बीसवीं सदी के नब्बे के दशक में, मणिबेली में चल रहे ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ सत्याग्रह को समर्थन देने मैं कलकत्ता से बड़ोदरा आया था। अगले दिन मणिबेली जाना था। वडोदरा के मेरे जजमान श्री बा. जोशी थे। वह कभी कलकत्ता नैशनल लायब्रेरी में थे। तभी हमारी दोस्ती हुई थी। वह रिटायर होकर वडोदरा में रह रहे थे। जोशीजी के घर में पहुंचते ही, उन्होंने कहा कि ‘आपको आज रात के खाने के लिए डॉक्टर नेने ने आमंत्रित किया है।’
तो मैंने पूछा- ‘मराठी साप्ताहिक ‘माणूस’ में दादू मियाँ नाम से जो कॉलम लिखते हैं, वे ही क्या?’
जोशीजी ने कहा- वही। खाने पर जोशी जी भी आमंत्रित थे। डॉ नेने कट्टर सावरकराइट थे। पेशे से डॉक्टर। उनके पुरखे कभी काम के लिए महाराष्ट्र से आकर वडोदरा रियासत में बस गये थे। मैं कॉलेज के दिनों में ‘माणूस’ का नियमित ग्राहक था। उसमें डॉक्टर नेने का ‘दादू मियाँ’ के नाम से एक पन्ने का कॉलम होता था। वह भले ही ‘दादू मियाँ’ नाम से लिखते थे, लेकिन उनका कॉलम अमूमन मुस्लिमों के खिलाफ ही होता था।
मैंने सोचा, इस आदमी का मुझे खाने पर बुलाने की कोई विशेष वजह होगी, क्योंकि आपातकाल में मैं जब भूमिगत था, तब इनके घर पर सप्ताह भर से भी अधिक समय ठहरा था। वह सावरकराइट हैं, यह भी तभी जान चुका था। आपातकाल के निठल्ला भूमिगत को काम क्या होता था? तो डॉक्टर नेने के साथ हिंदुत्व को लेकर घमासान बहस होती रहती थी।
डाक्टर नेने ने कहा था कि ‘जल्द आऊं, क्योंकि बातचीत के लिए समय चाहिए। तो हम लोग शाम में ही उनके घर पहुंच गये। शुरू में इधर-उधर की बातें होने के बाद, मैंने कहा पूछा- ‘बाबरी मस्जिद का आंदोलन आप लोगों ने अभी क्यों शुरू किया?’
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यह 2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर 1990 के बीच की बात है, जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे। मैंने आगे पूछा- ‘दादू मियाँ’ के नाम से आपके कॉलम ज्यादातर इस पर ही होते थे कि मुस्लिम शासकों ने भारत में सत्ता हासिल करने के बाद हिंदुओं के साथ क्या-क्या किया? मतलब आपने इतिहास का काफी अध्ययन किया है। तो बताइये कि यदि पांच सौ साल पहले बाबर ने अयोध्या आकर राम जन्मभूमि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनायी थी, तो बीते पांच सौ साल के दौरान मुस्लिम शासन खत्म हुआ, अंग्रेजी शासन भी दो सौ साल रहा। अभी आजादी के बाद भी चालीस साल से अधिक समय बीत चुका है। तो अब अचानक राम मंदिर के लिए रथयात्रा, और ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ नारों के साथ, देश भर में उन्मादी माहौल पैदा करने की वजह क्या है? विगत 500 सालों में, इसके पहले, ऐसी कोशिश की गयी थी?
डॉ नेने ने कहा- हमने बीसवीं शताब्दी के शुरू में ‘हिंदू महासभा’ की स्थापना की थी और हम शुरुआती दिनों में कुछ हद तक कामयाब हो रहे थे। कांग्रेस में रहते हुए, खास कर जब तक लोकमान्य तिलक जीवित थे। उनकी मृत्यु के बाद और कांग्रेस पर महात्मा गाँधी का प्रभाव हो जाने के बाद, हमें लगा कि अब कांग्रेस में रह कर कोई लाभ नहीं, तो 1925 में आरएसएस की स्थापना की। लेकिन गांधी इतना चतुर निकले कि अपने-आप को सनातनी हिंदू कहते हुए उन्होंने हिंदू धर्म की प्रार्थना, आश्रमों की पद्धति और खुद अधनंगा रहते हुए, ऋषियों के जैसे रहने से, उन्होंने भारतीय जनमानस पर अपना प्रभाव कायम कर लिया- हमारी अपनी जगह को दखल कर ही। हिंदू महासभा या आरएसएस का प्रभाव उस तुलना में बहुत ही सीमित रहा। हालांकि हम लोगों ने रामराज्य परिषद, गोहत्या तथा अन्य कई प्रकार के प्रयोग किये, लेकिन गांधी के सामने हमारे इन प्रयासों को नहीं के बराबर समर्थन था।
मैंने तपाक से पूछा- ‘इसी कारण आप लोगों ने उन्हें जान से मार डाला?’
मेरे सवाल को अनदेखा करते हुए उन्होंने आगे कहा- ‘उनकी हत्या से तो हमारी स्थिति और भी खराब हो गयी। हमें हिंदू समाज में भी लगभग अछूत जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। हम लोग विभिन्न प्रकार की कोशिशें करते रहे, लेकिन कुछ कामयाबी नहीं मिल रही थी। लोकसभा में दो सीटें थीं, तो अभी बड़ी मुश्किल से नब्बे तक पहुंचे हैं।
मैंने कहा- 544 के लोकसभा में धार्मिक ध्रुवीकरण करने से आपको जिंदगी में कभी भी बहुमत नहीं मिल सकता। इसलिए कि सौ करोड़ की आबादी में ब्राम्हण और कथित उंची जातियाँ 25-30% भी नहीं हैं। बचे हुए 75%, जिनमें मुस्लिम, दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के लोग आपकी सेठ-साहूकारों और पूंजीपति तथा ऊंची जात के लोगों की पार्टी को क्यों वोट देंगे?
स्वामी विवेकानंद तक ने तक कहा है कि ‘भारत में इस्लाम या ईसाई धर्म में ज्यादातर हिंदुओं ने जाति-व्यवस्था की वजह से अपनी मर्जी से धर्मांतरण किया है। अगर तलवार या सत्ता के दबाव से धर्मांतरण करने की कोशिश की गई होती तो आप और मैं भी जोशी, नेने, खैरनार की जगह जफर, नौशाद या खान नाम के रहे होते। मैं आपके वडोदरा महाराज के मूल गांव के बगल का, मतलब खानदेश से हूँ। लेकिन यह खानदेश कभी भी मुस्लिम बहुल नहीं था और न ही आज है।
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‘मुस्लिम बादशाह या हमलावर एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरआन लेकर आये थे’। यह संघ की शाखाओं में कहा जाता है। लेकिन औरंगाबाद के नाम वाले औरंगजेब नब्बे साल से अधिक उम्र तक जीवित रहा और पचास साल तक बादशाह था। उन पचास वर्षों में से उत्तर भारत की तुलना में अधिक से अधिक समय तक दक्षिण भारत में रहा! मरा भी दौलताबाद में। फिर भी उसने अपने कब्जे वाले कर्नाटक, मराठवाड़ा, खानदेश, विदर्भ तथा भारत के बहुत बडे हिस्से में इस्लाम धर्म को क्यों नहीं फैलाया?’
डॉ नेने बोले- ‘वह सब छोड़िये, हमारी हिंदुत्ववादी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए, इसके पहले सभी कोशिशों से कुछ हासिल नहीं हो रहा था। लेकिन रामानंद सागर की टीवी धारावाहिक रामायण के समय रास्ते खाली हो जा रहे हैं। यहां तक कि लोग अपने घर के शादी-ब्याह जैसे कार्यक्रमों को भी रामायण के समय को टाल कर कर रहे हैं। विधानसभा तथा अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम तक लोगों को उस हिसाब से करने पड़ रहे हैं।
तो हम लोगों ने ‘जस्ट ट्रायल एंड एरर’ के तौर पर राम मंदिर के मुद्दे पर, रथयात्रा और अन्य कार्यक्रम करने की शुरूआत की और हमारे ध्यान में आया कि यह बहुत ही भीड़ खींचने वाला होता जा रहा है। इसलिए हम तो चाहते हैं कि मस्जिद बनी रहे (अन्यथा हमारा मुद्दा खत्म हो जायेगा) और आगे हमारे धार्मिक ध्रुवीकरण के प्रयास जारी रहेंगे। तभी हम दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं।
मैंने कहा- ‘एक मिनट के लिए मान लिया जाये कि आप दिल्ली के तख्त तक पहुंच जाओगे। लेकिन अखंड भारत का क्या? क्योंकि भारत के बंटवारे का आरोप लगाते हुए, आप लोगों ने गांधीजी की हत्या की है। और आज भी कांग्रेस तथा अन्य लोगों पर वह आरोप लगाते हुए थकते नहीं हो। लेकिन आज से पचास साल पहले बंटवारा चाहने वालों का आरोप क्या था? यही न, कि हिंदू बहुल भारत में हमें न्याय नहीं मिल सकता, इसलिए हमें अलग मुल्क चाहिए।
सन 1947 में पाकिस्तान बनने के बावजूद भारत में पाकिस्तान से भी अधिक संख्या में मुसलमानों की संख्या है। और वह कहीं जाने वाले भी नहीं हैं, क्योंकि 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद तो पाकिस्तान की धर्म के आधार पर अलग देश बनाने की मांग कितनी गलत थी, वह सिद्ध हो गया, और आज के बचे-खुचे पाकिस्तान में भी सिंध, बलुचिस्तान, पख्तूनिस्थान, पंजाब के बीच रत्ती भर की एकता नहीं है। इसलिए धर्म के आधार पर राष्ट्र निर्माण करने की मांग शत-प्रतिशत गलत साबित हो रही है।
‘लेकिन एक आप लोग हो जो हिंदुत्व के आधार पर गत सौ वर्ष से माथापच्ची कर रहे हो। जिन्हें आप बाहरी धर्म के लोग बोल कर, उनके खिलाफ नफरत पैदा कर रहे हो, वह कोई छोटा समुदाय नहीं है। वह कम-से-कम पंद्रह करोड़ जनसंख्या जो इंडोनेशिया के बाद दुनिया की दूसरे नंबर की मुसलिम आबादी है। और इतनी बड़ी आबादी को असुरक्षित मानसिकता में डालने का मतलब है एक और बँटवारे की बुनियाद डालना। किसी भी युद्ध में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को मरने का आंकड़ा नहीं है। एक साथ मिलजुल कर रहने का, वह भी एक दूसरे को देखते हुए, आंखों को लाल-पीला करने से नहीं, प्यार मोहब्बत से रहना यही एकमात्र उपाय है। अन्यथा और बंटवारे की नौबत आ सकती है।’
इस पर डॉ नेने ने कहा- ‘पहले हमें दिल्ली की गद्दी पर बैठने दो फिर बाद में देख लेंगे।’
मेरे जजमान श्री बा. जोशी ने खाना खाने के बाद वहां से लौटते समय रास्ते में कहा- ‘हिंदुत्ववादी लोग इतने हृदयहीन होते हैं?’
मैंने कहा- ‘धर्म को लेकर राजनीति करने वाले, सभी एक जैसे ही हृदयहीन होते हैं।’