Saturday, July 27, 2024
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महंगाई की मार से त्रस्त हुआ आम आदमी, टमाटर खाने की जगह देखने की चीज बना

वाराणसी। पांडेयपुर निवासी सुरेश तकरीबन एक सप्ताह से दाल-चावल खा रहे हैं। खाने में सब्जी अब उन्हें मयस्सर नहीं है। टमाटर के साथ अन्य सब्जियों के बढ़ते दाम के कारण सुरेश जैसे कई परिवारों की थाली से सब्जी गायब हो गई है। वह कहते हैं कि सिलेंडर के दाम भी आसमान पर हैं इसलिए हम […]

वाराणसी। पांडेयपुर निवासी सुरेश तकरीबन एक सप्ताह से दाल-चावल खा रहे हैं। खाने में सब्जी अब उन्हें मयस्सर नहीं है। टमाटर के साथ अन्य सब्जियों के बढ़ते दाम के कारण सुरेश जैसे कई परिवारों की थाली से सब्जी गायब हो गई है। वह कहते हैं कि सिलेंडर के दाम भी आसमान पर हैं इसलिए हम एक समय में ही सुबह और शाम का खाना बना लेते हैं। सुरेश अपनी बहन सरिता के साथ सुबह का खाना खाने जा रहे थे। सड़क से ही मैंने उनकी झोपड़ी में बड़ी सी थाली में ढेर सारा पका चावल यानी भात देख लिया था। काफी मनौव्वल के बाद सुरेश बात करने और फोटो खिंचवाने को राजी हुए। भात से भरी थाली के बगल में एक लोटा भरके दाल भी रखी हुई थी। सुरेश नहाकर खाने के पास बैठकर अपनी बहन का इंतज़ार कर रहे थे। वह बताते हैं कि खाने में सब्जी के कारण पहले जैसा स्वाद तो नहीं आता लेकिन क्या करें पेट की भूख है खिलाए न मिटेगी…। सुरेश कहते हैं कि हमारी कमाई नहीं बढ़ रही है, लेकिन महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। मैं एक सप्ताह पहले 10 रुपये का आधा किलो टमाटर खरीदता था। छोटे-छोटे चार टमाटर तौलकर ठेला वाले से ले आता था, जिसे हम दो दिन चलाते थे। सारी सब्जियां महँगी हैं इसलिए टमाटर की चटनी बनाकर भी चावल के साथ खा लेते थे। अब तो वह भी नसीब नहीं हो प् रही है। वाराणसी में टमाटर 20 से 30 रुपये हुआ फिर 40 से सीधा 80 फिर 100 फिर 120 फिर 140, कहीं-कहीं 150-160 रुपये बिक रहे हैं। यहाँ मानसून के दस्तक देने के साथ ही टमाटर के बढ़ते भावों ने लोगों का ‘बजट’ बिगाड़ दिया है।

यही हाल हुकूलगंज निवासी अवधेश का है। इनके यहाँ भी सब्जी बने तकरीबन 10 दिन हो गए हैं। मिट्टी के चूल्हे पर आज अवधेश की पत्नी सन्नो मांस पका रही थी, जिसे किसी ने बकरीद के मौके पर दे दिया था। मीट को सन्नो सिर्फ पानी और नमक-मिर्च डालकर पका रही थी। अवधेश बताते हैं कि सब्जी का दाम तो जमीन के भाव की तरह बढ़ रहा है। हम तो बरसों से यहीं रह रहे हैं। इसी कारण एक टुकड़ा जमीन भी नहीं ले पाए। पीछे ही डूडा ऑफिस है लेकिन कभी भी आवास के लिए कोई पूछने तक नहीं आया। बीती रात बारिश में अपनी गृहस्थी सहेजते-सहेजते आज अवधेश के यहाँ सुबह 10 बजे खाना बन रहा था। आम दिनों में वह सुबह आठ बजे खाना खाकर वह अपने काम को चले जाते थे। अदरक का दाम भी बढ़ जाने के सवाल पर अवधेश बताते हैं कि अब हम काली चाय पी रहे हैं, जो सिर्फ चीनी-चायपत्ती से बन जाती है।

कज्जाकपुरा की गृहिणी गुड़िया बताती हैं कि पाँच-छह दिन पहले ठेले वाला टमाटर का दाम सौ रुपये किलो बताने लगा। उसके ठेले पर मात्र दो या तीन किलो टमाटर रहे होंगे। मोल-भाव पर वह नाराज भी हो गया। पहले वह ऐसा नहीं करता था। तब पता चला कि टमाटर के दाम अचानक बढ़ गए हैं। वैसे तो सभी सब्जियों के दाम आसमान पर पहुँच गए हैं लेकिन भोजन तो करना ही है। अन्य चीजों की महंगाई के साथ इस माह से घर की बजट पर एक और ‘ग्रहण’ लग गया। गुड़िया बताती हैं कि टमाटर हर सब्जी का हिस्सा होता है। अब ऐसी सब्जी बना रही हूँ, जिसमें टमाटर की उपयोगिता न हो। दाम बढ़ने से टमाटर किचन और थाली दोनों से गायब हो गया।

हुकूलगंज में ठेला लगाकर सब्जी बेचने वाले सोनू भारती बताते हैं कि पहले के अपेक्षा टमाटर की खरीदारी कम हो गई है। अधिकतर ग्राहक एक पाव (250 ग्राम) टमाटर ही ले रहे हैं। उसमें भी वह काफी छांट-बीन कर छोटे-छोटे टमाटर ले रहे हैं, ताकि सब्जी का स्वाद बना रहे। दुकानदारी अच्छी रखने के लिए ग्राहकों को मना भी नहीं किया जा सकता है। अंतिम में जब थोड़ा गला हुआ टमाटर बच जाता है तो उसे आजकल हम खुद के खाने के लिए निकल लेते हैं। टमाटर कहाँ से और किस दाम पर लाते हैं? के सवाल पर सोनू बताते हैं कि पहड़ियाँ मंडी से मैं अब एक बकेट टमाटर लाता हूँ जो 25 सौ रुपये प्रति बकेट मिलता है। यह भी बेचने के लिए अब दो दिन इंतज़ार करना पड़ता है। पहले जब टमाटर के दाम 20-30 रुपये किलो थे तो डेढ़ से दो बकेट प्रतिदिन बिक जाते थे।

अदरक यानी आदी इस समय 250-260 रुपये किलो बिक रही है। इसके बढ़े हुए दाम पर हुकूलगंज के ही सब्जी बेचने वाले जियालाल सोनकर बताते हैं कि पहले मैं ढाई किलो आदी ले आता था तो एक दिन में बिक जाता था। अभी कल ही ढाई किलो आदी ले आया हूँ और मात्र आधा किलो ही बिका है। बारिश में अमूमन चाय की चुस्कियों का लुत्फ लेने वालों की बढ़ोत्तरी हो जाती है। बावजूद इसके आदी बिक्री नहीं हो पा रही है। वह आगे बताते हैं कि लू और तेज धूप के कारण सब्जी की फसल झुलस गई है। जिस वजह से हरी सब्जी ऊंची कीमत पर बेचना पड़ रहा है। अब जब तक नई सब्जी बाजार में नहीं आएगी, तब तक सस्ता होने की कोई उम्मीद नहीं है। उन्होंने बताया कि दाम में उछाल होने का असर व्यवसाय पर भी पड़ रहा है। खरीदार भी कम जुट रहे हैं। अगर आ भी रहे हैं तो भाव पूछ कर ही रह जा रहे हैं।

सब्जियों के दाम बढ़ने का सिलसिला सिर्फ वाराणसी का ही नहीं है, यही हाल पूरे भारत में है। बीते चार से पाँच दिनों से टमाटर का रंग ऐसा सुर्ख हुआ है कि इसका असर सीधा घर के बजट पर पड़ा है। आलू-प्याज और टमाटर रसोई की ऐसी तीन जरूरतें हैं जो न हों तो रसोई का स्वाद बिगड़ जाता है और इनके दाम बढ़ जाएं तो घर का बजट। ये तीनों सब्जियाँ बारहमासी होती हैं। अगर आप पिछले चार-पाँच दिनों में सब्जी लेने बाजार गए होंगे तो टमाटर के दाम सुनते ही आप चौंक गए होंगे। टमाटर 20-25 से अचानक 100-120 रुपये किलो कैसे हो गया?

एक खास बात और सामने आई है कि मंडियों और दुकानों में टमाटर के दाम भले ही आसमान छू रहे हैं, लेकिन किसानों के हाथ फिर भी खाली के खाली ही हैं। इस बात पर किसान नेता रामजनम बताते हैं कि यह बिलकुल सच है। किसानों और सरकार के मध्य जो बिचौलिए और बड़े व्यापारी हैं, इस वक्त चाँदी वही काट रहे हैं। चूंकि जब भी टमाटर का सीज़न खत्म होता है। तब बड़े व्यापारी इसका भरपूर फायदा उठाते हैं। बिचौलियों की मदद से कोल्ड स्टोरेज जैसे संसाधनों में टमाटर को रख दिया जाता है और ऐसे ही समय का इंतजार किया जाता है। बाजार में जब टमाटर कम हो जाते हैं तो बड़े व्यापारी मनमाना दाम बढ़ाकर इसे बेचते हैं।

पहड़िया सब्जी मंडी के अध्यक्ष श्याम नारायण कुशवाहा

पहड़िया सब्जी मंडी के अध्यक्ष श्याम नारायण कुशवाहा बताते हैं कि सब्जियों की महंगाई का असर मंडी पर भी पड़ा है। पहले टमाटर की छह-सात ट्रकें आती थीं अब इनकी भी संख्या कम हो गई है। उसी हिसाब से सब्जी विक्रेता भी बाजार में यहाँ से सब्जियाँ खरीदकर ले जा रहे हैं। टमाटर हो या कोई भी सब्जी सभी की आवक कम हुई है। श्याम नारायण बताते हैं- यह मौसम भी असर है कि सब्जियाँ महंगी हो गई हैं। किसान अब नई सब्जियों की तैयारी में होंगे।

 

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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