Monday, June 2, 2025
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विचार

हिंदुत्ववादी राजनीति ने इतिहास के पाठ्यक्रम से गायब किया मुस्लिम शासन का पाठ

भारतीय शिक्षा प्रणाली पर हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों के पहले भी आरएसएस के साम्प्रदायिक संस्करण के माध्यम से प्रतिभाओं, एकल संप्रदायों और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जा रहा था। एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से कक्षा सात से मुगलकालीन शासकों का पाठ हटाकर कुम्भ मेला का पाठ शामिल किया गया।

पहलगाम त्रासदी : आतंकवाद के चलते क्या कभी कश्मीर में शान्ति संभव हो पाएगी

आतंकवाद का खात्मा कैसे हो सकता है? स्थानीय लोगों को राज्य के मामलों से दूर रखने का निरंकुश तरीका आतंकवाद से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। सुरक्षा में बार-बार विफल होना, पुलवामा और अब पहलगाम में सुरक्षा व्यवस्था का विफल होना गहरी चिंता का विषय है।

क्या नेहा सिंह राठौर पर एफआईआर से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी

नेहा राठौर और लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ माद्री ककोटी उर्फ डॉ मेडुसा के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गोदी मीडिया और भाजपा के ट्रोल ने उनके खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया है।न तो नेहा राठौर और न ही माद्री ककोटी ने इस मामले में कोई खेद व्यक्त किया बल्कि नेहा लगातार आलोचना जारी रखे हुये हैं। एक वीडियों में उन्होंने गोदी मीडिया को देश का गद्दार और अपराधी भी कहा।

पहलगाम आतंकी हमला : कश्मीरी जनता का अमन छीननेवाले अपराधी कौन हैं

पहलगाम पर आतंकियों द्वारा किया गया हमला 100% सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का जीता-जागता उदाहरण है। पिछले कुछ वर्षों में, सांप्रदायिक तत्वों ने देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। यह पहली बार नहीं हुआ है बल्कि इसके पहले पुलवामा अटैक भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा हिस्सा था। इसी तरह अगस्त 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए बंद के दौरान दो सप्ताह जम्मू-कश्मीर में रहकर वहाँ की स्थितियों पर लिए गए जायजे के अनुभव साझा कर रहे हैं सुरेश खैरनार।

आंबेडकर जयंती के दिन मंडेला के लोगों से प्रेरणा लें : भारत के वंचित समुदाय 

आज हम बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की 134 वीं  जयंती एक ऐसे समय में मना रहे हैं, जब आंबेडकरवादियों को उस हिन्दू राज का भय बुरी तरह सता रहा है, जिसके खतरे से बचने के लिए बाबा साहब वर्षों पहले आगाह कर गए थे। उन्होंने हिन्दू राज के खतरे से आगाह करते हुए कहा था, ’अगर हिन्दू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा। हिन्दू कुछ भी कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समता और बंधुता के लिए खतरा है। इस पैमाने पर वह लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता है। इसलिए हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।’

राम के नाम पर हमें बस सत्ता चाहिए – एक ‘सावरकराइट’ की स्वीकारोक्ति!

डॉ नेने वडोदरा के एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक और कट्टर सावरकराइट थे। नब्बे के दशक में डॉ सुरेश खैरनार एक शाम उनके बुलावे पर खाना खाने गए। उस समय राम मंदिर कि गतिविधियाँ तेज हो रही थीं। ज़ाहिर है बातचीत के केंद्र में वही था। उस समय डॉ नेने ने कहा कि राम के नाम पर हमें केंद्र की सत्ता चाहिए। पढ़िये यह दिलचस्प बातचीत जिसको हिन्दी में रांची के वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट श्रीनिवास ने प्रस्तुत किया है।

भाजपा की आगामी इतिहास परियोजना : तुगलक.. तुगलक.. तुगलक.. तुगलक….

जिस पार्टी के पास आम जनता के असली मुद्दों से टकराने का साहस नहीं होता, वह ऐसे ही मुद्दों पर सुर्खियां बटोरने के काम में लगी रहती है, चाहे उसके परिणाम देश के लिए कितने ही खतरनाक क्यों न हो! औरंगजेब के बाद अकबर, बाबर और अब तुगलक को निशाने पर साधा है, क्योंकि संघ की स्थापना हिंदुत्व और सांप्रदायिकता को आगे बढ़ाने के लिए हुई थी, इसमें अब इनका राजनैतिक दल भाजपा बढ़ चढ़कर काम कर इतिहास बदलने का काम कर रहा है।

राष्ट्रवादी राजनीति की छत्रछाया में हिंदू त्यौहारों में बढ़ती साम्प्रदायिकता

हिन्दुत्ववादी राजनीति का हमारे उत्सवों पर पड़ा प्रभाव उस राजनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है।  जिस प्रकार इनमें से कुछ त्योहारों को हथियार बना लिया गया है, यह शर्मनाक है। हिंदू राष्ट्रवादियों का एक छोटा सा समूह भी धार्मिक जुलूस होने का दावा करते हुए अल्पसंख्यकों की बस्तियों से जाने की जिद कर सकता है। राजनैतिक और गाली-गलौज भरे नारे लगाकर और हिंसक गाने और संगीत बजाकर वह कोशिश करता है कि वहां के निवासी युवक भड़क जाएं और उन पर एकाध पत्थर फेकें। इसके आगे का काम सरकार करती है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : महिलाओं के प्रति सामाजिक व्यवहार से उठता हुआ सवाल कि क्या वाकई महिलाएं आज़ाद हैं

हर साल आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। यूं तो यह एक महत्वपूर्ण दिन है लेकिन इसका अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है। अखबार प्रायः विभिन्न क्षेत्रों में सफल महिलाओं की तस्वीरें और विवरण छापकर और कुछ विज्ञापन जुटाकर इसे मना लेते हैं। अमूमन पुरुष इसके प्रति मज़ाकिया वाक्य लिखते हैं और कुछ लोग अपने भीतर की हिपोक्रेसी का परिचय देते हुये बधाई और शुभकामनाओं से फेसबुक को पाट देते हैं। लेकिन वास्तव में यह दिन हमें उन हालात की ओर नज़र डालने को प्रेरित करता है जिनमें पूरी दुनिया की महिलाएं फिलहाल जी रही हैं। भारत जैसे देश में जहां अभी भी महिलाओं के ऊपर जाति-व्यवस्था और पितृसत्ता के कई-कई जुए नाधे गए हैं, के साथ ही अतिरिक्त बाकी दुनिया की महिलाओं की स्थितियाँ बहुत भयावह हैं। फिलिस्तीन, सीरिया और रोहिंग्या समुदाय की स्त्रियों की कतार में मणिपुर की महिलाओं की त्रासदी को भी देखा जाना चाहिए। स्त्री उत्पीड़न के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आ रही है बल्कि उनके खिलाफ अपराध की नई-नई विधियाँ सामने आ रही हैं। आठ मार्च इन सब पर ठहर कर सोचने का दिन है क्योंकि सोच ही मनुष्य को मन के भीतर उतरने का रास्ता देती है। और तभी यह समझा जा सकता है कि आखिर आठ मार्च की प्रासंगिकता क्या है। जाने-माने बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुरेश खैरनार ने अपने अनुभवों के आधार पर इस दिन को इसी ज़िम्मेदारी के तहत याद किया है।

सत्ता के नशे की बीमारी सदियों पुरानी है और पूरी दुनिया में फैल चुकी है

सत्ता का नशा पूरी दुनिया भर के कई राजनेताओं के पदों पर आसीन होने के बाद देखा गया है। जिन देशों में दक्षिणपंथी दलों का शासन है, वहाँ के मुखिया तानाशाह तरीके से जनता को हांक रहे हैं। अभी डोनाल्ड ट्रम्प की चर्चा सबसे अधिक है, जो दूसरी बार सत्ता में आए हैं, उनके द्वारा गाजा निवासियों को उनके देश से बेदखल कर दुनिया का बेहतरीन समुद्री रिसॉर्ट बनाने की बात कही, जो इंसानियत के प्रति घोर असंवेदनशीलता को दिखाता है।

क्या राष्ट्र की जिम्मेदारी केवल हिन्दू समाज के कंधों पर है?

स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य हमारे संविधान का हिस्सा हैं; जहां धर्मों और भाषाओं से परे बहुलता और विविधता है। मोहन भागवत हिंदू समाज के भीतर विविधता की बात कर रहे हैं और सोचते हैं कि केवल हिंदू ही इस राष्ट्र के लिए जिम्मेदार हैं! भागवत की 'केवल हिंदू' की विचारधारा देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है। वे वसुधैव कुटुंबकम का पालन करने का दावा करते हैं, लेकिन इन पर कोई अमल नहीं होता। देश के लिए हिंदू ही जिम्मेदार हैं, यह कहना विभाजनकारी होने के साथ गैर जिम्मेदाराना बयान है।
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