ‘सृजना’ ने इस आंदोलन के समर्थन में एक रेलवे कर्मचारी की कविता प्रकाशित की थी। कविता का शीर्षक था क्या जेल रेल को चला लेगा? इस कविता पर मैंने संपादकीय लिखा था। हड़ताल का समर्थन करने वाली कविता छापने के आरोप में ‘सृजना’ को प्रतिबंधित किया गया। हमने प्रतिबंध को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी कि आपातकाल आ गया। जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई, उस दिन मैं गिरफ्तार कर लिया गया था। हाईकोर्ट ने ‘सृजना’ पर लगा प्रतिबंध हटाने से इनकार किया और ‘सृजना’ के संपादक हेमलता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जब जॉर्ज फर्नांडीस केंद्रीय मंत्री होकर हैदराबाद आये थे तो उसी समय ‘सृजना’ के संपादक हेमलता को अदालत ने 2 साल की सजा सुनायी थी। पत्रकारों ने जॉर्ज से सवाल पूछा था- रेलवे हड़ताल का नेतृत्व करने वाले आप सरकार के मंत्री हो गये और हड़ताल का समर्थन करने वाली एक महिला संपादक को 2 साल की सजा सुनायी गयी है। जॉर्ज की प्रतिक्रिया तब चर्चित हुई थी। इसे कहते हैं- Drama of absurdity.

विरसम और सृजना पर प्रतिबंध तो नहीं है?

विरसम और सृजना पर प्रतिबंध लगाना-हटाना तो सरकारी खेल है। हर हमले का जवाब देते हुए अपना काम करने का रास्ता हम जान चुके हैं। विरसम पर अंतिम प्रतिबंध 2005 के अगस्त माह में लगाया गया था, जो 3 माह के बाद समाप्त हो गया। विरसम तमाम प्रतिबंधों और मुकदमों के रास्ते बढ़ते हुए आज काफी सक्रिय है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के सभी जिलों में इससे लोग जुड़े हैं। हैदराबाद की शाखा ज्यादा संगठित है। यहाँ 100 से ज्यादा कवि-लेखक विरसम के सदस्य हैं। विरसम सशस्त्र संघर्ष को समर्थन करनेवाला क्रांतिकारी रचनाकारों का भारत में पहला संगठन है। ‘सृजना’ के कई अंक प्रतिबंधित हुए पर मुझे गर्व है कि 26 वर्षों में ‘सृजना’ के 200 से ज्यादा अंक प्रकाशित हुए। ‘सृजना’ के 200 अंकों को एक साथ डिजीटल संकलन किया गया है।

 आप कितनी बार जेल गये? जेल में कितने वर्ष बिताये? मुकदमे क्या अब भी आपके खिलाफ अदालतों में विचाराधीन हैं?

मैं मीसा के तहत जेल में बंद था तो सिकंदराबाद षड्यंत्र केस और रामनगरी षड्यंत्र केस में मुझे फंसाया गया। क्रांतिकारियों के बैंक लूट पर ‘सृजना’ के एक अंक में लेख लिखा था कि इसे economic-action कहा जाये। इस लेख के छपने के बाद क्रांतिकारियों  ने जहाँ भी बैंक लूटे, उसका लिंक मुझसे जोड़ा गया। यह विरसम का बैंक लूट के संदर्भ में लिया गया सामूहिक प्रस्ताव था। सिकंदराबाद षड्यंत्र केस में क्रांतिकारी लेखकों के.वी.रमणा रेड्डी, टी.मकसूदन राव, एम.रंगनाधम, चरवंड राजू, एम.टी.खान और मुझे अभियुक्त बनाया गया। 1986 में जब हम लोग जेल में थे तभी रामनगरी षड्यंत्र केस तैयार किया गया। पीपुल्स वार के राज्य सचिव नल्ला आदि रेड्डी (श्याम) रामनगर में गिरफ्तार किए गए थे, इसलिए इस केस को रामनगर षड्यंत्र केस कहा गया। 85 में मेरे ऊपर टाडा आ गया तो 3 वर्ष तक जमानत असंभव हो गया। टाडा से पहले राष्ट्रद्रोही सहित दर्जनों मुकदमे तो थे ही। जीवन के लगभग 9 वर्ष जेल में बिताये। कितनी बार जेल गये। इतना याद भी नहीं है। राष्ट्रद्रोह और टाडा सहित कई मुकदमें समाप्त हो चुके हैं। अभी भी कई मुकदमे कायम हैं।

[bs-quote quote=”मैंने पंछी, ऋतुओं को इंगित कर जेल के भीतर से लिखना शुरू किया था। मेरे मूल तेलुगु आलेख को इंडियन एक्सप्रेस के तेलुगु संस्करण ‘आंध्र प्रभा’ ने 13 किस्तों में छापा तो इंडियन एक्सप्रेस ने इसका अनुवाद कर पूरे देश तक मेरी आवाज पहुँचायी। संपादक अरुण शौरी का एक रूप यह भी है, जिसे सार्वजनिक करने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

आपकी जेल डायरी इंडियन एक्सप्रेस में छप रही थी। क्या आप जेल के भीतर भी रचनाधर्मिता से जुड़े रहे?

इंडियन एक्सप्रेस के संपादक अरुण शौरी आंध्र में पुलिस इनकाउंटर के विरुद्ध गठित तारकुंडे कमिटी में 1975 में एक सदस्य थे। उस कमिटी में अरुण शौरी और कन्नाविरण की बड़ी भूमिका थी। अरुण शौरी टाडा के तहत गिरफ्तार होने के बाद मुझसे मिलने 1986 में हैदराबाद जेल पहुँचे। उन्होंने मुझसे पूछा आप जेल में रहकर मेरे लिए कुछ लिख सकते हैं। मैंने कहा-जेल के भीतर तो बहुत तरह की बंदिशें होती हैं। हम इन बंदिशों में जेल के भीतर से बाहर की दुनियां से किस तरह बात करें। मैंने अरुण शौरी के आग्रह पर लिखने की कोशिश की। सोचने लगा, पंछी से क्या बात होती है, पेड़-पौधों से, आकाश से तारों से बाहर के अपने दोस्तों के बारे में जो भी सोचता हूँ उसे लिख सकता हूँ। आंध्र प्रदेश में 1985-89 में एनटीआर के समय में आंध्र प्रदेश में 13000 लोगों को टाडा के तहत जेल में बंद कर दिया गया था। इनमें छात्र, नौजवान, किसान, संस्कृतिकर्मी सबसे ज्यादा थे। एनटीआर के इस क्रूरतम दौर में कहा गया था, आटा-माटा-पाटा बंद। आटा-सांस्कृतिक प्रतिरोध नहीं होगा। माटा-भाषण नहीं होगा, सरकार के खिलाफ। पाटा-गाना भी नहीं होगा, सरकार के खिलाफ। आटा-माटा-पाटा का जो उल्लंघन करेगा, उसके लिए टाडा की सजा।

मैंने पंछी, ऋतुओं को इंगित कर जेल के भीतर से लिखना शुरू किया था। मेरे मूल तेलुगु आलेख को इंडियन एक्सप्रेस के तेलुगु संस्करण ‘आंध्र प्रभा’ ने 13 किस्तों में छापा तो इंडियन एक्सप्रेस ने इसका अनुवाद कर पूरे देश तक मेरी आवाज पहुँचायी। संपादक अरुण शौरी का एक रूप यह भी है, जिसे सार्वजनिक करने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है।

जानकारी मिली है कि विरसम के प्रभाव से आंध्र प्रदेश में काफी साहित्य रचे गये। काफी नाटक और फिल्में चर्चित हुई हैं। आप इसके बारे में बतायेंगे।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में साहित्य-संस्कृति के निर्माण में विरसम के साथ-साथ गद्दर के नेतृत्व में जन नाट्य मंडल की बड़ी भूमिका रही है। जन नाट्य मंडली के प्रभाव और प्रवाह में हजारों नाटक रचे गये। विरसम से जुड़े कई रचनाकारों ने फिल्मों के लिए भी पटकथाएं लिखी। नारायण मूर्ति 30 साल से सिर्फ क्रांतिकारी फिल्में बना रहे हैं। चर्चित फिल्म निर्देशक सी. उमा महेश्वर राव ने विरसम के प्रभाव में अंकुरम फिल्म बनायी। अंकुरम क्रांतिकारी संघर्ष को आवाज देने वाली पुरस्कृत फिल्म है। इस फिल्म को 1993 में भारत सरकार ने नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मानित किया है। इस तेलुगु फिल्म में चर्चित तेलुगु अभिनेत्री रेवती के साथ ओमपुरी की भूमिका काफी लोकप्रिय हुई है। इस फिल्म को जन अवाम के बीच काफी लोकप्रियता हासिल हुई है।

 विरसम पर किन रचनाकारों का प्रभाव रहा है। विरसम के रचनाकार पुरस्कारों के बारे में क्या राय रखते हैं?

आपसे बताया था कि तेलुगु के प्रसिद्ध कवि सुब्बा राव पाणिग्रही की शहादत ने ‘विरसम’ की स्थापना की प्रेरणा दी। श्री श्री जैसे महाकवि जिनकी षष्ठीपूर्ति में 20 हजार से बड़ा जनसैलाब उमड़ पड़ा था। महाकवि श्री श्री विरसम के मार्गदर्शक-पथ प्रदर्शक रहे हैं तो विरसम पर जाहिर है कि पाब्लो, ब्रेख्त, नाजिम हिकमत, फैज अहमद फैज का प्रभाव है। विरसम अब एक संगठन मात्र नहीं, परंपरा और विरासत की तरह हमें प्रेरित करता है। विरसम की परंपरा का लेखक पुरस्कार के लिए रचना नहीं करता है। सात्र ने जैसे नोबल को यह कहते हुए ठुकराया था कि ‘सात्र कहना और नोबल वीनर सात्र कहने में फर्क हो जायेगा। मेरे लिए मेरे शब्द ही सम्मान हैं।’ विरसम का रचनाकार अपनी रचना से विरसम का लेखक माना जाये, यही उसके हिस्से का बड़ा सम्मान है। लोक कवि नागार्जुन का बड़ा नाम है। नागार्जुन के नाम के साथ पद्मश्री जोड़ने से नागार्जुन की इज्जत नहीं बढ़ जायेगी।

क्रमशः

पुष्पराज जाने-माने स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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